शनिवार, 27 जनवरी 2024

भारतीय गणतंत्र का भविष्य

कल ही हमने अपना 75वां गणतंत्र दिवस मनाया है. 15 अगस्त 1947 को सत्ता हस्तांतरण के बाद बनाई गई संविधान को 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया था. भारत उत्सवों और त्योहारों का देश है, उसमें स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस भी शामिल हो गये हैं, जिन्हें उतने ही हर्षोल्लास या औपचारिकता के साथ मनाते हैं,जितने अन्य त्यौहार. संभावत: इसलिए हम यह विश्लेषण नहीं करते कि स्वतंत्रता प्राप्ति के इन 78 वर्षों में राष्ट्र के रूप में हमने क्या खोया और क्या पाया.

क्या हम अपनी प्राचीन संस्कृति की पुनर्स्थापना कर सके, क्या हम राष्ट्र की प्राचीन उपलब्धियों, धरोहरो, पौराणिक ग्रंथों और स्मृतियों को संजो कर रख पाए, क्या हम उन परिस्थितियों का पुनर्निर्माण कर सके जिसके कारण भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी. क्या उस कौशल विकास की दिशा में हम कुछ कर सके जो वास्तुकला, हस्तशिल्प, दस्तकारी, कारीगरी के रूप में विश्व विख्यात था. क्या हम वह शैक्षणिक व्यवस्था पुनर्स्थापित कर सके जिसके कारण भारत में साक्षरता दर अंग्रेजों के शासन की शुरुआत के समय 97% थी और जो देश के आर्थिक, सामाजिक आध्यात्मिक और नैतिक विकास का आधार थी. क्या हम ऐसा कोई विश्वविद्यालय या शैक्षणिक संस्था बना सके जिसमें पढ़ना विश्व के किसी भी देश के नागरिक के लिए गर्व की बात हो. क्या हम कोई ऐसा विश्वविद्यालय या अनुसंधान केंद्र बना सके जहाँ हम अपने पौराणिक ग्रंथों में वर्णित अनेक गूढ़ रहस्यों पर शोध कर सकते. यद्यपि स्वतंत्रता के बाद देश ने मूलभूत संरचना क्षेत्र में काफी उन्नति की है, आर्थिक आधार पर भी लोगों के जीवन में परिवर्तन आया है किंतु वह सूची बहुत लंबी है जिस पर अभी कार्य शुरू भी नहीं हुआ है. राष्ट्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पार्श्व में चले गए हैं और कम महत्वपूर्ण या महत्वहीन विषय हमारी गौरवशाली प्राचीन संस्कृति पर भारी पड़ गए हैं. शायद राष्ट्र के रूप में हम जागरूक नहीं हैं और इसलिए रास्ता भटक गए हैं.

भारत दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता है, जिसमे जीवन का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो जिसमें वैज्ञानिक शोध नहीं हुए वैज्ञानिक सोच विकसित नहीं हुई. जब आज के युग के सभी विकसित देश जब लगभग हर क्षेत्र में अत्यंत पिछडे थे, उस समय भारत की सभ्यता आर्थिक सामाजिक और आध्यात्मिक चरमोत्कर्ष पर थी. खगोलशास्त्र, वैमानिकी, वनस्पति, जल, वायु, मृदा, समुद्र, पर्वत, वास्तुकला, चित्रकला, संगीत, दर्शिनिकी के क्षेत्र में भारत उस समय जिस उचाई पर था, आज भी उसकी कल्पना करना शेष दुनिया के लिए मुश्किल है. मानव सभ्यता के प्रारंभिक काल के कबीलाई और नस्लीय संघर्ष से बहुत ऊपर उठकर भारत ने शांति सद्भावना और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना के साथ सामाजिक आर्थिक और आध्यात्मिक पथ पर विश्व का मार्ग दर्शन किया है.

75 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर हमें अवश्य चिंतन करना चाहिये कि वे कौन से अवरोध हैं जो हमारे आर्थिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक विकास में बाधक है. संयुक्त राष्ट्र संघ के एक शोध के अनुसार पहली शताब्दी से लेकर 11वीं शताब्दी तक भारत 34% हिस्सेदारी के साथ विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था. मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण के बाद आर्थिक विकास की दर में कमी आना स्वाभाविक था लेकिन 17वीं शताब्दी में अंग्रेजों का शासन शुरू होने के समयभी 24% हिस्सेदारी के साथ विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहा. 27% हिस्सेदारी के साथ चीन पहले स्थान पर पहुँच गया था. लेकिन 1947 में जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ा, विश्व अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी लगभग 4% रह गई. स्वतंत्रता के इन 75 वर्षों के बाद विश्व अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 2023 में 9.4% हो पाई है.

