शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

योगी के विरुद्ध षड्यंत्र






योगी की तपस्या और उ.प्र. की समस्या

उत्तर प्रदेश में पिछले 5 साल से अधिक समय से मुख्यमंत्री रहते हुए योगी आदित्यनाथ ने कानून व्यवस्था सहित प्रदेश की शासन व्यवस्था में कई उल्लेखनीय कीर्तिमान स्थापित किए जिसमें सबसे प्रमुख है - सांप्रदायिक दंगों से मुक्ति, माफियाओं पर कठोर शिकंजा और भ्रष्टाचार रहित सरकार. इसके लिए योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री के रूप में कड़ी तपस्या की है, और जिसके परिणाम स्वरूप जनता में उनकी छवि बेहद कुशल और निष्पक्ष प्रशासक  की बनी और  सत्ता में उनकी पुनः वापसी हुई. आज पूरे देश में बुल्डोजर बाबा के नाम से विख्यात योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री मोदी के बाद दूसरे सबसे बड़े लोकप्रिय नेता बन गए हैं. लोग उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. सोशल मीडिया को अगर जन सामान्य की इच्छा और अभिव्यक्ति की बानगी देखा जाए तो पूरे देश में ज्यादातर लोग उन्हें मोदी के बाद प्रधानमंत्री पद का सबसे उपयुक्त उम्मीदवार मानते हैं. ऐसे में ठीक है कि उत्तर प्रदेश के  मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल पूरे भारत में जनता की कसौटी पर हमेशा कसा जाता है और इससे योगी की जिम्मेदारी ही नहीं, पूरे भारत की जनता के प्रति जवाबदेही और भी बढ़ जाती है. उनकी निष्पक्षता, कर्मठता, ईमानदारी और सन्यासी के रूप में सनातन संस्कृति प्रति समर्पण पर किसी को कोई भी संदेह नहीं है किन्तु  राज्य सरकार के स्तर पर हुई एक भी राजनीतिक और प्रशासनिक चूक से जनता आहत होती है जो योगी की छवि पर भी प्रतिकूल असर डालती है.  

हाल  में उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के स्थानांतरण में हुई गड़बड़ियों के कारण उपजी परिस्थितियों ने इस बात को रेखांकित किया है कि वह प्रदेश की नौकरशाही के मकड़जाल और भ्रष्टाचार के षड्यन्त्र से मुख्यमंत्री के पद को पूरी तरह से अलग करने में सफल नहीं हो पा रहे है. ठीक इसी समय एक राज्य मंत्री के इस्तीफ़े ने घटनाक्रम को बेहद जटिल और अपयशकारी बना दिया है. स्थानांतरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे सभी अधिकारी और कर्मचारी संतुष्ट नहीं हो सकते लेकिन मृतक कर्मचारियों का स्थानांतरण, एक ही कर्मचारी का एक से अधिक जगह स्थानांतरण, और नीति के विरुद्ध स्थानांतरण निश्चित रूप से संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों की अक्षमता और घोर लापरवाही का ज्वलंत उदाहरण है. यह इस बात का भी प्रमाण है कि विभाग और उनके नियंत्रक  प्राधिकारी आज भी गंभीर विषयों पर उदासीनता का रवैया अपना रहे हैं.

बड़ी बड़ी कंपनियों और प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों के  स्थानांतरण आदेश जारी किए जाने से पहले एक लंबी प्रक्रिया का पालन किया जाता है जिसके अंतर्गत अनुकंपा, प्रशासनिक और तकनीकी आधार पर किए जाने वाले स्थानांतरणों की अलग अलग सूची बनाई जाती है जिसका कई स्तर पर सत्यापन और प्रमाणन किया जाता है ताकि गलती की कोई संभावना न रहे. प्रशासनिक और तकनीकी आधार पर किए जाने वाले स्थानांतरण पर गहन मंथन किया जाता है और कर्मचारियों अधिकारियों की उपयोगिता को हमेशा ध्यान में रखा जाता है. सुविधा के अनुसार छोटे छोटे समूहों में दो तीन बार में  स्थानांतरण किए जाते हैं, ताकि स्थानांतरण प्रक्रिया से सामान्य कामकाज प्रभावित न हो और मेले जैसा माहौल भी न बने. स्थानांतरण करने का उद्देश्य उत्पादकता बढ़ाना और लंबे समय तक एक ही जगह रुके रहने के कारण निजी स्वार्थ विकसित न होने देना होता है. केवल औपचारिकता निभाने के लिए स्थानांतरण करना बिल्कुल भी उचित नहीं है क्योंकि स्थानांतरण से सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है.

सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में क्या कोई इस बात पर भरोसा कर सकता है कि उत्तर प्रदेश सरकार के पास उसके कर्मचारियों का सही डेटा भी उपलब्ध नहीं है अन्यथा कम से कम मृतक कर्मचारियों के स्थानांतरण जैसी शर्मनाक घटना नहीं होती. पहले भी प्रदेश में मृतक कर्मचारियों की चुनाव ड्यूटी लगती रही है और ये  हास्यास्पद कारनामे आज भी पहले की तरह ही हो रहे हैं. कर्मचारियों का डिजिटल रिकॉर्ड न होने के कारण न जाने कितने फर्जी शिक्षक, कर्मचारी और अधिकारी उत्तर प्रदेश सरकार के कार्यालयों में विधिवत कार्य कर रहे हैं, जो व्यवस्था पर बदनुमा दाग है. ऐसा नहीं हो सकता है कि इस स्थानांतरण में हुई गड़बड़ियां केवल मानवीय भूल, अक्षमता और प्रशासनिक चूक है, बल्कि इसमें भ्रष्टाचार का भी बहुत बड़ा खेल हो सकता  है.  साथ ही साथ मुख्यमंत्री की बेदाग छवि को नुकसान पहुंचाना और विभिन्न मंत्रियों के बीच खाई पैदा करना भी एक उद्देश्य हो सकता है. स्वाभाविक है कि इस सबके पीछे केवल छोटे अधिकारी ही नहीं बल्कि प्रदेश की जिम्मेदार बड़े अधिकारी भी शामिल हो सकते हैं. प्रदेश में पहले भी स्थानांतरण के सालाना जलसे को आंधी के आम की तरह लूटने और अपनी जेब भरने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है. हो सकता है आपकी बार ऐसा न हुआ हो लेकिन फिर इतनी गड़बड़ियां क्यों?  

अबकी बार हुए स्थानांतरण में सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि संबंधित मंत्री भी इसका विरोध कर रहे हैं स्वाभाविक है कि इन मंत्रियों की भी स्वीकृति नहीं ली गई होगी जो मान्य लोकतांत्रिक व्यवस्था के सर्वथा विपरीत है क्योंकि अगर कोई मंत्री अपने विभाग के लिए उत्तरदायी हैं तो वह अपने विभाग के कर्मचारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए उत्तरदायी क्यों नहीं है. इसका मतलब यह बिलकुल भी नहीं है कि हर ट्रांसफर मंत्री स्तर पर ही स्वीकृत किया जाएगा किंतु कर्मचारियों की कैटेगरी के अनुसार विभिन्न अधिकारियों को यह जिम्मेदारी दी जा सकती है जो  विभागाध्यक्ष / संबंधित मंत्री के लिए जवाबदेह हों. कोई भी विभागाध्यक्ष उस विभाग के मंत्री से बड़ा तो नहीं हो सकता और जब मंत्री स्वयं इस स्थानांतरण की आलोचना कर रहे हो तो  स्थिति बहुत ही विचित्र और गंभीर हो जाती है. आखिर वे कौन अधिकारी हैं जिन्होंने संबंधित विभागों के स्थानांतरण को स्वीकृति प्रदान की और मंत्रियों को भरोसे में नहीं लिया? क्यों न  स्थानांतरण में हुई गड़बड़ियों के लिए उनके विरुद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए जो उदहारण बन सके? ऐसी कार्रवाई करते समय यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि कहीं ये जिम्मेदारी भी ऐसे अधिकारियों को न दे दी जाए जो स्वयं भी इस तरह की गड़बड़ी में शामिल रहे हो और कार्रवाई के नाम पर एक बार फिर सरकार की छवि को चोट पहुँचाए. योगी जी को यह ध्यान रखना चाहिए कि पहले भी कई सरकारों में तबादला उद्योग सुनाई पड़ता था, जिसमें सरकार के मंत्री भी शामिल रहते थे. वर्तमान स्थानांतरण में की गई गड़बड़ियां कहीं उसी उद्योग को पुन: स्थापित करने का प्रयास तो नहीं है.

