बुधवार, 1 सितंबर 2021

" क्या मुगल असली राष्ट्र निर्माता हैं, और मुस्लिम शासकों को बदनाम करना हिन्दुओं की फितरत है"

 

भारत में जितने भी विदेशी आक्रांताओं ने आक्रमण किए वह वह सभी लुटेरे थे जो धन संपत्ति लूटने के लिए भारत में आते थे.

सबसे पहला आक्रमण 711 ईसवी में मोहम्मद बिन कासिम ने किया और उसके बाद महमूद गजनवी ने 17 बार भारत पर आक्रमण किया, कितनी धन-संपत्ति सोना चांदी लूटी इसका अनुमान स्वयं उसके द्वारा बताए गए विवरण के आधार पर किया जाए तो भी यह आज के हिसाब से भी इतनी अधिक थी कि शायद सहज विश्वास न हो.

इसके बाद धन संपत्ति के लालच में लुटेरों के लगातार आक्रमण होते रहे. गजनी के बाद गोरी और उसके बाद चंगेज खां ने भारत पर आक्रमण किया. 1526 में बाबर नाम के लुटेरे ने भी भारत पर आक्रमण किया और उसकी लूट का विवरण बाबरनामा में दिया गया है, वह चकित करने वाला है . लूट के समय बाबर ने छल कपट का सहारा लिया और संपत्ति लूटने के बाद तालाबों और नदियों में जहर भी मिलवाया . उसने महसूस किया कि भारत के लोग उसे बेहद नफरत करते हैं लेकिन लुटेरों से बहुत डरते हैं और इसलिए उसने यहां हुकूमत करने का निर्णय लिया और उसका वंश मुग़ल वंश कहलाया .

इन सभी आक्रमणकारी धन संपत्ति लूटने के अलावा हिंदू महिलाओं को जबरन उठा ले जाते थे और उन्हें सेक्स स्लेव बनाते थे. इन महिलाओं को लुटेरों और उनके दोस्तों में अय्याशी करने के लिए बांट दिया जाता था. इन किस्मत की मारी हिंदू महिलाओं पर कितने अत्याचार किए जाते थे इसका वर्णन तो छोड़िए कल्पना करना भी बहुत मुश्किल है. इसकी थोड़ी सी झलक उन मुस्लिम इतिहासकारों की कुछ किताबों से मिलती है जो इन आतंकवादियों / आक्रांताओं के साथ भारत आए थे और जिन्होंने इन आक्रांताओं के कथनानुसार ही इतिहास लिखा था. जो वर्णन है वह दिल दहलाने के साथ ही समस्त मानवता के लिए लज्जा से सर झुकाने वाला है.

इन किस्मत की मारी हिंदू महिलाओं की जुल्म और सितम की कहानियां दिल दहलाने वाली हैं . इनसे तो कोई निकाह भी नहीं करता था और इसलिए उनकी संतानों को उनके अब्बा का नाम भी नसीब नहीं होता था लेकिन इन अवैध संतानों को एक चीज अवश्य मिलती थी और वह था जन्मजात इस्लाम धर्म.

इन महिलाओं ने करुण क्रंदन करते समय यह कामना की थी कि इनकी संताने इन पर जुल्म ढाने वालों से बदला लेंगी लेकिन इनका दुर्भाग्य देखिए कि इनकी संताने भी उन आक्रांताओं में शामिल हो गई है और उन्हीं आक्रांताओं और आतंकवादियों में अपने पिताओं के दर्शन कर रही हैं. यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इन आक्रांताओं की ये अवैध संताने आक्रांताओं से भी ज्यादा खूंखार और धर्मांध है और आज यह सब मिलकर किसी न किसी रूप में भारत के राष्ट्रीय सनातन स्वरूप को छिन्न-भिन्न करने का प्रयास कर रही हैं.

आज आप २१वीं सदी के तालिबान के देखिये क क्या कर रहे हैं और अंदाजा लगाइए कि आज से पांच सौ से हजार वर्ष पूर्व के आक्रान्ता  जो तालिबान से भी ज्यादा बर्बर और खूंख्वार थे,  कैसे रहे होंगे ? 

बॉलीवुड इसका अपवाद नहीं प्रोपेगेंडा चलाने का गढ़ है. अल्लामा इकबाल से लेकर राहत इंदौरी और मुनव्वर राणा तक सब के सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं. इस देश का नैरेटिव बदलने में वामपंथी इतिहासकारों और भारतीय सिनेमा का जितना हाथ है उतना तो स्वयं इन आक्रांताओं का भी नहीं रहा.

लेकिन इन लोगो के सिरफिरेपन का आरोप हम पूरे समुदाय पर नहीं लगा सकते क्योंकि हमारी नैतिकता इसकी अनुमति नहीं देती.

कबीर खान भी इन्हीं आक्रांताओं की संतानी सेना के सिपाही है, इसलिए उनसे मुगलों और आक्रांताओं को महिमामंडित करने के अलावा और क्या अपेक्षा की जा सकती है. भारत का विभाजन भी आक्रांताओं कि इसी इसी संतानी सेना ने करवाया, अपने लिए पाकिस्तान मांगा और फिर एक गहरे षड्यंत्र के अंतर्गत गए भी नहीं. आज भारत की अनेक समस्याओं के लिए यह संतानी सेना ही उत्तरदाई है.

पता नहीं ऐसे लोगों को सजा देने में कानून अपना काम कब करेगा ? करेगा भी या नहीं ? लेकिन सभी जागृत राष्ट्रवादी व्यक्तियों को ऐसे लोगों का बहिष्कार अवश्य करना चाहिए क्योंकि ऐसा तो हरगिज़ नहीं होना चाहिए कि आपके पैसे पर ही ऐसे लोग ऐश करें और आपके पैसे से ही आपके विरुद्ध कोई षड्यंत्र चलायें.

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    - शिव मिश्रा 

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