फ़्रांस, भारत और ब्रिटेन के चुनावों में झूठा अंतर्राष्ट्रीय विमर्श : बाल बाल बचे मोदी लेकिन निपट गए मैक्रो और ऋषि सुनक
फ्रांस में हाल में संपन्न हुए चुनाव के बाद पूरे देश में दंगे भड़क उठे हैं. 182 सीटें पाकर वामपंथी गठबंधन सबसे बड़ा गठबंधन बनकर उभरा है, जिसे इस्लामिक वामपंथ गठजोड़ का समर्थन प्राप्त था. यद्यपि उन्हें सरकार बनाने के लिए 289 सीटों का बहुमत नहीं मिला है, लेकिन इस्लामिक-वामपंथ समर्थक जश्न मनाने के लिए सड़कों पर आ गए. वे एमैनुअल मैक्रों की सरकार तथा मरीन ले पेन की दक्षिणपंथी विचारधारा वाली पार्टी नेशनल रैली के विरुद्ध प्रदर्शन कर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि वामपंथ गठबंधन को सरकार बनाने का मौका दिया जाय. इन कट्टरपंथियों ने एफिल टावर को इस्लामिक झंडे से ढक दिया और पेरिस में शरिया कानून लागू करने के नारे लगाए. प्रदर्शनकारी जमकर हिंसा कर रहे हैं और आगजनी से पूरा फ्रांस चल रहा है. फ्रांस के मूल निवासी दक्षिणपंथी और मध्यमार्गी विचारधारा के लोग हिंसा का शिकार हो रहे हैं. चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में बताया जा रहा था कि दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली बहुमत लाकर सरकार बनाने में सफल हो सकती है जिससे इस्लामिक कट्टरपंथी बेचैन थे क्योंकि मरीन ले पेन ने कहा था कि वह अवैध घुसपैठियों से फ्रांस को मुक्त कराएगी और कट्टरपंथियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करेगी. इसलिए इस्लामिक कट्टरपंथियों के सहयोग से वामपंथी गठबंधन ने रणनैतिक रूप से चुनावी व्यूह रचना कर मरीन ले पेन की पार्टी को हराने का कार्य किया और 143 के साथ तीसरे स्थान पर ढकेलने में सफल हो गए. फ़्रांस में इसके पहले अवैध मुस्लिम घुसपैठियों द्वारा किए गए दंगों के विरुद्ध राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने भी बहुत सख्त कार्रवाई की थी, जिससे इस्लामिक-वामपंथ संगठन और उसके सदस्य खासे नाराज थे. इसीलिए फ्रांस में मैक्रों सरकार के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय धनकुबेरों के सहयोग से झूठे विमर्श चलाए गए और आम फ्रांसीसियों ने भी उनके षड्यंत्र में फंसकर वोट दिया जिससे एमेनुएल मैक्रों की पार्टी केवल 168 सीटें ही पा सकी और सत्ता से बाहर हो गयी. इस तरह फ्रांस में झूठे विमर्श का प्रयोग पूरी तरह सफल रहा. फ्रांस अस्थिरता के जिस दलदल में फंस गया है, वह फ्रांस के लिए खतरा बन चुकी मुस्लिम कट्टरपंथी ताकतों को और अधिक मजबूत करेंगा. फ्रांस और ब्रिटेन दोनों ने भारत के चुनाव से कोई सबक नहीं लिया लेकिन अब भारत को फ़्रांस से सबक अवश्य लेना चाहिए.
ब्रिटेन में ऋषि सुनक के चुनाव हारने की कई वजहें बताई जा रही हैं, उनमें ज्यादातर समस्याएं अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई हैं, जो उन्हें विरासत में मिली थी. प्रधानमंत्री के रूप में लगभग डेढ़ साल के कार्यकाल में महंगाई, आवास, ज्यादा टैक्स और अवैध घुसपैठ के समाधान की अपेक्षा करना बेमानी है लेकिन उनकी हार की असली वजह है, रवांडा योजना, जिसके अंतर्गत अवैध मुस्लिम घुसपैठियों को 4 जुलाई 2024 के बाद ब्रिटेन से निकालकर रवांडा भेजा जाना था. वामपंथी और इस्लामिस्ट इसका विरोध कर रहे थे. चुनावों में भारतीय मूल के ऋषि सुनक को हराने के लिए उसी तरह झूठे विमर्श गढ़े गए जैसे भारत में मोदी को और फ्रांस में इमैनुअल मैक्रों को सत्ता से हटाने के लिए किए गए थे. यूरोप के कई देश अवैध मुस्लिम घुसपैठियों की गिरफ्त में आ चुके हैं. इनके चंगुल से छूट पाना काफी मुश्किल है और तब, जबकि बड़ी संख्या में देशवासी इनसे सहानुभूति रखते हो और इनकी अराजकता का समर्थन करते हों, ये देश बचेंगे, कहना मुश्किल है.
