भारत में तो हिंदू फोबिया बहुत पहले से अपने चरम पर थी ही लेकिन अब कुछ समय से ही बड़ी तीव्र गति से इसका अंतरराष्ट्रीयकरण होना शुरू हो
गया है. हिंदू फोबिया का अर्थ है हिंदू धर्म के प्रति पूर्वाग्रह या घृणा की भावना.
जिन लोंगो के अंदर हिंदू धर्म के प्रति नफरत की भावना होती है, वे हिंदू धर्म और हिंदुओं को लांछित और अपमानित करने
का हर स्तर हर पर संभव प्रयास करते हैं. इसके
लिए प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया पर अभियान चलाए जाते हैं, झूठे विमर्श
गढ़े जाते हैं, झूठे समाचार बनाए जाते हैं, झूठ पर आधारित पुस्तकें लिखी जाती है और
फिर इन पुस्तकों को सोशल मीडिया और दूसरे प्लेटफॉर्म पर संदर्भित किया जाता है,
जिसमें हिंदुओं और हिंदू धर्म के प्रति मनगढ़ंत बातें लिखी होती है. इस सब का
उद्देश्य हिंदू धर्म को निशाना बनाकर उसे कट्टर और असहिष्णु बताना होता है जिससे सामाजिक
रूप से हिन्दुओं को नीचा दिखाया जा सके और हिन्दुओं की नयी पीढी के अंदर भी अपने
धर्म के प्रति आस्था कमजोर कि जा सके ताकि पढ़े लिखे प्रबुद्ध, धार्मिक और साधन
संपन्न हिंदुओं का भी धर्मांतरण आसानी से किया जा सके.
हाल ही में उत्तर प्रदेश के दुर्दांत माफिया, जो दुर्भाग्य से तुष्टिकरण
आधारित परिवारवादी पार्टियों के सहयोग और संरक्षण से सांसद और विधायक भी रहा, की
पुलिस हिरासत में हुई हत्या की केवल देश
में ही नहीं विदेशों में भी कुछ इस तरह से
निंदा की गई कि जैसे किसी बड़े समाजसेवी राष्ट्रभक्त की हत्या केवल इसलिए की गई
क्योंकि वह अल्पसंख्यक समाज से था. ओवैसी आज भी अतीक की हत्या को बार बार एनकाउंटर
बताते हैं, और हिंदू फोबिया से ग्रस्त विदेशी मीडिया तथा मुस्लिम देशों की मीडिया
भी इसे समुदाय विशेष के पूर्व सांसद पूर्व विधायक और रॉबिनहुड छवि वाले व्यक्ति की
पुलिस द्वारा निर्मम हत्या बताता है. अतीक के आतंक के बारे में सभी खामोश हैं. उसे
ऐसा लगता है कि एक समुदाय विशेष के व्यक्ति की हत्या, चाहे वह देश और समाज के लिए कितना
ही खतरनाक और विध्वंसक क्यों न हो, पूरे हिंदू समाज, पूरे राष्ट्र और हिंदू धर्म
को लांछित और अपमानित किया जाएगा.
समुदाय विशेष के व्यक्तियों के साथ हुई सामान्य घटनाओं को भी इतना बढ़ा
चढ़ाकर पेश किया जाता है और यह बताने की कोशिश की जाती है कि भारत में मजहब विशेष
के लोग खतरे में है, उन पर अत्याचार किया जा रहा है. भारत में हिंदू फोबिया के
इतने अधिक गिरोह सक्रिय है, कि वे वीडियो में काट
छांटकर पुराने वीडियो लगाकर भ्रामक समाचार फैलातें है. दुर्भाग्य से केंद्र सरकार
भी उन पर नियंत्रण नहीं कर पा रही है और कई बार तो ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार और
राज्य सरकारे, हिंदुओं पर कार्रवाई करने
के लिए हिंदूफोबिक गैंग द्वारा प्रसारित झूठे और कपटपूर्ण समाचारों का इंतजार करती
है. गुजरात सरकार द्वारा काजल हिन्दुस्तानी की गिरफ्तारी इसका ताजा उदाहरण है.
हाल में अमेरिका ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में हुई कुछ घटनाएं इन देशों
में बढ़ती हिंदू फोबिया का उदाहरण है. ब्रिटेन में हिंदुओं और मंदिरों पर हमले किए
जाते हैं और वहाँ की सरकार असहाय बनी रहती
है. ऑस्ट्रेलिया में भी मंदिरों पर हमले और हिंदुओं के प्रति भेदभाव बेहद सामान्य
है. सबसे ज्यादा चिंतित करने वाली घटनाएं अमेरिका में हो रही है जिससे शायद
अमेरिका की राजनीति उसी तरह बेखबर है जैसे भारत में. आजादी के बाद भारत में नेहरू
ने एक समुदाय विशेष को वोट बैंक बनाने के लिए वह सबकुछ किया जो संभव था. उसके बाद कांग्रेस
ने सत्ता बनाए रखने के लिए समुदाय विशेष को संतुष्ट करने के लिए इतना किया कि देश
की एकता और अखंडता को भी दांव पर लगा दिया लेकिन यह समुदाय संतुष्ट नहीं हुआ.