भारत में सभ्यता जैसे जैसे उन्नत हुई हिंसक संघर्ष को तिलांजलि दे दी गयी. दूसरी सभ्यताओं और देशों पर आक्रमण तो सोचा भी नहीं जा सकता था लेकिन ज्ञान विज्ञान के शिखर पर पहुँच कर हमने अपनी सभ्यता समाज और राष्ट्र की सुरक्षा का कोई पुख्ता प्रबंध भी नहीं किया. वसुधैव कुटुंबकम की यह सोच कि जब हम किसी पर आक्रमण नहीं करेंगे तो कोई हम पर आक्रामक क्यों करेगा, गलत साबित हुई.

सुरक्षा व्यवस्था पर समुचित ध्यान न होने के कारण विश्व की सर्वश्रेष्ठ भारतीय सभ्यता दो बार गुलाम हुई. पहली बार कबीलाई सभ्यता के अनपढ़ जाहिल और धर्मांध जिहादियों की, और दूसरी बार आर्थिक लुटेरों की. हिंसक पशु सरीखे धर्मांध जिहादियों का उद्देश्य था दूसरे धर्म की सभ्यताओं पर आक्रमण करके उनकी धन संपत्ति महिलाओं और बच्चों को लूटना और धर्मान्तरित होने के लिए मजबूर करना. सफल न होने पर नरसंहार करना और उनके ज्ञान विज्ञान को नष्ट कर देना क्योंकि ज्ञान विज्ञान से इन जाहिलों को कोई मतलब नहीं था. आर्थिक लुटेरों का मुख्य उद्देश्य था दूसरी सभ्यताओं, नस्लों के देशों पर बलात् कब्जा करके उनकी धन संपत्ति और प्राकृतिक संसाधनों को लूट कर अपने देश पहुँचाना. इन आर्थिक लुटेरों के लिए धर्मांतरण महत्वपूर्ण तो था लेकिन प्राथमिकता में दूसरे क्रम पर था. भारत की गुलामी की विशेष बात यह रही कि पहली गुलामी (मुस्लिम आक्रांताओं की) खत्म भी नहीं हुई थी कि दूसरी गुलामी (अंग्रेजों की) शुरू हो गई.

15 अगस्त 1947 को मिली आजादी दूसरी गुलामी (अंग्रेजों की) से मुक्ति थी लेकिन पहली गुलामी (मुस्लिम आक्रान्ताओं की) से देश को आज तक मुक्ति नहीं मिल सकी क्योंकि इसके लिए कभी कोशिश ही नहीं की गयी, जो राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक आध्यात्मिक और वैज्ञानिक विकास के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा है और दुर्भाग्य से कुछ शक्तियां एक बार फिर से राष्ट्र को गुलाम बनाने के सुनियोजित षडयंत्र पर काम कर रही है. देश के राजनीति इन्हीं षडयंत्रकारियों के कब्जे में है. यदि ये षडयंत्रकारी अपनी योजना में सफल होते हैं, जिसकी संभावना धीरे धीरे बढ़ती जा रही है, तो राष्ट्रांतरण हो जाएगा जिससे निकलना संभव नहीं होता. ईरान, इराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांगलादेश में अब कौन किससे आजादी मांगेगा क्योंकि इन देशों के मूल निवासियों का जबरन धर्मांतरण किया गया और जो तैयार नहीं हुए उन्हें मार डाला गया. इस तरह विश्व की कई सभ्यताओं का अंत हो चुका है.

अभी हाल में अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा हुई. इस मंदिर के लिए सनातनी पिछले 500 वर्षों से संघर्ष कर रहे थे. जब देश स्वतंत्र नहीं था, उस समय किया गया संघर्ष तो समझ में आता है लेकिन स्वतंत्रता के बाद 75 वर्षों तक देश के मूल निवासियों को अपने इष्टदेव के पूजास्थल के लिए संघर्ष करना पड़े, इससे बड़ा राष्ट्रीय शर्म का विषय और कोई नहीं हो सकता. इसके लिए सरकारे तो दोषी हैं ही, हिंदू भी कम दोषी नहीं जिन्होंने उन सरकारों को वोट दिया. मंदिर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से बना है और फैसला भी एक तरह से समझौता है जिसमें मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए अन्यत्र जमीन उपलब्ध कराई गई और धन दिया गया. इसके बावजूद अधिकांश राजनीतिक दलों ने प्राणप्रतिष्ठा का बहिष्कार किया. एआईएमआईएम जैसे सांप्रदायिक दलों ने पूरे देश में विरोध दिवस मनाया. मुस्लिम वर्ग के अनेक पत्रकारों बुद्धिजीवियों और राजनैतिक हस्तियों द्वारा भिन्न भिन्न तरीके से विरोध कर स्पष्ट रूप से कहा गया कि जब भी कभी मुस्लिम पक्ष सशक्त होगा वह मंदिर तोड़कर फिर मस्जिद तामील कर देगा. इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी ने मंदिर निर्माण का विरोध किया. वामपंथ इस्लामिक गठबंधन के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय षडयंत्रकारियों ने यह भ्रम फैलाने की कोशिश की कि भारत में मुसलमानों के साथ ज्यादती की जा रही है. यह कहना अनुचित नहीं होगा कि राम मंदिर विरोध में वही लोग हैं जो गज़वा ए हिंद में शामिल हैं. ये खतरे की घंटी है जिसे मोदी सरकार को कान खोल कर सुनना चाहिए.

