नरेंद्र मोदी लंबे समय से सत्ता में हैं, लेकिन मुख्यमंत्री/प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता विरोधी लहर से बेअसर हैं। मोदी इतने लोकप्रिय क्यों हैं?
नरेन्द्र मोदी – विरोध और लोकप्रियता साथ साथ
नरेंद्र मोदी लंबे समय से सत्ता में हैं, लेकिन मुख्यमंत्री/प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता विरोधी लहर से बेअसर हैं। आखिर मोदी की लोकप्रियता इतनी मजबूत क्यों हैं? ये देश और दुनियां में चर्चा का विषय है.
नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के दो प्रमुख कारण है-
१. वह जनता से जुड़ने की हर संभव कोशिश करते हैं, जुड़ते
हैं, उनकी समस्याओं को समझते हैं और कैसे उनकी
समस्याओं का समाधान किया जाए इसका भरपूर प्रयास करते हैं. प्रधानमंत्री के रूप में
भी सामान्य जनता से कई माध्यमों से वह सीधा संवाद स्थापित करते हैं. वहअच्छे कार्य
और उपलब्धियां भी गिनाते हैं,
चाहे वह स्वयं की हो
पार्टी की है राज्य की हों या पूरे देश की हो.
२. उनके विरोधी भी विरोध
के हर तौर तरीके का इस्तेमाल करके और किसी भी हद तक जाकर लगातार मोदी विरोध अभियान
चलाकर उनकी लोकप्रियता को कम नहीं होने देते.
लेकिन फिर भी नरेंद्र
मोदी के विरुद्ध हिंदुओं में उनकी समस्याओं के निस्तारण में बेहद धीमी गति या “सबका
विश्वास” के कारण जान बूझकर उनकी अनदेखी करने से
अंदर ही अंदर असंतोष पनप रहा है, जो धीरे धीरे विकराल होकर उन्हें सत्ता से
बाहर कर सकता है. चूँकि हिंदुओं के पास भाजपा और मोदी के अलावा कोई राजनीतिक
विकल्प आज की परिस्थितियों में उपलब्ध नहीं है, इसलिए वोट तो उन्हें ही करेंगे जब
तक कि भाजपा का पूरी तरह से कांग्रेसीकरण नहीं हो जाता.
आइए इन बिंदुओं पर विस्तार
से विश्लेषण करते हैं -
१. नरेंद्र मोदी ने 7 अक्टूबर 2001 को
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और 2014 में देश
के प्रधानमंत्री बनने के पहले वह लगातार गुजरात के मुख्यमंत्री बने रहे. यह एक
संयोग ही कहा जाएगा कि वह पहली बार विधायक बने और मुख्यमंत्री बन गए पहली बार
सांसद बने और प्रधानमंत्री बन गए. समाज के हर वर्ग से जुड़ने के प्रयास और उनके
लिए कुछ करने की आकांक्षा और अदम्य इच्छाशक्ति के कारण उन्होंने जो गुजरात मॉडल
विकसित किया उसे लोगों ने खूब सराहा. तब से आज तक भाजपा गुजरात में लगातार सत्ता
में है और आज भी उसे कोई बड़ी चुनौती नहीं है.
2014 में केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार
बनाने का श्रेय नरेंद्र मोदी को ही जाता है. उनके नेतृत्व में पूर्ण बहुमत वाली
कोई सरकार 1984 के बाद पहली बार बनी थी. इसके बाद 2019 में भी
पहले से अधिक बहुमत के साथ सत्ता में वापसी के बाद उनके नेतृत्व में भाजपा चुनाव
जीतने की मशीन बन गई जिसमें सबसे प्रमुख है 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जिसमें सारे
समीकरणों, भविष्यवाणियों और चुनावी रणनीतियों को ध्वस्त करते हुए भाजपा ने अपार
जन समर्थन से सरकार बनाई और सपा और बसपा को हाशिए पर ला दिया. 2022 के चुनाव
में भी उत्तर प्रदेश में योगी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी, जो इस
मामले में एक कीर्तिमान है कि आजादी के बाद से कोई भी मुख्यमंत्री 5 साल का
कार्यकाल पूरा करने के बाद पुनः सत्ता में नहीं आ सका था. वर्तमान राजनीतिक
परिदृश्य को देखते हुए 2024 में मोदी की वापसी के लिए किसी भी भविष्यवाणी की
आवश्यकता नहीं है.
