सोमवार, 28 जून 2021

शादी विवाह करने की सही उम्र क्या है?

 

शादी विवाह  में देर होने से कई समस्याओं से दो चार होना पड़  रहा है,  आखिर क्या होनी चाहिए विवाह की  सही उम्र?

 


 विश्व के ज़्यादतर देशों में लड़के और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 ही है. भारत में 1929 के शारदा क़ानून के तहत शादी की न्‍यूनतम उम्र लड़कों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 14 साल तय की गई थी. 1978 में संशोधन के बाद लड़कों के लिए ये सीमा 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल हो गई.

लड़की और लड़की की शादी की उम्र में 3 साल का अंतर किया जाना भी एक पहेली ही है  जिसका मतलब निकलता  है कि लड़के  कुछ ज्यादा देर में परिपक्व होते हैं.  यह धारणा भारत की प्राचीन  व्यवस्था और परंपरा से मेल खाती है  लेकिन फिर भी उसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. भारत में आज भी  सामान्यतः  वर  और  वधू  की उम्र 2 से 2 से लेकर 4 साल तक का अंतर रखा जाता है. 

 अक्सर बात करते हैं आजकल लड़कियों की शादी समय से नहीं हो पाती है, लेकिन  समय से शादी का क्या मतलब है ?

 आजकल बहुत से विषयों पर बहुत सारे रिसर्च हुआ करती हैं  लेकिन ज्यादातर रिसर्च का आधार  प्रश्न और उत्तर ही होता है  और माता पिता के  विचार भी इसमें शामिल किए जाते हैं.  कुछ अन्य  बातों को ध्यान में रखते हुए  ऐसा माना जाता है  की 25 वर्ष की आयु  लड़कों के लिए सबसे उपयुक्त आयु होती है  और लड़कियों के लिए भी  20 से लेकर 23 वर्ष तक  की आयु सबसे उपयुक्त मानी जाती है. 

 हालांकि  कुछ लोगों को यह उम्र भी काफी कम लगती है, लेकिन शोध में ऐसे कई तथ्य निकल कर आए हैं जो यह कहते हैं कि  समय से  शादी करना ही सही फैसला है’।

 शोध में ऐसा पाया गया है कि यदि वर्क ही उम्र 25 से 27 वर्ष के बीच और वधू की उम्र 21 से 24  वर्ष के बीच  हो  तो उनके रिश्तो में भरपूर उत्साह और जोश रहता है जिससे परिवार का वातावरण बहुत ही सुखद और खुशनुमा रहता है.  इस उम्र  में   किए गए रिश्तो में  बेहतर सामंजस्य देखने को मिलता है. दोनों के विचारों में  बेहतर तालमेल के कारण  काफी हद तक  समानता देखने को मिलती है.  इसलिए इस जोड़ी को आदर्श जोड़ी या परफेक्ट कपल कहा जाता है.

 हिन्दू दर्शन के मुताबिक आश्रम प्रणाली में विवाह की उम्र 25 वर्ष थी जिससे बेहतर स्वास्थ्य और कुपोषण की समस्या से छुटकारा मिलता था। ब्रह्मचर्य आश्रम में अपनी पढ़ाई पूर्ण करने के बाद ही व्यक्ति विवाह कर सकता था। उम्र में अंतर होने के मामले हिन्दू धर्म कोई खास नियम नहीं । लड़की की उम्र अधिक हो, समान हो या कि कम हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। यदि दोनों  अच्छे संस्कारबद्ध  है तो दोनों में ही समझदारी होगी.

समय से शादी करने के लिए  अनगिनत  फायदे हैं

  • नौकरी पेशा और कैरियर के लिए दोनों की सामूहिक रुचि का ध्यान रखा जा सकता है. 
  •  परिवार बढ़ाने के बारे में भी सामूहिक फैसला लिया जा सकता है.परिवार भी इस संबंध में कोई दबाव नहीं डालता. 
  •  इस उम्र में शादी करने से लड़कियां अपनी ससुराल में ज्यादा अच्छे ढंग से तालमेल बैठा लेती  हैं.
  •  पति पत्नी की अच्छी शारीरिक अवस्था  के कारण   हृष्ट-पुष्ट बच्चे जन्मते हैं . और पत्नी को प्रसव काल की कोई जटिलताएं सामान्यतः नहीं होती हैं.
  •  माता-पिता और बच्चों के बीच अधिक अंतर ना होने के कारण उनके संबंध  भी दोस्त नुमा हो सकते हैं जो  अगली पीढ़ी के भविष्य के लिए भी काफी सुखदायक होते हैं.  इस तरह के माता-पिता और संतानों के बीच में  पीढ़ी  अंतरण   (जेनरेशन गैप) का अंतर कम से कम होता है. 
  • समय से शादी करने वाले जोड़ों  का दांपत्य जीवन बहुत लंबा  और  अपेक्षाकृत सुखद होता है. 
  • शादी  केवल सामाजिक संस्कार ही नहीं  शारीरिक जरूरत भी होती है इसलिए यह मानसिक शांति के लिए अत्यंत आवश्यक है. शोध में ऐसा पाया गया है इस समय से शादी करने वाले युवकों युवतियों में  नशे की लत, मानसिक विकार,  पर स्त्री / पर पुरुष संबंध से दूर रहते हैं. 
  •  आर्थिक दृष्टि से भी देखा जाए तो समय से शादी करने वालों के पास  अधिक आय अर्जित करने और   ज्यादा बचत  करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है,  जो घर गृहस्ती को आर्थिक दृष्टि से मजबूत बनाता है और बच्चों के भविष्य के लिए भी है यह अत्यंत लाभदायक सिद्ध होता है.

