शनिवार, 28 जून 2025

लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है

 


संविधान हत्या दिवस || लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है || क्या मोदी सरकार के कार्यकाल में भी अघोषित आपातकाल लगा है


आपातकाल के 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं लेकिन लोगों के मन और मस्तिष्क से इस अवधि की भयावह यादें अभी भी मिटी नहीं है. 25 जून 1975 को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने बिना मंत्रिमंडल की सिफारिश के केवल इंदिरा गाँधी के कहने पर आपातकाल घोषित कर दी थी. संविधान ताक पर रख कर सभी नागरिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. लोकतंत्र समाप्त हो गया था. स्वतंत्र भारत का यह सबसे अलोकतांत्रिक, काला और वीभत्स कालखंड था. कोई भी सभ्य भारतीय कभी भी इसे नहीं भूल सकता और भूलना भी नहीं चाहिए. इसलिए मोदी सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने का निर्णय लिया गया जो सर्वथा उचित है.

आपात काल की सबसे बड़ी बात यह थी कि यह देश पर आए किसी खतरे का सामना करने के लिए नहीं बल्कि यह इंदिरा गाँधी के अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण लगाया गया था. चुनाव स्थगित हो गए थे और सामान्य नागरिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई थी और पूरी तरह से सरकार की मनमानी चल रही थी. प्रेस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसमें मीसा (आंतरिक सुरक्षा कानून) लागू कर दिया गया था, जिसमें किसी को भी बिना कोई कारण बताए जेल में डाला जा रहा था. जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई जैसे विपक्षी नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था. इंदिरा गाँधी ने अपने सभी राजनैतिक विरोधियो और विरोध की आशंका वाले लोगो को जेल में ठूंस दिया था.

इंदिरा गाँधी द्वारा देश पर आपातकाल थोपने का असली कारण यह था कि प्रयागराज उच्च न्यायालय ने उन्हें चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया था और उनको छह वर्षों तक चुनाव लड़ने के अयोग्य तथा कोई भी सरकारी पद संभालने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. उच्च न्यायालय के इस आदेश को नकारते हुए उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की और 24 जून 1975 को सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश में आंशिक बदलाव करते हुए उन्हें पद पर बने रहने की अनुमति प्रदान कर दी थी. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जयप्रकाश नारायण ने घोषणा कर दी कि जब तक इंदिरा गाँधी इस्तीफा नहीं देंगी रोज़ उनके विरुद्ध पूरे देश में प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे लेकिन अगले ही दिन 26 जून 1975 को उन्होंने देश पर आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी. चुनाव में धांधली का मामला उस चुनाव से संबंधित था जिसमें उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी राजनारायण को पराजित किया था लेकिन राजनारायण ने प्रयागराज उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी कि इंदिरा गाँधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर चुनाव जीता है. चार साल बाद आए इस फैसले ने श्रीमती गाँधी का चुनाव रद्द कर दिया था. इंदिरा गाँधी के समर्थन में पूरी तरह आई कांग्रेस पार्टी ने उनके नेतृत्व को देश के लिए अपरिहार्य बताते हुए आपातकाल का समर्थन किया था.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था क्योंकि इंदिरा गाँधी का मानना था यह संगठन विपक्षी नेताओं का करीबी है और अपने मजबूत संगठनात्मक आधार के कारण वह सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन कर सकता है. हजारों स्वयंसेवकों को जेल में ठूंस दिया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो उस समय आरएसएस के प्रचारक थे, वेश बदलकर संगठन की गतिविधियों लगे रहे थे. पूरा देश सदमे में था. उनकी आवाज उठानेवाला विपक्ष जेल में बंद था और प्रेस पर पूर्ण प्रतिबंध था. डीएमके की सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने आपातकाल की आलोचना करते हुए इसे तानाशाही की शुरुआत बताया था, इस कारण 31 जनवरी 1976 को उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई. उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था. तमिलनाडु के वर्तमान मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को भी मद्रास केंद्रीय कारागार में यातनाओं का का सामना करना पड़ा था, यह अलग बात है कि वह आज कांग्रेस के साथ खड़े हैं. सबसे अधिक परेशानियाँ समाज के गरीब और कमजोर तबके को हुई थी जिनकी रोज़ी रोटी भी छिन गई थी और उन पर ज्यादतियां भी की गई थी. संजय गाँधी आपातकाल के शक्ति केंद्र थे और उनके निर्देश पर लाखों पुरुषों की नसबंदी कर दी गई थी. बिना वजह लोगों को जेल में डाल दिया गया था. दिल्ली के तुर्कमान गेट जैसी घटनाएं देश के अन्य भागों में भी खूब हुई थी.

