सोमवार, 27 मार्च 2023

सरकार योगी की, सिस्टम किसका

 



सरकार योगी की, सिस्टम किसका  

सरकारें बदल जाती है और नये तरीके  से काम भी शुरू कर देती है, लेकिन तंत्र (सरकारी मशीनरी) में बदलाव के लिए बहुत अधिक ध्यान केंद्रित नहीं करती. इसलिए सिस्टम में बदलाव या तो आता ही नहीं या फिर थोड़े बदलाव में इतना अधिक समय लग जाता है कि सरकार के बहुत से अच्छे प्रयास व्यर्थ चले जाते हैं. ये सही है कि व्यवस्था में बदलाव लाना आसान नहीं होता क्योंकि सुधारात्मक और गुणात्मक परिवर्तन का विरोध मानवीय स्वभाव है. भारत में सरकारी कर्मचारियों की मन: स्थिति अनुशासन, कार्यकुशलता और ईमानदारी के प्रति सामान्यतय: अनुकूल नहीं होती. इसलिए जो सरकार स्वयं इनका पालन करते हुए जब सुधारात्मक कदम उठाती है, सरकारी कर्मचारी असहज हो जाते हैं और उसका प्रत्यक्ष या परोक्ष विरोध करते हैं. कई बार यह विरोध इतना तीव्र होता है कि सरकारों को कार्य करना भी मुश्किल पड़ जाता है. इसलिए ज्यादातर सरकारे बीच का रास्ता अपनाती हैं और ईमानदारी, सुचिता, समयपालन, कार्यकुशलता आदि ऊपर से यानी मंत्रिमंडल स्तर से शुरू करती हैं, जो बेहद आसान होता है. इससे सरकार की छवि अच्छी बन जाती है और उच्च स्तरपर बदलाव दिखाई पड़ने लगता है, भले ही वह अस्थायी हो. लेकिन यह पर्याप्त नहीं होता क्योंकि ऊपर से नीचे तक जो कड़ी बनी होती है वह नहीं टूटती. इसलिए जनता को सरकार परिवर्तन का जितना लाभ मिलना चाहिए, उतना नहीं मिल पाता क्योंकि उसे उन विभागों के भ्रष्टाचार से मुक्ति नहीं मिल पाती, जहाँ निरंतर उसका काम पड़ता है.

विभिन्न सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार भारत की एक प्रमुख समस्या है. सरकारी तंत्र के इस दुर्गुण का भरपूर फायदा असामाजिक, दबंग तथा पैसे वाले लोग  उठाते हैं. धीरे धीरे जनता को भी लगने लगा है कि भ्रष्टाचार प्रत्येक सरकार का अभिन्न हिस्सा है, और इसलिए कई बार लोग बेहद निराशा में कहते हैं “कोई नृप होय हमें क्या हानि”. बहुत से सरकारी कर्मचारियों सहित अन्य लोग जो स्वयं ईमानदार होते हैं, भ्रष्टाचार के  चक्रव्यूह में अभिमन्यु बनने की बजाय, बेहद मजबूरी में दान दक्षिणा देने को मजबूर हो जाते हैं.  भ्रष्टाचार का यह तंत्र जब अपराध जगत से जुड़ जाता है, तो स्थितियां देश और समाज के लिए अत्यंत भयावह हो जाती है.

अगर उत्तरप्रदेश की बात करें तो यहाँ योगी सरकार का दूसरा कार्यकाल चल रहा है. उनके कार्यकाल में उच्च स्तर पर कोई भ्रष्टाचार सामने नहीं आया. अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति ने अपराधियों में भय उत्पन्न किया और इससे प्रदेश की कानून व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार हुआ. महिलाएं और युवतियां बिना भय के घर से बाहर निकलने लगी. प्रदेश साम्प्रदायिक वातावरण से भयमुक्त होकर दंगामुक्त हो गया. धरना, प्रदर्शन और आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को हुई क्षति की वसूली करने की नीति के कारण सार्वजनिक संपत्तियों को होने वाला नुकसान भी लगभग बंद हो गया. इसलिए स्वाभाविक रूप से वर्तमान परिस्थितियों में जनता ने सर्वोत्तम विकल्प के रूप में  योगी को पुनः सत्ता में पहुंचाया लेकिन अभी भी जनता सरकारी विभागों के भ्रष्टाचार और गैर पेशेवर कार्यशैली से बुरी तरह त्रस्त है. इनमें कचहरी, तहसील, ब्लॉक, पुलिस थाना और रजिस्ट्री कार्यालय आदि प्रमुख हैं. अपराधी, माफिया और बाहुबलियों के पुलिस तथा अन्य सरकारी विभागों से संबंध आज भी खतरनाक स्तर पर बने हुए हैं.

बांदा जेल में बंद पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के भतीजे और प्रदेश के चर्चित माफिया मुख्तार अंसारी के विधायक पुत्र अब्बास अंसारी को हाई सेक्युरिटी जेल चित्रकूट में अधिकारियों की मिलीभगत से ऐशो आराम की सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा रही थी. सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए अब्बास अंसारी की पत्नी लगभग रोज़ ही अपने पति से 3-4 घंटे जेल के अन्दर “प्राइवेट रूम” में मिलती थी. जांच के अनुसार इसके लिए जेल अधिकारियों, कर्मचारियों को  भारी भरकम  धनराशि अदा की गई थी. जेल से ही अब्बास फ़ोन करके लोगों को धमकाने और रंगदारी वसूल करने का कारोबार चलाता था. विडंबना देखिए कि जिस पुलिस ने उसे पकड़ कर जेल में बंद किया, वही जेल से ही उसे अपराधिक गतिविधिया चलाने के लिए सभी सुविधाएँ उपलब्ध करा रही थी. पुलिस की कार्यशैली देखिए कि पिता-पुत्र को पास पास की जेलों में बंद किया, शायद इसलिए कि मिलने आने वालों को कोई समस्या न हो? मामले का भंडाफोड़ होने के बाद अब्बास अंसारी को अन्य जेल में स्थान्तरित कर दिया गया और उसकी पत्नी को गिरफ्तार करके उसी चित्रकूट जेल में रखा गया, जहाँ उसने जेल कर्मचारियों से संपर्क बनाकर अपने पति के लिए सुविधाएँ जुटाने का कार्य किया था. 

दूसरा मामला एक अन्य  माफिया अतीक अहमद का है जो इस समय गुजरात की एक जेल में बंद है. पुलिस रिपोर्ट के अनुसार  उसके इशारे पर बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मुख्य गवाह उमेश पाल की दिनदहाड़े गोलियां और बम मारकर हत्या कर दी गई. पुलिस की प्रारंभिक रिपोर्ट से पता चलता है कि अतीक अहमद ने गुजरात की जेल से वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग के माध्यम से अपनी पत्नी और गिरोह के अन्य सदस्यों से बात करके हत्याकांड की योजना बनाई थी. गुजरात में भी अतीक को जेल में विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध हो जाती है. गुजरात में भाजपा पांचवीं बार सत्ता में आई है लेकिन सिस्टम अभी भी पूरी तरह से बदल नहीं पाया है.

 ये दोनों मामले यह रेखांकित करने के लिए पर्याप्त हैं कि योगी सरकार में भी पुराना सिस्टम अभी भी काम कर रहा है. अपराधियों के लिए बुलडोजर का अभिनव प्रयोग करने वाले योगी के कार्य को देश में बहुत सराहना मिली और इस कारण देश विदेश में उन्हें बुलडोजर बाबा के नाम से जाना जाता है. उनकी बुल्डोजर सफलता के कारण अन्य राज्यों में भी बुलडोजर का प्रयोग प्रारम्भ हो गया है. शुरू में बुलडोजर का बहुत अधिक विरोध हुआ था. इसे गैर कानूनी बताकर मामला उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय तक गया, जहाँ प्रदेश सरकार यह सिद्ध करने में सफल रही कि बुलडोजर केवल अवैध और गैरकानूनी निर्माण पर चलाए जाते हैं जिसके लिए अतीत में नोटिस भी जारी किये जा चुके हैं. इसके बाद बुल्डोजर के विरोध में विपक्षी दलों द्वारा बयान तो दिए जाते हैं लेकिन कोई न्यायालय जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता.

