शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

राजनीति, सनातन और सरकार

 



राजनीति, सनातन और सरकार

मोदी सरकार ने वर्ष 2023-24 का अंतरिम बजट संसद में प्रस्तुत जिसमें कोई भी लोकलुभावन घोषणाएं नहीं की गई है और न ही प्रत्यक्ष तौर पर मतदाताओं को आकर्षित करने का कोई विशेष प्रयास किया गया है. मध्यम वर्ग को राहत पहुंचाने के लिए आयकर की दरों में भी कोई छूट नहीं दी गई है. बजट प्रावधानो को देखकर ऐसा लगता है कि यह सामान्य बजट का ही विस्तार है, जिसके केंद्र बिंदु केवल विकास है. चुनावी वर्ष में यह बजट लोगो को आश्चर्यचकित कर सकता है लेकिन यह संकेत है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार अपनी सरकार बनाने के लिए पूरी तरह से आश्वस्त हैं. यह पूरे देश के लिए संतोष की बात है लेकिन हिंदुओं के लिए यह संतोष के साथ साथ सजग रहने की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है कि अति आत्मविश्वास में कथित हिंदूवादी सरकार राष्ट्रीय मुद्दों और हिन्दू हितों से पूरी तरह से विमुख न हो जाए.

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद पूरा भारत आल्हादित है और वातावरण पूरी तरह से राममय है. हिन्दू बहुत खुश है और 500 वर्षों के संघर्ष के बाद राम मंदिर निर्माण को सनातन धर्म की विजय के रूप में देख रहे हैं जो पूरी तरह से गलत अवधारणा है. ये सही है कि यह सनातन के पुनर्जागरण की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है लेकिन यह भी एक तथ्य है कि मंदिर का निर्माण सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद ही संभव हुआ है, सरकार द्वारा बनाये किसी कानून से नहीं. इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछली सरकारों के विपरीत मोदी सरकार की भूमिका अत्यंत सकारात्मक और उत्प्रेरक रही.

राम के जन्म स्थान पर बना मंदिर इस्लामिक आक्रान्ताओं द्वारा सनातन धर्म को अपमानित करने के लिए तोड़ा गया था और उसी स्थान पर मस्जिद का उस समय निर्माण करना जब अयोध्या में एक भी मुसलमान नहीं था, का एकमात्र कारण हिंदू धर्म के ऊपर इस्लाम की सर्वोच्चता प्रदर्शित करना था. ऐसा एक नहीं, अनेक जगह हुआ. दुर्भाग्य से इस्लामिक आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए मंदिरों की विस्तृत सूची भी किसी के पास उपलब्ध नहीं है लेकिन एक अनुमान के अनुसार 50 हजार से भी अधिक मंदिर तोड़े गए. इतिहासकार सीता राम गोयल ने कुछ अन्य लेखकों अरुण शौरी, हर्ष नारायण, जय दुबाशी और राम स्वरूप के साथ मिलकर “हिंदू टेम्पल: व्हाट हैपन्ड टू देम” शीर्षक से दो खंडों की किताब प्रकाशित की थी जिसमें  1800 से अधिक उन इमारतों, मस्जिदों और विवादित ढाँचों की सूची है, जिन्हे मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा मंदिरों को तोड़ कर उसी सामग्री का इस्तेमाल करके बनाया गया था. कुतुब मीनार, बाबरी मस्जिद, ज्ञानवापी, पिंजौर गार्डन सहित कई अन्य इमारतों का वर्णन पुस्तक में किया गया है. इस पुस्तक का उद्देश्य हिंदू समाज और विशेषकर नई पीढ़ी को इस विषय में जागृत करना था. यह एक शुरुआत थी और अपेक्षा थी कि हिंदुओं के जागरूक लेखक और इतिहासकार इस विषय को और आगे बढ़ाते हुए मंदिरों के विध्वंस की विस्तृत सूची तैयार करेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद भी हिंदू समाज में स्वाभिमान नहीं जागा, और कहीं कोई आंदोलन नहीं हुआ और न ही किसी व्यक्ति, समूह या संगठन ने सरकार से निराकरण की मांग ही की.

