मोदी और राहुल की
किसी भी तरह से तुलना करना बेमानी है फिर भी अगर प्रश्न पूछा गया है तो उसका बहुत सरल
और स्वाभाविक उत्तर है मोदी जी की प्रतिभा के सामने राहुल का कद नगण्य है।
मोदी और राहुल के
बीच का अंतर समझने के लिए इन दोनों व्यक्तियों को समझना
जरूरी है।
मोदी और राहुल के
बीच का अंतर समझने के लिए इन दोनों व्यक्तियों को समझना
जरूरी है।
नरेंद्र मोदी का जन्म एक बेहद गरीब और पिछड़ी जाति के परिवार में हुआ । उनके पिताजी रेलवे स्टेशन पर छोटी सी चाय की दुकान चलाते थे और बचपन में नरेंद्र मोदी भी अपने पिताजी के काम में हाथ बटाते हुए लोगों को चाय बेचते थे । जब ट्रेन आती थी तो घूम घूम कर चाय बेचते थे। यह बहुत स्वाभाविक है कि अपने बचपन से ही उन्होंने अभाव और मानवीय संवेदनाओं को बहुत नजदीक से देखा और महसूस किया । इन सब ने इनके जीवन में बहुत प्रभाव डाला और इसलिए इस समाज के गरीब और निचले तबके के लिए उनके मन मे बहुत दर्द है । काम करने के साथ ही उन्होंने अपना पढ़ाई का कार्यक्रम जारी रखा । 13 वर्ष की उम्र में उनकी सगाई जसोदा बहन के साथ हुई और 17 वर्ष की उम्र में उनकी शादी हो गई। शादी के कुछ समय पश्चात ही उन्होंने घर छोड़ दिया और इसलिए इंटरमीडिएट के बाद उनकी पढ़ाई नियमित विद्यार्थी के रूप में नहीं हो सकी। घर छोड़ने के बाद 2 वर्षों तक उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया और हिमालय में एक सन्यासी के रूप में विभिन्न मठों और आश्रमों में काफी समय बिताया। वापस आने पर वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गये। इससे पहले 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के समय उन्होंने रेलवे स्टेशनों पर स्वेच्छा से भारतीय सेना के जवानों की सेवा की । 1967 में गुजरात में आई भयंकर बाढ़ में उन्होंने बाढ़ ग्रस्त इलाके में भी समाज सेवा का उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने नागपुर आकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विधिवत प्रशिक्षण लिया और बाद में उन्हें छात्र विभाग का काम दिया गया जिसका आगे चलकर नाम दिया गया अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद। आरएसएस के प्रचारक के रूप में उन्होंने कई राज्यों में काम किया और आपातकाल के समय बहुत अधिक सक्रियता से विरोध आंदोलनों में हिस्सा लिया । अपनी बुद्धिमत्ता और रणनीतिक कार्यकुशलता का परिचय देते हुए तत्कालीन कई बड़े नेताओं का मन मोह लिया । 1987 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी में संगठन का कार्य देखने के लिए भेजा । यहां भी उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और रणनैतिक कौशल की अमित छाप छोड़ी । 1995 और 1998 के गुजरात विधानसभा के चुनाव में उन्होंने पार्टी के लिए बहुत ही आक्रामक प्रचार किया जिसमें उनके संगठनात्मक कार्य की बहुत सराहना की गई। इस बीच उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और गुजरात विश्वविद्यालय से परास्नातक की डिग्रियां नियमित या व्यक्तिगत छात्र के रूप में अर्जित की। राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें दो बड़े आयोजनों के लिए जाना जाता है । एक आयोजन था राम मंदिर निर्माण के लिए लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा का आंदोलन, जिसमें उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के सारथी की भूमिका निभाई । राम रथ से यात्रा करते हुए आडवाणी जब रास्ते में एकत्रित लोगो की सभाओं को संबोधित करते थे तब आडवाणी के हाथ मे माइक होता था और मोदी जी पोर्टेबल लाउडस्पीकर कंधे पर रख कर खड़े होते थे जिससे दूर तक आवाज जा सके। आज वह व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री हैं और उनकी आवाज पूरी दुनिया में सुनी जाती है। दूसरा आयोजन था कन्याकुमारी से कश्मीर तक डॉ मुरली मनोहर जोशी की तिरंगा यात्रा और जोशी जी के सारथी की भूमिका निभाई मोदी ने । आतंकवादियों की धमकी के बाद भी श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराया । उनके अनअथक संगठनात्मक प्रयासों के कारण 1995 में गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने शंकर सिंह वाघेला के नेतृत्व में दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाई। 2001 में केशुभाई पटेल के खराब स्वास्थ्य के कारण उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया। 