यक्ष प्रश्न यह है कि प्रदेश में कितने अवैध और गैर कानूनी निर्माण है? कितनी सरकारी संपत्तियों पर माफियाओं और अपराधियों का कब्जा है? आज की तारीख में सरकार के पास शायद इस तरह का कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं होगा क्योंकि इसे कभी महत्वपूर्ण समझा ही नहीं गया.  एक अनुमान के अनुसार शायद ही कोई ऐसा शहर हो जहाँ अवैध और गैरकानूनी निर्माण न किये गए हो और सरकारी सम्पत्तियों सहित अन्य व्यक्तियों की निजी संपत्तियों पर कब्जे न किए गये हों. इनकी संख्या बहुत अधिक है. जिम्मेदार सरकारी अधिकारी और कर्मचारी पैसा ऐंठकर बड़ी आसानी से बचकर निकल जाते हैं. यह स्थिति अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है. प्रदेश में न जाने कितने ऐसे लोग हैं जिनकी निजी जमीनों, मकानों और संपत्तियों पर अपराधियों / माफियाओं का आज भी कब्जा है. लोग सरकारी विभागों के चक्कर लगा कर थक जाते हैं लेकिन वांछित कार्रवाई नही होती. अनेक मामले न्यायालयों में लंबित है जिनके निपटारे की संभावना निकट भविष्य में नहीं है.

प्रदेश में कितनी ही ऐसी संपत्तियां हैं जिन्हें अतीत में सरकारी संरक्षण में अपराधी और भूमाफियाओं ने हड़प लिया था. कानपुर में देहली सुजानपुर योजना के अंतर्गत भारतीय स्टेट बैंक के अधिकारियों की हाउसिंग सोसाइटी के लगभग 300 करोड़  मूल्य के 200 से भी अधिक भूखंडों पर एक राजनैतिक दल से संबंध रखने वाले माफिया का आज भी कब्जा है. ये अधिकारी संबंधित विभागों से लेकर सचिवालय तक चक्कर लगा लगा कर थक चुके हैं. इन्हें अपने जीवनकाल में भूखंड वापस मिलने की आशा क्षीण हो चुकी है. पिछली सरकारों में अधिकारियों ने माफियाओं को कब्जा करने में सहयोग दिया था लेकिन आज सरकार बदलने के इतने साल बाद भी ये अधिकारी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसी माफिया का समर्थन कर रहे हैं, जो हैरान करने वाली बात है. यह  भू माफियाओं और अधिकारियों के गठजोड़ की निरंतरता को रेखांकित करता है. यह तो सिर्फ एक उदाहरण है, न जाने कितने ऐसे मामले होंगे.

किसी बड़ी वारदात के बाद सरकारी अधिकारी  अपराधियों के अवैध और गैरकानूनी निर्माण तथा कब्जा की गई संपत्तियों की तुरंत पहचान कर लेते हैं और उन पर बुलडोजर चलता है, जो सर्वथा उचित है लेकिन वे कौन हैं जिन्होंने अवैध निर्माण और कब्जे होने दिए? अधिकारी नियमित रूप से अवैध निर्माण ओर कब्जा के विरुद्ध कार्रवाई क्यों नहीं करते? इसका भी कारण यही है कि सरकारी सिस्टम कमोबेश आज भी वैसा ही काम कर रहा है, जैसा पहले कर रहा था.

ऐसा नहीं है की सिस्टम बदला नहीं जा सकता. एक समय था जब पासपोर्ट बनवाना टेढ़ी खीर थी लेकिन आज बिना विलम्ब और बिना भ्रष्टाचार के बहुत आसानी से पासपोर्ट बन जाता है. इस तरह का सिस्टम संपत्तियों की खरीद फरोख्त के लिए रजिस्ट्रार ऑफिस में बड़ी आसानी से लागू किया जा सकता है. परिवहन विभाग, पुलिस थाना, तहसील, कचहरी, चकबंदी आदि जहां पुराना सिस्टम आज भी संस्थागत रूप में काम कर रहा है, में भी नवाचार और आउटसोर्सिंग से बहुत सारी समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है.

फ़िल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ का एक संवाद “सरकार उनकी है, लेकिन सिस्टम हमारा है” बहुत प्रासंगिक है. अगर सरकार बदली है, तो सिस्टम भी बदलना ही चाहिए. अब समय आ गया है कि योगी जी को इस पुराने सिस्टम पर भी प्रहार करना चाहिए ताकि आम जनता को दिन प्रतिदिन होने वाली मुसीबतों से छुटकारा मिल सके और प्रदेश रामराज्य की ओर तेजी से बढ़ सके.

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               _ शिव मिश्रा

 

 

 




शनिवार, 18 मार्च 2023

भाजपा के शुभ रत्न राहुल गांधी

                        


                                 भाजपा के शुभ रत्न राहुल गांधी 

राहुल गाँधी विदेशी भूमि पर भारत के लोकतंत्र की दुर्दशा पर आंसू बहाकर और अमेरिका तथा पश्चिमी देशो से भारतीय राजनीति में दखल देने की गुहार लगा कर वापस उसी संसद में पहुंचे, जहाँ वे स्वयं भी लोकतांत्रिक पद्धति से चुनकर पहुँचे थे और जहाँ कांग्रेस सहित सभी विपक्षी सांसद उनके बयानों को न्यायोचित ठहराने के लिए लोकतंत्र की मर्यादा को तार तार कर रहे थे. इससे संभवतः कोई भी असहमत नहीं होगा कि राहुल गाँधी विदेशी भूमि पर जितनी बेशर्मी से भारतीय लोकतंत्र और राष्ट्रीय संस्कृति का अपमान करते है, स्वतंत्र भारत के इतिहास में इसका उदाहरण मिलना मुश्किल है. संसद में जहाँ सत्तापक्ष राहुल गाँधी द्वारा माफी मांगने पर अड़ा हुआ है, वही भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई के भय से काँपता विपक्ष एक दूसरे की बाहं थामे, राहुल की माफी के विरोध को तिनके का सहारा समझकर लटक गया हैं.

भारत में विपक्ष वैसे एकजुट भले ही न होता लेकिन केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई के विरोध में सब एक दूसरे को भ्रष्टाचार को राजनीतिक उत्पीड़न बताकर ढांकने में सहायता कर रहे हैं. पहले के विपक्ष और आज के विपक्ष के विरोध का यह उल्लेखनीय अंतर है. आज विपक्ष के पास मोदी सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार का कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए विपक्ष अडानी और अंबानी को मोदी के साथ जोड़ने की कोशिश करता है. राहुल के मोबाइल में पेगेसिस नहीं, दिमाग में अडानी मलवेयर इंस्टाल हो गया है, इसलिए ऐसा कोई भाषण नहीं होता जिसमें अडानी का जिक्र न हो. जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है लेकिन ज्यादातर लोग अभी नहीं भूले होंगे कि कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में तो भ्रष्टाचार की अति हो गई थी. नित नए घोटाले सामने आते थे, और सरकार के समूचे कार्यकाल में भ्रष्टाचार की राशि अरबों रुपए में थी. शायद ही ऐसा कोई मंत्रालय रहा हो जिस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप ना लगे हो. जांच के उपरांत वित्त मंत्री / गृहमंत्री सहित कई केंद्रीय मंत्रियों को जेल हुई, कई जमानत पर हैं और अनेक आज भी जांच का सामना कर रहे हैं. स्वयं राहुल और सोनिया नेशनल हेराल्ड - यंग इंडिया मामले में जमानत पर चल रहे हैं.