इसलिए उनके प्रयास से तुष्टीकरण को किसी
सीमा में न बांधने वाले क्षेत्रीय दल उभर आए जिन्होंने समुदाय विशेष की गैरकानूनी
और देश विरोधी गतिविधियों को अनदेखा किया और कुछ भी करने की खुली छूट दे दी.
समुदाय विशेष के बहुत लोग इससे भी संतुष्ट
नहीं हए क्योंकि उनका उद्देश्य अपनी समाज की गरीबी दूर कर शिक्षा और संपन्नता लाना
नहीं बल्कि भारत को काफिरों से मुक्त कर इस्लामिक राष्ट्र बनाना लगता है. इसलिए
सनातन विरोधी लॉबी ने भारत की जातिगत संरचना का लाभ उठाकर नए ध्रुवीकरण बनाने की योजना बनायी. जिसके अनुसार
समुदाय विशेष के साथ दलित, आदिवासी और पिछड़े लोगों को जोड़ कर सत्ता हासिल करना और इस्लामिक राष्ट्र बनाने के सपने को साकार करना
है. बाद में इन दलित आदिवासी और पिछड़े लोगों का क्या होगा ये बताने की आवश्यकता
नहीं. पाकिस्तान और बांग्लादेश इसके उदाहरण हैं. पीएफआई से बरामद किए गए दस्तावेज़
में इसका उल्लेख है.
भारत में चालाकी भरी इस सोशल इंजीनियरिंग का उल्लेखनीय फायदा भी हुआ
और कई राज्यों में ऐसी सरकारें बनीं जिन्होंने समुदाय विशेष के लिए सब कुछ झोंक
दिया और उनके समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. गजवा ए हिंद का सुचारू रूप से चलने लगा. भारत
में प्राप्त की गई इस सफलता को अब विदेशों में दोहराया जा रहा है. इसकी शुरुआत अमेरिका में हो रही है जहाँ पर
हिन्दुओं की जाति गति संरचना को उभारकर एक
वोट बैंक तैयार करने की कोशिश की जा रही है ताकि उन्हें राजनीतिक समर्थन हासिल हो
सके और वे अपना काम खुलकर कर सके. इसकी शुरुआत 2018 में हुई जब भारतीय दलितों के
कंधे पर बंदूक रखकर इक्वैलिटी लैब की स्थापना की गयी जिसका उद्देश्य केवल हिंदू
धर्म और हिंदुओं को अपमानित करना ही नहीं है बल्कि हिंदूओं का अमेरिका में प्रवेश
रोकना और नागरिकता मिलने में अड़चनें डालना भी है. इसके पीछे सभी हिंदू फोबिक संगठन, और वामपंथ-इस्लामिक गठजोड़
की लॉबी है.
इक्वैलिटी लैब ने एक चालाकी भरा सर्वे किया जिसका नाम रखा गया “अमेरिका
में जातियां, - दक्षिण एशियाई अमेरिकियों में जाति-गत सर्वे”. इस सर्वे रिपोर्ट की
शुरुआत में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की फोटो लगाई गई है और जिसके नीचे उन्हें कोट
करते हुए लिखा गया है कि “अगर हिंदू विश्व के अन्य देशों में जाकर बसते है तो
जातिगत भेदभाव वैश्विक समस्या हो जाएगी.” इस सर्वे रिपोर्ट को छद्म वैज्ञानिक जामा
पहनाते हुए वही सब कुछ दर्शाया गया है जो भारत में उच्च जातियों के विरुद्ध वर्षों
से कहा सुना जा रहा है. समझा जा सकता है कि इस जातिगत सर्वे का उद्देश्य केवल
भारतीय हिंदू समाज की उच्च जातियों को निशाना बनाना
है ताकि अमेरिका में भी हिंदू समाज के बीच जातिगत भावना को धार दी जा सके और उच्च
जातियों का उत्पीड़न किया जाए और कुछ कुछ वैसा ही वातावरण बनाया जाए जैसा भारत में
एससीएसटी एक्ट लागू करने के पहले और बाद में बनाया गया था जिससे से दलितों का कितना फायदा
हुआ ये तो पता नहीं लेकिन हिंदू समाज का जितना नुकसान हुआ उसकी भरपाई संभवत: कभी
नहीं की जा सकेगी.