धर्मान्ध जिहादी मुस्लिम आक्रांताओं ने मंदिरों को तोड़ा और उन पर मस्जिद खड़ी कर दी ताकि मंदिर के रूप में उसके उपयोग बंद हो जाए. अंग्रेजों ने मंदिरों का अधिग्रहण करके, उनके चढ़ावे को हड़पकर सनातन संस्कृति को ही तोड़ने का काम किया, जो अब तक चल रहा है. मंदिरों में आने वाले चढ़ावे से सनातन संस्कृति के अनेक सामाजिक कार्य किए जाते थे, जिनमें गुरुकुल, विज्ञान, कला, साहित्य से संबंधित शैक्षणिक केंद्र, भोजन और वस्त्र वितरण आदि अनेक पुनीत कार्य किए जाते थे. नेहरू ने मंदिर अधिग्रहण नीति को और अधिक मजबूत और विकेन्द्रीकृत कर दिया. स्वतंत्रता के इन 75 वर्षों के बाद भी आज विश्व की अनमोल धरोहर के रूप में विख्यात ये मंदिर सरकारी नियंत्रण में है. उनके चढ़ावे को सरकार न केवल हड़प रही है बल्कि उन का उपयोग दूसरे धर्मों पर कर रही हैं. केंद्र की कोई भी सरकार न केवल एक कानून बना कर सारे मंदिरों को नियंत्रण से मुक्त कर सकती हैं बल्कि सरकारी नियंत्रण की तिथि से उनके चढ़ावे की राशि को मय ब्याज वापस करने का कानून भी बना सकती हैं लेकिन दुर्भाग्य से मोदी सरकार इसे 10 वर्षों के शासनकाल में नहीं कर सकी.

दुनिया के किसी भी देश में ऐसा नहीं हो रहा है कि देश की 20 प्रतिशत जनसँख्या वाले समुदाय को अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त हो और उन पर अरबों रुपया खर्च किया जा रहा हो लेकिन धार्मिक आधार पर देश के विभाजन के बाद भी भारत में स्वतंत्रता के बाद से ही लगातार ऐसा किया जा रहा है. इन कथित अल्पसंख्यकों को अपने शिक्षण संस्थान खोलने और उसमें कुछ भी पढ़ाने का अधिकार प्राप्त है. देवबंद जैसे मदरसा, जो तालिबान जैसे खतरनाक आतंकी संगठन का आदर्श है, में राष्ट्रविरोधी और हिंदू विरोधी पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहे हैं. देश के लाखों मदरसों में भी ऐसी राष्ट्रविरोधी जिहादी शिक्षा दी जा रही है. विडंबना देखिये कि इन मदरसों को केंद्र और राज्य सरकारें वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, मदरसा बोर्ड की स्थापना करती है, छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करती है और सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए मुफ्त कोचिंग सुविधा भी प्रदान करती है.

दुनिया का इतिहास इस बात प्रमाण है कि गुलामी से मुक्ति पाने वाले सभी देशों ने स्वतंत्रता के पहले दिन से ही गुलामी के अवशेषों, स्मृतियों, और स्मारकों को हटाने का काम किया, जिससे राष्ट्र में स्वतंत्रता की चेतना का नव संचार हुआ और उस राष्ट्र ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर अपने बलबूते अपने लिए सफलता का अप्रतिम अध्याय लिखा. भारत के साथ ही स्वाधीन हुए ऐसे कई देश है जो आर्थिक दृष्टि से भारत से 50 से 100 वर्ष तक आगे निकल चुके है और हम अभी देश के विभाजन के पूर्व पैदा की गयी सांप्रदायिक परस्थितियों से दो चार हो रहे हैं और धर्म निरपेक्षता के छलावे में सनातन राष्ट्र की आहुति देने को आतुर हैं .

आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत न केवल आर्थिक दृष्टि से अपने आप को मजबूत करें बल्कि राष्ट्र के रूप में अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए पुख्ता इंतजाम भी करें अन्यथा ऐसी आर्थिक महाशक्ति किस काम की जो अपनी प्राचीन संस्कृति और सांस्कृतिक धरोहरो की रक्षा भी ना कर सके और जाने अनजाने में राष्ट्रांतरण के महापाप में भी भागीदार बने.

~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~



श्रीराम मंदिर निर्माण का प्रभाव

  मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के मंदिर निर्माण का प्रभाव भारत में ही नहीं, पूरे ब्रहमांड में और प्रत्येक क्षेत्र में दृष्ट्गोचर हो रहा है. ज...