मैं हमेशा लिखता आया हूँ और मेरा निश्चित मत है कि भारत में राजनीति बहुत बड़ा उद्योग है अन्य देशों के तुलना में भारत में राजनीति समाज सेवा नहीं, सबसे फायदेमंद परंपरागत पारिवारिक उद्योग है. इसलिए ज्यादातर राज्यों में क्षेत्रीय दलों की बाढ़ आ गई है और वे किसी भी कीमत पर सत्ता पर काबिज होने का उपक्रम करते हैं और प्राप्त भी करते हैं. स्वार्थ सिद्धि में लगे ऐसे राजनीतिक दल पारिवारिक उद्योग के अलावा और कुछ नहीं, जिन्होंने परंपरागत ढंग से अगली पीढ़ी को सत्ता हस्तांतरण भी शुरू कर दिया है.

स्वतंत्रता के बाद बड़ी आसानी से सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण और जाति आधारित वोट बैंक का ऐसा राजनैतिक ताना बाना बुना जिसके चलते भ्रष्टाचार कभी मुद्दा नहीं बना. सामाजिक, आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन जैसे मुद्दें केवल आकर्षक राजनीतिक नारों तक सीमित रहे. संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग और लोकतंत्र पर अधिनायकवाद की छाया इतनी प्रबल रही कि विपक्ष हमेशा हाशिए पर रहा. विपक्ष तभी एकजुट हो सका जब कांग्रेस ने भारत के संवैधानिक और लोकतांत्रिक ढांचे को ध्वस्त कर दिया और आपातकाल लगा कर सामान्य जनता पर ज्यादितियों की पराकाष्ठा पार कर दी.

राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ जैसे देश व्यापी और देश के सबसे बड़े गैर राजनीतिक संगठन और उसके अनुशासित तथा प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की बहुत बड़ी संख्या के बावजूद, उसकी अनुषांगिक और एकमात्र दक्षिण पंथी राजनीतिक दल (भाजपा) को अपने बलबूते केन्द्रीय सत्ता में पहुंचने में 67 साल लग गए. 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश ने अलग राजनैतिक संस्कृति और विकासोन्मुख योजनाएं देखी और सरकारी योजनाओं का फायदा जरूरतमंद तक बिना भ्रष्टाचार और बिचौलिए के पहुँचते देखा. लोगों का सरकार के प्रति नया दृष्टिकोण बना और उन्होंने राजनीति को अलग ढंग से देखना शुरू किया. इसमे सोशल मीडिया ने भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई. इस सबके बीच कांग्रेस लगातार कमजोर होकर पृष्ठभूमि में गिरती गयी. कांग्रेस की इस दुर्गति के लिए गाँधी परिवार और उसकी स्वार्थपूर्ण नीतियां जिम्मेदार हैं, जिसे वह न तो समझने के लिए तैयार है और न हीं खुद को बदलने के लिए. इसलिए उसके लिए स्थितियां बद से बदतर होती जा रही हैं लेकिन आज भी उसे लगता है कि कांग्रेस के अलावा और किसी भी राजनीतिक दल को देश पर शासन करने का अधिकार नहीं है.

पूर्ण बहुमत प्राप्त करनेवाली मोदी सरकार लगातार अपना दूसरा कार्यकाल पूरा करने जा रही है, इससे केवल कांग्रेस ही नहीं, वे सभी राजनीतिक दल और संगठन भी परेशान हैं जिन्हें कांग्रेस के शासनकाल में देश को लूटने सहित, कुछ भी करने की छूट थी. इसलिए ये सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठन कांग्रेस को सत्ता में बनाए रखने में बहुत बड़ी भूमिका निर्वहन करते थे. अब उनकी दुकानें बंद हो गई है. स्वाभाविक है कि मोदी सरकार के विरुद्ध सभी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय गिरोह एकजुट हो गए हैं और वे आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी भी कीमत पर मोदी सरकार की वापसी नहीं होने देना चाहते हैं. इसके लिए सभी आपसी समन्वय के साथ मोदी सरकार को घेरने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तरह तरह के के उपक्रम कर रहे हैं ताकि न केवल मोदी की बल्कि भारत की भी छवि खराब हो और चुनाव के पहले देश का माहौल इतना विषाक्त कर दिया जाए कि जनता में मोदी के प्रति संदेह बढे और वह मोदी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दें.

पिछले कुछ समय से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घट रही घटनाओं पर अगर दृष्टिपात करें तो पता चलता है कि चाहे शाहीनबाग जमावड़ा हो, किसान आंदोलन हो, बीबीसी डॉक्यूमेंट्री हो, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट हो, या जॉर्ज सोरोस का भारत के विरुद्ध बयान हो, सबका उद्देश्य एक ही है. अडानी और अंबानी राहुल का हिंडनवर्ग की रिपोर्ट बिना पढ़े ही कोई बता सकता है कि वह राहुल गाँधी के एजेंडे को ही आगे बढ़ाने का प्रयास है. राहुल की भारत जोड़ों यात्रा का उद्देश्य भी वही है, और संवैधानिक मर्यादाओं के अंतर्गत लोकतांत्रिक रूप से सरकार का विरोध करने में कुछ भी अनुचित नहीं है लेकिन अगर भारत भारत जोड़ों यात्रा के सह यात्रियों की सूची देखी जाए तो उसमें कई ऐसे कुख्यात नाम मिलेंगे जिनका राष्ट्र विरोधी कार्यों में लिप्त होने का लम्बा इतिहास है. आखिर जॉर्ज सोरेस के कर्मचारी सलिल शेट्टी, राष्ट्रविरोधी आंदोलनों के खलनायक योगेन्द्र यादव, मेधा पाटेकर जैसे अनेक कुख्यात व्यक्तियों और अलगाववादियों का भारत जोड़ों से क्या संबंध हो सकता है.

राहुल गाँधी अपनी विदेश यात्राओ के कारण हमेशा से सुर्खियों में रहते आए हैं लेकिन अबकी बार कारण पूरी तरह से अलग है क्योंकि उन्होंने विदेशी भूमि पर भारत की राष्ट्रीय गरिमा को ठेस पहुंचाई, सेना का अपमान किया, कश्मीरी अलगाववादियों की तरफदारी की, तुष्टिकरण को आगे बढ़ाते हुए मोदी को अल्पसंख्यकों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का जिम्मेदार ठहराया. एक तरह से उन्होंने पूरी दुनिया को यह बताने की कोशिश की कि मोदी के शासनकाल में, संविधान और लोकतंत्र सब कुछ नष्ट हो गया है. अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किए जा रहे हैं, राजनीतिक व्यक्तियों का उत्पीड़न किया जा रहा है. सुरक्षा बलों द्वारा कश्मीर में महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है. भारत का बच्चा बच्चा राहुल को जानता है और इसलिए देश में उन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता लेकिन विदेशों में उनकी मानसिकता को कोई नहीं समझता, इसलिए मामला अत्यधिक गंभीर हो जाता है.

केजरीवाल के शिक्षा मंत्री सतेंद्र जैन मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में लंबे समय से जेल में हैं. शराब घोटाले में अब उनके उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी सलाखों के पीछे पहुँच गए हैं. जांच की आंच तेलंगाना की सत्तारूढ़ पार्टी भारत राष्ट्र समिति तक पहुँच गई है और मुख्यमंत्री चन्द्र शेखर राव की बेटी को प्रवर्तन निदेशालय ने समन किया है. दक्षिण शराब लॉबी के कई शराब माफिया गिरफ्तार हो चूके हैं. पश्चिम बंगाल में कई बड़े घोटाले सामने आ चूके हैं, और तृणमूल सरकार के कई नेता और मंत्री जेल में हैं और अनेक जांच का सामना कर रहे हैं. चारा घोटाले के बाद, रेल मंत्री के रूप में नौकरियों के घोटाले में बुरी तरह फंसे लालू यादव से केन्द्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय पूछ्ताछ कर रहा है. अस्वस्थता के कारण उनको जमानत मिल गई है. ऐसे में भ्रष्टाचार में फंसे सभी राजनैतिक दलों और नेताओं को केन्द्रीय जांच एजेंसियों ने एक दूसरे का हाथ थामने के लिए मजबूर कर दिया है और इसी मजबूरी में ये सभी राहुल के विवादास्पद बयानों का बचाव कर रहे हैं ताकि यह संदेश दिया जा सके कि मोदी सरकार विपक्षी नेताओं को प्रताड़ित कर रही है.

कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी मुसीबत स्वयं गाँधी परिवार है, जिसे कोई कांग्रेसी स्वीकार नहीं करना चाहता और इसलिए उन्हें अभी भी राहुल गाँधी में देश का तो नहीं, अपना भविष्य जरूर दिखाई पड़ता है. यही कारण है कि कांग्रेस के कई विद्वान प्रवृत्ति के नेता भी आंख बंद करके राहुल के बयानों का बचाव ही नहीं करते, उनकी हाँ में हाँ भी मिलाते हैं.

राहुल के बचाव में अब कई विपक्षी पार्टियां भी आ गई है. इसलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि अगले लोकसभा चुनाव में इन पार्टियों का भविष्य भी दांव पर लग जाएगा क्योंकि राहुल गाँधी के रूप में भारतीय जनता पार्टी को एक ऐसा रत्न प्राप्त हो गया है, जो कभी भी भारतीय जनता पार्टी को चुनाव हारने नहीं देगा.

इसलिए 2024 के चुनाव की तस्वीर धीरे धीरे साफ हो रही है और मोदी की एक और जीत का आगाज अवश्यंभावी होता जा रहा है.

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शुक्रवार, 3 मार्च 2023

योगी बनाम माफिया : अखिलेश माफियाओं के साथ क्यों खड़े दिखते हैं ?


 

योगी बनाम माफिया

उत्तर प्रदेश विधानसभा का वर्तमान बजट सत्र बजट चर्चा के लिए कम माफियाओं पर चर्चा के लिए ज्यादा जाना जाएगा. बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मामले के मुख्य गवाह और प्रयागराज उच्च न्यायालय के अधिवक्ता की उनके गनर के साथ दिन दहाड़े गोलियां और बम चलाकर हत्या कर दी गयी थी. नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव ने इस घटना पर जब योगी आदित्य नाथ को विधानसभा में घेरने की कोशिश की तो योगी के रौद्र रूप के कारण माफिया और राजनैतिक दलों की सांठगाँठ पर गरमा गर्म बहस छिड़ गई.

योगी का कार्यकाल अपराधियों और माफियाओं के विरुद्ध ज़ीरो टॉलरेंस की नीति कारण हमेशा चर्चा में रहा है, जिसका असर भी स्पष्ट दिखाई पड़ता है और उनकी इसी छवि ने ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति का राजनेता बनाया है. यही कारण था कि विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी, नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव की ओर ऊँगली उठाकर, उनकी आंख में आंख डालकर पूरे आत्मविश्वास के साथ ये कह सके कि “ये पेशेवर माफिया और अपराधियों के सरपरस्त हैं”. गुजरात जेल में बंद माफिया डॉन अतीक अहमद का संदर्भ देते हुए योगी ने कहा कि “जिस माफिया ने इस घटना को अंजाम दिया है उसे समाजवादी पार्टी ने बार बार विधायक और सांसद बनाया है. ये माफिया समाजवादी पार्टी द्वारा पोषित है और उसे हम मिट्टी में मिला देंगे”. योगी की ये गूंज लंबे समय तक विधानसभा के गलियारों में प्रतिध्वनित होती रहेंगी. भारत की राजनीति में आज शायद ही कोई ऐसा राजनेता होगा, जो इतने आत्मविश्वास के साथ विपक्षियों को आईना दिखा कर शर्मसार कर सके.

योगी की घोषणा के 24 घंटे के अंदर ही एक वांछित अपराधी मुठभेड़  में मार गिराया गया, और दो  अपराधियों के घर जमीनदोज कर दिए गए. भय से कांपते माफिया के परिवार ने न्यायालय से गुहार लगाई है कि अतीक को गुजरात की जेल से उत्तर प्रदेश न भेजा जाए. अपराधिक गतिविधियों में लिप्त माफिया के परिवारी जान बचाने के लिए या तो आत्म समर्पण कर रहे हैं या प्रदेश के बाहर भाग रहे हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है कि साफ सुथरी राजनीति करने वाले प्रखर राष्ट्रवादी और सनातन संस्कृति के लिए समर्पित एक सन्यासी की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है. योगी के पिछले कार्यकाल में जब उन्होंने अपराध और भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस की नीति लागू की तो  इसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे. अपराधी गले में तख्ती डालकर पुलिस थानों में पहुंचने लगे और जेल में डालने की गुहार लगाने लगे.

भारत में धरना प्रदर्शन और आंदोलनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाने की बहुत पुरानी बीमारी है. संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में जहाँ शाहीन बाग में रास्ता रोककर लंबे समय तक धरना प्रदर्शन होते रहे, और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में रेलवे संपत्तियों को व्यापक नुकसान पहुंचाया जाता रहा लेकिन उत्तर प्रदेश में इस कानून का विरोध करने वाले अराजक तत्व और उनको संरक्षण देने वाले राजनीतिक आका शांत बने रहें. जहाँ कहीं छुटपुट घटनाएं हुई, उनसे सख्ती से निपटा गया और सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की भरपाई अराजक तत्वों से की गई. चौक चौराहों पर वांछित अपराधियों के पोस्टर चिपकाए गए और अपराधियों के गैरकानूनी ढंग से बनाई गई इमारतों को बुलडोजर द्वारा ध्वस्त किया गया. इस कारण योगी शासन काल में न तो कोई आंदोलन हिंसक हुआ और न ही किसी आंदोलन में सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने की कोई हिम्मत जुटा सका. योगी का बुलडोजर मॉडल इतना प्रसिद्ध हुआ कि कि उनका नाम ही “बुलडोजर बाबा” हो गया.  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस नाम और काम की खासी चर्चा हुई. न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट, बीबीसी आदि ने इस पर कई लेख छापे. पाकिस्तान में तो बुल्डोजर बाबा की इतनी चर्चा हुई, जितनी शायद वहाँ के किसी मुख्यमंत्री की अब तक नहीं हुई होगी.

  वैसे तो राजनीति का अपराधीकरण बहुत पहले से शुरू हो गया था, लेकिन क्षेत्रीय दलों के उदय के बाद किसी भी कीमत पर सत्ता प्राप्त करने की होड़ में राजनीतिक दलों ने अपराधियों, माफियाओं और यहाँ तक कि डाकूओं का भी सहारा लिया. ये बाहुबली लोगों को डरा धमकाकर  दल विशेष के पक्ष में मतदान करने के लिए मजबूर करते थे या उन्हें मतदान करने से रोकते थे. राजनैतिक आकाओं के इशारे पर बूथ कैप्चरिंग करना इन बाहुबलियों का आकर्षक व्यवसाय था. बदले में सरकारी संरक्षण में इन्हें आपराधिक गतिविधियां करने की खुली छूट थी. रंगदारी या गुंडा टैक्स वसूलना, हत्या, अपहरण और बलात्कार बहुत सामान्य घटनाएं थी. लोगो  के मकानों और अन्य संपत्तियों पर जबरन कब्जा आम बात थी. अपहरण बहुत बड़ा उद्योग था. राजनीतिक दबाव के चलते पुलिस या तो मूकदर्शक बनी रहती थी यह इन अपराधियों के साथ सहभागिता कर लेती थी. इस कारण न तो कोई उद्योग धंधे पनप रहे थे और न ही कोई बड़ा निवेश करने की हिम्मत जुटा पाता था.

