लखनऊ में एक जागरूक नागरिक द्वारा पुलिस में लिखाई गई रिपोर्ट के आधार पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए हलाल उत्पादों के बिक्री, वितरण और भंडारण पर प्रतिबंध लगा दिया है. खाद्य और औषधि विभाग ने छापेमारी करके हलाल प्रमाणित उत्पादों को जब्त करना और विक्रेताओं के विरुद्ध कार्यवाही शुरू कर दी है. योगी सरकार के इस कदम की जितनी प्रशंसा की जाय कम है, लेकिन यह राष्ट्रीय मुद्दा है, इसलिए यह कार्य तो मोदी सरकार को करना चाहिए था और बहुत पहले करना चाहिए था.
हलाल उत्पाद, हलाल अर्थशास्त्र का ही एक हिस्सा हैं. गैर मुस्लिम राष्ट्र में जहाँ कहीं भी मुसलमान होते हैं, राजनीतिक इस्लाम की वैश्विक योजना के अनुसार उस देश की अर्थव्यवस्था को अपने कब्जे में लेने की कोशिश की जाती है. छोटे छोटे कार्य अपने हाथ में लेकर बहुसंख्यक लोगों का दिल जीतने की कोशिश की जाती है जैसे सफाई, कूड़ा और कबाड़ घरों से लाकर इकट्ठा करना जिसके लिए गरीब मुस्लिमों, खासतौर से अवैध घुसपैठियों को लगाया जाता है. तत्पश्चात पंचर जोड़ने से लेकर स्कूटर, मोटरसाइकिल और कार की मरम्मत का कार्य ये लोग अपने हाथ में ले लेते हैं. डेंटिंग पेंटिंग से लेकर वेल्डिंग का काम करना शुरू करते हैं. बाल काटने से लेकर लुहार और बढ़ई का काम भी करते हैं. बहुसंख्यकों के दैनिक जीवन, तीज त्यौहार और उत्सवों का अध्ययन करके सेवा प्रदाता के रूप में अपनी पहुँच बनाते हैं. महिलाओं की चूड़ी, सिंदूर और सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री से लेकर सिलाई कढ़ाई बुनाई पर इस समुदाय ने अपनी गिरफ्त बना ली है. भारत में सब्जी और फलों के थोक बाजार पर मुस्लिम समुदाय का पूरा कब्ज़ा है और फुटकर विक्रेता के रूप में भी बाजार के बड़े हिस्से पर कब्जा है. मंदिरों में फूल और प्रसाद बेचने वाले भी बड़ी संख्या में इस समुदाय के लोग मिल जाएंगे. मीट बाजार लगभग पूरी तरह से इस समुदाय के पास है. त्योहारों में काम आने वाली अनेक वस्तुएं यहाँ तक कि गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां भी इस समुदाय के लोग बेचते हैं.
सबसे बड़ी बात ये है कि हर मुस्लिम व्यक्ति चाहे वह छोटा व्यापारी हो या बड़ा अपनी आय का 10% मस्ज़िदों को दान करता है, जिससे जिहाद का चक्र चलाया जाता है. भारत में आज आप किसी भी क्षेत्र में दृष्टि डालें तो समुदाय विशेष के लोगों के अलावा कोई दूसरा आपको नजर नहीं आएगा. स्वाभाविक प्रश्न हैं, कि 80% बहुसंख्यकों का पुस्तैनी व्यवसाय कैसे छिन गया. इसका जवाब है कि बहुसंख्यकों की जातिगत भावनाएँ भड़काकर बांटने और आरक्षण द्वारा सरकारी नौकरियों के लिए वर्ग संघर्ष जैसी योजनाओं को राजनैतिक इस्लाम ही लम्बे समय से प्रायोजित कर रहा है. इसका नतीजा ये हुआ कि हिन्दुओं में बड़ी संख्या में लोग सरकारी नौकरी की चाह में जीवन भर के लिए बेरोजगार बनते जा रहे हैं.
अर्थव्यवस्था पर इस्लामिक पकड़ बनाने के बाद दूसरा कार्य शुरू होता है हलाल उत्पादों का, जिन्हें मजहब के नाम पर मुसलमानों को खरीदने के लिए प्रेरित किया जाता है और उत्पादकों पर दबाव बनाया जाता है कि वह हलाल उत्पाद ही बनाएँ. विक्रय बढ़ाने के लालच में खासतौर से निर्यातोन्मुख कंपनियां इस जाल में बड़ी आसानी से फंस जाती है. हलाल प्रमाण पत्र देने वाली निजी मुस्लिम संस्थाएं इसके बदले उत्पादक से मोटी रकम वसूल करती हैं, जो एक तरह का जजिया टैक्स ही है. इस तरह सरकार के समानांतर एक और अर्थव्यवस्था चलाने का दुष्चक्र चलाया जा रहा है. हलाल सर्टिफिकेट के रूप में वसूला जाने वाला यह पैसा संदिग्ध गतिविधियों में लगाया जाता है. भारत में हलाल सर्टिफिकेट देने वाली प्रमुख संस्थाएँ है- हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, जमीयत उलमा-ए-महाराष्ट्र, जमीयत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट आदि.
