स्वागत योग्य निर्णय
एक अत्यंत महत्वपूर्ण फैसले में वाराणसी की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने आदेश दिया है की ज्ञानवापी परिसर में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की सहायता से मंदिर के प्रमाण ढूंढे जाएं और जरूरत पड़ने पर अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाए जिसमें ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार और जिओ रेडियोलॉजी सिस्टम शामिल है .
लगता है काशी के अच्छे दिन आने वाले हैं क्योंकि अगर पुरातत्व सर्वेक्षण में यह सिद्ध हो जाता है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर तोड़ कर किया गया था तो वांछित निर्णय इसके बाद ही आ सकेगा और जरूर आयेगा .
मामला 1991 से न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है लेकिन फास्ट ट्रैक कोर्ट में यह मामला वर्ष 2019 में दायर किया गया था, 2 वर्ष बाद ही सही न्यायालय ने मामले में सही दिशा की तरफ एक सार्थक कदम बढ़ाया है. अपने निर्णय में न्यायालय ने परिसर के अंदर के सभी स्थानों को सर्वेक्षण में शामिल करते हुए निर्णय दिया -
पुरातत्वविदों की 5 सदस्य टीम गठित करने के लिए कहा है जिसमें दो पुरातत्वविद मुस्लिम होंगे.
टीम की जिम्मेदारी होगी कि वह वर्तमान और पूर्व के ढांचे या उसके अवशेषों की जांच करें और दोनों ढांचों की उम्र निर्धारित करें.
कमेटी यह तय करें कि उक्त स्थल पर किस संप्रदाय का कौन सा आराधक था या पूर्व में कोई मंदिर मौजूद था और अगर था तो उसकी साइज, रंग, डिजाइन आदि पता करने की कोशिश करें.
कमेटी विवादित स्थल के धार्मिक निर्माण के प्रत्येक भाग में प्रवेश कर सकेगी और आवश्यकता पड़ने पर उत्खनन भी किया जा सकता है जिसके लिए उपलब्ध अत्याधुनिक तकनीक जैसे ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार, जिओ रेडियोलॉजी सिस्टम आदि का प्रयोग किया जा सकता है.
प्रदेश सरकार का पुरातत्व विभाग उपलब्ध अवशेषों को संरक्षित करें.
अदालत ने पुरातत्व विभाग के महानिदेशक को आदेश दिया है की पूरी निगरानी के लिए किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय के पुरातत्व वैज्ञानिक को ऑब्जर्वर बनाए .
यदि नमाज अदा की जा रही हो तो उसमें रुकावट नहीं आनी चाहिए.
यह बेहद दुखद है कि 1991 में परिसर में नए मंदिर के निर्माण तथा हिंदुओं को पूजा पाठ करने देने के अधिकार को लेकर एक मुकदमा कायम किया गया था वह ३0 वर्षों से लंबित है और उसकी प्रगति शून्य है. इसी बीच 1991 में ही तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक कानून बना दिया कि अनुसार अयोध्या विवाद को छोड़कर शेष सभी पूजा स्थलों में 1947 की स्थिति बनाए रखी जाएगी ताकि काशी और मथुरा के मुद्दे हिंदुस्तान का बहुसंख्यक वर्ग उठा न सके और उन स्थानों पर गुलामी के प्रतीक आक्रांताओं के दमन की कहानी सुना कर पूरे सनातन समाज को मनोवैज्ञानिक रूप से दासता की याद दिलाते रहे.
तुष्टीकरण के इस कदम ताल से परेशान होकर 2019 में वाराणसी की फास्ट ट्रैक कोर्ट में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर नाथ की ओर से वाद मित्र श्री विजय शंकर रस्तोगी की ओर से एक याचिका दायर की गई जिसमें अनुरोध किया गया था कि आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल करते हुए परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया जाए ताकि तदनुसार शीघ्र से शीघ्र निर्णय लिया जाए, जिस पर कोर्ट ने सकारात्मक और सार्थक निर्णय दिया है.