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान की हत्या बताते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा थोपे गए आपातकाल को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का काला अध्याय बताते हुए कहा कि कोई भी भारतीय कभी नहीं भूल सकता कि किस तरह हमारे संविधान की भावना का उल्लंघन किया गया था, संसद की आवाज दबाई गई थी और अदालतों को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया था। 42वां संविधान संशोधन उनके काले कारनामों का एक प्रमुख उदाहरण है। लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है. 21 महीने चले आपातकाल में 4 बार संविधान संशोधन किया गया और 48 नए अध्यादेश लाए गए. 30 वें संशोधन में आपातकाल को अदालत में चुनौती देने का अधिकार भी छीन लिया गया था जबकि 42 वें संशोधन में मौलिक अधिकार कमजोर कर दिए गए और न्यायपालिका की शक्ति भी सीमित कर दी गई थी.

आज कांग्रेस के नेता भले ही यह कहते घूमें कि पिछले 11 वर्षों में मोदी सरकार के कार्यकाल में देश में अघोषित आपात स्थिति है लेकिन उनका यह कहना सत्ता से बाहर रहने की पीड़ा और देश को गुमराह करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है. अगर अघोषित आपात स्थिति होती तो राहुल गाँधी जिस भाषा में प्रधानमंत्री को प्राय: अपमानित करते हैं, चुनाव आयोग संवैधानिक संस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं, संभव नहीं हो पाता. अघोषित आपात स्थिति रहते हुए भी शाहीनबाग और किसान आंदोलन, जिन्होंने अरबों रुपए की राष्ट्रीय क्षति पहुंचाई, कैसे लंबे समय तक चलाये जा सके. कैसे नूपुर शर्मा को घर में कैद होकर बैठना पड़ा, कैसे ममता बेनर्जी के पश्चिम बंगाल में हिंदू नरसंहार का खुला खेल खेला गया, कैसे तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन और उनके उप मुख्यमंत्री पुत्र सनातन को डेंगू और मलेरिया बता सके. कैसे संसद से अयोग्य ठहराए गए राहुल गाँधी सर्वोच्च न्यायालय से राहत पा सके. कैसे सर्वोच्च न्यायलय धारा 370 हटाने और वक्फ संशोधन कानून पर सुनवाई कर सका.

राहुल गाँधी भले ही संविधान की कॉपी हाथ में लेकर घूमे और भाजपा सरकार पर संविधान और लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाएं लेकिन यह एक निर्विवादित तथ्य है कि विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों में छोटी छोटी बातों पर कार्टूनिस्ट, यूट्यूबर, पत्रकार और प्रदर्शनकारी गिरफ्तार हो जाते हैं. पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिल नाडु इसके ज्वलंत उदाहरण है. मोदी सरकार द्वारा आपातकाल लगाए जाने वाले दिन को संविधान हत्या दिवस के रूप में घोषित किया जाना अत्यंत सार्थक और भावनात्मक है क्योंकि संविधान तभी मरता है जब नागरिको के मूल अधिकार छीन लिए जाते हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली जाती है, प्रेस की स्वतंत्रता छीन ली जाती है, न्यायालयों का अपमान किया जाता है और मनचाहा फैसला लेने के लिए उन पर दबाव बनाया जाता है.

