ट्रंप बनाम अमेरिका और मोदी बनाम भारत || भारत और पाकिस्तान के बीच सीज फायर कराने का दावा करने वाले गृहयुद्ध नहीं रोक पा रहे || अवैध अप्रवासियों पर ट्रम्प की कार्यवाही भारत के लिए प्रेरणादायक कैसे है
अमेरिका में उबाल है, जिसका कारण है गैरकानूनी अप्रवासियों का निष्कासन. अप्रवासन विभाग देशभर में जगह-जगह तलाशी अभियान चलाकर अवैध अप्रवासियों को गिरफ्तार कर रहा है। कैलिफोर्निया के लॉस एंजेलिस में भी अप्रवासन विभाग ने बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया, जिसके विरुद्ध सामाजिक संगठन और स्थानीय लोग अप्रवासन विभाग के डिटेंशन सेंटर्स के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इन प्रदर्शनों के दौरान दंगा भड़का। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कैलिफोर्निया के गवर्नर और लॉस एंजेलिस के मेयर पर अक्षम होने का आरोप लगाते हुए दंगा नियंत्रण के लिए नेशनल गार्ड्स की तैनात कर दिए. कैलिफोर्निया में लंबे समय से विरोधी दल की सरकार है जो अप्रवासियों का समर्थन करती है और इसलिए कोई कार्रवाई नहीं होती.
प्रदर्शनों को सख्ती से दबाने के लिए ट्रंप प्रशासन ने नेशनल गार्ड्स की तैनाती कर दी है और बड़ी संख्या में मैरींस भी पहुंचने वाले हैं, जिसका राज्य सरकार विरोध कर रही है. स्थिति कुछ कुछ इस तरह की है जैसे भारत में प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने के लिए केंद्रीय सुरक्षाबल भेजकर केंद्र सरकार स्वयं स्थिति पर नियंत्रण पाने की कोशिश करने लगे. लॉस एंजिल्स में स्थिति बजाय सुधारने के बिगड़ती जा रही है. सरकारी संपत्तियों और गाड़ियों में आग लगाई जा रही है, शोरूम लूटे जा रहे हैं और सुरक्षाकर्मियों पर आक्रमण किये जा रहे हैं. प्रदर्शनकारी ट्रंप का विरोध करते हुए उन्हें तानाशाह और लोकतंत्र का दुश्मन बता रहे हैं. हॉलीवुड की राजधानी पूरी तरह से अराजक तत्वों के कब्जे में है.
इन प्रदर्शनो की प्रकृति, संशोधित नागरिकता कानून, किसान कानून और अग्निवीर योजना के विरोध में भारत में हुए हिंसक प्रदर्शन से पूरी तरह मेल खाती है. मोदी की तरह ट्रंप को तानाशाह बताया जा रहा है. ऐसा लगता है कि अमेरिका का डीप स्टेट जो अब तक भारत और दूसरे देशों को अस्थिर करनेका काम करता था, उसने अब अमेरिका में भी यही काम शुरू कर दिया है. दोनों देशों के प्रदर्शनो में अंतर केवल इतना है कि कैलिफोर्निया में संघीय सुरक्षाबल बहुत सख्ती कर रहे हैं. प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले रहे हैं और जेल में डाल रहे हैं. भारत में ऐसे हिंसक आंदोलनों के विरुद्ध कहीं कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई थी फिर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन आंदोलनों को सुर्खियां बनाने की भरपूर कोशिश हुई. स्वयं अमेरिका ने बोलने और आलोचना करने की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता, मानव अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों पर भारत को कठघरे में खड़ा किया था. आज इन मुद्दों पर अमेरिका से कोई प्रश्न नहीं कर रहा है. मोदी ने इन मुद्दों पर चुप रहकर भी अपनी लोकप्रियता बनाए रखी लेकिन डोनाल्ड ट्रंप मुखर होने के बाद भी लगातार अ़लोकप्रिय होते जा रहे हैं.
भारत और अमेरिका दोनों ही लोकतान्त्रिक देश हैं लेकिन भारत दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना लोकतांत्रिक देश ही नहीं, पृथ्वी की सबसे प्राचीन सभ्यता भी है. यह सही है कि अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी और समृद्ध अर्थव्यवस्था है लेकिन उसका इतिहास 500 वर्ष से अधिक का नहीं है. अमेरिका का राष्ट्रपति कोई भी रहा हो लेकिन उसने समय समय पर भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था, अल्पसंख्यकों की स्थिति मानव अधिकारों पर झूठा ज्ञान देने में कभी संकोच नहीं किया. मोदी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद तो जैसे नसीहतों की बाढ़ आ गई, जो अमेरिकन डीप स्टेट द्वारा अब तक चलाई जा रही है.
