डिज़ाइनर
नेता और स्तरहीन पत्रकारिता
गौरी लंकेश की हत्या के बाद अवार्ड वापसी गैंग एक
बार फिर सक्रिय हो गयी और इस बार कई डिज़ाइनर नेता भी खुलकर मैदान में आ गए और
उन्होंने आरएसएस और बेजीपी के आलावा प्रधानमंत्री मोदी को भी सीधे लपेट लिया .
दूसरे दिन मुम्बई, दिल्ली और बंगलौर में कैंडिल मार्च हुआ और एक जैसी मोम् बत्तिया
जैसे वे एक ही जगह बनी हों और फिल्म के किसी सीन की तरह अनुशासित निर्देशन में प्रदर्शन
कारी रोते बिलखते देखने को मिले.
गौरी जैसे पत्रकार की हत्या निंदनीय है और इसकी जाँच कर अपराधियों को सख्त
से सख्त सजा दी जानी चाहिए. उ.प्र. और
बिहार में हाल ही में कई पत्रकारों की न्रशंस हत्या की गयी लेकिन अफ़सोस ! न कोई डिज़ाइनर
नेता और न ही कोई मोमबत्ती धारी प्रदर्शन कारी कहीं दिखाई पड़ा . ये भेद क्यों ?
गौरी लंकेश कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामैय्या की बहुत नजदीकी मित्र थी
और उनके राज्य में पोश इलाके में उनकी हत्या की गयी जो बेहद दुखदायी है. जब उन्हें
धमकियाँ मिल रही थी और उनकी जान को खतरा था,
तो मुख्यमंत्री ने उन्हें सुरक्षा क्यों नहीं दी ? जिस दिन उनकी हत्या हुई वे
मुख्य मंत्री से मिल कर आ रही थी. बताया जाता है कि वे एक गुप्त मिशन पर थी और उनके
भाई ने बताया कि ये गुप्त मिशन था कई नक्सली नेताओं को आत्म समर्पण कराना और इसलिए
वे कुछ नक्सलियों के निशाने पर थी . किन्तु सिद्धरामैय्या सहित सभी ने देश में बढ़
रही असहिष्णुता और प्रधान मंत्री मोदी को इस ह्त्या का इसका जिम्मेदार बताया
. गौरी को
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गयी और पुलिस ने उन्हें सलामी दी.
ओम थानवी, रबीश कुमार और दिग्विजय सिंह जैसे
लोगों ने कपडे उतार कर नागिन डांस किया. टी आर पी को लालाइत कुछ टी वी चैनलों ने घंटो बहस की और एक छोटी सी साप्ताहिक मैगजीन “गौरी
लंकेश” जिसकी कीमत रु. १५ और खरीदार पता नहीं कितने थे, के पत्रकार को राष्ट्रीय
हीरो बना दिया. जाहिर है ये मग्जीन बिना पैसे के नहीं चल सकती, इसके श्रोत क्या है
? इसका स्तेमाल एक विशेष विचारधारा जो राष्ट्र भक्तों को कठघरे में खड़ा कर सके ,
के प्रचार और प्रसार के लिए किया जाता था. गौरी जो वामपंथी थी, को एक बीजेपी नेता
के बारे में मिथ्या समाचार प्रकाशित करने के अपराध में अभी हाल ही में ६ महीने के जेल की सजा सुनाई गयी थी और वे जमानत पर थीं. वामपंथियों के पास अब सिवाय
आडम्बर के और कुछ नहीं बचा है. एक सजायाफ्ता पत्रकार के प्रति एक राजनैतिक दल की
इतनी हमदर्दी ... कुछ तो गड़बड़ है .
एस आई टी ने संकेत दिए हैं
कि उनकी हत्या नक्सलियों ने की हो सकती है .
लेकिन जो लोग हिट एंड रन करके चले गए उनका क्या किया जाय ?
राजनीति और पत्रकारिता कितना नीचे गिरेगी ? क्या कोई भविष्य वाणी कर सकता है
?
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