अधिकांश नेताओं को एक या दो
कार्यकाल के बाद जनता किनारे कर देती है लेकिन मोदी की बढ़ती लोकप्रियता को लेकर यह
प्रश्न बहुत स्वाभाविक है कि इतने लंबे समय तक वह लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर कैसे बने हुए
हैं?
गुजरात में जब राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिश की जा रही
थी, भाजपा ने अपने कद्दावर नेता केशुभाई पटेल को हटा कर नरेंद्र मोदी को
मुख्यमंत्री बनाया, परिणाम स्वरूप पार्टी के अंदर भी गुटबंदी और अस्थिरता की कोशिश हुई. इसी बीच गोधरा कांड हो गया जिसमें 59 कारसेवकों
को साबरमती ट्रेन की एक बोगी में जिंदा जलाकर मार दिया गया. इसकी प्रतिक्रिया
स्वरूप गुजरात में दंगा भड़क उठा. मोदी पर विपक्ष और पार्टी के अंदर से भी प्रहार
होने लगा. कांग्रेस ने मोदी के राजनीतिक सफर को यहीं समाप्त कर देने के लिए वह सब
कुछ किया जो सोचा भी नहीं जा सकता लेकिन सारी बाधाओं और चुनौतियों का सफलतापूर्वक
सामना करते हुए मोदी ने न केवल अपना कार्यकाल पूरा किया बल्कि दूसरे कार्यकाल के
लिये भारी जीत हासिल की जो राज्य में उनकी स्वीकार्यता और लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण
था. वह भाजपा के निर्विवाद नेता बन गए और भाजपा एक के बाद एक सभी चुनाव जीतती चली गई.
गुजरात में मोदी ने उद्योगों और व्यवसायियों की समस्याओं का
बहुत बारीकी से अध्ययन किया और उन्हें अधिकाधिक सुविधाएं देते हुए लालफीताशाही पर
अंकुश लगाया और सरकारी अवरोध खत्म किए. जिससे राज्य में औद्योगिक और व्यवसायिक
गतिविधियों में बहुत तेजी आई. रोजगार के अवसर बढ़े. कई उद्योगपतियों ने दूसरे
राज्यों से अपने उद्योगों को गुजरात स्थानांतरित किया. लोगों को टाटा नैनो का
उदाहरण आज भी याद होगा. इसके साथ-साथ मोदी ने समाज के कमजोर वर्ग की रोजमर्रा की
कठिनाइयों को समझने और सहायता पहुंचाने का काम किया. गुजरात में आए भूकंप से राज्य
के समक्ष जो चुनौती खड़ी हुई थी उसका भी मोदी ने डटकर मुकाबला किया. उनकी "मिनिमम
गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस" नीति लोगों को बहुत पसंद आई.
प्रधानमंत्री बनने के बाद
मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के अनुभव का भरपूर स्तेमाल किया और समाज के
कमजोर और वर्ग के लोगों को किसी न किसी रूप में सहायता पहुंचाने की पहल की है.
उन्होंने ऐसे ऐसे काम किए हैं,
जिनके बारे में आजादी के
बाद पिछले 70 सालों में किसी ने सोचा भी नहीं था. घर-घर
शौचालय, अपना घर, गरीब महिलाओं को रसोई गैस, किसान
सम्मान निधि, विधवा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन, आयुष्मान
योजना, आदि न जाने कितनी योजनाये हैं जिन्होंने गरीबों
के सपने साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. यह लाभार्थी वर्ग मोदी का सबसे
बड़ा वोट बैंक है जिसके सहारे मोदी चुनाव दर चुनाव जीते चले आ रहे हैं.
