शनिवार, 27 सितंबर 2025

लद्धाख से राष्ट्र विरोधी खेल शुरू

 


लद्धाख से राष्ट्र विरोधी खेल शुरू || सोनम वांगचुक है मोहरा, पीछे है कांग्रेस और डीप स्टेट सेना || वामपंथ-इस्लामिक गठजोड़ का सफ़र - हमास बाया क़तर-नेपाल-भारत और चीन बाया नेपाल-कांग्रेस-भारत


देश के शांति प्रिय क्षेत्र लद्दाख में शुरू हुए आंदोलन ने अचानक हिंसक रूप ले लिया, जिसमें चार प्रदर्शनकारियों की मृत्यु हो गई और अनेक घायल हो गए. कहने को तो प्रदर्शनकारियों की चार प्रमुख मांगे हैं, लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा, कारगिल और लेह को अलग-अलग लोकसभा सीट बनाना और सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों की भर्ती करना. लेकिन यह मांगे अनिन्तिम नहीं हैं. इन मांगों पर 6 अक्टूबर 2025 को वार्ता प्रस्तावित थी जिस सिलसिले में 25 सितंबर को उच्च स्तरीय समिति के साथ वार्ता होनी थी. लद्दाख पहले जम्मू- कश्मीर राज्य का हिस्सा था. अनुच्छेद 370 और 35A हटने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था. जम्मू कश्मीर को विधानसभा सहित और लद्दाख को विधानसभा रहित केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था. प्रदर्शन कारियों के अनुसार सरकार ने उस समय हालात सामान्य होने के बाद पूर्ण राज्य का दर्जा देने का आश्वासन दिया था. आखिर ऐसा क्या हुआ कि वार्ता शुरू होने के ठीक एक दिन पहले ही प्रदर्शनकारियों ने हिंसा कर दी.

इसका कोई सीधा और सपाट उत्तर तो नहीं मिल सकता लेकिन किसी न किसी को आशंका थी कि वार्ता में बात बन गयी तो फिर आन्दोलन का क्या होगा, इसलिए जान बूझ कर हिंसा करवाई गयी. भूख हड़ताल पर बैठे दो बुजुर्ग लोगों के अस्पताल में भर्ती होने के बाद बंद का आह्वान किया था। लेह में सुरक्षा बलों की गाड़ियों को जला दिया गया और भाजपा कार्यालय में आग लगा दी गई। लद्दाख स्वायत्तशासी प्रशासनिक कार्यालय में भी तोड़-फोड़ की गई और पुलिसवालों पर पथराव किया गया। इसके लिए वातावरण काफी पहले से गर्म किया जा रहा था. श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में,आंदोलन के कारण हुए सत्ता परिवर्तन के बाद इस तरह के बयान दिए जाते रहे हैं कि अब भारत में भी ऐसा होगा लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो सका क्योंकि राजनीतिक प्रकृति तथा सेना और अर्धसैनिक बलों की विशेष संरचना के कारण भारत में ऐसा हो भी नहीं सकता. कुछ लोग इसे भारत के लोकतंत्र की परिपक्वता भी कहते हैं.

हाल के दिनों में नेपाल में हुए जेन-जेड प्रदर्शनों के बाद सरकार के पतन से कांग्रेस सहित भारतीय विपक्ष बहुत उत्साहित है और राहुल गांधी को तो विश्वास हो गया है कि बिल्ली के भाग्य से छींका अवश्य टूटेगा और वह बिना चुनाव के ही प्रधानमंत्री बन जाएंगे. जनता द्वारा कांग्रेस को नकारने के कारण मिल रही लगातार असफलता को छुपाने के लिए राहुल ने मोदी सरकार पर वोट चोरी का जो आरोप लगाना शुरू किया उसकी प्रेरणा उन्हें बांग्लादेश से, और निर्देश डीप स्टेट से मिले हैं. बांग्लादेश में चुनाव पर प्रश्न चिन्ह लगने के बाद शेख हसीना को जान बचाकर भागना पड़ा था और देश का नेतृत्व अमेरिकी कठपुतली मोहम्मद यूनुस के हाथों सौंप दिया गया था, जो देश में रह भी नहीं रहे थे. नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध और भ्रष्टाचार बहुत बड़ा मुद्दा बना लेकिन पूरे आंदोलन के पीछे विदेशी शक्तियों और विदेशी धन की बड़ी भूमिका थी.