यदि इस आधार पर स्वतंत्र भारत के अब तक के कालखंड का विश्लेषण किया जाए तो हम पाते हैं कि गाँधी परिवार के पांच सदस्यों ने अपने तानाशाही व्योहार से किसी न किसी रूप में संविधान की हत्या की है. जवाहर लाल नेहरू ने पहला संविधान संशोधन करके अनेक पुस्तकों, फ़िल्मों आदि पर प्रतिबंध लगा दिया था तथा अनेक इतिहासकारों, लेखको, पत्रकारों और समाजसेवियों को जेल में डाल दिया था. इंदिरा गाँधी ने उच्च न्यायालय के फैसले की अवमानना करते हुए विरोध की आवाज दबाने के लिए आपातकाल की घोषणा कर दी थी. उन्होंने अपने सभी राजनीतिक विरोधियो और विरोध करने वाले सामान्य नागरिको को जेल में ठूंस दिया था. नागरिको के मूल अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली गई थी. समाचार पत्र बिना सरकार की अनुमति के कुछ भी छाप नहीं सकते थे. सही अर्थों में देश में कोई भी इंदिरा गाँधी और उनकी सरकार का विरोध नहीं कर सकता था. राजीव गाँधी ने शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय का अपमान करते हुए कानून बना कर उसके फैसले को पलट दिया था. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में परोक्ष रूप से सत्ता संभाल रही सोनिया गाँधी ने शाह आयोग द्वारा आपातकाल की ज्यादतियों के लिए दोषी पाए गए और किसी भी संवैधानिक पद के लिए आयोग्य घोषित किए गए नवीन चावला को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था. सोनिया गाँधी के निर्देश पर चुनाव धांधलियों का विरोध करने पर हजारों प्रदर्शनकारियों को देशद्रोह के आरोप में जेल में डाल दिया गया था. राहुल गाँधी ने मंत्रिमंडल द्वारा पारित बिल को सार्वजनिक रूप से फाड़ दिया था. आज भी वह संविधान की कॉपी लहराते हुए वह संवैधानिक संस्थाओं पर हमला करते हैं और उनका अपमान भी करते हैं. मानहानि के मामले में 2 साल की सजा पाए और संसद द्वारा सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किए गए राहुल गाँधी ने दबाव बनाकर ही अपनी सदस्यता बहाल करायी, यह भी किसी से छिपा नहीं है.

संविधान की रक्षा की जा सके और इस देश को पुन: अपातकाल न देखना पड़े, इसके लिए हम सभी को प्रयासरत रहना चाहिए और संविधान में तभी संशोधन होने चाहिए जब यह राष्ट्रीय हित में हो क्योंकि संविधान से भी बड़ा राष्ट्र होता है और हमें राष्ट्र को बचाने और मजबूत करने की आवश्यकता है.

~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

ट्रम्प का लंच मुनीर के संग

 



ट्रम्प का लंच मुनीर के संग || क्यों इतने महत्त्वपूर्ण हो गए हैं असिम मुनीर || क्या सचमुच लंच की राजनीति नोबल शांति पुरुस्कार की राजनीति है


दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे समृद्ध देश अमेरिका के राष्ट्रपति यदि पाकिस्तान जैसे एक आतंकवादी देश के सेना प्रमुख को व्हाइट हाउस में लंच पर आमंत्रित करें तो भारत ही नहीं पाकिस्तान में लोग चौंक गए. भारत इसलिए चौंका कि “अमेरिका प्रथम” और “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” नारे लगाने वाले ट्रंप ने ऐसा किया जबकि अमेरिका ने 11 सितंबर 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर को ध्वस्त करने वाली आतंकी घटना के जनक ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद सैन्य क्षेत्र में सालों की मेहनत के बाद मार गिराने में सफलता प्राप्त की थी. पाकिस्तान में लोग इसलिए चौंके कि ट्रम्प ने हाल के दिनों में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भी व्हाइट हाउस में लंच / डिनर पर आमंत्रित नहीं किया. अमरीकी राष्ट्रपति के साथ लंच करने वाले आसिम मुनीर पाकिस्तान के पहले सेनाध्यक्ष हैं, यद्यपि इसके पहले जनरल अयूब और परवेज मुशर्रफ़ सैनिक तानाशाह के रूप में राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति के साथ व्हाइट हाउस में लंच या डिनर पर जाने का सौभाग्य पा चुके हैं. पाकिस्तान के राजनैतिक क्षेत्रों में हड़कंप मच गया है, क्योंकि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से अधिक सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर को महत्त्व दिया जाना पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन का इशारा कर रहा है. हैरान तो लोग अमेरिका में भी है, क्योंकि यह सरकारी शिष्टाचार के अनुरूप नहीं है. प्रश्न उठना बहुत स्वाभाविक है कि ऐसा क्या है जिस कारण डोनाल्ड ट्रम्प ने आसिम मुनीर को इतना महत्त्व दिया. पूरी दुनिया में तरह तरह की अटकलें लगाई जा रही है.

इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए पाकिस्तान की राजनीति और आसिम मुनीर को समझना बहुत आवश्यक है. पहलगाम में हिन्दुओं के नरसंहार की घटना के पहले भारत और शेष दुनिया में असीम मुनीर को बहुत कम लोग जानते थे लेकिन बाद में वह अपने उस भाषण से बहुत चर्चा में आ गए जिसमें उन्होंने भारत के विभाजन और दो राष्ट्रों सिद्धांत की तारीफ करते हुए हिंदुओं के प्रति अपनी घृणा का प्रदर्शन किया था, तथा मुसलमानों को हिंदुओं के नरसंहार के लिए उकसाया था. पाकिस्तान में भी लोगों का मत है कि मुनीर का वह भाषण हिंदुओं के नरसंहार की उनकी योजना का हिस्सा था. पहलगाम में धर्म पूछकर और कपड़े उतरवाकर खतना सुनिश्चित करने के बाद, हिन्दू पुरुषों को उनकी पत्नियों और बच्चो के सामने बेहद क्रूरता से मौत के घाट उतारने की घटना ने भारत ही नहीं पूरे विश्व को झकझोर दिया था. इस घटना ने भारत पर आक्रमण करने वाले राक्षसी वृत्ति के इस्लामिक आक्रांताओं की यादें ताजा कर दीं. इस पर भारत द्वारा सख्त कार्रवाई अपेक्षित और आवश्यक थी, जो ऑपरेशन सिंदूर के अंतर्गत की गई. भारत ने आतंकवादियों के कई ठिकानों को नेस्तनाबूत कर दिया था. बौखलाए पाकिस्तान द्वारा नियंत्रण रेखा पर भारतीय नागरिको तथा सिख गुरु द्वारे पर अंधाधुंध गोलीबारी की गई जिससे अनेक नागरिक हताहत हुए. भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकानों पर मिसाइल आक्रमण कर पाकिस्तानी वायु सुरक्षा तंत्र को ध्वस्त कर दिया था. चीन और तुर्की निर्मित हथियारों तथा अमेरिकी लड़ाकू विमानों द्वारा पाकिस्तान के आक्रामक प्रयास निरर्थक साबित हो गए. पाकिस्तान की सैन्य कार्यवाही के महानिदेशक द्वारा भारत की सैन्य कार्रवाई के महानिदेशक से अनुनय विनय करने पर आपसी बातचीत के माध्यम से सीजफायर का ऐलान किया गया.

