सोमवार, 4 अगस्त 2025

आखिर कौन है मालेगांव बम विस्फोट का दोषी?

 



कांग्रेस के भगवा आतंकवाद का कारण केवल मुस्लिम-तुष्टिकरण है, या हिन्दुओं के प्रति उनकी बेइंतिहा घृणा || राहुल गाँधी हिन्दू, हिंदुत्व और सनातन धर्म से इतनी नफरत क्यों करते हैं? || आखिर कौन है मालेगांव बम विस्फोट का दोषी?


मालेगांव बम विस्फोट के सभी आरोपियों को न्यायालय ने दोष मुक्त घोषित कर दिया है. 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम विस्फोट में 6 लोगों की मृत्यु हो गई थी और लगभग 95 लोग घायल हो गए थे. यह विस्फोट रमजान के महीने में नवरात्र की पूर्व संध्या पर हुआ था, इसलिए यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था कि इसका उद्देश्य सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ना था। महाराष्ट्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम तुष्टिकरण को ध्यान में रखते हुए जांच एटीएस को सौंप कर इस्लामी आतंकवाद के समानांतर भगवा आतंकवाद की थ्योरी गढ़ी। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी उर्फ स्वामीअमृतानंद देव तीर्थ, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी को गिरफ्तार करके पुलिस द्वारा भयानक यातनाएं दी गई ताकि वह कांग्रेस सरकार के मनमाफिक हिंदू आतंकवाद की थ्योरी को सही साबित कर दें। गिरफ्तार लोगों की सूची देखें तो इनमें संत, हिंदू संगठन के नेता और सेना में कार्यरत अधिकारी शामिल थे। कांग्रेस हिंदुओं के साथ-साथ भारतीय सेना को भी लांछित करके संदेह के घेरे में खड़ा करना चाहती थी लेकिन न्यायालय के फैसले ने भगवा आतंकवाद की कांग्रेस प्रायोजित थ्योरी को ध्वस्त कर दिया।

न्यायालय फैसला मामले के मनगढ़ंत होने की पुष्टि करता है। लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के आवास पर विस्फोटकों के भंडारण या संयोजन का कोई भी सबूत नहीं है, फिर भी उनको आरोपी बनाया गया। अभिनव भारत संगठन की कथित भूमिका का भी कोई साक्ष्य नहीं है. यह हैरान करने वाला है कि पुलिस की जांच टीम ने पंचनामा तक ठीक से नहीं किया और घटनास्थल का विवरण भी दर्ज नहीं किया।17 वर्षों बाद आये इस फैसले से न केवल सभी सातों आरोपी साक्ष्यों के अभाव में बरी हुए बल्कि महाराष्ट्र एटीएस भी कटघरे में खडी हो गयी. न्यायलय के अनुसार आरोपियों को जानबूझकर फसाया गया था. कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा लगभग 9 वर्षों तक जेल में रहे। उन्हें अमानवीय यात्राएं दी गई. कर्नल पुरोहित के नाखून निकाले गए और बाल नोच नोच कर निकाले गए. बिजली का करंट लगाया गया। साध्वी प्रज्ञा को पुरुष पुलिस कर्मियों ने यातनाएं दी, अश्लील गालियां देते हुए पिटाई की और दुष्कर्म करने की धमकी दी। इन दोनों पर योगी आदित्यनाथ सहित भाजप और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियो के नाम लेने का दबाव बनाया गया लेकिन राष्ट्रवाद से ओतप्रोत इन लोगों ने किसी भी व्यक्ति का नाम नहीं लिया. 2020 में अर्णव गोस्वामी को दिए एक इंटरव्यू में साध्वी प्रज्ञा सिंह ने अपने ऊपर हुई ज्यादतियों का विस्तार से वर्णन किया था, जिसे सुनकर लोगों के आंसू निकल आए थे। कांग्रेस को बहुत नागवार लगा और कांग्रेस समर्थित उद्धव सरकार ने झूठे आरोपों में अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार कर आतंकवादियों की तरह व्यवहार किया।