कांग्रेस तो गाँधी नेहरू के मुस्लिम तुष्टीकरण के अभियान को पूरे मनोयोग के साथ आगे बढ़ा ही रही थी, अन्य दल भी मुस्लिम तुष्टीकरण मे लग गए, जनसंघ इसका अपवाद रहा. यक्ष प्रश्न है कि क्यों सारे राजनीतिक दल केवल 10 -15% वोटों के लालच में मुस्लिम तुष्टिकरण करने लगे और 80 - 85 प्रतिशत हिंदुओं को पूरी तरह से अनदेखा करने लगे. इसका एकमात्र कारण है मुस्लिम समुदाय की एकता और सामूहिक मतदान की प्रवृत्ति. इसके विपरीत हिंदुओं में एकता नहीं है, जिसका कारण जातिगत विभेद के अलावा धर्म से विमुखता, सामूहिक निर्णय का अभाव तथा स्वकेंद्रित स्वार्थपूर्ण दृष्टिकोण होना है. इस कारण आज भी समूचा हिंदू समुदाय शक्ति और सामर्थ्य विहीन है. भला ऐसे समुदाय को कोई सरकार या राजनैतिक दल महत्त्व क्यों देगा. सभी राजनीतिक दल जब मुस्लिमों  को लुभाने का प्रयास करते हैं तो यह मानकर चलते हैं कि हिंदुओं के मत तो उन्हें जातिगत या अन्य आधार पर मिल ही जाएंगे. कांग्रेस लंबे समय तक सत्ता में केवल मुस्लिम वोटों के कारण नहीं, बल्कि हिंदू वोटो के कारण रही लेकिन कांग्रेस ने मुस्लिमों का तुष्टीकरण किया और हिंदुओं की कीमत पर किया लेकिन स्वाभिमान विहीन हिंदुओं ने कभी प्रतिवाद नहीं किया. स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद और विशेषतया तब जब देश का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ हो, सरकार का पहला कर्तव्य होना चाहिए था “गुलामी के अवशेषों से मुक्ति” जिनमें प्रमुख थे धार्मिक स्थल. कोई भी समुदाय, समाज या राष्ट्र अगर आपने आस्था के केंद्र धार्मिक स्थलों को मुक्त नहीं करा सकता तो वह कभी स्वतंत्र नहीं हो सकता और हमेशा गुलामी की मानसिकता में जकड़ा रहेगा. हिंदू समाज आज भी इसी हीन ग्रंथि का शिकार है.

इस्लामिक अतिक्रमण से मंदिर मुक्ति में मुस्लिम तुष्टीकरण बहुत बड़ी बाधा है, लेकिन हिंदुओं के जिन अत्यंत महत्वपूर्ण मंदिरों पर सरकारी कब्जा है उनके मुक्ति मार्ग में तो कोई बाधा नहीं है. सरकार उनके चढ़ावे की राशि हड़प कर अन्य धर्मों पर खर्च कर रही है किन्तु हिंदू समुदाय से कोई प्रभावी आवाज भी नहीं आ रही है. धार्मिक आधार पर देश के बंटवारे के बाद भारत में वहीं मुस्लिम हैं जो पाकिस्तान नहीं गए और उनसे यह अपेक्षा थी कि वे सौहार्द और भाईचारा बनाए रखने के लिए सभी विवादास्पद धार्मिक स्थल हिंदुओं को सौंप देंगे लेकिन ऐसा होने की बजाय मुस्लिम हठधर्मिता बढ़ती जा रही है जिसके पीछे ठोस राजनीतिक कारण हैं. इसकी शुरुआत तो नेहरू ने की थी लेकिन अब यह किसी के नियंत्रण में नहीं है. मंदिरों को नष्ट करने और उन पर इस्लामिक इमारतें बनाने के ऐतिहासिक दस्तावेजी प्रमाण तो है ही, इन इमारतों में स्वयं इतने साक्ष्य उपलब्ध हैं जिन्हें देख कर कोई अनपढ़ व्यक्ति भी तुरंत बता सकता है कि इन्हें मंदिरों को तोड़कर बनाया गया है. मुस्लिम भी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन इसे धार्मिक हठधर्मिता कहें, राजनीतिक संरक्षण कहें या गजवा ए हिन्द का षड़यंत्र कहें, मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा वर्ग सांप्रदायिक विद्वेश बढ़ाने का काम कर रहा है और  जहरीले बयान देकर विभाजन के पूर्व की स्थिति उत्पन्न करने की कोशिश कर रहा है. दुर्भाग्य से केंद्र सरकार भी मूकदर्शक है. यही कारण है कि अयोध्या में राम मंदिर बन जाने के बाद कई मुस्लिम नेताओं ने भड़काऊ बयान देते हुए कहा कि जब कभी मुस्लिम समुदाय शक्तिशाली होगा मंदिर तोड़कर पुनः मस्जिद बनायी जायेगी. इसका मतलब है कि गज़वा ए हिंद की योजना पर बहुत गंभीरता से काम हो रहा है, इसे हलके में नहीं लिया जाना चाहिए.  