  1. इस सीजफायर का श्रेय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने नाम कर लिया. यद्यपि भारत ने इसका खण्डन किया लेकिन ट्रंप लगातार भ्रामक बयान देते रहे. पाकिस्तान द्वारा सोशल मीडिया में चलाए जा रहे झूठे विमर्श और डोनाल्ड ट्रम्प के भ्रामक बयानों के आधार पर कांग्रेस सहित भारतीय विपक्ष ने मोदी सरकार के आतंकवादियों को नेस्तनाबूत करने के साहसिक कृत्य को नकारने का काम शुरू कर दिया. राहुल गाँधी ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ट्रंप के दबाव में सरेंडर करने का आरोप लगाया जिसे उनकी चाटुकार मंडली ने भी आगे बढ़ाने का कार्य किया. राहुल गाँधी ने पीएम मोदी का विरोध करने के लिए न केवल राष्ट्र विरोधी कार्य किया बल्कि कई मौकों पर पाकिस्तान के साथ खड़े नजर आए. यहाँ तक कि उसने विदेशों में भेजे गए प्रतिनिधिमंडलों में शामिल कांग्रेसी नेताओं के प्रति भी आक्रामक रुख अपनाया और उन्हें मोदी का एजेंट तक करार दे दिया.  
  2. कांग्रेस द्वारा जी-7 में मोदी को निमंत्रण न मिलने की भी बहुत ज़ोर शोर से उछाला और मोदी पर कटाक्ष करने के चक्कर में भारत की प्रतिष्ठा को भी धूल धूसरित किया यद्यपि कनाडा के प्रधानमंत्री ने फ़ोन पर व्यक्तिगत आग्रह करके मोदी को निमंत्रित किया और मोदी ने जी-7 की मीटिंग में हिस्सा भी लिया, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप भी पहुंचे थे लेकिन ईरान इजराइल युद्ध के चलते वह समय से पहले ही चले गए थे. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी और उनकी तयशुदा बैठक नहीं हो सकी. बाद में ट्रंप के अनुरोध पर प्रधानमंत्री मोदी की उनसे लंबी बातचीत हुई. मोदी ने ट्रंप को स्पष्ट रूप से कहा की पाकिस्तान और भारत के बीच सीजफायर पाकिस्तान के अनुरोध और आपसी बातचीत के आधार पर किया गया था इसमें ट्रंप सहित किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी. 

जहाँ तक पाकिस्तान का प्रश्न है, शहबाज शरीफ की सरकार सेना की रहमोकरम पर ही बनी थी चल भी उसकी मर्जी से रही है. इसलिए भारत पाक संघर्ष में पाकिस्तान की शर्मनाक पराजय के बाद भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री, सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर का गुणगान करते रहे. पाकिस्तानी मीडिया और जनता द्वारा सरकार को लगातार आईना दिखाने के बावजूद शहबाज शरीफ सरकार ने असीम मुनीर को प्रोन्नत करके फील्ड मार्शल बना दिया या स्वयं मुनीर ने अपने आप को फील्ड मार्शल बना लिया. फील्ड मार्शल बनना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पद जीवन पर्यंत के लिए होता है. जनरल अयूब खान के बाद असीम मुनीर दूसरे ऐसे सेनाध्यक्ष है जो फील्ड मार्शल बने हैं. जनरल अयूब ने सत्ता पर कब्जा करके अपने आप को राष्ट्रपति घोषित कर दिया था. वह 1958 से 1969 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे. आसिम मुनीर के बारे में भी अटकलें लगाई जा रही है कि वह शीघ्र ही सैनिक तानाशाह बनकर पाकिस्तान की सत्ता संभालेंगे. ट्रम्प द्वारा असीम मुनीर को व्हाइट हाउस आमंत्रित करना इस बात को रेखांकित करता है कि अमेरिका उन्हें पाकिस्तान का सर्वेसर्वा मानता है. भारत पाकिस्तान संघर्ष के दौरान भी अमेरिकी विदेशमंत्री ने केवल आसिम मुनीर से ही बात की थी. मदरसे से शिक्षा प्राप्त आसिम मुनीर बेहद कट्टरपंथी मुस्लिम हैं और इस समय धार्मिक उन्माद भड़काकर इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान की सत्ता पर कब्जा करने की योजना बना रहे हैं. हिंदुओं के प्रति नफरती भाषण और भारत में योजना बद्ध ढंग से पहलगाम जैसी घटनाएं करा कर वह इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.

