गुरुवार, 18 मार्च 2021

बाटला हाउस का फैसला : छद्म धर्मनिरपेक्षता का मुंह काला

आखिर अदालत ने उन सभी छद्म धर्मनिरपेक्ष नेताओं के मुहं पर करारा  तमाचा मारा है जिन्होंने  2008 में हुए बाटला हाउस एनकाउंटर को फर्जी बताया था  यद्यपि उस समय केंद्र में कांग्रेस का शासन था  और दिल्ली पुलिस केंद्र के अधीन  होती है.  सत्ता हासिल करने के लिए देश की एकता और अखण्डता का सौदा करने वाले  इन स्वार्थी नेताओं ने शहीद पुलिस इंस्पेक्टर  मोहन चंद्र शर्मा की शहादत पर भी प्रश्न चिन्ह लगा  दिया था और समूची पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों का मनोबल कमजोर  करने का काम किया था.

अदालत ने बाटला एनकाउंटर को इसे "दुर्लभ मामलों में सबसे दुर्लभ मामला कहा और मुठभेड़ में पुलिस इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की हत्या करने वाले  इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी अरीज़ खान को मौत की सजा का आदेश दिया। 

आतंकी  अरिज   खान  उर्फ़  जुनैद कभी आतंक की फैक्ट्री कहे जाने वाले आजमगढ़ का निवासी है और , दिल्ली, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में 2008 के सिलसिलेवार विस्फोटों का मास्टरमाइंड भी हैं। 2008 में राष्ट्रीय राजधानी के अलावा जयपुर और अहमदाबाद जैसे शहरों को भी उसने बम धमाको से दहला दिया था, जिसमें १६५ लोग मारे गए थे और ५०० से भी अधिक घायल हुए थे . उस पर इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस के अलावा रु 15 लाख का इनाम घोषित किया गया था। 

इस तरह की घटनाओं में शामिल आतंकवादियों की  शैक्षणिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि को लेकर जो  अन्वेषण की गई हैं  उनके तथ्य आश्चर्यजनक रूप से चिंतित करने वाले हैं.  आरिफ नाम के इस  आतंकवादी  ने मुजफ्फरनगर के एसडी इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक  किया है  और यह यह  एक विस्फोटक विशेषज्ञ है।  इसके चाचा पूर्व आईएएस अधिकारी हैं  और परिवार के ज्यादातर सदस्य अच्छी शैक्षणिक पृष्ठभूमि के हैं.  फिर सवाल उठता है कि ऐसे लोग अपने कैरियर बनाने की वजह आतंक की दुनिया  में क्यों प्रवेश  करते हैं ?  लोग लाख  कहें कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता लेकिन ज्यादातर आतंकी धर्म से प्रभावित होकर या धार्मिक कृत्य करने के लिए ही  आतंक की दुनिया में प्रवेश करते हैं .  मदरसों में दी  जारी  शुरुआती शिक्षा इसका एक बड़ा कारण हो सकता है.  अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी ने सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की है जिसमें उन्होंने मदरसे में दी जा रही खतरनाक धार्मिक शिक्षा पर सवाल उठाया है और 26 आयतों का जिक्र किया है जिनके कारण कम उम्र के नौनिहालों का   मस्तिष्क प्रभावित करने का कार्य किया जाता है.  जो भी हो सरकार को चाहिए कि समान नागरिक संहिता लागू हो ना हो लेकिन  पूरे देश में  समान शिक्षा व्यवस्था  जरूर लागू होनी चाहिए. 

 उस समय राजनेताओं के एक बड़े समूह ने जिनकी  गिद्ध दृष्टि हमेशा मुस्लिम वोट बैंक पर रहती है  ने न केवल बाटला हाउस एनकाउंटर को फर्जी करार दिया था बल्कि मुस्लिम युवकों की हत्या के लिए दिल्ली पुलिस को दोषी ठहराया था. 

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने उस समय कहा था  कि मैंने  जब बाटला हाउस  हादसे की तस्वीरें  के सोनिया गांधी को दिखाई  तो उनके आंसू फूट पड़े और उन्होंने हाथ जोड़कर कहा कि कृपया यह फोटो हमें मत दिखाइए. 






कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह भी कहां पीछे रहने वाले थे उन्होंने भी कांग्रेस के तुष्टिकरण आन्दोलन को और आगे बढ़ाया “मैं शुरू से इस बात को  कह रहा हूं, उस  पर मैं आज भी कायम हूं, मेरी नजर में यह एनकाउंटर सही नहीं है”.

तृणमूल कांग्रेस की सर्वे सर्वा  ममता बनर्जी ने कहा था कि बाटला हाउस फेक एनकाउंटर है.  यह कहने के लिए  कोई कहे कि तुम्हारा  गर्दन ले लेंगे  तो हम गर्दन दे देंगे. अगर यह एनकाउंटर सच साबित होता है तो हम राजनीति छोड़ देंगे.” आज कोई हमसे पूछे कि इतना बड़ा झूठ बोलने के बाद अब जबकि मामला  पूरी तरह  सच साबित  हो गया है तो वह राजनीति में क्यों है ?  