ज्ञानवापी मंदिर की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट में इतने साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं कि कोई भी धर्मनिष्ठ और ईमानदार मुस्लिम इस ज्ञानवापी मंदिर में नमाज़ नहीं पड़ेगा और तुरंत इसे हिंदुओं को सौंप देगा लेकिन मुस्लिम समुदाय के राजनीतिक और धार्मिक व्यक्तियों द्वारा झूठ और कुतर्क गढ़ने का काम जारी है. अभी हाल की बात है जब 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह सरकार ने ज्ञानवापी मंदिर के व्यासजी तहखाने में अवरोध लगाकर पूजा अर्चना बंद करवा दी थी. उसी समय से श्रृंगार गौरी की भी पूजा भी बंद हो गयी. इसे हिंदू समाज की सहिष्णुता कहें या कायरता, समुचित प्रतिरोध नहीं हुआ और इस कारण पिछले 30 सालों से बंद पूजा, कुछ दिन पहले न्यायालय के आदेश के बाद पुनः शुरू हो सकी. विडंबना देखिए कि मस्जिद पक्ष ने इस अदालती आदेश का विरोध यह झूठ बोलते हुए किया कि यहाँ कभी पूजा नहीं होती थी यद्दपि उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष के इस झूठ का संज्ञान नहीं लिया.

मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा मंदिरों को तोड़कर इस्लामिक इमारतें बनाने के अकाट्य साक्ष्य सामने आने के बाद मुस्लिम समुदाय नि:शब्द है और केवल पूजा स्थल कानून 1991 की बात करता है. यह कानून पी वी नरसिम्हा राव सरकार ने कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण को आगे बढ़ाते हुए बनाया था जिसके अनुसार 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आये पूजा स्थलों का स्वरूप नहीं बदला जा सकता है. वैसे तो यह कानून अपने आप में असंवैधानिक है क्योंकि 1991 में बनाए गए कानून को चार दशक पीछे से लागू नहीं किया जा सकता है और तब से, जब संविधान भी अस्तित्व में नहीं था. यह भी एक तथ्य है कि जब संसद में यह कानून पास हुआ, नरसिम्हाराव सरकार बहुमत में नहीं थी किन्तु भाजपा के लोकसभा में 120 सांसद मूक दर्शक क्यों बने  रहे. भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी, जिनके बारे में कहा जाता है कि वह नेहरू से भी ज्यादा नेहरूवियन थे, ने इसका समुचित विरोध नहीं किया अन्यथा यह कानून बनना संभव नहीं था. यही नहीं अटल-आडवाणी के रहते हुए नरसिम्हा राव ने वक्फ बोर्ड कानून बनाया और अल्पसंख्यक आयोग को संवैधानिक दर्जा भी दिया. इसके पहले 1971 के बांग्लादेश युद्ध के बाद जब अटल जी ने इंदिरा गाँधी को दुर्गा बनाया तो इंदिरा ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बना दिया.

वर्तमान वर्ष चुनावी वर्ष है इसलिए हर राष्ट्रवादी को विशेषतय: हिंदू समाज को जागरूक होकर राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना चाहिये जिससे समान नागरिक संहिता लागू की जाय, 10+2 तक समान शिक्षा लागू हो और मदरसा शिक्षा पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया जाए. मंदिरों को सरकारी चंगुल से मुक्त किया जाए, धर्मांतरण पर सख्त केंद्रीय कानून बनाया जाए और पूजा स्थल कानून समाप्त किया जाए. वक्फ बोर्ड कानून में समुचित बदलाव करके इसकी संपत्तियों का स्वामित्व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सौंप कर उन्हें राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए. अल्पसंख्यक को पुनर्परिभाषित किया जाए और देश की जनसंख्या के 1% से कम जनसँख्या वाले पंथ को ही अल्पसंख्यक दर्जा दिया जाए. सभी विवादित धार्मिक स्थलों को  उनके धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व के आधार पर संबंधित समुदाय को सौंपने के उद्देश्य से एक विशेष आयोग का गठन किया जाय जो निश्चित अवधि में सभी विवादित स्थलों का निपटारा करें. गज़वा ए हिंद के षडयंत्र से निपटने के लिए राष्ट्रांतरण विरोधी सख्त से सख्त कानून बनाया जाए.

सबसे आवश्यक है की हिन्दू समाज की एकजुटता के लिए हर संभव प्रयास किये जाय ताकि एकीकृत और समन्वित शक्ति से राष्ट्र और समाज की रक्षा की जा सके.

~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्र ~~~~~~~~~~~~~~~~~~  

 

 




श्रीराम मंदिर निर्माण का प्रभाव

  मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के मंदिर निर्माण का प्रभाव भारत में ही नहीं, पूरे ब्रहमांड में और प्रत्येक क्षेत्र में दृष्ट्गोचर हो रहा है. ज...