उत्तर प्रदेश में लंबे समय से राजनीतिज्ञ और माफिया एक दूसरे की पूरक और सहयोगी बने हुए थे. धीरे धीरे माफियाओं में भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागी और  उन्होंने यह महसूस किया कि अगर वह चुनाव जितवा सकते हैं तो स्वयं चुनाव क्यों नहीं जीत सकते. इन बाहुबलियों के दबाव में राजनैतिक दलों ने उन्हें विधानसभा और लोकसभा के लिए पार्टी उम्मीदवार बनाना शुरू कर दिया और इस तरह अपराधी और माफ़िया भी चुनाव जीतकर विधायक और सांसद बनने लगे. इसी विडंबना ही कहा जाना चाहिए कि जिस फूलपुर संसदीय क्षेत्र से जवाहरलाल नेहरू चुनकर संसद पहुंचते थे, उससे समाजवादी पार्टी ने अतीक अहमद को चुनाव जितवा कर संसद पहुंचा दिया. वह समाजवादी पार्टी का कई बार विधायक भी रह चुका है. एक अन्य माफिया मुखतार अंसारी जो पूर्व उपराष्ट्रपति हमीद अंसारी का भतीजा है, भी समाजवादी पार्टी का विधायक रह चुका है. योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद, मुखतार अंसारी कांग्रेस से अपने रिश्तों के कारण पंजाब जेल में ऐशोआराम की जिंदगी बिताता रहा. पंजाब की कांग्रेस सरकार ने भयाक्रांत मुख़्तार को  तब तक उत्तर प्रदेश नहीं भेजा, जब तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंध में आदेश पारित नहीं किया. वर्तमान विधानसभा में उसका पुत्र विधायक हैं, जो समाजवादी पार्टी की सहयोगी सुभासपा के चुनाव चिन्ह पर निर्वाचित हुआ है. दस्यु सुंदरी फूलनदेवी को मिर्जापुर से सांसद बनाने का श्रेय भी समाजवादी पार्टी को जाता है. कुख्यात डाकू ददुआ के पुत्र वीर सिंह पटेल को भी समाजवादी पार्टी ने मानिकपुर विधानसभा सीट से उम्मीदवार घोषित किया था.

जैसे ज्यादातर क्षेत्रीय दलों की राजनीति पारिवारिक उद्योग है, वैसे ही इन माफियाओं का अपराधिक साम्राज्य भी पारिवारिक है, और उनके भाई बंधु, पत्नी और पुत्रवधुयें भी उनके धंधे में शामिल हैं. इन माफियाओं की दूसरी पीढ़ी भी  आपराधिक गतिविधियों में शामिल होकर विधानसभा और लोकसभा पहुँच रही है. चाहे आजम खान हों या मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद हो या कोई अन्य, सभी ने परिवार, अपराध और राजनीति को आपस में जोड़ने का कार्य ही किया है. कोई न कोई राजनीतिक दल इन का सरपरस्त जरूर होता है, और इसी  कड़वी सच्चाई को योगी ने विधानसभा में उजागर कर दिया. एक मजेदार तथ्य यह भी है कि एक धर्म विशेष से जुड़े माफियाओं को राजनीति का “डबल बोनांजा” माना जाता है क्योंकि इनको दिया गया राजनैतिक संरक्षण भी तुष्टिकरण को मजबूत करता करता है और अल्पसंख्यक वोटों को और अधिक मजबूती से जोड़ता  है.

देश में बाहुबली अपराधियों और माफियाओं द्वारा चुनाव में  की जाने वाली गड़बड़ियों खासतौर से बूथ कैप्चरिंग कर थोक में किसी पार्टी विशेष के पक्ष में जबरन वोटिंग करने पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के आने के बाद काफी हद तक रोक लग सकी है. जो बाहुबली अपराधी और माफ़िया पहले जातीय संघर्ष और सांप्रदायिक दंगे आयोजित करने का कार्य करते थे, की भूमिका दिनों दिन कम होती जा रही है.  बाहुबलियों पर आश्रित क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को अब चुनाव जीत पाना आसान नहीं रह गया है और इस कारण ईवीएम पर दोष मढ़ा जाता है और बैलेट पेपर द्वारा मतदान की मांग की जाती है.

 योगी के  माफियाराज पर अंकुश लगाने के  ऐतिहासिक और बहुप्रतीक्षित कार्य को प्रदेश में ही नहीं पूरे भारत में जनता का जोरदार समर्थन मिला. माफियाओं की दम पर सरकार बनाने और सत्ता प्राप्त करने वाले राजनैतिक दलों ने इसका जमकर विरोध किया और योगी को कठघरे में खड़ा  करने की हरसंभव कोशिश की. मानवाधिकारवदियों, धर्मनिरपेक्षतावादियों और समाजसेवा का व्यापार करने वाले कई संगठनों और  संस्थाओं ने योगी के विरुद्ध तरह तरह के झूठे विमर्श गढ़े किंतु ये सभी इस बात को समझने में पूरी तरह असफल रहे कि योगी द्वारा कानून और व्यवस्था स्थापित करने के लिये अपराधियों के विरुद्ध की जाने वाली कार्रवाई जनता की आकांक्षाओं  के अनुरूप है जिसकी वह लंबे समय से प्रतीक्षा कर रही थी. योगी की अपराधियों और माफियाओं के विरुद्ध बस सख्त कार्रवाई से प्रसन्न जनता चट्टान की तरह उनके पीछे खड़ी हो गई. ऑपरेशन मजनू, ऑपरेशन रोमियों और मिशन शक्ति जैसे अनेक अभियानों ने मनचलों को सलाखों के पीछे डालकर महिलाओं के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में  अत्यंत महत्वपूर्ण काम किया और प्रदेश की महिलाओं में सुरक्षा की भावना जागृत की.

जनता अपराधियों और माफिया आधारित जंगलराज से ऊब  चुकी है. यह उत्तर प्रदेश की अच्छी कानून व्यवस्था का परिणाम है कि बड़ी संख्या में निवेशक प्रदेश आ रहे हैं जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और पलायन रुकेगा. मूलभूत संरचना सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी और लोग शांति से अपना कार्य करते हुए सुरक्षित जीवन व्यतीत कर सकेंगे. आज यही समय की मांग भी है और इसे हर राजनीतिक दल को समझना ही होगा. जो नहीं समझेंगे वह भविष्य के गर्त में खो जाएंगे.

शिव मिश्रा (https://www.youtube.com/@hamHindustanee123

बुधवार, 1 मार्च 2023

फ़िल्मी नहीं सनातनी होली मनायें. होली पूजा की विधि, विधान व प्राचीन परम्प...



होली का त्यौहार  7 मार्च २०२३ को मनाया जाएगा।

इस बार होली का त्यौहार 7 मार्च २०२३ को मनाया जाएगा। शाम करीब 6 बजकर 24 से शुरू हो कर रात 8 बजकर 51 मिनट के बीच का समय होलिका दहन के लिए बेहद शुभ है. इसी शुभ मुहूर्त में होलिका पूजी जाएगी और इसके बाद होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है. इस साल 27 साल बाद फागुन में दो एकादशी पड़ रही है और यही होलिस्टिक पर विशेष संयोग है.