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप से भीषण जनधन की हानि हुई थी जिसका सामना मोदी ने बहुत ही प्रशासनिक कुशलता से किया । 27 फरवरी 2002 के दुर्भाग्यपूर्ण दिन गोधरा के निकट साबरमती एक्सप्रेस की कोच संख्या S6 को कथित रूप से एक वर्ग विशेष के लोगों ने आग के हवाले कर दिया जिसमें अयोध्या से वापस आ रहे 59 कारसेवकों की जलकर मृत्यु हो गई । जांच में पकड़े गए कई लोगों पर दोष सिद्ध हुए और उनमें से कई को मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई गई। गोधरा की इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप गुजरात में दंगे भड़क उठे और उसमें काफी धन जन की हानि हुई। कांग्रेस और तथाकथित अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों ने मोदी को इन गुजरात दंगों का दोषी आरोपित किया और कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार ने लगातार जांच पर जांच बैठा कर मोदी और अमित शाह दोनों को फांसी के फंदे तक ले जाने की भरपूर कोशिश की लेकिन इसमें कामयाब नहीं हुए। मोदी 15 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और इस बीच में गुजरात ने बहुत अधिक प्रगति की और मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद वहां कोई भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ । गुजरात की विकास गाथा पूरी दुनिया में गुजरात मॉडल के नाम से जानी जाती है। 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित किया और इसके बाद जो हुआ वह ऐतिहासिक घटना है। 30 साल के अंतराल के बाद कोई पार्टी स्वयं पूर्ण बहुमत पाकर केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। अपने पांच साल के पहले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने पूरे विश्व में भारत का डंका बजा दिया। नोटबंदी, जीएसटी , सर्जिकल स्ट्राइक आदि की सफलता पर सवार नरेंद्र मोदी को 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में पहले से भी अधिक बहुमत मिला और वह दोबारा प्रधानमंत्री बने । अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत उन्होंने बहुत ही तूफानी बल्लेबाजी से की और अब तक तीन तलाक , धारा 370, 35A, हटाने के बाद, संशोधित नागरिक कानून लागू कर दिया है। पिछले 70 सालों में कोई भी राजनैतिक व्यक्ति और कोई भी सरकार धारा 370 हटाने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी और तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय के न्याय निर्णय के बाद भी तत्कालीन राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने एक वर्ग विशेष के सामने घुटने टेकते हुए कानून बनाकर मान्यता दे दी थी। स्पष्ट है नरेंद्र मोदी का पूरा जीवन संघर्षों की बुनियाद पर खड़ा है और अपने शून्य से शिखर तक के सफर में उन्होंने न केवल जनता की भरपूर सेवा की बल्कि अपने हर कार्य क्षेत्र में नए कीर्तिमान भी स्थापित किए। अपने अस्सीम साहस, रणनीतिक कौशल और दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत उन्होंने भारत में अभी तक वह कर दिखाया है जो आगे आने वाले इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा। नरेंद्र मोदी वह व्यक्ति हैं जो अपने लिए नहीं, अपने परिवार के लिए, नहीं वरन् देश के लिए जीते हैं और जो कुछ भी करते हैं उसने राष्ट्र की भावना छिपी हुई होती है। अगर एक लाइन में कहां जाए तो "नरेंद्र मोदी असाधारण प्रतिभा, अदम्य साहस , दृढ़ इच्छाशक्ति, ओजस्वी वाणी और सच्ची राष्ट्र भक्ति की प्रतिमूर्ति हैं।
नरेंद्र मोदी का जन्म एक बेहद गरीब और पिछड़ी जाति के परिवार में हुआ । उनके पिताजी रेलवे स्टेशन पर छोटी सी चाय की दुकान चलाते थे और बचपन में नरेंद्र मोदी भी अपने पिताजी के काम में हाथ बटाते हुए लोगों को चाय बेचते थे । जब ट्रेन आती थी तो घूम घूम कर चाय बेचते थे। यह बहुत स्वाभाविक है कि अपने बचपन से ही उन्होंने अभाव और मानवीय संवेदनाओं को बहुत नजदीक से देखा और महसूस किया । इन सब ने इनके जीवन में बहुत प्रभाव डाला और इसलिए इस समाज के गरीब और निचले तबके के लिए उनके मन मे बहुत दर्द है । काम करने के साथ ही उन्होंने अपना पढ़ाई का कार्यक्रम जारी रखा । 