क्या है विश्वनाथ मंदिर का इतिहास ?
काशी में भगवान विश्वेश्वर नाथ या बाबा विश्वनाथ का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना काशी का अस्तित्व. प्राचीन मंदिर के इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या की थी और उनके शयन करने पर उनकी नाभि कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई थी जिन्होंने बाद में पूरे विश्व की रचना की थी. इसे आदि सृष्टि स्थली भी बताया जाता है.
ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता कि विवाद को हल करने के लिए भगवान शंकर ने अनंत ज्योतिर्लिंग का निर्माण किया और दोनों से उसकी ओर छोर पता लगाने के लिए कहां. ब्रह्मा और विष्णु दोनों इस काम में लग गए किंतु कल्पों तक प्रयास करने के बाद विष्णु भगवान इसका पता नहीं लगा सके और उन्होंने आकर अपनी विफलता स्वीकार कर ली. ब्रह्मा ने आकर झूठ बोल दिया कि उन्होंने इसका पता लगा लिया है, जिससे नाराज होकर भगवान शंकर ने उन्हें श्राप दे दिया कि ब्रह्मांड में कहीं भी ना उनका कोई मंदिर होगा और ना ही उनकी पूजा होगी . इस प्रकार से इसका का यह विवाद सुलझ गया .
ऐसा माना जाता है की प्रलय काल में भी काशी का विनाश नहीं होता क्योंकि उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं. ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी के निर्माण के समय सूर्य की पहली किरण काशी यानी वाराणसी पर पड़ी। मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं मंदिर में कुछ समय के लिए रुके थे और वे इस शहर के संरक्षक हैं।
भगवान भोलेनाथ जिन्हें काशी मे बाबा विश्वनाथ भी कहा जाता है, की कृपा के कारण ही काशी को सर्व तीर्थ और सर्व संताप हारिणी मोक्षदायिनी नगरी कहा जाता है. मान्यता है कि काशी में प्राण त्यागने वाले व्यक्ति को मुक्ति या मोक्ष प्राप्त हो जाता है क्योंकि यहां प्राण त्यागने वाले प्राणी के कान में भगवान भोलेनाथ तारक मंत्र का उपदेश देते हैं.
मत्स्य पुराण में वर्णन है कि दुखों और कष्टों से पीड़ित और जप तप ध्यान रहित व्यक्तियों के लिए काशी ही एकमात्र मोक्ष प्राप्त करने का साधन है. श्री विश्वेश्वर विश्वनाथ का यह ज्योतिर्लिंग साक्षात भगवान परमेश्वर महेश्वर का स्वरूप है, यहाँ भगवान शिव सदा विराजमान रहते हैं।
अगस्त्य मुनि ने भी यहां पर बहुत समय तक विश्वेश्वर की आराधना की थी. इसी स्थान पर आराधना करने से वशिष्ठ मुनि तीनों लोकों में पूजित हुए. ऋषि विश्वामित्र भी राज ऋषि और ब्रह्मर्षि अपनी विश्वेश्वर आराधना के कारण हुए.
आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, बामाख्यापा, गोस्वामी तुलसीदास, स्वामी दयानंद सरस्वती, सत्य साईं बाबा और गुरुनानक सहित कई प्रमुख संत इस स्थल पर आये हैं।
भगवान विश्वेश्वर नाथ (बाबा विश्वनाथ) मंदिर की प्राचीनता :-
बाबा भोलेनाथ का यह मंदिर भारत में सभी ज्ञात मंदिरों में प्राचीनतम है और ऐसा माना जाता है यह भगवान पार्वती और शंकर का आदि स्थान है. आधुनिक ज्ञात इतिहास के अनुसार ईशा से पूर्व 11वीं शताब्दी में राजा हरिश्चंद्र ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. इसके पश्चात सम्राट विक्रमादित्य ने भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार और पुनरुद्धार कराया.