मोदी ने सांस्कृतिक चेतना, राष्ट्रीय
अस्मिता और गौरव को पुन: स्थापित करने के लिए कई प्रयास किए हैं और विशेष तौर से
हिंदू जनमानस के रेगिस्तान में आशाओं की नई किरणें उगाई हैं. धारा 370 समाप्त करने,
राम मंदिर के निर्माण का
मार्ग प्रशस्त करने, संशोधित नागरिकता कानून बनाने जैसे अन्य कई
मुद्दों ने भारतीय जनमानस में विश्वास की एक फसल तैयार हो रही है और पिछले कई
दशकों में मोदी ऐसे पहले नेता हैं जिन पर जनता आंख बंद करके भरोसा करती है और शायद
यही “मोदी है तो मुमकिन है” का प्रमाणिक सत्य है .
अपनी छवि के लिए देश को
दांव पर लगाने वाले जवाहरलाल नेहरु की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता कितनी थी और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के बाहर उनकी
स्वीकार्यता कितनी थी, इस पर आज कोई चर्चा नहीं करता जबकि विश्व पटल पर अत्यंत
लोकप्रिय और देश हित में महाशक्तियों और विकसित राष्ट्रों के साथ दोस्ताना संबंध
बनाने और भुनाने वाले मोदी की विदेश यात्राओं पर लोग प्रश्न करते हैं, और भूल
जाते हैं कि इसके पहले के प्रधानमंत्री विदेशी दौरों में कक्षा क कमजोर विद्यार्थी
की तरह मुँह लटकाकर लिखा हुआ भाषण पढ़कर कर लौट आते थे. आज भारत की विदेश नीति
मजबूत और मुखर है. रूस और यूक्रेन के युद्ध के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों सहित
अधिकांश वैश्विक शक्तियां यूक्रेन के पक्ष में खड़ी हैं जिन्होंने भारत पर यूक्रेन
के पक्ष में बहुत दबाव बनाया लेकिन मोदी नहीं झुके. रूस पर वैश्विक प्रतिबंधों के
बावजूद भारत आज रूस से तेल भी खरीद रहा है
और अमेरिका भारत आकर टू प्लस टू की वार्ता भी कर रहा है और पश्चिम के देश मोदी को
गले लगा रहे हैं.
२. मेरा मानना है कि मोदी
की लोकप्रियता में मोदी विरोधियों का भी बहुत बड़ा योगदान है, जिनमें
वामपंथी और संप्रदाय विशेष के अतरिक्त सरकारी सहायता से देश की कीमत पर ऐशो आराम
की जिंदगी जीने वाले जेबी पत्रकार, गैर सरकारी संगठन, स्वयंभू
बुद्धिजीवी, भ्रष्ट नौकरशाह और देश विरोधी ताकतें भी शामिल है. मोदी 8 साल से
प्रधानमंत्री हैं लेकिन ये लोग अभी भी यह बात स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि मोदी
जैसा साधारण परिवार का हिन्दूवादी व्यक्ति
इस देश का प्रधानमंत्री कैसे बन सकता है, जहां गांधी नेहरू परिवार सहित अनेक फाइव
स्टार और डिज़ाइनर नेता मौजूद हों. इसलिए ये मोदी की हर बात का विरोध करते हैं, उनकी
शिक्षा, संस्कार, और समझ पर प्रश्न खड़े करते हैं. उन्हें रूढ़िवादी, सांप्रदायिक, मौत का सौदागर, हिंदू आतंकवादी, जहर की
खेती करने वाला, फेंकू, जुमलेबाज आदि विशेषण से संबोधित करते हैं . मोदी की शिक्षा
और डिग्री पर प्रश्न खड़े किए गए लेकिन क्या किसी को मालूम है कि इंदिरा गांधी के
पास कौन सी डिग्री थी? राजीव गांधी और संजय गांधी कितना पढ़े लिखे थे? राहुल और
प्रियंका की शिक्षा कहां तक हुई?