13 वर्ष की उम्र में उनकी सगाई जसोदा बहन के साथ हुई और 17 वर्ष की उम्र में उनकी शादी हो गई। शादी के कुछ समय पश्चात ही उन्होंने घर छोड़ दिया और इसलिए इंटरमीडिएट के बाद उनकी पढ़ाई नियमित विद्यार्थी के रूप में नहीं हो सकी। घर छोड़ने के बाद 2 वर्षों तक उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया और हिमालय में एक सन्यासी के रूप में विभिन्न मठों और आश्रमों में काफी समय बिताया। वापस आने पर वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गये। इससे पहले 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के समय उन्होंने रेलवे स्टेशनों पर स्वेच्छा से भारतीय सेना के जवानों की सेवा की । 1967 में गुजरात में आई भयंकर बाढ़ में उन्होंने बाढ़ ग्रस्त इलाके में भी समाज सेवा का उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने नागपुर आकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विधिवत प्रशिक्षण लिया और बाद में उन्हें छात्र विभाग का काम दिया गया जिसका आगे चलकर नाम दिया गया अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद। आरएसएस के प्रचारक के रूप में उन्होंने कई राज्यों में काम किया और आपातकाल के समय बहुत अधिक सक्रियता से विरोध आंदोलनों में हिस्सा लिया । अपनी बुद्धिमत्ता और रणनीतिक कार्यकुशलता का परिचय देते हुए तत्कालीन कई बड़े नेताओं का मन मोह लिया । 1987 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी में संगठन का कार्य देखने के लिए भेजा । यहां भी उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और रणनैतिक कौशल की अमित छाप छोड़ी । 1995 और 1998 के गुजरात विधानसभा के चुनाव में उन्होंने पार्टी के लिए बहुत ही आक्रामक प्रचार किया जिसमें उनके संगठनात्मक कार्य की बहुत सराहना की गई। इस बीच उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और गुजरात विश्वविद्यालय से परास्नातक की डिग्रियां नियमित या व्यक्तिगत छात्र के रूप में अर्जित की। राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें दो बड़े आयोजनों के लिए जाना जाता है । एक आयोजन था राम मंदिर निर्माण के लिए लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा का आंदोलन, जिसमें उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के सारथी की भूमिका निभाई । राम रथ से यात्रा करते हुए आडवाणी जब रास्ते में एकत्रित लोगो की सभाओं को संबोधित करते थे तब आडवाणी के हाथ मे माइक होता था और मोदी जी पोर्टेबल लाउडस्पीकर कंधे पर रख कर खड़े होते थे जिससे दूर तक आवाज जा सके। आज वह व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री हैं और उनकी आवाज पूरी दुनिया में सुनी जाती है। दूसरा आयोजन था कन्याकुमारी से कश्मीर तक डॉ मुरली मनोहर जोशी की तिरंगा यात्रा और जोशी जी के सारथी की भूमिका निभाई मोदी ने । आतंकवादियों की धमकी के बाद भी श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराया । उनके अनअथक संगठनात्मक प्रयासों के कारण 1995 में गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने शंकर सिंह वाघेला के नेतृत्व में दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाई। 2001 में केशुभाई पटेल के खराब स्वास्थ्य के कारण उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया। 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप से भीषण जनधन की हानि हुई थी जिसका सामना मोदी ने बहुत ही प्रशासनिक कुशलता से किया । 27 फरवरी 2002 के दुर्भाग्यपूर्ण दिन गोधरा के निकट साबरमती एक्सप्रेस की कोच संख्या S6 को कथित रूप से एक वर्ग विशेष के लोगों ने आग के हवाले कर दिया जिसमें अयोध्या से वापस आ रहे 59 कारसेवकों की जलकर मृत्यु हो गई । जांच में पकड़े गए कई लोगों पर दोष सिद्ध हुए और उनमें से कई को मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई गई। गोधरा की इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप गुजरात में दंगे भड़क उठे और उसमें काफी धन जन की हानि हुई। कांग्रेस और तथाकथित अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों ने मोदी को इन गुजरात दंगों का दोषी आरोपित किया और कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार ने लगातार जांच पर जांच बैठा कर मोदी और अमित शाह दोनों को फांसी के फंदे तक ले जाने की भरपूर कोशिश की लेकिन इसमें कामयाब नहीं हुए। मोदी 15 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और इस बीच में गुजरात ने बहुत अधिक प्रगति की और मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद वहां कोई भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ । गुजरात की विकास गाथा पूरी दुनिया में गुजरात मॉडल के नाम से जानी जाती है। 