महाराष्ट्र एटीएस के एक सेवानिवृत्त अधिकारी महबूब मुजावर ने खुलासा किया है कि एटीएस के मुखिया और बाद में मुंबई के पुलिस आयुक्त बनाये गए परमवीर सिंह ने उस समय उन्हें आदेश दिया था कि वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत को गिरफ्तार कर लायें. इसके लिए बहुत दबाव बनाया गया, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया था। इस कारण झूठे आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर निलंबित कर दिया गया. गैरकानूनी आदेशों का पालन न करने और झूठी कहानी बनाकर आरएसएस प्रमुख को गिरफ्तार न करने के कारण उनका पूरा कैरिअर बर्बाद कर दिया गया। इस रहस्योद्घाटन की सत्यता और गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह अधिकारी मुसलमान हैं.

पुलिस की पूरी कार्रवाई से स्पष्ट है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने संविधान को ताक पर रखकर सत्ता का दुरुपयोग करते हुए, योजना बद्ध तरीके से भगवा आतंकवाद का झूठा सिद्धांत प्रतिपादित करने की कोशिश की. यही नहीं मालेगांव बम विस्फोट को समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट से जोड़ने की कोशिश की जिसका उद्देश्य मुस्लिम तुष्टिकरण को मजबूत करने के साथ पाकिस्तान को भी खुश करना था क्योंकि समझौता एक्सप्रेस में जिन लोगों की मृत्यु हुई थी वे सभी मुहाजिर थे. अगर इस बात का खुलासा होता कि समझौता एक्सप्रेस में बम धमाका करने वाले आतंकवादी पाकिस्तानी मुस्लिम थे तो पाकिस्तान में दंगों की स्थिति बन जाती और कम से कम कराची में हालात बेकाबू हो जाते. समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट अंतर्राष्ट्रीय मामला बना, ऐसे में मालेगांव बम विस्फोट में हिंदुओं को आरोपित बनाकर उन्हें समझौता एक्सप्रेस मामले से जोड़ना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदू आतंकवाद को प्रचारित करना कांग्रेस का अभीष्ट उद्देश्य था. राहुल गांधी ने अमेरिकी प्रशासन से यह कहा भी था कि भारत में सिमी से भी अधिक खतरनाक हिंदू आतंकवाद है.

इसे कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण कहें या हिंदुओं के प्रति उनकी घृणा, जिसके कारण वह आतंकवादी घटनाओं में हिंदूवादी नेताओं और संगठनों को फंसाना चाहती थी। इसके पहले भी मालेगांव में 2006 में एक मस्जिद में विस्फोट हुआ था जिसमें 45 लोगों की मृत्यु हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। कांग्रेस सरकार ने इस विस्फोट के लिए बजरंग दल को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की लेकिन लश्कर-ए-तैयबा नामक एक संगठन ने स्वयं इसकी जिम्मेदारी स्वीकार की और कांग्रेस की योजना पर पानी फिर गया। अहमदाबाद में खुफिया विभाग की सूचना पर एटीएस के साथ मुठभेड़ में इशरत जहां और उसके तीन आतंकी साथी मारे गए थे । केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मुस्लिम संगठनों द्वारा सीबीआई जांच करवाने की मांग को खुफिया रिपोर्ट के आधार पर खारिज कर दिया था. बाद में केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम के निर्देश पर हालकनामा बदल दिया गया और सीबीआई जांच का आदेश भी दे दिया गया क्योंकि कांग्रेस गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मामले में फंसाना चाहती थी। अजमेर शरीफ में हुए बम विस्फोट के मामले में कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को भी फसाने की पूरी तैयारी कर ली थी। धमाके के आरोपियों का मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज हो गया था, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया था कि धमाके की योजना बनाने के लिए हुई बैठक में मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार शामिल थे। 2007 को समझौता एक्सप्रैस ब्लास्ट के मामले में दो पाकिस्तानी आतंकी पकड़े गए थे, इनमें से एक ने अपना अपराध स्वीकार भी कर लिया था लेकिन पुलिस ने सिर्फ 14 दिन में जांच पूरी करके अदालत से उसे बरी करने की अपील की और उसे छोड़ दिया गया। एक बड़ी राजनीतिक साजिश के अंतर्गत स्वामी असीमा नन्द को गिरफ्तार कर लिया गया. इस सबका उद्देश्य हिन्दू आतंकवाद को स्थापित करके इस्लामिक आतंकवाद को राहत प्रदान करना था.

