गुरुवार, 6 जनवरी 2022

गांधी जी राष्ट्रपिता या कांग्रेस के पैगम्बर ?

 








गांधी वाद या पैगम्बरवाद  

 रायपुर में धर्म संसद में गांधीजी के लिए अमर्यादित भाषा का प्रयोग करने के कारण संत  कालीचरण महाराज के विरुध्द धारा 294, 505(2) 153 अ (1)(अ), 153 इ (1)(अ), 295,505(1)(इ), 124अ के अंतर्गत छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में मुकदमें दर्ज किये गये. छत्तीसगढ़ पुलिस ने आनन-फानन में उन्हें भी  गिरफ्तार कर लिया. वहां से महाराष्ट्र पुलिस भी उन्हें गिरफ्तार करके पुणे ले गयी. जिन धाराओं में मुकदमा पंजीकृत किया गया है उनमें राजद्रोह और विभिन्न समुदायों के बीच वैमनष्यता उत्पन्न करना शामिल है. ये अपने आप में प्रश्न है कि कैसे कालीचरण महाराज का भाषण देश द्रोह और दो समुदायों में वैमनष्यता  की श्रेणी में आ गया.

इस समय  पूरे देश में बहस चल रही  है कि क्या  कांग्रेस गांधी को पैगम्बर मानती है ? और अगर मानती है तो क्यों ? आजकल तो पैगंबर पर भी  बात हो रही  है, राम और कृष्ण पर बात हो रही  है, तो फिर गांधी क्या इन सबसे ऊपर है जो उन पर चर्चा भी नहीं की जा सकती.

आइये विश्लेषण करते हैं.

अमर्यादित भाषा  का समर्थन नहीं किया जा सकता है चाहे  संत कालीचरण हों या कोई और  लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर  चुप भी नहीं रहा जा सकता है.   जिस तरह कांग्रेस शासित प्रदेशों ने ताबड़तोड़ कार्यवाही की है उससे भ्रम होता  है कि क्या इन  प्रदेशों में गांधी जी के पैगम्बारवाद लिए ईश निंदा का कानून लागू है. 





"गांधी  वाज दि  बेस्ट पुलिसमेन, दि  ब्रिटिश एवर हैड  इन इंडिया" (गांधी  भारत में ब्रिटेन के सबसे अच्छी पुलिसकर्मी थे. यह  मैं नहीं कह रहा हूं यह बात ब्रिटिश संसद सदस्य एलेन विलकिंसन जो लेबर पार्टी  की नेता थीं  और १९४५ से फरवरी 1947 तक ब्रिटेन की  शिक्षा मंत्री थीं,  ने कही थी.  ऐसे अनेक प्रख्यात व्यक्ति हैं जिन्होंने गांधीजी  पर  इस  तरह की टिप्पणियां की है. अब तक जो नए खुलासे हुए हैं और जो बातें सामने आई है वे सब  भारतीय जनमानस में में गांधी की छवि  के विपरीत हैं.जो भी हो सच्चाई सामने आनी ही चाहिए और  सूचना और प्रौद्योगिकी के इस युग में कोई चाहे भी तो सच्चाई को छुपाया नहीं जा सकता.


 


सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया  के पूर्व अध्यक्ष मारकंडे  काटजू अपने ब्लॉग में लिखा है  कि "गांधीजी एक ब्रिटिश एजेंट थे  और  उन्होंने देश का कितना  नुकशान किया इसकी कल्पना नही की जा सकती. उन्होंने वह  सब  किया जो ब्रिटिश चाहते थे ताकि भारत में ब्रिटेन की सत्ता निसकंटक  और निर्बाध रूप से चलती रहे.  गांधी ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ चल रहे क्रांतिकारी आंदोलन, जिसे रामप्रसाद बिस्मिल (जिन्होंने 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' गीत लिखा था), चंद्रशेखर आजाद,भगत सिंह राजगुरु जैसे क्रांतिकारी चला रहे थे, को असफल कर दिया। गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम के  इस क्रांतिकारी आंदोलन के स्थान  पर  सत्याग्रह के नाम से एक  आंदोलन चलाया  ताकि अंग्रेजों  को कोई असुविधा  न हो. इससे अधिक भारत में ब्रिटिश सरकार की कोई सहायता  नहीं की जा सकती थी. ऐसा कोई आंदोलन जो  ब्रिटिश  सरकार के खिलाफ कारगर  होता दिखाई पड़ता, गांधी उसे  बीच में ही रोक देते थे. उन्होंने सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया और हमेशा मुसलमानों का पक्ष लिया." यह बातें  काटजू के ब्लॉग  पर उपलब्ध है.