भारत एक बहुत बड़ा देश है जहाँ इस तरह सत्ता पलट संभव नहीं है. इसलिए भारत के लिए अलग तरह की रणनीति बनाई गई जिसके अंतर्गत पहले मोदी सरकार के दो समर्थको चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार को भाजपा से समर्थन वापस लेने का दबाव बनाया गया. जब सफलता नहीं मिली तो भाजपा में टूट फूट की कोशिश की गयी और प्रधानमंत्री पद के महत्वाकांक्षी नेताओं को तैयार करने की कोशिश हुई. भाजपा और आरएसएस के मध्य भी दूरियां बढ़ाने की कोशिश की गई ताकि मोदी को सत्ता से बाहर किया जा सके भले ही सरकार भाजपा की ही बनी रहे, लेकिन मिशन एमएमजी ( मोदी मस्ट गो) को सफलता नहीं मिली. इसलिए रणनीति बदलते हुए देश के अलग-अलग हिस्सों में उग्र आंदोलन करके मोदी सरकार को आलोकप्रिय बनाने की कोशिश रही ही है ताकि यदि मध्यावधि चुनाव हो तो मोदी को सत्ता से बेदखल किया जा सके. मोदी सरकार के अच्छे कार्य करने वाले कुशल और लोकप्रिय मंत्रियों के विरुद्ध षड्यंत्रकारी झूठी खबरें चलाकर उनको पद छोड़ने पर मजबूर करने का कुचक्र भी रचा गया है, जिनमें अमित शाह, नितिन गडकरी, अश्विनी वैष्णव जैसे मंत्री शामिल है ताकि मोदी को कमजोर किया जा सके.

अगले वर्ष 26 जनवरी तक इस आंदोलन को पूरे उफान पर पहुंचाने की योजना है. इसलिए लद्दाख यदि एक और मणिपुर बन जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. लद्दाख में हुये हिंसक प्रदर्शन के पीछे कांग्रेस, चीन, वामपंथ - इस्लामिक गठजोड़ और डीप स्टेट की बड़ी भूमिका है, जो भारत को अस्थिर करने की कोशिश में लगे हैं. जिस समय लद्दाख में हिंसा का तांडव हो रहा था ठीक उसी समय उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, झारखंड और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में "आई लव मोहम्मद" के नाम पर अराजकता पूर्ण प्रदर्शन किये जा रहे हैं. कुछ समय पहले ही राहुल गांधी ने मलेशिया के एक छोटे से द्वीप में जाकिर नायक और जॉर्ज सोरोस के पुत्र एलेग्जेंडर सोरोस से मुलाकात की थी. इन घटनाओं में आपस में समानता लगती है और सरकार को इसकी गहनता से छानबीन करनी चाहिए.

