गुरुवार, 14 अप्रैल 2022

डॉ. भीमराव अंबेडकर - सही मूल्यांकन की तलाश

डॉ.  भीमराव अंबेडकर - एक महापुरुष जिसे सबने अनदेखा किया




डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जयंती पर उनको शत शत नमन। डॉक्टर अंबेडकर एक अत्यंत दूरदर्शी और स्पष्ट विचारों वाले राजनेता थे उन्होंने देश और समाज के लिए जो भी किया उसका आज तक उचित मूल्यांकन नहीं हो पाया है। वैसे तो डॉक्टर अंबेडकर को किनारे लगाने, उनके विचारों और योगदान को आभाहीन करने का काम कांग्रेस ने  किया लेकिन उनके  अनुयायियों ने भी उनके साथ काम ज्यादती  नहीं की जिन्होंने अपने फायदे के लिए  उनकी मूर्तियां जरूर लगाई लेकिन उनके जैसे राष्ट्रीय महापुरुष और अंतरराष्ट्रीय विद्वान को एक जाति विशेष के खांचे में फिट कर दिया।

डॉ भीमराव अंबेडकर समकालीन राजनीति में संभवत सबसे अधिक शिक्षित राजनेता थे । दूरदर्शी और प्रखर विचारों वाले अंबेडकर तत्कालीन राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं से पूरी तरह सजग थे और जिनके समाधान के लिए उनके पास स्पष्ट विचार थे गांधी नेहरू और कांग्रेस ने डॉ आंबेडकर की प्रतिभा का जानबूझकर अनदेखा किया और  मुख्यधारा की राजनीति में न आने देने के लिए जानबूझकर उनका मार्ग बाधित किया गया और तरह-तरह की समस्याओं में उन्हें उलझाया गया । वह संविधान की ड्राफ्ट कमेटी के अध्यक्ष अवश्य थे लेकिन वहां भी उन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करने दिया गया जिसका पता संविधान सभा में रिकॉर्ड किए गए उनके नोट से चलता है। संविधान में ऐसी बहुत सी बातें हैं जो उनकी इच्छा के विरुद्ध डलवाई गई और बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन्हें वे संविधान में डालना चाहते थे नहीं डाल पाए। अगर डॉक्टर अंबेडकर के सुझाव माने गए होते तो आज संविधान का प्रारूप और भी अच्छा होता।

डॉक्टर अंबेडकर की लिखी पुस्तकों से विशेषतया पाकिस्तान या भारत का विभाजन से उनके स्पष्ट विचारों का पता चलता है । देश के विभाजन के बाद उन्होंने हिंदू मुस्लिम जनसंख्या की अदला-बदली के लिए सरकार पर दबाव बनाया और नेहरू को एक पत्र भी लिखा लेकिन नेहरू और गांधी दोनों ने हीं उनके विचार को सिरे से नकार दिया। उन्होंने सरकार को ऐसा न करने के विपरीत परिणामों के लिए चेताया भी था

डॉ आंबेडकर अपनी बुद्धिमत्ता दूरदर्शिता और स्पष्ट वादिता के  कारण  हमेशा गांधी और नेहरू के आंख की किरकिरी बने रहे। गांधी हमेशा राजनीति के शिखर पर बने रहने हेतु प्रयासरत रहते थे और जो भी नेता राजनीतिक रूप से उन्हें चुनौती देने में सक्षम लगता उसे वह प्रभावित करने की कोशिश करते  ताकि उसे अपने झंडे के नीचे लाया जा सके अन्यथा उसे एक किनारे लगाया जा सके।  इसी क्रम में गांधी  ने 1929 में  अंबेडकर को मुलाकात के लिए बुलवाया। यह  वह समय था जब अंबेडकर प्रथम गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन जाने वाले थे क्योंकि गांधी इस सम्मेलन में नहीं जा रहे थे इसलिए हो सकता है कि वह अंबेडकर को अपने विचारों से प्रभावित करने और अप्रत्यक्ष रूप से अपने विचार गोलमेज सम्मेलन में पहुंचाने के लिए बुलाया हो । अंबेडकर ने  स्वयं लिखा है कि दूसरे गोलमेज सम्मेलन के दौरान लंदन में उनकी गांधी से लंबी मुलाकात हुई थी और विचारों का आदान-प्रदान भी हुआ था इस मुलाकात के बाद भी गांधी संभवत अंबेडकर को तनिक भी प्रभावित नहीं कर सके थे ।। अंबेडकर ने इस बात का विशेष रूप से उल्लेख किया कि गांधी दूसरे गोलमेज सम्मेलन के दौरान 5 -6 महीने तक ब्रिटेन में रुके थे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है गांधी इतने लंबे समय तक लंदन में क्या करने के लिए रुके थे .