क्लेमेंट अटली जो  १९४५ से १९५१ तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे, ने कहा था कि भारत को स्वतंत्रता दिलाने में प्रथम द्रष्टया  नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की सेना का बहुत बड़ा हाथ था  जबकि अहिंसा और सत्याग्रह आन्दोलन की भूमिका अत्यंत सीमित थी जैसा कि जी डी बक्शी की  किताब  "बोस एन इंडियन समुराई"  उद्धृत किया गया है. 




संविधान निर्माता बाबा साहेब भीराव आंबेडकर ने  खुले तौर पर  गांधीजी  की आलोचना की थी. उन्होंने गांधीजी  को महात्मा मानने से भी इनकार कर दिया था. डॉ भीम राव आंबेडकर ने अपनी पुस्तक "व्हॉट काँग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स?"में गांधी और कांग्रेस दोनों पर  ढोंग करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा था कि हजारों साल पहले भगवान बुद्ध ने दुनिया को सत्य और अहिंसा का संदेश दिया था?   अज्ञानी मूर्ख  के अलावा कोई भी गांधी को इसका श्रेय नहीं देगा. उन्होंने  कहा था कि छल और कपट दुर्बलों के हथियार हैं. और, गांधी ने हमेशा इन .हथियारों का इस्तेमाल किया है. उन्होंने महात्मा गांधी की राजनीति को बेईमान राजनीति की संज्ञा दी थी. आंबेडकर ने कहा था कि गांधी राजनीति से नैतिकता को खत्म करने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति हैं और, उन्होंने भारतीय राजनीति में व्यावसायिकता की शुरुआत की.

 

यह भी एक तथ्य है कि  हम सभी भारतवासियों  को गांधी जी के प्रति सम्मान संस्कारों से मिला है. बचपन से घर में, स्कूल में, कहानियों में, इतिहास  में जहाँ कहीं जो भी पढ़ा है उसमें गांधी जी का बहुत गुणगान किया गया है.  हर जगह  यह बताया गया है कि  गांधीजी ने बिना खड़ग, बिना ढाल के अहिंसा की  दम पर भारत को आजादी दिलवा दी. किसी  के भी  मन में गांधी के  इस महिमामंडन के प्रति अविश्वास भी पैदा नहीं होता क्योंकि उन्हें साबरमती का संत, महात्मा और यहां तक कि राष्ट्रपिता तक बना दिया गया. खुद  गांधी जी ने भी अपनी आत्मकथा और  अन्य किताबों  में अपनी छवि को बेहद करीने से ऐसे प्रस्तुत किया हैं जिसकी  वास्तविकता पर भ्रम होने लगता है .  

सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में जब सोशल मीडिया पर प्रत्येक विषय पर खुलकर चर्चा होती है, गांधीजी के बारे में भी बहुत सी नयी  बातें  सामने आ रही हैं. विदेशी इतिहासकारों और लेखकों की बातें जिन्हें  भारत में जानबूझकर छुपाया गया था, आज  उन पर व्यापक चर्चा हो रही है. प्रोफेसर कपिल कुमार की एक नयी  किताब शीघ्र  ही आने वाली है, जिसमें  "ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर " से सम्बंधित नए खुलासे आने वाले हैं.    