  1. लद्दाख में हुए हिंसक प्रदर्शन को समझने के लिए सोनम वांगचुक को समझना जरूरी है, जो कहने को तो सामाजिक या पर्यावरण कार्यकर्ता है लेकिन वास्तव में वह विदेशी शक्तियों का मोहरा है.  
  2. उनके पिता अब्दुल्लाऔर मुफ्ती सरकारों में मंत्री रहे हैं.  
  3. आमिर खान की फिल्म 3 ईडियट्स में एक इडियट के रूप में उनकी भूमिका द्वारा उन्हें नायक के रूप में उभारा गया था .  
  4. उसे कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं जिसमें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार भी शामिल है.सभी जानते हैं कि रेमन मैग्सेसे पुरस्कार कैसे और किन व्यक्तियों को मिलता है. अरविंद केजरीवाल को भी रोमन मैग्सेसे अवार्ड मिला था और उसके बाद उन्होंने एक बहुत बड़ा आंदोलन तत्कालीन सरकार के विरुद्ध खड़ा किया था. वह भारत की सत्ता पर तो नहीं लेकिन दिल्ली राज्य की सत्ता पर कब्जा जमाने में सफल हो गए थे.  
  5. सोनम वांगचुक भी पुरस्कार प्राप्त करने के बाद राजनीतिक आंदोलन चलाने लगे.उनका संगठन स्टूडेंट एजुकेशनल एंडकल्चरल मूवमेंट ऑफ़ लदाख, जिसे उन्होंने 1988 में स्थापित किया था को विदेशों से भारी मात्रा में चंदा मिलता रहा है जिस पर मोदी सरकार बनने के बाद रोक लग गई थी और तभी से सोनम वांगचुक भाजपा के विरुद्ध आग उगल रहे हैं.  
  6. वह मोहम्मद यूनुस के मित्र हैं और हाल में पाकिस्तान की यात्रा भी कर चुके हैं.  
  7. पिछले 2-3 वर्षो में कई बार अनशन पर बैठ चुके हैं और लद्दाख से दिल्ली तक की पैदल यात्रा भी कर चुके हैं.  

उनकी मांगे अलोकतांत्रिक तो नहीं कहीं जा सकती लेकिन वे विशुद्ध राजनैतिक हैं और नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी तथा कांग्रेस का समर्थन करती दिखाई पड़ती हैं. आजादी के 72 साल तक लद्दाख जम्मू और कश्मीर का हिस्सा था और पूरी तरह उपेक्षित था लेकिन कभी स्वतंत्र राज्य की मांग नहीं की गयी और ना हीं अधिक स्वायत्तता की मांग की गई. विकास और रोजगार के मामले में भी यह क्षेत्र उपेक्षा का शिकार रहा रहा लेकिन अब जबकि वह जम्मू कश्मीर से अलग होकर एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है, केंद्र सरकार द्वारा विकास की अनेक योजनाएं शुरू की गई हैं. आर्थिक सहायता भी पहले से कई गुना अधिक प्राप्त हो रही है. लद्दाख में पहले केवल दो जिले थे लेह और कारगिल. केंद्र सरकार द्वारा विकास को गति देने के लिए पांच और नए जिले द्रास, ज़ांस्कर, नूब्रा, शाम, और चंगथांग बनाकर जिलों की संख्या 7 की गई है. इस क्षेत्र पर केंद्र सरकार जितना ध्यान दे रही है उतना स्वतंत्रता के बाद पहले कभी नहीं दिया गया. ऐसे में 3 लाख जनसंख्या वाले इस क्षेत्र के लिए पूर्ण राज्य की मांग करना न्याय संगत भले ही कहा जाए लेकिन केंद्र शासित प्रदेश की तुलना में लाभकारी बिल्कुल भी नहीं हो सकता. मुस्लिम बाहुल्य कारगिल के लिए अलग लोकसभा सीट की मांग करने का औचित्य समझना मुश्किल नहीं है.

अपनी मांगों को लेकर सोनम वांगचुक 10 सितंबर से 35 दिनों के अनशन पर बैठे थे और उनके साथ लद्दाख अपेक्स बॉडी के कुछ लोग भी बैठे थे. 23 सितंबर को इनमें से दो बुजुर्ग व्यक्तियों को स्वास्थ्य कारणों से अस्पताल में दाखिल कराया गया, जिसे मुद्दा बनाकर 24 सितंबर को सोशल मीडिया के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को इकट्ठा होने के लिए कहा गया. सोनम वांगचुक ने भाषण में भीड़ को उकसाया और कहा कि जो नेपाल में हुआ, श्रीलंका और बांग्लादेश में हुआ, वह भारत में क्यों नहीं हो सकता. कुछ समय पहले ही उन्होंने भीड़ को संबोधित हुए अरब क्रांति का था. उदहारण दिया था इस सब का उद्देश्य छात्रों को भड़काना था, उन्होंने छात्रों को जेन- जेड कह कर संबोधित किया.

