काशी सबसे न्यारी, राजनीति की मारी
13 दिसंबर 2021 भारत के इतिहास का एक स्वर्णिम दिन बन गया जब प्रधानमंत्री मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर राष्ट्र को समर्पित करके काशी को नव्यता और भव्यता प्रदान की जिससे काशी एक बार फिर पूरे विश्व पटल पर सुर्खियों में छा गई.
काशी अमर है अविनासी है. काशी की
महिमा का स्कन्दपुराण में वर्णन इस प्रकार किया गया है-
भूमिष्ठापिन यात्र भूस्त्रिदिवतोऽप्युच्चैरध:स्थापिया, या बद्धाभुविमुक्तिदास्युरमृतंयस्यांमृताजन्तव:।
या नित्यंत्रिजगत्पवित्रतटिनीतीरेसुरै:सेव्यते, सा काशी त्रिपुरारिराजनगरीपायादपायाज्जगत्॥
इसका भावार्थ यह है कि जो भूतल पर होने पर भी पृथ्वी से संबद्ध नहीं है, जो जगत की सीमाओं से बंधी होने पर भी सभी का
बन्धन काटनेवाली (मोक्षदायिनी) है, जो महात्रिलोकपावनी गंगा के तट पर सुशोभित तथा
देवताओं से सुसेवित है, त्रिपुरारि भगवान विश्वनाथ की राजधानी वह काशी संपूर्ण जगत्
की रक्षा करे।
कहा जाता है कि यह पुरी भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है। अत: प्रलय होने पर भी
इसका नाश नहीं होता है। वरुणा और असि नामक नदियों के बीच पांच कोस में बसी होने के
कारण इसे वाराणसी भी कहा जाता है। काशी अर्थ भी यही है-जहां ब्रह्म प्रकाशित हो।
भगवान शिव काशी को कभी नहीं छोडते। जहां देह त्यागने मात्र से प्राणी जन्मों के
बंधन से मुक्त हो जाय, वह अविमुक्त क्षेत्र यही है। सनातन धर्मावलंबियों का दृढ
विश्वास है कि काशी में देहावसान के समय भगवान शंकर मरणोन्मुख प्राणी को
तारकमन्त्र सुनाते हैं। इससे जीव को तत्वज्ञान हो जाता है और उसके सामने अपना
ब्रह्मस्वरूप प्रकाशित हो जाता है।
बाबा भोलेनाथ का यह मंदिर भारत में सभी ज्ञात मंदिरों में प्राचीनतम है और ऐसा
माना जाता है यह भगवान पार्वती और शंकर का आदि स्थान है. ज्ञात इतिहास के अनुसार
राजा हरिश्चंद्र ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. इसके पश्चात सम्राट
विक्रमादित्य ने भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार और पुनरुद्धार कराया था.
1194 में मुहम्मद गोरी नाम के एक मुस्लिम लुटेरे
आक्रांता ने इसे तोड़ा था. 1447 में सुल्तान महमूद शाह ने एक बार फिर इस मंदिर को तोड़
दिया था. जिस शाहजहां को
तथाकथित प्यार की निशानी ताजमहल के
लिए दुनिया भर में याद किया जाता है उस
क्रूर और राक्षसी प्रवृत्ति के मुस्लिम शासक ने 1632 में इस मंदिर को तोड़ने के लिए सेना भेजी थी । 1669 में
औरंगजेब के आदेश पर मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई।
1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस
मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था, जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का
छत्र बनवाया था । ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी ( सरस्वती देवी ) का मंडप बनवाया था और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा
स्थापित करवाई थी । वर्तमान विस्तारीकरण और जीर्णोद्धार प्रधानमंत्री मोदी और
मुख्यमंत्री योगी के शासनकाल में हुआ है, वह भी
इतिहास में दर्ज होगा. हमें उस दिन की बेसब्री से
प्रतीक्षा है, जब ज्ञानवापी मस्जिद का अतिक्रमण हटेगा और यह शायद जल्दी ही
होगा.
आजादी के समय भारत का धार्मिक आधार पर
विभाजन हुआ किन्तु
मुस्लिमों के लिए पाकिस्तान बन जाने के बाद भी भारत से अधिकतर मुस्लिम
वहां नहीं गए और इसका सबसे बड़ा कारण था जवाहरलाल नेहरू की मुस्लिम
तुष्टिकरण की नीति जिसे वे आजाद भारत में
अपना सबसे बड़ा वोट बैंक बनाना चाहते थे. भेदभाव की इस नीति के कारण ही केवल हिंदुओं के लिए बचे इस भूभाग को न केवल धर्मनिरपेक्षता का जामा पहनाया गया
बल्कि हिंदुओं के प्रति भेदभाव भरा नकारात्मक रवैया भी अपनाया गया. इसके चलते सनातन धर्म के उन पौराणिक प्राचीन मंदिरों व अन्य पूजा स्थलों का
भी ध्यान नहीं रखा गया, जहाँ मुस्लिम आक्रताओं
ने क्षति पहुंचाई थी और उन्हें तोड़कर उनके ऊपर मस्जिद बना दी थी। चाहिए तो
यह था कि आजादी के तुरंत बाद नेहरू सरकार देश में एक आयोग का गठन करती जो इस
तरह के विवादित स्थलों का हल निकालती और
सनातन धर्म के आस्था केंद्रों, मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों पर मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा तोड़े
जाने और कब्जा किये जाने के बारे में
तुरंत फैसला करता. दुर्भाग्य से नेहरु के
स्वार्थ और अदूरदर्शिता से ऐसा नहीं किया
गया. इस कारण तीनों प्रमुख धर्म स्थानों मथुरा, काशी और अयोध्या सहित 50000 से भी अधिक मंदिरों पर आज भी मुस्लिम समुदाय का
कब्जा बना हुआ है. कांग्रेस की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने 1991 में एक नया कानून बना कर सभी धर्म स्थानों के
लिए 15 अगस्त 1947 के समय
की यथा स्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए.