अभी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने कहा बाटला हाउस एनकाउंटर के ऊपर जो प्रश्न  चिन्ह लगे हैं, पुलिस एनकाउंटर के बाद जो बातें बोलती है और जो  थ्योरी  देती है वह सही नहीं हैं .  इसलिए पूरी कौम को बदनाम करना उचित नहीं है. 


 यह  कुछ नाम है, वैसे तो ज्यादातर  राजनीतिक दलों ने इस मुठभेड़ को फर्जी बताया था.  इन सब नेताओं के बयानों से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि हर कोई  बेहद जल्दबाजी में  था ताकि  तुष्टीकरण की प्रतियोगिता में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके. आम आदमी पार्टी ने तो कुछ मुस्लिम नेताओं के साथ बैठक कर उनको आश्वासन दिया कि उन्होंने प्रशांत भूषण के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था जिसने  इतने प्रमाण इकट्ठे कर लिए हैं,  जिन से आसानी से सिद्ध होता है कि यह फर्जी मुठभेड़ थी  और वह सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर करके एक स्वतंत्र जांच कमेटी बनाने की मांग रखेंगे ताकि पीड़ित पक्ष  ( मुठभेड़ में मारे गए आतंकवादियों ) को न्याय मिल सके. 

यह सब भारत में मुस्लिम तुष्टीकरण के  नये निम्न स्तर के अलावा कुछ भी नहीं था, राष्ट्र की कीमत पर वोटों की फसल काटने वाली स्वार्थी राजनेताओं यह जान कर भी अंजान बने रहे  कि आतंकवादियों का अंतिम उद्देश्य क्या था?  दिल्ली पुलिस के एक इंस्पेक्टर का मरना उनके लिए कोई महत्व नहीं रखता.  कुछ नेताओं को देख कर तो ऐसा लगता है कि शायद   उनका  जन्म ही  अराजकता फैलाने और मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए हुआ है. 

कहते हैं कि समय का पहिया हमेशा घूमता रहता है. कुछ लोग शहर अपने आप को समय के अनुकूल डाल लेते हैं और कुछ लोगों को समय बदलने के लिए मजबूर कर देता है.  भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के उदय होने के बाद हिन्दू जन  जागरण की जो ज्योति प्रज्वलित हुई थी वह   उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ के उदय से और प्रखर होकर ज्वाला बन चुकी हैं. इसकी शुरुआत राहुल की मंदिर परिक्रमा, जनेऊ धारी ब्राह्मण बनने, और  गोत्र की खोज करने  और प्रचारित करने से हुई. इस प्रक्रिया में लगातार तेजी आती जा रही है . अरविंद केजरीवाल जिन्होंने ढांचे की जगह राम मंदिर बनाने का विरोध किया था, शाहीन साजिश में नकारात्मक भूमिका निभाई ,  किन्तु दिल्ली चुनाव के समय हनुमान भक्त हो गए और राम मंदिर के शिलान्यास के समय निमंत्रण की बाट जोह रहे थे और  अब दिल्ली के बुजुर्गों को राम मंदिर दर्शन के लिए अयोध्या भेजने की योजना बना रहे हैं . 

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस  का मुख्यमंत्री  चेहरा प्रियंका गांधी  संगम  में   डुबकी  लगा रही हैं  और पूजा पाठ कर रही हैं.  पश्चिम बंगाल में मस्जिद के  इमामों को वेतन और भत्ते स्वीकृत करने, दुर्गा विसर्जन पर रोक लगाने, सरस्वती पूजा रोकने ,  जय श्री राम के नारे  पर  आग बबूला होने और पिछले १० वर्षों से तुष्टिकरण की सारी सीमाएं लांघने के बाद अब सार्वजनिक मंचों पर चंडी पाठ  कर  रही है,  मंदिर परिक्रमा शुरू कर रही हैं,  अपने आप को  हिंदू और  ब्राह्मण बता रही हैं. 

क्यों हो रहा है यह सब ? क्योंकि अब खेल के नियम बदल रहें हैं. अब   हिन्दुओं में तुष्टिकरण के विरुद्ध  जागरूकता और एकजुटता बढ़  रही है . राजनीति के  बेईमान  परजीवी अब तक 30% थोक वोट बैंक  के सहारे चुनाव जीतते थी और बची खुची कमी चुनाव में दंगा फसाद करने और मतपत्र लूटने से कर  लिया जाता था जिसके लिए बाहुबलियों से अनुबंध भी कर लिया जाता था. ईवीएम के कारण बाहुबलियों का खेल ख़तम हो गया है. अब 30 % वोटों के  सहारे चुनाव जीतना मुश्किल है तब जबकि  उसके भी कई दावेदार मैदान में आ गए  हों . . 

पहले इन नेताओं को लगता था  कि जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है इसलिए कुछ भी कह कर और कुछ भी करके निकल जाएंगे किन्तु  अब समय बदल  गया है, अब  जनता  इन पर लगातार नजर रख रही है  और सवाल पूछ रही है.इसलिए अब हिन्दू बनना जरूरी है. लगता है कि हिंदुस्तान के अच्छे दिन आ रहे हैं .  

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- शिव प्रकाश मिश्रा

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