कठपुतली प्रधानमंत्री की
डोर अपने हाथ में रखने वाली सोनिया कितना पढ़ी लिखी हैं? मोदी को
चायवाला संबोधित करने वालों ने यह कभी नहीं बताया कि सोनिया आरंभिक दिनों में क्या
करती थी?
कभी-कभी ऐसा लगता है कि
कुछ लोगों के पास मोदी विरोध के अलावा कोई काम ही नहीं बचा. राहुल गांधी जैसे
राजनेता अपनी पार्टी के अभियान चलाने से ज्यादा मोदी विरोध के अभियान चलाते हैं.
उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक चुकी है, और उन्हे पता भी नहीं.
अमेठी हार चुके हैं, इसका उन्हें गम नहीं और वायनाड हारने जा रहे हैं, इसकी
उन्हें कानो कान खबर नहीं.
बात
बात पर और हर बात पर मोदी का विरोध करने वालों ने जनता में उनके विरुद्ध प्रतिरोधक
कवच (रजिस्टेंस) उत्पन्न कर दिया है जिससे विरोध का प्रभाव उल्टा होता है. जितना
मोदी का विरोध किया जाता है उनकी लोकप्रियता उतनी ही बढ़ती जाती है. उनके विरोधी
खींझ रहे हैं अब तो उन्होंने भारत के प्रबुद्ध मतदाताओं को भी जोकर, नासमझ, अज्ञानी, अनपढ़ , गाय गोबर वाले मूर्ख आदि
बताना शुरू कर दिया है जिसका प्रभाव भी निश्चित ही उल्टा होगा और मोदी की लोकप्रियता
और बढ़ेगी.
लेकिन मोदी सब कुछ अच्छा और वही कर रहे हैं जो देश में
वर्तमान परस्थितियों में होना चाहिए, ऐसा भी नहीं है. कश्मीर के लिए नेहरु को जैसा
दोष दिया जाता है, क्या बंगाल में जो हो रहा है, उसका दोष मोदी के सिर नहीं जाएगा?
सिखों को हर संभव संतुष्ट करने के
प्रयासों के बाद भी पंजाब में ९० के दशक वाला खेल शुरू हो गया है, क्या मोदी इसके
लिए जिम्मेदार नहीं होंगे ?
महाराष्ट्र में राजनैतिक नंगनांच व कानून का खुला दुरूपयोग, बंगाल और केरल में हिन्दुओं की राजनैतिक हत्याएं और बढ़ता इस्लामिक आतंक, राजस्थान के औरंगजेबी सन्देश, दक्षिण के राज्यों में बढ़ते इस्लामिक प्रसार , पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ता ईसाईकरण आदि अनेक ऐसे मामले हैं, जिसके कारण धीरे धीरे देश में गृह युद्ध की स्थिति पैदा होती जा रही है, और इसके लिए निश्चित रूप से मोदी को कटघरे में खड़ा किया जाएगा. समान नागरिकता कानून, मुस्लिमों को अल्पसंख्यक का अनावश्यक दर्जा और मदरसों का अनापसनाप वित्त पोषण, मंदिर मुक्ति के प्रति उदासीन रवैया, संशोधित नागरिकता कानून को ठंडे बस्ते में डालना जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण मसलों पर ढुलमुल रवैया, मोदी के लिए बहुत भारी पड़ेंगा और अगर भाजपा ने इस दिशा में कोइ ठोस कदम नहीं उठाये तो केंद्र की सत्ता में उसका सफ़र बहुत लंबा नहीं होगा और तब बहस होगी कि मोदी अचानक इतने अलोकप्रिय कैसे हो गए?
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-शिव मिश्रा
ResponseToSPM@gmail.com
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