डॉ अंबेडकर ने लिखा है कि क्या कारण है कि  पश्चिमी जगत गांधी में  इतना रूचि लेते हैं।  अगर इन दोनों बातों को जोड़ा जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि गांधी और अंग्रेजों के बीच में कुछ तो था जिसके कारण गांधी अंग्रेजों की सुविधा का ध्यान रखते थे और अंग्रेज गांधी को अत्यंत महत्व देते थे।  अंबेडकर ने लिखा है कि उन्होंने गांधी को एक आम इंसान समझ कर  मुलाकात की और इस कारण वह गांधी को वास्तविक रुप से समझ सके कि उनके अंदर कितना जहर भरा हुआ है।  यह बात उनके नजदीकी लोग नहीं समझ सकते थे क्योंकि वह हमेशा गांधी को देव तुल्य  मानते थे और इसलिए हमेशा भक्तों   की तरह मिलते थे । गांधी को जब  लगा कि अंबेडकर उनके काबू में नहीं आएंगे और ना ही उनकी छत्रछाया में काम करना पसंद करेंगे इसलिए अपनी आदत के अनुसार गांधी ने अंबेडकर को व्यर्थ के कामों में उलझा दिया ताकि कहीं ऐसा ना हो अंबेडकर गांधी से भी आगे निकल जाए या भविष्य में नेहरू के लिए कोई चुनौती खड़ी करें। गांधी के  स्वभाव में एक बीमारी थी कि वह मुस्लिमों के साथ साथ दलित समाज के भी सर्व मान्य नेता बनना चाहते थे इसलिए वह दलित बस्तियों में जाकर कभी-कभी मैला साफ करने का भी काम करते थे, और डॉक्टर अंबेडकर के सूट बूट पर तंज कसते थे। 

गांधी के बाद नेहरू ने भी डॉक्टर अंबेडकर के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया । नेहरू जहां तुष्टिकरण के अंधे रास्ते पर चल निकले थे और अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार थे । वही अंबेडकर के अनुरोध के बावजूद दलित समुदाय के लिए अपेक्षित सहायता करने के लिए कंजूसी बरत रहे थे। दोनों के मतभेद बढ़ते गए और फिर रास्ते भी अलग अलग हो गए।

आज प्रत्येक राजनीतिक दल  डॉक्टर अंबेडकर को श्रद्धांजलि देते हुए उनका महिमामंडन करता है जिसमें कांग्रेश सबसे आगे रहती है लेकिन कांग्रेस से कोई ये नहीं पूछता कि जब अंबेडकर इतने ही महान थे तो उन्हें गांधी ने भारत का प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया जिसके वह सर्वथा योग्य थे।

  काश डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भारत के पहले प्रधानमंत्री बनते  तो भारत के समक्ष आज जो संप्रदायिक चुनौतियां हैं वह नहीं होती , दलितों के उत्थान और जातिगत असमानता के लिए जो विमर्श खड़े किए जाते हैं उनकी आवश्यकता भी नहीं होती, विश्व स्तरीय शिक्षा व्यवस्था होती और भारत दुनिया के सबसे खुशहाल और शांतिप्रिय देशों में से एक होता.।

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- शिव मिश्रा

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