इस संवैधानिक बाध्यता के चलते सनातन धर्म के अनेक अति महत्वपूर्ण स्थानों के
संदर्भ में न्यायालय में आज कोई याचिका भी दायर नहीं की जा सकती है.
केंद्र में मोदी व उत्तर प्रदेश में योगी की सरकार आने से लोगों में आशा की नई
किरण जाग उठी कि शायद अब सनातन धर्म के प्रति भेदभाव नहीं होगा और सनातन धर्म के सर्वोच्च तीन धर्म स्थान काशी, मथुरा और अयोध्या के मामले में भी हिंदुओं के साथ न्याय किया
जाएगा. मोदी सरकार ने बहुसंख्यक समुदाय को
निराश नहीं किया. सरकार ने तमाम बाधाओं को
दूर किया और सुखद संयोग से
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने राम मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया.
अब अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण के साथ-साथ प्रदेश की योगी सरकार
अयोध्या के चहुमुखी विकास के लिए अन अथक प्रयास कर रही है. आशा है कि अयोध्या अपने
प्राचीन गौरव को पूरी नवीनता के साथ पुनः प्राप्त कर सकेगी
काशी से प्रधानमंत्री मोदी के सांसद बनने के बाद विकास के लगातार नए आयाम गढ़े
जा रहे हैं और इसी कड़ी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण किया गया है. काशी
की इतनी पौराणिक महत्व के बाद बाबा विश्वनाथ का यह द्वादश ज्योतिर्लिंग लगभग 3500 स्क्वायर फीट के अत्यंत छोटे क्षेत्र में स्थित
था और जिसकी पहुंच छोटी-छोटी सकरी गलियों से होती थी. कॉरीडोर बन जाने से
श्रद्धालुओं के उपयोग का क्षेत्रफल लगभग दो लाख स्क्वायर फीट हो गया है जहां अब एक
साथ लगभग 70 हजार श्रद्धालु एकत्रित हो सकते हैं.
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के इस भव्य आयोजन में उपस्थिति देश के सनातन धर्म के
सभी प्रमुख संत और अन्य गण मान्य
व्यक्तियों के चेहरे पर छाई
प्रसन्नता देख कर ऐसा लग रहा था कि
शायद उन्होंने इस तरह के निर्माण और भव्य
विस्तार की कल्पना भी नहीं की होगी . देश का प्रधान मंत्री गंगा में डुबकी
लगाकर मस्तक पर चन्दन लगाए भगवा वस्त्रों
में पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ इस आयोजन का हिस्सा था . सब कुछ अद्भुत और अकल्पनीय था . काशी का रोम रोम
पुलकित हो रहा था. लेकिन
बरबस लोगो को सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का प्रसंग याद आ गया जब नेहरु ने
खुद जाना तो दूर देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद को भी जाने से यह कह
कर रोक दिया था कि भारत धर्म निरपेक्ष
राष्ट्र है. राष्ट्रपति बिना सरकारी खर्चे के इस आयोजन में शामिल हुए थे, जिसके बाद नेहरु ने उन्हें कितना अपमानित और प्रताड़ित किया था, जिसकी सहज कल्पना नहीं की जा सकती. देश के प्रथम
राष्ट्रपति ने पटना के सदाकत आश्रम की सीलन भरी कोठरी में जीवन के अंतिम दिन
बिताएं.
यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं कि
पिछले 7 वर्षों के मोदी
सरकार के कार्यकाल में सनातन संस्कृति के पुनर्जागरण का कार्य शुरू हुआ है. अयोध्या में राम की भव्य मंदिर के निर्माण के
साथ ही उत्तराखंड में चार धाम परियोजना की
शुरुआत की थीके अंतर्गत चारों धाम को जोड़ने के लिए 889 किलोमीटर लंबे हाईवे का चौड़ीकरण
किया गया और ऑल-वेदर यानी हर मौसम में मजबूत रहने वाली सड़क का निर्माण कराया गया। इससे बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा काफी शुगम हो गई है. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने के बाद सरकार ने एक न्यास की स्थापना की और मंदिर के निर्माण कार्य को पंख लगा दिए. अगस्त 2020 में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे
सनातन रीति-रिवाजों से पूजा अर्चना करते हुए इस मंदिर का शिलान्यास पूरे भक्ति भाव से करते हुए पूरी दुनिया
को संदेश दिया कि पंथनिरपेक्षता केवल सनातन धर्म में ही संभव
है. पिछले 500 वर्षों के मंदिर निर्माण के संघर्ष को याद करते
हुए हिंदू जनमानस के मन मस्तिष्क में आज भी अयोध्या में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किए गए शिलान्यास की
यादें ताजा है, जब उन्होंने साष्टांग दंडवत होते हुए प्रभु श्री राम का चरण वंदन किया था.