भारत मैं आम चुनाव के बीच राहुल गाँधी ने कहा था कि अगर मोदी फिर चुनाव जीत गए तो देश में आग लग जाएगी लेकिन भाजपा 240 पर अटक गयी और अपने दम पर बहुमत नहीं ला सकी. कांग्रेस की सीटों की संख्या लगभग दोगुनी होकर 99 हो गई और राहुल गाँधी दोनों जगह से चुनाव जीत गए. कल्पना करिए कि भाजपा की सीटें 40 और कम हो जाती और कांग्रेस की 40 सीटें और बढ़ जाती तो, भारत को फ्रांस बनने से कोई नहीं रोक सकता था. शुक्र मनाइये कि भारत आग लगाए जाने से बाल बाल बच गया. भारत और फ्रांस में एक चीज़ आम है, भारत में हिंदुओं का और फ्रांस में मूलनिवासियों का एक बड़ा वर्ग उदारवादी है. दोनों ही देशों में राजनैतिक दल मुस्लिम तुष्टीकरण करते है और अवैध मुस्लिम घुसपैठियों को संरक्षण देते हैं. भारत में हिंदुओं के लिए और फ्रांस में मूल निवासियों के लिए मुखर होकर कोई भी राजनैतिक दल बात नहीं करता. भारत में हिंदुओं और फ्रांस में फ्रांसीसियों का बहुत बड़ा वर्ग धर्म से विमुख होकर सहिष्णु हो चुका है और वे इस्लामिक कट्टरता का मुकाबला करने से डरते हैं. इसलिए दोनों देशों मुस्लिम जनसंख्या बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर धर्मांतरण ओर अवैध घुसपैठ का षड्यंत्र सफलतापूर्वक चल रहा है.
भारत में चुनाव से पहले विपक्ष भी ये मानकर चल रहा था कि मोदी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल होंगे तथा उन्हें पिछली बार से ज्यादा सीटें मिलेंगी. ये आकलन गलत भी नहीं था लेकिन वैश्विक धनकुबेरों की सहायता से इस्लामिक कट्टरपंथी और भारत विरोधी ताकतें मोदी को सत्ता से हटाने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहीं थी, जिसके लिए झूठे विमर्श गढ़े जा रहे थे और आंदोलन प्रयोजित किए जा रहे थे. राहुल गाँधी की यूरोप और अमेरिका की यात्राओ से स्पष्ट झलक मिल गयी थी कि भारत में कुछ बड़ा किया जाने वाला है. जहाँ हिंडनबर्ग की रिपोर्ट भारतीय शेयर मार्केट को ध्वस्त करने के लिए लाई गई थी, वहीं मणिपुर की समस्या सामाजिक ताने बाने को छिन्न भिन्न करने के लिए उत्पन्न की गई और दोनों में ही भारत विरोधी विदेशी शक्तिओं का हाथ स्पष्ट दिखाई पड़ता है. इन्ही कट्टरपंथी सांप्रदायिक शक्तियों द्वारा उत्तर प्रदेश को हिंदू समाज के विघटन की प्रयोगशाला बनाया गया, जहां दलितों और पिछड़ों को मुस्लिमों के साथ खड़ा करने की पीएफआई की योजना को पीडीए ( पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) नाम देकर सफल प्रयोग किया गया.