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित किया और इसके बाद जो हुआ वह ऐतिहासिक घटना है। 30 साल के अंतराल के बाद कोई पार्टी स्वयं पूर्ण बहुमत पाकर केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। अपने पांच साल के पहले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने पूरे विश्व में भारत का डंका बजा दिया। नोटबंदी, जीएसटी , सर्जिकल स्ट्राइक आदि की सफलता पर सवार नरेंद्र मोदी को 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में पहले से भी अधिक बहुमत मिला और वह दोबारा प्रधानमंत्री बने । अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत उन्होंने बहुत ही तूफानी बल्लेबाजी से की और अब तक तीन तलाक , धारा 370, 35A, हटाने के बाद, संशोधित नागरिक कानून लागू कर दिया है। पिछले 70 सालों में कोई भी राजनैतिक व्यक्ति और कोई भी सरकार धारा 370 हटाने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी और तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय के न्याय निर्णय के बाद भी तत्कालीन राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने एक वर्ग विशेष के सामने घुटने टेकते हुए कानून बनाकर मान्यता दे दी थी। स्पष्ट है नरेंद्र मोदी का पूरा जीवन संघर्षों की बुनियाद पर खड़ा है और अपने शून्य से शिखर तक के सफर में उन्होंने न केवल जनता की भरपूर सेवा की बल्कि अपने हर कार्य क्षेत्र में नए कीर्तिमान भी स्थापित किए। अपने अस्सीम साहस, रणनीतिक कौशल और दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत उन्होंने भारत में अभी तक वह कर दिखाया है जो आगे आने वाले इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा। नरेंद्र मोदी वह व्यक्ति हैं जो अपने लिए नहीं, अपने परिवार के लिए, नहीं वरन् देश के लिए जीते हैं और जो कुछ भी करते हैं उसने राष्ट्र की भावना छिपी हुई होती है। अगर एक लाइन में कहां जाए तो "नरेंद्र मोदी असाधारण प्रतिभा, अदम्य साहस , दृढ़ इच्छाशक्ति, ओजस्वी वाणी और सच्ची राष्ट्र भक्ति की प्रतिमूर्ति हैं।
राहुल गांधी का
जन्म भारत के प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार "गांधी नेहरू" परिवार में हुआ । उनकी
मां इटालियन मूल की और पिता भारतीय मूल के थे। उनके पिता, दादी और दादी के पिता सभी
भारत के प्रधान मंत्री रह चुके है और वे कांग्रेस के सर्वे सर्वा भी । अपने मां-बाप की दो संतानों में से वे सबसे
बड़े हैं । उनकी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के सेंट स्टीफेन कालेज तथा दून कॉलेज मे हुई
। बाद में प्रतिष्ठित हार्ड वर्ड
विश्वविद्यालय से कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की और कैंब्रिज विश्वविद्यालय से एमफिल
की डिग्री हासिल की। कहा जाता है कि उन्होंने 3 साल तक प्रबंधन परामर्श की एक कंपनी मॉनिटर ग्रुप
में काम किया। 2004 में अपने पिता
राजीव गांधी के चुनाव क्षेत्र अमेठी से लोकसभा चुनाव जीतकर राजनीति में प्रवेश किया।
तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पार्टी जनों के अनुरोध के
बावजूद वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में कोई भी मंत्री पद स्वीकार करने से बचते रहे। 2007 में उन्हें
अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का महासचिव नियुक्त किया गया। 2009 में कांग्रेस
की सरकार बनने के बाद और कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं के उन्हें प्रधानमंत्री बनाए जाने की मांग के
बावजूद भी केंद्रीय मंत्री या प्रधानमंत्री का पद लेने में
हिचकिचाते रहे। 2014 में
हुए लोकसभा के चुनाव में वह कांग्रेस पार्टी के प्रधानमंत्री प्रत्याशी थे,
जो नरेंद्र मोदी को सीधे टक्कर देने का प्रयास करते रहे, लेकिन कांग्रेसका प्रदर्शन बहुत ही निराशाजनक
रहा और लोकसभा में कांग्रेसी सांसदों की संख्या घटकर 44 रह गई। 2017 में उन्हें
कांग्रेसका अध्यक्ष मनोनीत किया गया। 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने नरेंद्र मोदी के