एक राज्य मंत्री के इस्तीफ़े ने न केवल स्थानांतरण में हुई गड़बड़ियों बल्कि सरकार के उच्चाधिकारियों द्वारा मंत्रियों की बात की अनदेखी करने के मुददे को सुर्खियों में ला दिया है. संबंधित मंत्री द्वारा अपने त्यागपत्र को केंद्रीय गृह मंत्री को भेजने और उसे मीडिया में सार्वजनिक करने के राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं, फिर भी प्रदेश के उच्च अधिकारियों पर लगाए गए उनके आरोप इसी बात की पुष्टि करते हैं कि प्रदेश के अधिकारी किसी की भी नहीं सुनते, न जनता और न मंत्री, तो ये अधिकारी किसके प्रति जिम्मेदार हैं. इसके निवारण के लिए ही मुख्यमंत्री ने कई मंत्री समूह बनाकर विभिन्न क्षेत्रों में भेजे थे जिन्होंने आकर अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी थी, उस पर क्या कार्रवाई हुई यह तो नहीं मालूम लेकिन स्थितियों में  बहुत सुधार हुआ हो ऐसा नहीं लगता. इस विषय पर अत्यधिक गंभीरता पूर्वक कार्रवाई करने और शीर्ष स्तर पर अधिकारियों के स्वार्थपूर्ण गठजोड़ को तोड़ने की अत्यंत आवश्यकता है, अन्यथा सरकार की प्रतिष्ठा पर और अधिक चोट होगी. सत्ता के गलियारों के परे यह विषय अक्सर चर्चा में रहता है कि प्रदेश के कई अधिकारी मुख्यमंत्री योगी की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति से खुश नहीं हैं, और इस कारण कई बार उनके द्वारा जानबूझकर मुख्यमंत्री की छवि को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया जाता है. इसका संज्ञान किसी और को नहीं, स्वयं मुख्यमंत्री को लेना होगा और उन्हें ये सूत्र हमेशा याद रखना चाहिए कि शीर्ष पर बैठा हुआ व्यक्ति हमेशा अकेला होता है, और इसलिए कई बार ऐसे मौके आते है जब उसे स्वयं से संवाद करना होता है और तदनुसार स्वयं ही निर्णय करना पड़ता है.

विधानसभा चुनाव से कुछ पहले से कई अधिकारियों ने बदलाव की आहट भांपकर अपनी स्वामिभक्ति और निष्ठा का भी स्थानांतरण करना शुरू कर दिया था जो भ्रष्टाचार और स्वार्थ में लिप्त अधिकारियों की बहुत स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है. ऐसे अधिकारी ही भ्रष्ट और आपराधिक कृत्यों में लिप्त अपने साथियों और शुभचिंतकों  को बचाने का प्रयास करते रहते हैं, सरकार किसी भी दल की हो, ये तंत्र हमेशा इसी तरह काम करता रहता है अन्यथा ऐसा नहीं हो सकता था कि भ्रष्टाचार और हत्या के मामले में नामजद एक आईपीएस अधिकारी आज तक पकड़ा नहीं जाता, अपने आधिकारिक आवास और कार्यालय में धर्मांतरण जैसी गतिविधियों में लिप्त एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जाती. ऐसे स्वार्थी अधिकारियों ने ही योगी के पिछले कार्यकाल में ऐसी स्थिति बना दी थी जब भाजपा ने मुख्यमंत्री बदलने पर भी गंभीरता से विचार किया था और एक टीम लखनऊ भेज दी थी.

देश की अधिकांश जनता योगी आदित्यनाथ को अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखती हैं. दक्षिण भारत के लोगों में भी मैंने उनके प्रति लोगों में बहुत उत्साह देखा है. यदि  योगी जी को मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री तक की अपनी यात्रा पूरी करनी है तो जनता जो चाहती है, जनता को जो पसंद है, वैसा ही करते रहने होगा क्योंकि केवल जनता का समर्थन ही उन्हें उस ऊँचाई तक ले जा सकता है. प्रदेश में अच्छे, निस्वार्थ और निष्पक्ष अधिकारियों की कमी नहीं है, उन्हें गंभीरता पूर्वक अपने आस पास देखना चाहिए और जहाँ जरूरत हो वहाँ तुरंत बदलाव करना चाहिए और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से अपनी टीम का निर्माण करना चाहिए ताकि इस तरह की अनावश्यक दुर्घटनाओं से बचा जा सके.

-    शिव मिश्रा  responsetospm@gmail.com


श्रीराम मंदिर निर्माण का प्रभाव

  मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के मंदिर निर्माण का प्रभाव भारत में ही नहीं, पूरे ब्रहमांड में और प्रत्येक क्षेत्र में दृष्ट्गोचर हो रहा है. ज...