भाजपा अपने बलबूते पूर्ण बहुमत पाने से चूक गईं तो समूचे विश्व को आश्चर्य हुआ, यद्यपि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे गठबंधन सहयोगियों के कारण भाजपा पूर्ण बहुमत पाकर सरकार बनाने में कामयाब हो गयी. भाजपा भले ही सबसे बड़ी पार्टी हो, और कांग्रेस से ढ़ाई गुनी बड़ी हो लेकिन झूठा विमर्श बनाया गया जैसे कांग्रेस जीत गई हो और भाजपा हार गई हो. तमाम कोशिशों के बाद भी गनीमत रही कि भारत को फ्रांस नहीं बनाया जा सका लेकिन उकसाने की कोशिशें अभी भी की जा रही हैं. संसद के पटल से पूरे विश्व को संदेश दिया गया कि हिंदू हिंसक होते हैं लेकिन इसी नेता ने कन्हैया लाल के हत्यारों से नाराज न होने की बात स्वीकारीं थी. नूपुर शर्मा “सिर धड से जुदा” के फतवे के बाद सुरक्षा घेरे में कैद है, लेकिन हिंसक होने का आरोप हिन्दुओं पर लगाया गया है.
भाजपा सरकार बनने से आहत इस्लामिक कट्टरपंथी मोदी सरकार को दबाव में लेने की रणनीति अपना रहे हैं. गज़वा ए हिंद का फतवा अपने मदरसे की वेबसाइट पर डाल कर भारत को शीघ्रातिशीघ्र इस्लामिक राष्ट्र बनाने में लगे देवबंद के मदरसा दारूल उलूम के मालिक अरशद मदनी कह रहे हैं कि मुसलमानों ने मोदी से अपना बदला ले लिया हैं, ताकि मोदी सूफियों, वहाबियों और पसमांदाओं को खुश करने की अपनी पुरानी योजना पर वापस आ जाए और धर्मांतरण, लव जिहाद, जमीन जिहाद, वक्फ बोर्ड आदि के कामों में दखल न दें. भारत के कानून और राजनेताओं में इच्छाशक्ति की कमी के कारण भी भारत में इस्लामिक कट्टरता काबू से बाहर होती जा रही है. तृणमूल कांग्रेस के नेता और कोलकाता नगर निगम के मेयर फिरहाद हकीम कहते हैं की जो इस्लाम में पैदा नहीं हुए, बदकिस्मत हैं उन्हें इस्लाम में लाना होगा और अगर हम ऐसा करेंगे तो अल्लाह खुश होगा. यानी उन्होंने खुले तौर पर सभी को दीन की दावत दे दी है. अभी तक उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही शुरू नहीं हुई है. लॉक डाउन की धज्जियां उड़ाकर देश में कोरोना फैलाने वाले तब्लीगी जमात के मौलाना साद के विरुद्ध सरकार ने क्या किया, कुछ पता नहीं. सरकारी भूमि पर बनाया गया तब्लीगी जमात का अवैध निर्माण आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है. बरेली के मौलाना तौकीर रजा कहते हैं कि आज कुत्तों के दिन हैं, कल हमारे भी आयेंगे और उनका कुछ नहीं बिगड़ता.
हिंदुओं को अपने बारे में बन रही धारणा को बदलना होगा कि वे डरपोक और पलायनवादी होते हैं और आलू, प्याज और पेट्रोल के दाम में ही उलझे रहते हैं तथा राष्ट्रहित में एकजुट होकर मतदान नहीं करते. पूरी दुनियां में मुसलमान हमेशा एकजुट होकर इस्लाम को सर्वोपरि रखते हुए वोट करते है. पीडीए के नाम पर दलित और पिछड़े वर्ग के जो लोग मुस्लिमों के साथ एकजुटता प्रदर्शित कर रहे हैं उन्हें जोगेंद्र नाथ मंडल के जीवन से सबक लेना चाहिए जो 1930 में मुस्लिम में शामिल हुए थे और विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे, लेकिन वहाँ दलितों पर हो रहे अत्याचार और धर्मान्तरण पर उनकी एक नहीं सुनी गई उल्टे उन्हें देशद्रोही घोषित कर दिया गया. इतना अपमानित होकर उन्हें हिंदू और मुसलमान के बीच का अंतर समझ में आया और तब वह भारत लौट आए लेकिन उन्होंने अपना, दलितों, हिंदुओं और हिंदुस्तान का इतना अधिक नुकसान किया था जिसकी पीड़ा वह मरते दम तक नहीं भुला सके.
~~~~~~~~~~~~~~~~``शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~