विरुद्ध बेहद आक्रामक ढंग से लड़ा किंतु कांग्रेस के खाते में सिर्फ निराशा और पराजय ही आ
सकी। लोकसभा चुनाव की शर्मनाक पराजय के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेश के अध्यक्ष पद
से इस्तीफा दे दिया और पार्टी जनों के अत्यधिक अनुरोध के बावजूद वह पद पुन: स्वीकार नहीं
किया जिस पर आज भी उनकी मां सोनिया गांधी कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।
दिल्ली के प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने प्रकाशित किया था कि सेंट स्टीफन कॉलेज दिल्ली में
उनका प्रवेश अनुचित था क्योंकि उन्हें कॉलेज के स्पोर्ट्स कोटे से पिस्तौल के निशानेबाज
के रूप में प्रवेश दिया गया था जबकि राहुल गांधी पिस्तौल चलाना नहीं जानते हैं । एक और पत्रिका
न्यूज़ वीक ने अपनी एक अंक खुलासा किया था
कि श्री राहुल गांधी ने हार्वर्ड और कैंब्रिज में अपनी डिग्री कोर्स पूरे
नहीं किए थे और उन्होंने कभी भी मॉनिटर ग्रुप में काम नहीं किया था जैसा कि
कांग्रेस द्वारा दावा किया जा रहा था। ब्रिटेन के विदेश सचिव
को अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी के एक गांव में गरीबी पर्यटन यात्रा के कारण उन्हें
बहुत आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। नेशनल हेराल्ड भ्रष्टाचार मामले में राहुल गांधी भी
एक आरोपित है और इस समय जमानत पर हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर अपमान जनक आरोप लगाने के कारण भी देश की कई
निचली अदालतों मे उनके विरुद्ध मुकड़में लंबित हैं जहां से उन्हें जमानत लेनी पड़ी
है। मई 2019 में
हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें भाजपा की स्मृति ईरानी ने उन्हें उनके परंपरागत संसदीय क्षेत्र
अमेठी से हरा दिया। वह केरल के वायनाड
संसदीय क्षेत्र से भी प्रत्याशी थे जहां वे मुस्लिम लीग की सहायता से जीतने
में सफल रहे। इसलिए वर्तमान में वह केरल
की वायनाड लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। राहुल गांधी अच्छे
वक्ता नहीं है और समझ से परे ऊलजलूल बयानों के कारण अक्सर विवादों में घिरे रहते
हैं और कई बार लोगों के मनोरंजन का साधन भी बन जाते हैं। उनके
मनोरंजक भाषणों के वीडियो संकलन यूट्यूब पर बहुत बड़ी संख्या में देखे जाते हैं।
वे नेहरू गांधी परिवार के बारिश है इसलिए प्रधानमंत्री
पद के दावेदार भी हैं और सोनिया गांधी पुत्र मोह में कांग्रेस पार्टी को ताक पर रखकर
यह काम करने के लिए मजबूर है। पिछले लोकसभा चुनाव में आशा के अनुरूप परिणाम ना आने
पर श्रीमती सोनिया गांधी ने अपनी बेटी प्रियंका वाड्रा को भी राजनीति में उतार दिया
है ताकि राहुल की कुछ सहायता हो सके और शायद कांग्रेस का उद्धार भी हो सके।
हाल ही में आयोजित
केरल साहित्य महोत्सव में अपने संबोधन में इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा है कि
राहुल गांधी पांचवी पीढ़ी के वंशवाद का प्रतीक है और स्वयं अपना मुकाम बनाने वाले कठोर
परिश्रमी मोदी के सामने कहीं नहीं ठहरते। उन्होंने कहा कि केरल वासियों ने राहुल गांधी को
लोकसभा भेजकर बहुत बड़ी गलती की है। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी की असली बढ़त है
कि वह राहुल गांधी नहीं है। उन्होंने खुद का मुकाम हासिल किया है ।15 साल तक
मुख्यमंत्री के रूप में एक राज्य को चलाया है, उसे आगे
बढ़ाया है । उनके पास विशाल प्रशासनिक अनुभव है और वह कठिन
परिश्रम करते हैं। सबसे बड़ी बात कि कभी यूरोप जाने के लिए या कहीं
घूमने जाने के लिए छुट्टी भी नहीं लेते । कांग्रेस का यह काल मुगल वंश का आखिरी दौर
है। उन्होंने केरल वासियों को सचेत करते
हुए कहा कि अगर उन्होंने 2024 में राहुल को दोबारा वायनाड से लोकसभा भेजा तो वह
भयंकर विनाशकारी होगा और मोदी की ही सहायता
करेगा। जब तक राहुल राजनीति मे हैं, मोदी को कोई खतरा नहीं है ।
बामपंथ
की विचारधारा से प्रेरित रामचंद्र गुहा, भले ही कांग्रेस
समर्थक न हों लेकिन नरेंद्र मोदी के घोर विरोधी है ।
इसलिए और वह नरेंद्र मोदी को खुश करने के लिए तो कोई बात नहीं
कर सकते। हमें उनकी
इस बात का विश्वास करना चाहिए और इसलिए यह
फैसला आप स्वयं करिए कि कौन अधिक मेधावी है नरेंद्र मोदी या राहुल
गांधी।
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