यह एक पारंपरिक और सांस्कृतिक सनातन  त्यौहार है, जो अत्यंत प्राचीन मनाया जाता रहा है। यह एक ऐसा त्यौहार हैं जो लोगों को उनके पुराने बुरे व्यवहार को भुला कर रिश्तों की नई शुरूआत भी करता है

प्राचीन काल से दो होलिकाओं का प्रचलन है  एक सामुदायिक होली और दूसरी घर की होली।सामुदायिक होली  सार्वजनिक स्थान पर सामूहिक रूप से स्थापित की जाती है ओर सामूहिक रूप से ही उसकी पूजा अर्चना करके दहन किया जाता है। पूरे गांव या मोहल्ले के लोग होली के गीत और भजन गाते हुए होलिका स्थल पर एकत्र होते हैं और  अपनी अपनी पूजा अर्पित करते हैं। इसके बाद  मंत्रोच्चारण के बीच होलिका दहन करते हैं। लोग आपस में गले मिलते हैं एक दूसरे के मस्तक पर होलिका की भभूति, चंदन, अबीर या गुलाल लगाते हैं।

इस सामुदायिक होलिका से आग लाकर घर में स्थापित की गई होलिका का दहन किया जाता है। सामुदायिक होलिका की पूजा के उपरान्त घर वापस आकर घर में स्थापित होलिका का विधिवत् पूजन अर्चन करते हैं। यदि मुहूर्त निकलने का भय हो तो शुभ मुहूर्त काल में घर में स्थापित होलिका की पूजा कर लेते हैं और उसके उपरांत सामुदायिक होलिका में पूजा हेतु पहुँचते हैं और सामुदायिक होलिका के दहन के बाद उसे लाई हुई आग से घर में स्थापित होलिका का दहन करते हैं।


पूजा विधि

पूजन सामग्री सूची-

  • ·        प्रहलाद की प्रतिमा,
  • ·        गोबर से बनी होलिका,
  • ·        5 या 7 प्रकार के नई फसल के अनाज (जैसे नए गेहूं और अन्य फसलों की बालियां या सप्तधान्य- गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ,  मसूर आदि )
  • ·        एक बडा गन्ना जिसमे गेहूं जौ चने या नई फसल के अन्य पौधे ही बांधकर होलिका की आग में सेंकते हैं.
  • ·        5 मालाएं (इसमें पहली माला पितरों के लिएदूसरी पवनसुत हनुमान जी के लिएतीसरी मां शीतला और चौथी माला परिवार के नाम से रखी जाती है।)
  • ·        रोली,
  • ·        फूल,
  • ·        कच्चा सूत,
  • ·        साबुत हल्दी,
  • ·        मूंग,
  • ·        बताशे,
  • ·        गुलाल,
  • ·        मीठे पकवान,
  • ·        मिठाइयां,
  • ·        फल,
  • ·        गोबर की ढाल, उपले या बल्ले  
  • ·        बड़ी-फुलौरी,
  • ·        एक कलश जल,

होलिका दहन पूजन विधि-

- सबसे पहले होलिका पूजन के लिए पूर्व या उत्तर की ओर अपना मुख करके बैठें।

- अब अपने आस-पास पानी की बूंदें छिड़कें।

- गोबर या आटे  से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं बनाएं।

- थाली में रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबुत हल्दी, बताशे, फल और एक कलश पानी रखें।

- सबसे पहले गणेश पूजन करें. गणेश को अक्षत और पुष्प अर्पित करें. 

- इसके बाद भगवान शिव की पूजा और आराधना करें

- इसके बाद भगवान विष्णु और उनके  नरसिंह अवतार की पूजा करें     

- नरसिंह भगवान का स्मरण करते हुए भक्त प्रहलाद को  रोली, मौली, चावल, बताशे और फूल अर्पित करें।

- भक्त प्रहलाद की बुआ होलिका को  रोलीमौलीचावलबताशे और फूल अर्पित करें। 

- अग्नि प्रज्वलन  से पहले अपना नाम, पिता का नाम और गोत्र का नाम लेते हुए अक्षत (चावल) में उठाएं और भगवान श्री गणेश का स्मरण कर होलिका पर अक्षत अर्पण करें।

- इसके बाद प्रहलाद का नाम लें और फूल चढ़ाएं। 

- भगवान नरसिंह का नाम लेते हुए पांच अनाज चढ़ाएं। 

- अब दोनों हाथ जोड़कर अक्षत, हल्दी और फूल चढ़ाएं।

- कच्चा सूत हाथ में लेकर होलिका पर लपेटते हुए परिक्रमा करें। होलिका के चारों ओर तीन या सात बार परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत को लपेटना चाहिए।

- आखिर में गुलाल डालकर चांदी या तांबे के कलश से जल चढ़ाएं।

- इसके बाद शुद्ध जल सहित अन्य पूजा सामग्रियों को एक-एक कर होलिका को अर्पित किया जाता है। फिर अग्नि प्रज्वलित करने से पूर्व जल से अर्घ्य दिया जाता है।

·        होलिका दहन के समय मौजूद सभी पुरुषों को रोली का तिलक लगाया जाता है।

·        कहते हैं, होलिका दहन के बाद जली हुई राख को अगले दिन प्रात:काल घर में लाना शुभ रहता है। अनेक स्थानों पर होलिका की भस्म का शरीर पर लेप भी किया जाता है।

होलिका की भस्म मस्तक पर लगाने से आरोग्य लाभ के साथ सुख-समृद्धि व खुशहाली मिलती है। होलिका की भभूत संपूर्ण शरीर पर लगाकर स्नान करने से आरोग्य सुख मिलता है।


नारद पुराण में वर्णनहै  होलिका के अगले दिन यानी कि धुलंडी जिसे कि रंग वाली होली के नाम से जानते हैं। उस दिन प्रात:काल नित्‍य कर्मों से निवृत्‍त होकर पितरों और देवताओं का पूजन करें। सभी दोषों की शांति के लिए होलिका की राख की वंदना करके उसे अपने शरीर में लगा लें। साथ ही हो सके तो घर के आंगन में भी अक्षतों को अलग-अलग रंग के गुलाल से रंगकर पूजन-अर्चन करें। इसके बाद मां पृथ्‍वी को प्रणाम करें। सभी पितरों को नमन करें। साथ ही ईश्‍वर से प्रार्थना करें कि वह आपके जीवन में घर-परिवार और समाज में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें।


होलिका कथा

होलिका राक्षस राज हिरण्यकश्यप की बहन थी। राजा ने खुद को अजेय मानकर स्वयं को भगवान के रूप में पूजे जाने का आदेश दे दिया था। परंतु, भगवान विष्णु के परम भक्त, उसके अपने पुत्र प्रह्लाद ने उसके आदेश की अवहेलना की। प्रह्लाद की धृष्टता से क्रोधित हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के लिए तरह-तरह के उपाय किए, लेकिन कोई सफल  नहीं हो सका ।  उसकी बहन होलिका ने प्रह्लाद को मारने में भाई की सहायता करने का आश्वासन दिया. होलिका को अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था और इसलिए वह प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती हुई आग में बैठ गई। भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद को बचा लिया लेकिन होलिका  जल गई, और प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं हुआ। इसका कारण यह है कि होलिका की वरदान में ये शामिल था कि वह समाज सेवा या परोपकार करने के लिये ही इस वरदान का उपयोग करेगी लेकिन उसने अपने स्वार्थ के लिए इसका उपयोग किया और इसका परिणाम ये हुआ कि वे स्वयं जल कर राख हो गई. यह घटना यह भी रेखांकित करती है कि यदि व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए कार्य करता है तो ईश्वर प्रदत्त वरदान भी उसकी सहायता नहीं करते ओर भगवान अपने भक्तों की हर हालत में रक्षा करते हैं.

होलिका के दिन निम्न पूजा करते हैं

1. डांडे की पूजा : होलिका दहन के पूर्व 2 डांडे रोपण किए जाते हैं। जिनमें से एक डांडा होलिका का प्रतीक तो दूसरा डांडा प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है। इन दोनों डांडे की विधिवत पूजा की जाती है। इसके बाद इन डंडों को गंगाजल से शुद्ध करके के बाद इन डांडों के इर्द-गिर्द गोबर के उपले, लकड़ियां, घास और जलाने वाली अन्य चीजें इकट्ठा की जाती है और इन्हें धीरे-धीरे बड़ा किया जाता है और अंत में होलिका दहन वाले दिन इसे जला दिया जाता है। होलिका दहन के पहले होली के डांडा को निकाल लिया जाता है। उसकी जगह लकड़ी का डांडा लगाया जाता है। फिर विधिवत रूप से होली की पूजा की जाती है और अंत में उसे जला दिया जाता है।