श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का बनना एक अत्यंत साहसिक और समर्पण का प्रतीक है इसका बन पाना आसान कार्य नहीं था और
इसके निर्माण में सैकड़ों व्यवधान उत्पन्न
किए गए जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय शामिल थे.
जहां विरोध करने वाले हिंदू विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा
प्रायोजित किए गए थे जिन्होंने अपने दलगत
राजनीतिक स्वार्थ के कारण प्राचीन मंदिरों को तोड़ने, विग्रह नष्ट करने और काशी का विनाश करने जैसे
आरोप लगाए. स्वाभाविक रूप से विपक्षी दल
नहीं चाहते थे कि श्री काशी विश्वनाथ
कॉरिडोर का निर्माण पूरा हो पाए और इसका श्रेय भाजपा या प्रधानमंत्री मोदी को
मिले. यद्यपि इन्होने गंगा में डुबकी लगाते हुए और बाबा विश्वनाथ के दरबार में पहुंच
कर आराधना करते हुए अपनी तस्वीरें और
वीडियो खूब प्रचारित और प्रसारित किए जिसका केवल और केवल उद्देश्य अपने आपको हिंदू के रूप में स्थापित करना था. विपक्ष के इन नेताओं को डर था कि श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के इतने बड़े कार्य के संपन्न हो जाने के बाद उनका हिंदुत्व
बहुत छोटा पड़ जाएगा,
इसलिए निर्माण
के इस कार्य का अभियान चलाकर हर स्तर पर
विरोध किया गया.
ज्ञानवापी मस्जिद की इंतजामियां कमेटी ने भी कॉरिडोर के निर्माण का भरसक विरोध किया और सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की थी कि इतने बड़े निर्माण और लोगों की भारी भीड़ जमा होने के कारण मस्जिद की सुरक्षा को गंभीर खतरा है. लेकिन पूरी दुनिया ने सनातन धर्म की विशालता का उस समय अनुभव किया कि जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन कर रहे थे, ठीक उसी समय नमाजी मस्जिद में नमाज अदा कर रहे थे. उद्घाटन के बाद ज्ञानवापी मस्जिद कमेटी का अब कहना है कि कॉरिडोर के निर्माण से मस्जिद और भी सुरक्षित हो जाएगी.
कॉरिडोर के उद्घाटन के समय अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने चुटकी लेते हुए कहा
था कि
हो सकता है कोई नेता कॉरिडोर के
निर्माण का श्रेय लेने की भी कोशिश करे कि
यह परियोजना उसने शुरू की थी.
प्रधानमंत्री के इस व्यंग से
बेपरवाह अखिलेश यादव ने सचमुच यह घोषणा कर दी कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की योजना
उनके शासनकाल में बनी थी और कुछ भवनों का अधिग्रहण भी किया गया था. बेहद बचकाने
अंदाज में नकारात्मकता का परिचय देते हुए उन्होंने यह भी कह डाला कि प्रधानमंत्री
को काशी में रहना चाहिए क्योंकि आखिरी समय
में वही रहा जाता है. इसके एक दिन पहले राहुल गांधी हिंदू और हिंदुत्व की व्याख्या कर
रहे थे, तो राज्य सभा में
कांग्रेस के नेता खड़गे ने
प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए कह रहे थे
कि उन्हें यह उद्घाटन किसी छुट्टी के दिन करना चाहिए था और उस दिन उन्हें
संसद में होना चाहिए था. अन्य नेताओं ने खुल कर आलोचना भले ही न की हो किन्तु किसी
ने भी इस पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए न
तो कोई ट्वीट किया और न ही कोई वक्तव्य
दिया. यह प्रदर्शित करता है कि न केवल राजनैतिक दलों का तुष्टिकरण
मोह अभी भी जस का तस कायम है बल्कि वोट बैंक के साझीदारों की संख्या बढ़ती
जा रही है. धार्मिक कट्टरता और उन्माद
बढ़ता जा रहा है. छल - कपट और प्रलोभन से
मतान्तरण करवाकर जनसंख्या विस्फोट करवाया जा रहा है ताकि देश की धार्मिक पहचान को
समाप्त कर और गजवा- ए- हिन्द को अंजाम
दिया जा सके. अपने स्वार्थ में अंधे हो चुके राजनैतिक दल इसके विरुद्ध खड़े होने के बजाय इसे
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन दे रहें हैं . इसलिए सनातन संस्कृति
के कर्णधारों को अपनी हिचक छोड़कर
सनातन धर्म की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए और क्षणिक फायदे के लिए किसी बहकावे में नहीं आना चाहिए.
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- शिव मिश्रा