कोई भी शांतप्रिय लोकतांत्रिक आंदोलन अरब -क्रांति और पड़ोसी देशों में हुई हिंसा का उदाहरण देकर भीड़ को नहीं उकसा सकता. एकत्रित की गई भीड़ ने चुनाव आयोग तथा भाजपा कार्यालय को आग के हवाले कर दिया. कई सरकारी गाड़ियों को नुकसान पहुंचाया और सार्वजनिक संपत्ति को स्वाहा किया. सब कुछ वैसा ही किया गया जैसा नेपाल में हुआ था. हैरानी तब हुई जब सुरक्षा बलों ने 6 नेपाली नागरिकों को घटनास्थल से गिरफ्तार किया जिन्होंने हिंसा और आगजनी में अपनी भूमिका स्वीकार करते हुए बताया कि उन्हें इस कार्य के लिए बुलाया गया था. उन्होंने यह भी बताया कि नेपाल में भी उन्होंने जैन-जेड प्रदर्शन के दौरान भी हिंसा और आगजनी में हिस्सा लिया था. यह सभी कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता है. सुरक्षा एजेंसियां उनसे पूछताछ कर रही हैं लेकिन पूरे घटनाक्रम के पीछे डीप स्टेट, वामपंथी इस्लामिक गठजोड़ की स्पष्ट भूमिका नजर आती है.

नेपाल की हिंसा में कतर की भूमिका भी दृष्टिगोचर हुई थी क्योंकि बड़ी संख्या में नेपाली नागरिक कतर में काम करते हैं जिनके संबंध हमास जैसे आतंकी संगठनों से होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. कतर में कार्यरत नेपाली नागरिक बड़े पैमाने पर नेपाल में धर्मांतरण में सक्रिय भूमिका निभाते हैं. उन्होंने नेपाल में हाल में हुई हिंसा में सक्रिय सहयोग किया.

सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया है. पुलिस और प्रशासन ने 50 से अधिक व्यक्तियों को हिरासत में लिया और उनसे पूछताछ के आधार पर सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया है. स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है लेकिन प्रश्न है कि इतने दिन से लद्दाख को जलाने की योजना बनाई जाती रही पर पुलिस और प्रशासन को इसकी भनक नहीं लगी. यह केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों की भी एक बड़ी चूक दर्शाता है. सोनम वांगचुक से मंत्रणा के आधार पर ही राहुल गांधी यह बात दोहराते हैं कि चीन द्वारा लद्दाख के बड़े भूभाग पर कब्जा किया गया है. मीडिया से बात करते हुए सोनम वांगचुक ने लगभग वही सब बातें दोहराई जिसे राहुल गांधी दोहराते रहते हैं. इससे कांग्रेस के साथ गांठ है इससे उन्होंने स्वयं इनकार नहीं किया है क्योंकि इन सबका श्रोत डीप स्टेट है.

मोदी सरकार को चाहिए कि वह किसान आंदोलन तथा शाहीन बाग आंदोलन से सबक लेते हुए किसी भी देश विरोधी आंदोलन के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित कर या लचीला रुख अपना कर हिंसा करने का अवसर प्रदान न करें. इससे न केवल विश्व को गलत संदेश जाता है बल्कि देश विरोधियों के हौसले भी बुलंद होते हैं. सभी राष्ट्र भक्तों को भी भारत विरोधी षड्यंत्रकारियों से स्वयं सावधान रहने की अत्यंत आवश्यकता है, और दूसरों को भी जागरूक करने की आवश्यकता है, ताकि राष्ट्र को अस्थिर करने का कोई भी अभियान सफल न हो सके.

~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~

लद्धाख से राष्ट्र विरोधी खेल शुरू

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