2. विष्णु पूजा : होलिका और प्रहलाद के साथ ही भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। खासकर दूसरे दिन विष्णु पूजा की जाती है। कहते हैं कि त्रैतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने धूलि वंदन किया था। इसकी याद में धुलेंडी मनाई जाती है। धूल वंदन अर्थात लोग एक दूसरे पर धूल लगाते हैं। होलिका दहन के बाद धुलेंडी अर्थात धूलिवंदन मनाया जाता है। सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर होलिका को ठंडा किया जाता है। मतबल पूजा करने के बाद जल चढ़ाया जाता है। धूलिवंदन अर्थात् धूल की वंदना। राख को भी धूल कहते हैं। होलिका की आग से बनी राख को माथे से लगाने की बाद ही होली खेलना प्रारंभ किया जाता है। अतः इस पर्व को धूलिवंदन भी कहते हैं।

3. नृसिंह भगवान पूजा : होली के दिनों में विष्णु के अवतार भगवना नृसिंह की पूजा का भी प्रचलन है क्योंकि श्रीहरि विष्णु ने ही होलिका दहन के बाद नृसिंह रूप धारण करके हिरण्याकश्यप का वध करने भक्त प्रहलाद की जान बचाई थी।

4. श्रीशिव पूजा : होली का त्योहार भगवान शिव से भी जुड़ा हुआ है। भगवान शिव ने इसी दिन कामदेव को भस्म करने के बाद देवी रति को यह वरदान दिया था कि तुम्हारा पति श्रीकृष्ण के यहां प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेगा।

5. श्रीकृष्ण पूजा : होली का त्योहार श्रीकृष्ण से भी जुड़ा हुआ है। इसे ब्रज में 'फाग उत्सव' के रूप में मनाया जाता है। श्रीकृष्‍ण ने रंगपंचमी के दिन श्रीराधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंगपंचमी मनाई जाती है।

6. श्रीपृथु पूजा : होली के दिन ही राजा पृथु ने राज्य के बच्चों को बचाने के लिए राक्षसी ढुंढी को लकड़ी जलाकर आग से मार दिया था। राजा पृथु को विष्णु का अंशावतार भी माना जाता है।

7. श्रीहनुमान पूजा : इस दिन हनुमानजी की पूजा करने से सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं।

 

इस अनुष्ठान के बाद अगले दिन वास्तविक उत्सव मनाया जाता है। ढेरों रंग, कई प्रकार के खान-पान और मौज-मस्ती, इस जीवंत और रंगीन त्योहार के प्रतीक हैं। होली वसंत के आगमन और सर्दियों के अंत को भी इंगित करती है।

होली का त्यौहार अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक मान्यताओं की वजह से बहुत प्राचीन समय से मनाया जा रहा है। इसका उल्लेख भारत की पवित्र पुस्तकों,जैसे पुराण, दसकुमार चरित, संस्कृत नाटक, रत्नावली और भी बहुत सारी पुस्तकों में किया गया है। होली, आनंद और उल्लास के साथ-साथ समुदाय को एक साथ लाने और एकजुटता के बंधन को मजबूत करने के बारे में भी है।

इस जीवंत त्योहार को भारत के विविध राज्यों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। अच्छाई की जीत का जश्न मनाने वाला यह त्योहार वसंत ऋतु के आगमन का भी संकेत देता है।

महाराष्ट्र में, होली को 'रंग पंचमी' के रूप में जाना जाता है, गायन, नृत्य, व्यंजन तैयार करना, और रंग और गुलाल लगाना, ये सभी इस उत्सव का हिस्सा हैं। वास्तविक त्योहार से एक दिन पहले होलिका भी जलाई जाती है।

होली उत्तर प्रदेश के सबसे लोकप्रिय और दिलचस्प त्योहारों में से एक है। यह बरसाना, मथुरा और वृंदावन जिलों में एक अनोखे तरीके से मनायी जाती है। यहाँ की होली को लोकप्रिय रूप से "लट्ठमार होली" कहा जाता है और इसे वास्तविक त्योहार के एक सप्ताह पहले से मनाया जाता है। इसमें दिलचस्प बात यह है कि महिलाएँ पुरुषों का पीछा करती हैं और परंपरानुसार उन्हें लाठियों (लाठी) से पीटती हैं। बदले में पुरुष खुद को बचाने के लिए ढाल का इस्तेमाल करते हैं। माना जाता है कि यह विचित्र परंपरा एक किंवदंती पर आधारित है जिसमें भगवान कृष्ण अपनी प्यारी राधा से मिलने आते हैं और वहाँ वह उनको और उनकी सखियों को चिढ़ाते या छेड़ते हैं। कहा जाता है कि उसकी जवाबी कार्रवाई में महिलाओं (गोपियों) ने लाठियों से उन्हें वहाँ से खदेड़ दिया था।

पंजाब में, होली के एक दिन बाद निहंग सिखों द्वारा "होला मोहाला" मनाया जाता है और इसमें मार्शल आर्ट और कुश्ती का प्रदर्शन, कविता वाचन और रंगों का खेल होता है। इस परंपरा की शुरुआत गुरु गोबिंद सिंह ने 18वीं सदी में की थी।

बिहार राज्य में होली को "फगुवा" के नाम से जाना जाता है। यहाँ यह त्योहार अन्य राज्यों के समान ही मनाया जाता है, जिनमें पारंपरिक संगीत और लोक गीत शामिल होते हैं, और रंगों का प्रचुर मात्रा में उपयोग किया जाता है।

पश्चिम बंगाल में इसे "डोल यात्रा" के रूप में जाना जाता है, और इस क्षेत्र में यह उत्सव एक बार फिर भगवान कृष्ण को ही समर्पित है। इसमें राधा और भगवान कृष्ण की मूर्तियों को फूलों से सजी पालकी में रखा जाता है, और गायन और नृत्य के बीच इन पालकियों को जुलूस में निकाला जाता है। रास्ते में भक्तों पर रंग और पानी का छिड़काव किया जाता है।

मणिपुर में, इस त्योहार के दौरान "यावोल शांग" नामक 5 दिवसीय उत्सव होता है। इसे भगवान पाकहंगबा के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में मनाया जाता है, और प्रत्येक दिन की अपनी रीति-रिवाजें और परंपराएँ होती हैं। रंग और पानी से खेलने का उत्सव आखिरी दो दिनों में होता है।

केरल में, रंगों के इस त्योहार को "मंजुल कुली" कहा जाता है - एक शांतिपूर्ण दो-दिवसीय उत्सव। पहले दिन लोग मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं। दूसरे दिन, पारंपरिक गायन और नृत्य के साथ, हल्दी युक्त रंगीन पानी को एक दूसरे पर छिड़कते हैं।

मथुरा वृन्दावन की होली  

 होली महोत्सव मथुरा और वृंदावन में एक बहुत प्रसिद्ध त्यौहार है। भारत के अन्य क्षेत्रों में रहने वाले कुछ अति उत्साही लोग मथुरा और वृंदावन में विशेष रूप से होली उत्सव को देखने के लिए इकट्ठा होते हैं। मथुरा और वृंदावन महान भूमि हैं जहां, भगवान कृष्ण ने जन्म लिया और बहुत सारी गतिविधियों की। होली उनमें से एक है। होली का त्योहार उनके लिए प्रेम और भक्ति का महत्व रखता है, जहां अनुभव करने और देखने के लिए बहुत सारी प्रेम लीलाऍ मिलती है। भारत के हर कोने से लोगों की एक बड़ी भीड़ के साथ यह उत्सव पूरे एक सप्ताह तक चलता है। वृंदावन में बांके-बिहारी मंदिर है जहां यह भव्य समारोह मनाया जाता है। मथुरा के पास होली का जश्न मनाने के लिए एक और जगह है गुलाल-कुंड जो की ब्रज में है, यह गोवर्धन पर्वत के पास एक झील है। होली के त्यौहार का आनंद लेने के लिये बड़े स्तर पर एक कृष्ण-लीला नाटक का आयोजन किया जाता है।