आजादी के कुछ पहले से बहुत सी  बातों को लेकर गांधीजी के खिलाफ पूरे देश में बहुत भयंकर आक्रोश था. गांधी जी  ने भारत के लोगों से जो कहा उसका ठीक उल्टा किया उन्होंने कहा था कि देश का बंटवारा उनकी लाश पर होगा लेकिन उन्होंने पाकिस्तान बनाने के प्रस्ताव को स्वयं स्वीकार किया, जो  जिन्ना के अलावा केवल ब्रिटिश सरकार की  इच्छा थी. अहिंसा के जिस  अस्त्र  का इतना ढिंढोरा पीटा जाता है, वह उस समय एकदम  बेकार साबित हुआ जब बंटवारे के कारण भयानक  हिंदू मुस्लिम दंगे हुए और लाखों लोग दंगों की भेंट चढ़ गए. गांधीजी की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति ने  हिंदुओं का  सबसे अधिक अहित  किया, जिसका खामियाजा हिंदू समुदाय आज तक भुगत रहा है. गांधीजी  पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान को जोड़ने के लिए भारत के बीच से एक कॉरिडोर देने पर भी सहमत  थे, जिसके लिए स्वयं जवाहरलाल नेहरू भी  तैयार नहीं थे. उन्होंने पाकिस्तान को पचपन करोड़ों रुपए की सहायता देने का दबाव बनाया और इसके लिए अनशन शुरू कर दिया, किन्तु भारी विरोध के   कारण यह धन  राशि पाकिस्तान को नहीं  मिल  सकी जो उनकी हत्या के विभिन्न कारणों में से एक था. जब वह अनशन पर थे तो बाहर “गांधी को मर जाने दो” जैसे नारे भी लगते थे.



गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग से लोग आश्चर्यचकित थे और बेहद गुस्से में थे. उम्र के उस पड़ाव पर जब इन्द्रियां स्वयं शिथिल पड़ने लगती हैं, इस तरह के प्रयोग का क्या औचित्य था, यह आज भी समझ से परे है. आज उन प्रयोगे के लगभग ७० साल बाद भी आम जनमानस इसे स्वीकार नहीं कर सकता  तो उस समय क्या स्थिति रही होगी, समझना मुश्किल नहीं.     

 

पाकिस्तान से आये शरणार्थी,  जो दिल्ली में जामा मस्जिद सहित ऐसी अन्य जगहों पर ठहरे हुए  थे, जो मुस्लिमों  के पाकिस्तान जाने से खाली  हुये  थे,  उन्हें गांधी जी के कहने से जबरदस्ती  उस समय बाहर निकाला गया जब दिल्ली में कड़ाके की ठण्ड पड रही थी. बहुत सी बातें आज सोशल मीडिया में हैं और लोग गांधी को महात्मा के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं. तैयार तो उस समय भी नहीं थे लेकिन सुनियोजित  रूप से  कांग्रेस ने  अपने हित में उन्हें इतना  महान बनाया कि उसी महानता की पूंजी आज तक खा रही हैं.


गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा भी कांग्रेस ने दिया जिसे कोई  सामान्य बुद्धि और विवेक का व्यक्ति स्वीकार नहीं कर सकता. भारत एक सनातन देश है और सभ्यता और  संस्कृति विश्व में सबसे  पुरानी है, जहाँ  पृथ्वी को माता मना जाता हो, राष्ट्र  को भारत माता कहा जाता हो और उसे देवी का दर्जा दिया जाता हो, वहां गांधी जी जैसे व्यक्ति को राष्ट्रपिता का दर्जा देना बेहद चालाकी भरा कदम है.  अच्छा तो यह होता कि  गांधी स्वयं इसका विरोध करते.  कांग्रेस द्वारा  गांधी जी के विरोधियों के बारे में बहुत  दुष्प्रचार किया गया और  उनका नाम इतिहास  से भी मिटाने की कोशिश की गयी. आज जैसे जैसे लोगों में जागरूकता बढ़ रही है, गांधीवाद का तिलिस्म टूट रहा है और उसी गति से कांग्रेस की राजनैतिक पूंजी समाप्त  होती जा रही है. कांग्रेस गांधी को पैगम्बर बना कर  कई हिंदूवादी संगठनो और महान देशभक्तों को बदनाम करने का दुष्चक्र चलाती रही है.


आज भी कांग्रेस की चिंता  अपने  पैगम्बर की छवि  बचाने से ज्यादा अपना राजनैतिक भविष्य बचाने की है  क्योंकि जब असली गांधी की छवि विकृति हो जायेगी तो नकली गांधियों का क्या होगा, ये समझना बेहद आसान है.



-    -    - शिव मिश्रा           

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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