ऐसा नहीं है कि ट्रंप द्वारा गैर कानूनी अप्रवासियों के विरुद्ध की जा वाली कार्रवाई अमेरिकी हितों के विरुद्ध है क्योंकि लॉस एंजिल्स में गैर कानूनी अप्रवासियों की संख्या, कुल जनसंख्या की एक तिहाई से भी अधिक हो चुकी है. इनमें अधिकांश मुस्लिम हैं और उनमें भी मेक्सिकन की संख्या सबसे ज्यादा है. लेकिन सरकारी संरक्षण में अराजक वामपंथियों, उदारवादियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा संचालित डीप स्टेट पूरी दुनिया में जो कार्य करता है, वही अमेरिका में भी दोहरा रहा है. दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने के पहले ट्रम्प ने देशवासियों से वायदा किया था कि वह मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” के लिए गैरकानूनी घुसपैठियों की समस्या से अमेरिका को मुक्त करेंगे. उन्होंने इस वर्ष की शुरुआत में लैकेन रिले एक्ट कानून बनाया जिसके अंतर्गत गैरकानूनी घुसपैठियों की पहचान कर हिरासत में लेना और उनके देश वापस भेजना काफी आसान कर दिया गया है. ट्रंप ने इसे एक अभियान के तौर पर चलाया और भारत सहित दुनिया के कई देशों के अवैध अप्रवासियों को प्रत्यर्पित भी किया गया है. ट्रम्प सरकार की इस नीति का विरोध इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि इससे डीप स्टेट का छुपा हुआ एजेंडा बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. इसलिए विरोध प्रदर्शनों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया ठीक उसी तरह देखने को मिल रही है जैसी भारत में मोदी के विरुद्ध प्राय: मिलती है.
राष्ट्रवादी छवि वाले डोनाल्ड ट्रम्प के पिछले कार्यकाल में भी उनके खिलाफ “ब्लैक लाइव मैटर्स” जैसे विरोध प्रदर्शनो और धरनो का लंबा सिलसिला चलाया गया था. ऐसे अनेक अभियान का ही नतीजा था कि ट्रंप 2020 में सत्ता में वापस नहीं आ सके. इसलिए वह घरेलू राजनीति के दबाव में ऐसा कर रहे है और अपने नागरिकों को यह एहसास दिलाना चाहते है कि उन्होंने चुनाव में जो कहा था, उसे पूरा कर रहे हैं. पद संभालते ही जिस तरह से उन्होंने ताबड़तोड़ फैसले किए, उसका संदेश भी यही था. अमेरिका की वर्तमान समस्या का एक सुखद पहलू यह है कि अवैध अप्रवासियों के खिलाफ अमेरिका, यूरोप सहित कई देशों में नकारात्मक माहौल बनने लगा है क्योंकि यूरोप के कई देशों का जनसंख्या घनत्व इस तरह से बदल गया है कि वे इस्लामिक राष्ट्र बनने के कगार पर पहुँच गए हैं.
यूरोप के कई देशों में प्रायः होने वाले दंगे फसाद की घटनाएँ और अब लॉस एंजिल्स से निकलकर अमेरिका के दूसरे राज्यों में फैलने की आशंका वाले इस आंदोलन की हिंसक घटनाएं सभी नागरिको के लिए एक गंभीर चेतावनी है कि उनके टैक्स पर ही अवैध घुसपैठिए देश की संसाधनों पर पल रहे हैं. जिससे देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है. ऐसी गंभीर घटनाएं अवैध अप्रवासन के खिलाफ़ कानूनी नागरिको में जागरूकता बढ़ाने का कार्य करेंगी.
इस प्रकरण से भारत सरकार पर भी यह दबाव बनेगा कि वह देश में रह रहे अवैध नागरिकों को वापस भेजने की पहल करे. आज शायद ही कोई राजनीतिक दल अवैध आप्रवसान के खिलाफ कार्रवाई का विरोध करेगा. असम में भाजपा की जीत का एक बड़ा कारण वहां अवैध आप्रवासन के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने का चुनावी वायदा ही था. यद्यपि राजनैतिक और कानूनी दांव पेंच के कारण सभी अवैध घुसपैठिये प्रत्यर्पित तो नहीं किए जा सके लेकिन असम सरकार की सख्ती के चलते है राज्य में घुसपैठ पर लगाम लग गयी है, यद्यपि भारत में हो रही घुसपैठ अभी भी ज्यों की त्यों चल रही है. अवैध घुसपैठिए अब असम की बजाय दूसरे राज्यों में पहुँच रहे हैं. लगातार हो रही घुसपैठ से कई राज्यों का जनसंख्या आंकड़ा बदल गया है और वहाँ हिंदू अल्पसंख्यक और मुस्लिम बहुसंख्यक हो गए हैं. जनसंख्या घनत्व का यह परिवर्तन गज़वा ए हिंद चलाने वाले मुस्लिम कट्टरपंथियों को अत्यंत प्रिय है. इसलिए वे घुसपैठियों के कानूनी प्रपत्र तैयार करके उन्हें रणनैतिक रूप से बसाने का कार्य भी कर रहे हैं. इसके बावजूद भी संशोधित नागरिकता कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण योजनाएँ धरातल पर नहीं उतर पा रही.
यूरोपीय देशों में अवैध घुसपैठियों के विरुद्ध हो रही कार्रवाई की पृष्ठ भूमि में यदि भारत भी अगर ऐसा कोई अभियान चलाता है, तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिकूल प्रतिक्रिया नहीं होगी राजनीति और और राष्ट्रीय राजनीति में भी हलचल नहीं होगी. इसलिए भारत के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं वाली सबसे उपयुक्त स्थिति है.
~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~