   विलंब से होने वाले  विवाह के संभावित दुष्परिणाम

 विलंब के कारण  दुष्परिणाम  होते हैंशायद ऐसा   कहना तो उचित नहीं होगा हां इतना अवश्य कहा जा सकता है कि जो फायदा समय से विवाह होने पर नहीं सकता था उससे यह परिवार और यह जोड़ा वंचित हो जाता है.  फिर भी कुछ संभावनाएं जो समय से विवाह होने पर चल सकती थी वे इस प्रकार हैं.

  •  लड़के और लड़की दोनों में अधिक परिपक्वता आ जाने के कारण  पति पत्नी के रूप में सामंजस्य बैठाने में परेशानी आ सकती है.
  •  युवा दंपत्ति के  दांपत्य जीवन के  प्रथम 5 वर्ष सबसे अधिक महत्वपूर्ण होते हैं और उन्हें वह अपने जीवन का अधिकतम आनंद प्राप्त करते हैं,   जिनसे यह लोग वंचित रह जाते हैं.
  •  ज्यादा उम्र में   बढ़ती  जटिलताओं के कारण  संतान  का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है,  और आनुवंशिकी रोग संतान में पहुंचने की संभावना बढ़ती जाती है.
  •  मानसिक रूप से भी अधिक उम्र में शादी होने से लड़के और लड़कियों दोनों में शादी के प्रति उत्साह  कम या खत्म हो जाता है,  पर ऐसे में विवाह एक औपचारिकता  बन जाती है.
  •  कई बार ज्यादा उम्र हो जाने पर लड़के और लड़कियां दोनों ही कुंवारे रह जाते हैं.
  •  शोध में यह भी पाया गया है जिन लोगों की शादियां देश तो होती हैं  वे बुढ़ापे की बीमारियों से जल्दी ग्रस्त हो जाते हैं.
  •  अधिक उम्र के लड़के लड़कियों दोनों में  नशे की लत,  मानसिक विकार  और यहां तक कि चरित्रक  दुर्बलता   आज आने की बहुत संभावना रहती है. 
  •  सामान्यतः विवाह के बाद ही लोग  अपने भविष्य  की योजनाएं बनाते हैं और देर से विवाह होने के कारण उनके पास पैसा कमाने और उनसे अपनी योजनाएं पूरी करने के लिए समय बहुत कम होता है.  इस कारण बहुत से लोग अपने व्यवसाय यह कमाई में ही इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उनका दांपत्य जीवन खुशहाल नहीं होता.
  •  देर से बच्चे होने के कारण   उनका बचपन भी प्रभावित होता है और माता-पिता का उनसे सामंजस्य बना पाना भी अपेक्षाकृत कठिन हो जाता है  और ऐसे में बच्चों का कैरियर/  भविष्य भी  प्रभावित हो  सकता है.   अगर पति पत्नी दोनों सर्विस करते हैं तो उनके सेवाकाल में बच्चों की पढ़ाई लिखाई नौकरी व्यवसाय और शादी संबंध भी समय  से नहीं हो पाते. 
  •  विवाह में विलंब होने से कई लड़के लड़कियां   स्वयं अपने लिए वर वधु ( प्रेम विवाह या गन्धर्व ढूंढ लेते हैं.   जो सामाजिक मर्यादाओं की अनुरूप नहीं भी हो सकता है और उस स्थिति में माता पिता के लिए भी बहुत असहज और अपमानजनक हो जाता है.
  • माता-पिता की तरफ से  विलंब करने के कारण कई लड़के लड़कियां  आजकल प्रचलित लिव इन रिलेशनशिप  में आ जाते हैं,  जो सारी सामाजिक मर्यादाओं को तार-तार कर सकता है और वह इन माता-पिता के लिए भी अत्यंत असहनीय हो  सकता है. 

सनातन परंपरा में व्यक्ति की उम्र 100 वर्ष मानकर  चार आश्रम बनाए गए थे ,  25 वर्ष तक ब्रम्हचर्य ( पढ़ाई लिखाई और शारीरिक शौष्ठव) ,  50 वर्ष तक ग्रहस्थ (मधुर दाम्पत्य, पारिवारिक दायित्व),  75 वर्ष तक वानप्रस्थ ( समाज सेवा, विद्यादान,धर्म कर्म)   और 100 वर्ष तक सन्यास ( सन्यासियों के साथ या सन्यासियों जैसा जीवन).  देर से विवाह करने के कारण  इन चारों आश्रमों से  मनुष्य के जीवन में पहले दो आश्रम ही पूरे  हो पाते हैं और इसलिए इन  व्यक्तियों का जीवन भी अधूरा रह जाने  की संभावना हो जाती है.

आजकल  लड़के लडकियां प्रतियोगिता परीक्षाओं के कारण जिनमे उम्र सीमा सरकार स्वयं बढ़ा   रही है, विलम्ब होता है लेकिन देखा देखी अन्य  माता पिता भी बिलम्ब करने लगे हैं, जो उचित नहीं है .  

 इसलिए   माता-पिता की अत्यधिक  जिम्मेदारी  है  कि वे बिना किसी कारण या अनावश्यक  अपने लड़के लड़कियों के विवाह में विलंब न करें.  अच्छा वर और अच्छा वधू पाने के लिए कोई सीमा नहीं है और इसके कारण  विलंब करना बिल्कुल भी उचित नहीं है.

           **********************************************************************

                                                                     - शिव मिश्रा 

 

श्रीराम मंदिर निर्माण का प्रभाव

  मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के मंदिर निर्माण का प्रभाव भारत में ही नहीं, पूरे ब्रहमांड में और प्रत्येक क्षेत्र में दृष्ट्गोचर हो रहा है. ज...