इक्वालिटी लैब की तय योजना को आगे बढ़ते हुए अफगान मूल की एक मुस्लिम
अमेरिकी महिला और कैलिफोर्निया की डेमोक्रेट सीनेटर आयशा बहाब ने एसबी-403 नाम से
कानून का एक मसौदा तैयार किया जिसके अनुसार राज्य के रंगभेद के लिए बनाए गए भेदभाव
विरोधी कानून में जातिगत भेदभाव को भी जोड़ा जा सके. अनेक संगठनों और पीढ़ियों से
वहाँ रह रहे भारतीयों के भारी विरोध के
बावजूद, कानून के इस मसौदे को सीनेट की न्यायिक कमेटी ने 8-0 के पूर्ण बहुमत से
अनुमोदित भी कर दिया है. जिसे कानून बनाने के लिए अब आगे भेज दिया गया है. अगर यह
कानून बन जाता है तो कैलिफोर्निया अमेरिका का पहला ऐसा राज्य होगा जहाँ इक्वैलिटी
लैब की हिंदू फोबिक पॉलिटिकल प्रयोगशाला काम करना शुरू कर देगी.
यह जान लेना अत्यंत आवश्यक है कि कैलिफोर्निया अमेरिका का सर्वाधिक
जनसंख्या वाला राज्य है, और सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित बड़ी और नामी गिरामी
कंपनियां कंपनियों के मुख्यालय यहाँ पर है और उनमें बड़ी संख्या में भारतीय काम
करते हैं. इस कानून के पहले ही सिस्को और गूगल जैसी कंपनियां भेदभाव आधारित वर्तमान
कानूनों के अंतर्गत दायर किए गए मुकदमे का सामना कर रही है. इस तरह का कानून बन
जाने के बाद मुकदमो की संख्या कितनी गुना बढ़ जाएगी, और इन कंपनियों का कितना
नुकसान होगा, इसका अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है. इसलिए कंपनियां भी डरी हुई है और
वे भारतीय भी जो संभावित रूप से इस नए कानून का शिकार होने वाले हैं. इसकी परिणिति
यह होगी कि कैलिफोर्निया में स्थापित कोई भी कंपनी या व्यापारिक समूह भारत से खासतौर से सवर्ण जातियों से
नियुक्तियां करने से बचेगा. इसका एक प्रतिफल यह भी होगा कि कैलिफोर्निया आधारित ये
कंपनियां विश्व के किसी भी देश में काम कर रही होंगी उन्हें तो भी उस देश में भी
इस कानून का पालन करना होगा. इसलिए गूगल, ओरेकल और सिस्को जैसी कंपनियों के लिए
भारत में कार्य करना अत्यंत दुष्कर हो जाएगा. इसके पहले सीएटल (वॉशिंग्टन) में भी जातिगत भेदभाव को रंगभेद / भेदभाव विरोधी कानून में शामिल कर चुका है यह उल्लेखनीय
है कि यहाँ पर माइक्रोसॉफ्ट का मुख्यालय है, जिसमें भी भारतीय कर्मचारियों की
अधिकता है. जातिगत भेदभाव विरोधी कानून के लिए इन राज्यों का चयन एक सोची समझी
रणनीति का हिस्सा है.
अमेरिका, ब्रिटेन और कई पश्चिमी देशों में किए
गए विभिन्न सर्वे में ये बात सामने आई है कि हिंदू बच्चों के साथ स्कूलों में
अवांछित टिप्पणियां की जाती है. उनके प्रतीक चिन्हों, पूजा पद्धतियों, रहन सहन और
पहनावे पर कटाक्ष किए जाते हैं. उन पर मजाक बनाएं जाते हैं और सोशल मीडिया में
प्रसारित किए जाते हैं. इन सबका परिणाम होता है कि इन बच्चों के मन मस्तिष्क में
अपने धर्म के प्रति आस्था डगमगा जाती है. हाल ही में अपनी दो महीने की अमेरिका
यात्रा के दौरान मैं कई ऐसे भारतीयों से मिला जो दशकों से वहाँ रह रहे हैं और
अमेरिका के नागरिक हैं. उनकी वर्तमान पीढ़ी परंपरागत भारतीय और धार्मिक रीति
रिवाजों का पूर्ण रूप से न सही लेकिन काफी हद तक पालन करती है लेकिन उनकी अगली
पीढ़ी हिंदू धर्म से लगभग विमुख हो गई लगती है और उनके अंदर धर्म के प्रति कोई
आकर्षण नहीं है. मैंने देखा, ये संयोग भी हो सकता है, कि ऐसे अधिकांश परिवारों के लड़के
और लड़कियां अन्य धर्मों विशेषतया क्रिश्चियन के लड़के लड़कियों के साथ या तो शादी
करते है या लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं. इस बात की संभावना बहुत अधिक है कि इन हिंदू परिवारों में अधिकांश की अगली पीढ़ी हिंदू
नहीं होगी. मैंने महसूस किया कि भारत में
क्रिश्चियन मिशनरी आक्रामक ढंग से धर्मांतरण कराते हैं, यही कार्य अमेरिका
में बहुत शांति और सहजता से किया जा रहा है.
भारत सरकार भारत में ही हिंदू फोबिया को
रोकने में सफल नहीं हो पा रही है, फिर भी उससे निवेदन है कि हिंदू फोबिया पर अंकुश
लगाने के लिए संबंधित सरकारों के समक्ष मामला उठा कर सख्ती से कार्यवाही के लिए
दबाव बनाया जाए.
~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~