1194 में मुहम्मद गोरी नाम के एक मुस्लिम लुटेरे आक्रांता ने इसे तोड़ दिया था. मंदिर का बारंबार जीर्णोद्धार होता रहा. वर्ष 1447 में जौनपुर में सुल्तान महमूद शाह ने एक बार फिर इस मंदिर को तोड़ दिया था.
वर्ष 1585 में राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट ने इसे पुनः सजाया संवारा. विडंबना देखिए कि जिस शाहजहां को प्यार की निशानी ताजमहल बनाने के लिए दुनिया भर में याद किया जाता है वह भी इतना क्रूर और राक्षसी प्रवृत्ति का था कि उसने वर्ष 1632 में इस मंदिर को तुड़वाने के लिए सेना की एक टुकड़ी भेज दी। लेकिन हिंदूओं के प्रतिरोध के कारण सेना अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाई किन्तु काशी के अन्य सैकड़ों प्राचीन मंदिरों को तोड़ दिया गया ।
डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब 'दान हारावली' में इसका वर्णन किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है।
उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित 'मासीदे आलमगिरी' में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था क्योंकि सनातन संस्कृति में ब्राह्मण ही ऐसा वर्ग था जो पूरे समाज को जोड़ने और जागृत करने का कार्य करता था. आज भी भारत के ज्यादातर मुसलमान ब्राह्मणों के सख्त विरोधी होते हैं.
1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए।
7 अगस्त 1770 ई. में महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश जारी करा लिया, परंतु तब तक काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया था इसलिए मंदिर का नवीनीकरण रुक गया।
1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई।
1809 में इस तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद पर हिंदुओं ने पुनः कब्जा कर लिया और इसका पुनर्निर्माण करने लगे लेकिन अंग्रेजों ने सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए इस कार्य को रोक दिया. हालांकि 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने ‘वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल’ को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने के लिए कहा था, लेकिन यह कभी संभव ही नहीं हो पाया और तब से यह विवाद यथावत चल रहा है .
( 154 साल पहले का विश्वनाथ मंदिर )
(तोड़फोड़ के बाद का विश्वनाथ मंदिर)
ज्ञानवापी मस्जिद का अस्तित्व :-
- सुनवाई के दौरान मंदिर की तरफ से दलील दी गई कि ज्ञानवापी स्थित विश्वेस्वर नाथ मंदिर तोड़कर मस्जिद का रूप दिया गया है. अभी भी तहखाने सहित चारों तरफ की जमीन पर वैधानिक कब्जा हिन्दुओं का है.
- मस्जिद के पीछे श्रृंगार गौरी की पूजा होती है. कथा भी आयोजित होती है. नंदी भी मस्जिद की तरफ मुख करके विराजमान हैं.
- तहखाने के गेट पर हिन्दुओं व प्रशासन का ताला लगा है. दोनों की तरफ से दरवाजा खोला जाता है.
- मस्जिद के पीछे मंदिर का ढांचा साफ दिखाई देता है.
- विवादित ढांचे में तहखाने की छत पर मुस्लिम नमाज पढ़ते हैं. इस्लाम में विवादित स्थल पर पढ़ी गई नमाज कबूल नहीं होती इसलिए अवैध कब्जे के खिलाफ वाद पोषणीय है. लेकिन ये कैसा धर्म है कि उसके अनुयायी स्वयं अपने धर्म का पालन नहीं करते .
- मुस्लिम पक्ष का कहना है कि कानून के तहत 1947 की मस्जिद-मंदिर की स्थिति मे बदलाव नहीं किया जा सकता. यथास्थिति बनाए रखने का कानून मुकदमे पर रोक लगाता है. स्थिति बदलने की मांग में वाराणसी में दाखिल मुकदमा पोषणीय नहीं है. अपर सत्र न्यायाधीश वाराणसी द्वारा मुकदमे की सुनवाई का आदेश देना गलत है.
- वहीं मंदिर पक्ष की तरफ से कहा गया कि विवाद आजादी के पहले से चल रहा है, इसलिए बाद में पारित कानून से विधिक अधिकार नहीं छीने जा सकते. मंदिर को तोड़कर मस्जिद का रूप दिया गया है.
मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की उपलब्धि प्रमाण
मुस्लिम लुटेरे और आक्रांता जिन्होंने बाद में हिंदुस्तान में अपना साम्राज्य भी स्थापित किया जनता के भारी विरोध के कारण मंदिर तोड़ने और उसी को मस्जिद का स्वरूप देने का कार्य इतनी शीघ्रता से किया जाता था कि लगभग हर इस तरह के विवादित मंदिर मस्जिद में हजारों प्रमाण उपलब्ध हैं और काशी विश्वनाथ मंदिर में भी सैकड़ों हजारों और लाखों में प्रमाण उपलब्ध है
विश्वनाथ कॉरिडोर :-
प्रधानमंत्री मोदी ने वाराणसी को जापान के क्योटो की तर्ज पर एक धार्मिक शहर बनाने का संकल्प लिया जो हर सुख सुविधा से लैस होगा. विश्वनाथ कॉरिडोर उसी सपने का एक हिस्सा है. 800 करोड़ की लागत से बन रहे इस कॉरिडोर की वजह से वाराणसी घूमने आने वाले लोगों और काशी विश्वनाथ के दर्शन करने आने वाले भक्तों को बहुत सुविधा होगी.
इस प्रोजेक्ट के तहत मुख्य मंदिर परिसर, मंदिर चौक, शहर की गैलरी, संग्रहालय, सभागार, हॉल, सुविधा केंद्र, मोक्ष गृह, गोदौलिया गेट, भोजशाला, पुजारियों-सेवादारों के लिए आश्रय, आध्यात्मिक पुस्तक स्टॉल सहित सभी निर्माण 30 फीसदी हिस्से में होंगे.
श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर में करीब 3100 वर्ग मीटर में मंदिर परिसर बनेगा. इसके साथ ही कॉरिडोर के बाहरी हिस्से में जलासेन टैरेस बनेगा. इस टैरिस पर खड़े होकर गंगा जी के साथ ही मणिकर्णिका, जलासेन और ललिता घाट का भी निहारा जा सकेगा.
कॉरिडोर का मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा था :-
जब विश्वनाथ कॉरिडोर बनना शुरू हुआ तो मुस्लिम पक्ष को लगा कि इससे उनके तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद को नुकसान पहुंच सकता है. इसकी वजह से ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली कमिटी अंजुमन इंतजामिया मस्जिद की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी. याचिका में कहा गया था कि मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के आसपास के भवनों को तोड़े जाने और नए रास्ते खोले जाने से से मस्जिद की सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है.
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच न्यायमूर्ति अरुण मिश्र और विनीत सरन ने फैसला दिया कि महज आशंका के आधार पर विश्वनाथ मंदिर के विस्तारीकरण पर रोक नहीं लगाया जा सकता है.
निष्कर्ष
भारत आज एक स्वतंत्र देश है. अंग्रेज चले गए हैं. मुस्लिम लुटेरे आक्रांताओं के आक्रमण रुक गए हैं.
लेकिन सनातन संस्कृति पर होने वाले आक्रमण आज भी नहीं रुके हैं केवल उनका स्वरूप बदल गया है. पहले तलवार के जोर पर धर्मांतरण होता था आज लव जिहाद, लालच, धोखाधड़ी आदि के माध्यम से धर्मांतरण होता है.
सबसे बड़ी बात सनातन संस्कृति के प्रति घृणा और उसके कारण आक्रामकता और बढ़ रही है. इसी कारण सनातन संस्कृति, राष्ट्रीय अस्मिता और हिंदू आस्था से जुड़े हुए मुद्दों पर उसी प्रकार हर स्तर पर विरोध किया जा रहा है जैसे ये लोग स्वयं लुटेरे और आक्रांताओं के वंशज है.
राष्ट्रवादियों को रक्षात्मक मुद्रा से बाहर निकलना होगा और हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जिसे राष्ट्रीय संस्कृति और राष्ट्रवाद स्वीकार्य नहीं वह हमें स्वीकार नहीं हो सकता.