मालेगांव घटना के बाद कांग्रेसी खुलकर हिंदू आतंकवाद का आरोप लगाने लगे थे। राहुल गांधी के निर्देश पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हिंदू आतंकवाद पर अनर्गल प्रलाप करते रहे हैं। 26 नवंबर 2008 में मुंबई पर पाकिस्तानी आतंकियों के हमले में 170 से अधिक लोगों की घटना स्थल पर ही मौत हो गई थी और 1000 से अधिक लोग घायल हो गए थे। इस हमले को हिंदू आतंकवाद के रूप में दिखाए जाने की योजना बनाई गई थी. इसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता कि साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी के एक महीने के भीतर 26 नवंबर को मुंबई में आतंकी हमला करने पाकिस्तान से आए लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों ने हाथ पर कलावा बंधा रखा था। यदि आतंकी अजमल कसाब जिंदा नहीं पकड़ा जाता तो इस हमले को भी हिंदू आतंकवाद की कहानी से जोड़ दिए जाने की पूरी योजना कांग्रेस ने बना रखी थी. कसाब के गिरफ्तार होने और पाकिस्तानी साबित हो जाने के बाद भी मुम्बई हमले के पीछे आरएसएस और इजरायल खुफिया एजेंसी की साजिश होने की बात फैलाई गयी. इस पर एक किताब भी लिखी गई, जिसका विमोचन कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने किया ।

मुम्बई हमले के समय दिग्विजय सिंह ने कहा था कि शहीद होने के ठीक पहले महाराष्ट्र एटीएस चीफ हेमंत करकरे ने उन्हें फोन कर बताया था कि इस घटना का संबंध भी हिंदू आतंकवाद से है। पी चिदंबरम जो उस समय गृहमंत्री थे ने सदन में भी हिंदू आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल किया था। उनके बाद गृहमंत्री बने सुशील कुमार शिंदे ने तो यहाँ तक कहा था कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दू आतंकवादियों के ट्रेनिंग कैंप चलाते हैं। इस तरह पाक प्रयोजित आतंकवाद को बेहद हल्का कर दिया था।

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण,जो लंबे समय तक केंद्र में मंत्री भी रह चूके हैं, ने मालेगांव फैसला आने के बाद कहा कि लोग इसे भगवा आतंकवाद ना कहें, इसे हिंदू आतंकवाद या सनातन आतंकवाद कहना ज्यादा उचित होगा। हिन्दू आतंकवाद पर बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाले राहुल गाँधी ने मालेगांव फैसला आने के बाद इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और कहा कि इस समय देश के सामने और भी महत्वपूर्ण विषय है, लेकिन उनके निर्देश पर पार्टी के प्रवक्ता ऊल जलूल बयान देकर हिंदू समुदाय के घावों पर नमक छिड़क रहे हैं।

न्यायलय का फैसला आने के बाद महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार को चाहिए वे सभी जो भगवा आतंक बनाने के षड़यंत्र में शामिल, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी जिन्होंने निर्दोष लोगो को फंसाया और फंसाने का षडयंत्र रचा उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही करे. आवश्यकतानुसार जांच एजेंसी का गठन कर सभी मामलो के षड्यंत्र की एकीकृत जांच की जाय और राजनेताओं समेत सभी के विरुद्ध त्वरित कार्यवाही की जाय. आवश्यकता इस बात की भी है कि असली अपराधी कौन हैं और उन्हें क्यों बचाया गया ? दोषियों को सजा अवश्य मिलनी चाहिए.

~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~

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