बरसाना में लोग हर साल लट्ठमार होली मनाते हैं, जो बहुत ही रोचक है। निकटतम क्षेत्रों से लोग बरसाने और नंदगांव में होली उत्सव को देखने के लिए आते हैं। बरसाना उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में एक शहर है। लट्ठमार होली, छड़ी के साथ एक होली उत्सव है जिसमें महिलाऍ छड़ी से पुरुषों को मारती है। यह माना जाता है कि, छोटे कृष्ण होली के दिन राधा को देखने के लिए बरसाने आये थे, जहां उन्होंने उन्हें और उनकी सखियों को छेड़ा और बदले में वह भी उनके द्वारा पीछा किये गये थे। तब से, बरसाने और नंदगांव में लोग छड़ियों के प्रयोग से होली मनाते हैं जो लट्ठमार होली कही जाती है।

आस-पास के क्षेत्रों से हजारों लोग बरसाने में राधा रानी मंदिर में लट्ठमार होली का जश्न मनाने के लिए एक साथ मिलते है। वे होली के गीत भी गाते हैं और श्री राधे और श्री कृष्ण का बयान करते है। प्रत्येक वर्ष नंदगांव के गोप या चरवाहें बरसाने की गोपियों या महिला चरवाहों के साथ होली खेलते है और बरसाने के गोप या चरवाहें नंदगांव की गोपियों या महिला चरवाहों के साथ होली खेलते है। कुछ सामूहिक गीत पुरुषों द्वारा महिलाओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए गाये जाते है; बदले में महिलाऍ आक्रामक हो जाती हैं और लाठी के साथ पुरुषों को मारती है। यहाँ पर कोल्ड ड्रिंक या भांग के रूप में ठंडई पीने की परंपरा है।

पौराणिक महत्व

जैविक महत्व

होली का त्यौहार अपने आप में स्वप्रमाणित जैविक महत्व रखता है। यह हमारे शरीर और मन पर बहुत लाभकारी प्रभाव डालता है, यह बहुत आनन्द और मस्ती लाता है। होली उत्सव का समय वैज्ञानिक रूप से सही होने का अनुमान है।

यह गर्मी के मौसम की शुरुआत और सर्दियों के मौसम के अंत में मनाया जाता है जब लोग स्वाभाविक रूप से आलसी और थका हुआ महसूस करते है। तो, इस समय होली शरीर की शिथिलता को प्रतिक्रिया करने के लिए बहुत सी गतिविधियॉ और खुशी लाती है। यह रंग खेलने, स्वादिष्ट व्यंजन खाने और परिवार के बड़ों से आशीर्वाद लेने से शरीर को बेहतर महसूस कराती है।

होली के त्यौहार पर होलिका दहन की परंपरा है। वैज्ञानिक रूप से यह वातावरण को सुरक्षित और स्वच्छ बनाती है क्योंकि सर्दियॉ और वसंत का मौसम के बैक्टीरियाओं के विकास के लिए आवश्यक वातावरण प्रदान करता है। पूरे देश में समाज के विभिन्न स्थानों पर होलिका दहन की प्रक्रिया से वातावरण का तापमान 145 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ जाता है जो बैक्टीरिया और अन्य हानिकारक कीटों को मारता है।

उसी समय लोग होलिका के चारों ओर एक घेरा बनाते है जो परिक्रमा के रूप में जाना जाता है जिस से उनके शरीर के बैक्टीरिया को मारने में मदद करता है। पूरी तरह से होलिका के जल जाने के बाद, लोग चंदन और नए आम के पत्तों को उसकी राख(जो भी विभूति के रूप में कहा जाता है) के साथ मिश्रण को अपने माथे पर लगाते है,जो उनके स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करता है। इस पर्व पर रंग से खेलने के भी स्वयं के लाभ और महत्व है। यह शरीर और मन की स्वास्थता को बढ़ाता है। घर के वातावरण में कुछ सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करने और साथ ही मकड़ियों, मच्छरों को या दूसरों को कीड़ों से छुटकारा पाने के लिए घरों को साफ और स्वच्छ में बनाने की एक परंपरा है।

 

1.आर्यों का होलका : प्राचीनकाल में होली को होलाका के नाम से जाना जाता था और इस दिन आर्य नवात्रैष्टि यज्ञ करते थे। इस पर्व में होलका नामक अन्य से हवन करने के बाद उसका प्रसाद लेने की परंपरा रही है। होलका अर्थात खेत में पड़ा हुआ वह अन्य जो आधा कच्चा और आधा पका हुआ होता है। संभवत: इसलिए इसका नाम होलिका उत्सव रखा गया होगा। प्राचीन काल से ही नई फसल का कुछ भाग पहले देवताओं को अर्पित किया जाता रहा है। इस तथ्य से यह पता चलता है कि यह त्योहार वैदिक काल से ही मनाया जाता रहा है। सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों में भी होली और दिवाली मनाए जाने के सबूत मिलते हैं।

2. होलिका दहन : इस दिन असुर हरिण्याकश्यप की बहन होलिका दहन हुआ था। प्रहलाद बच गए थे। इसी की याद में होलिका दहन किया जाता है। यह होली का प्रथम दिन होता है। संभव: इसकी कारण इसे होलिकात्वस कहा जाता है।

3.कामदेव को किया था भस्म : इस दिन शिव ने कामदेव को भस्म करने के बाद जीवित किया था। यह भी कहते हैं कि इसी दिन राजा पृथु ने राज्य के बच्चों को बचाने के लिए राक्षसी ढुंढी को लकड़ी जलाकर आग से मार दिया था। इसीलिए होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं।

4. फाग उत्सव : त्रैतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने धूलि वंदन किया था। इसकी याद में धुलेंडी मनाई जाती है। होलिका दहन के बाद 'रंग उत्सव' मनाने की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के काल से प्रारंभ हुई। तभी से इसका नाम फगवाह हो गया, क्योंकि यह फागुन माह में आती है। कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है। श्रीकृष्ण ने ही होली के त्योहार में रंग को जोड़ा था। 

पहले होली के रंग टेसू या पलाश के फूलों से बनते थे और उन्हें गुलाल कहा जाता था। वो रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होता था। लेकिन समय के साथ रंगों में नए नए प्रयोग किए जाने लगे।

5.मंदिरों में चित्रण : प्राचीन भारतीय मंदिरों की दीवारों पर होली उत्सव से संबंधित विभिन्न मूर्ति या चित्र अंकित पाए जाते हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है। अहमदनगर चित्रों और मेवाड़ के चित्रों में भी होली उत्सव का चित्रण मिलता है। ज्ञात रूप से यह त्योहार 600 ईसा पूर्व से मनाया जाता रहा है। होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है।

होली से पहले घर में लाएं ये चीजें तो अच्छा होता है . 

कई बार ऐसा होता है कि लाख कोशिशों के बावजूद हमें जीवन में सफलता नहीं मिलती है या फिर घर में बरकत नहीं आती है. हो सकता है कि आपके घर में वास्तु दोष हो. इससे बचने के लिए आप एक खूबसूरत सा बंदरवार या तोरण अपने घर लाएं और इसे घर के मुख्य दरवाजे पर टांग दें. ये ना सिर्फ घर का वास्तु दोष खत्म करता है बल्कि दिखने में भी बहुत अच्छा लगता है.

घर के उत्‍तर या उत्‍तर-पूर्व दिशा में एक एक्वेरियम रखें क्‍योंकि इसे कुबेर का स्‍थान माना जाता है. इससे घर में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है. घर में धन आगमन के लिए भी इसे अचूक उपाय माना जाता है.

होली से पहले अपने घर में बांस का पौधा जरूर लाएं. बांस का पौधा घर में सौभाग्य लेकर आता है. यह पौधा घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है और इससे घर के सदस्यों की सेहत भी अच्छी रहती है. यह पौधा हर परिस्‍थति में फलता-फूलता है.

कुबेर यन्त्र भी घर में रखें 


श्रीराम मंदिर निर्माण का प्रभाव

  मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के मंदिर निर्माण का प्रभाव भारत में ही नहीं, पूरे ब्रहमांड में और प्रत्येक क्षेत्र में दृष्ट्गोचर हो रहा है. ज...