ईरान और इजरायल के वर्तमान युद्ध में अमेरिका अपने लिए बेहद चालाकी भरी भूमिका तैयार कर रहा है, जिससे उसे अफगानिस्तान की तरह मुँह की न खानी पड़े. इजराइल से ईरान लगभग 2000 किलोमीटर दूरी पर स्थित है, इसीलिए वह केवल मिसाइलों से ईरान को नहीं हरा सकता है और न हीं इस तरह अमरीका तेहरान पर कब्जा कर सकता है क्योंकि किसी देश पर कब्जा करने के लिए सोना का उस देश में घुसना आवश्यक है. इसके लिए अमेरिका ईरान पर जमीनी आक्रमण करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल करना चाहता है, क्योंकि पाकिस्तान के साथ ईरान की 900 किलोमीटर लंबी सीमा है. इसके लिए असीम मुनीर पूरी तरह उपयुक्त है. यदि वह फील्ड मार्शल के रूप में अमेरिका की सहायता नहीं कर सके तो उन्हे सैनिक शासन के अंतर्गत राष्ट्रपति बनाया जा सकता है. पाकिस्तान में स्थायी सैनिक अड्डे बनाने के लिए भी अमेरिका को असीम मुनीर जैसे व्यक्ति की आवश्यकता है. पाकिस्तानी सैन्य सरकार और भारत की लोकतांत्रिक सरकार के बीच कभी मित्रता नहीं हो सकती और इस तरह दोनों देशों के बीच शीत युद्ध अमेरिका को हथियारों की बिक्री में बहुत सहायक सिद्ध होगा. दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति में अमेरिका अपने नियम और शर्तों पर भारत को व्यापारिक समझौते करने के लिए विवश करता रहेगा. डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बनने से पहले एक सफल व्यापारी थे और राष्ट्रपति से सेवानिवृत्त होने के बाद भी व्यापारी रहेंगे, इसमें किसी को संदेह नहीं है लेकिन वह राष्ट्रपति रहते हुए भी व्यापारी की तरह कार्य कर रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप की क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित एक कंपनी का हाल ही में पाकिस्तान सरकार के साथ समझौता हुआ है. तब से पाकिस्तान के प्रति ट्रंप का रवैया उदार हो गया है. पाकिस्तान को विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से नया कर्ज दिलवाने में भी अमेरिका की अप्रत्यक्ष भूमिका है. इसलिए यह बहुत स्वाभाविक है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तानी फील्ड मार्शल असीम मुनीर के साथ एक समझ विकसित कर रहे हैं ताकि पारस्परिक समन्वय से दोनों के हित साधे जा सके.

एक और कारण भी है. आसिम मुनीर के दबाव में ही पाकिस्तान सरकार ने नोबेल शांति पुरस्कार के लिएडोनाल्ड ट्रंप के नाम की सिफारिश की है. डोनाल्ड ट्रंप भी जी जान से जुटे हुए हैं इस पुरस्कार को पाने के लिए और जो उनके नाम की सिफारिश करेगा उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना उनका मानवीय फर्ज है और दुनिया के अन्य देशों के लिए एक सन्देश भी है. इस सब के बाद भी डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार मिल सकेगा इसकी संभावना बहुत कम है.

डोनाल्ड ट्रंप के इस कदम से पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार पर खतरा मड़राने लगा है और यदि पाकिस्तान में सैन्य सरकार बनती है तो भारत पर भी युद्ध और आतंकवाद दोनों का खतरा बढ़ जाएगा. आप

~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~

लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है

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