इसमें से मदनी चचा भतीजे की "जमीयत उलेमा ए हिंद" उत्तर प्रदेश के हिन्दू नेता कमलेश तिवारी के हत्या प्रकरण के आरोपियों का अभियोग लड़ रहां हैं । इस संगठन ने ७/११ का मुंबई रेल बम विस्फोट, वर्ष २००६ का मालेगांव बम विस्फोट, पुणे में जर्मन बेकरी बमविस्फोट, २६/११ का मुंबई आक्रमण, मुंबई के जवेरी बजार में बमविस्फोटों की शृंखला, दिल्ली जामा मस्जिद विस्फोट, कर्णावती (अहमदाबाद) बमविस्फोट, आदि अनेक आतंकी घटनाओं के आरोपी मुसलमानों को कानूनी सहायता उपलब्ध कराई है । यही संस्था गोधरा कांड में मृत्युदंड और आजीवन कारावास की सजा पाने वाले आतंकवादियों का मामला सर्वोच्च न्यायालय में लड़ रही है. ऐसे हजारों संदिग्ध आतंकियों के अभियोग ये संस्थाएं लड रही है, जिसके लिए आवश्यक धन हलाल सर्टिफिकेट व्यवसाय से आता है. यह धन आप सभी उपलब्ध कराते हैं हलाल उत्पाद खरीद कर या हलाल सर्टिफिकेट लेकर यानी मियां की जूती और मियां की चांद.
दुनिया के अधिकांश देशों, विशेषतया विकसित देशों में हलाल सर्टिफिकेशन अनुमन्य नहीं है. भारत में भी कोई हलाल सर्टिफिकेशन संस्था, सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है, लेकिन अब तक सभी सरकारों ने मुस्लिम संस्थाओं द्वारा किए जा रहे हैं इस गैर कानूनी कृत्य से आंखें मूँद रखी हैं. हलाल सर्टिफिकेट बांटने वाली ये संस्थाएँ सरकार द्वारा नियंत्रित अर्थव्यवस्था में सरकार के समानांतर ही टैक्स वसूलने वाली संस्थाएँ बन गई है. सबसे खतरनाक तथ्य ये है कि हलाल सर्टिफिकेशन से प्राप्त आय का किसी न किसी न किसी रूप से जिहादी योजनाओं और आतंकवादियों का वित्तपोषण करने में लगाई जाती है.
हलाल उत्पाद अल्लाह को समर्पित होता है, इसलिए जो आप खरीदते हैं वह अल्लाह का प्रसाद होता है. कोई गैर मुसलमान अल्लाह के इस प्रसाद को धार्मिक कार्यों और मठ मंदिरों में देवी-देवताओं पर चढ़ाने के लिए क्यों प्रयोग करेगा और उत्पाद के हलाल होने की बात अरबी फारसी या में लिखकर छुपाई जा रही है, तो घोर आपत्तिजनक है, और उसका विरोध होना ही चाहिए. भारत में बिकने वाले उत्पाद, जो पहले ही कई स्तर पर गुणवत्ता की कसौटी पर परखे जाते हैं और प्रमाणित किये जाते हैं. सभी डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ अनिवार्य रूप से एफएसएसएआई (FSSAI) द्वारा प्रमाणित होते हैं और इन पर शाकाहारी और मांसाहारी के लिए हरा और लाल निशान भी लगाने का प्रावधान है. जिस खाद्य पदार्थ का भारत सरकार द्वारा अनिवार्य रूप से प्रमाणीकरण किया जा रहा हो उसे हलाल प्रमाण पत्र लेने की क्या आवश्यकता.
ज्यादातर लोग सिर्फ हलाल मांस के बारे में ही जानते हैं, लेकिन आजकल लोगों की दिनचर्या में प्रयोग होने वाले अधिकांश उत्पादों पर हलाल सर्टिफिकेट दिया जा रहा है, जो भारत की 80% से भी अधिक गैर मुस्लिम जनसंख्या के लिए अशुद्ध और अस्वीकार्य है. इसलिए यह प्रमाणन घोर आपत्तिजनक है और पूरे भारत में तत्काल प्रभाव से बंद होना चाहिए. इस्लामिक मामलों के विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि हलाल केवल मांस पर लागू होता है, जिसके लिए जानवर को मारने की एक अलग प्रक्रिया अपनाई जाती है. सभी हिंदू और अन्य भारतीय परंपरागत रूप से झटका का मांस खाते हैं और उनके लिए हलाल मांस अस्वीकार्य है. हलाल प्रक्रिया के अनुसार वध करने में जानवर को अत्यधिक कष्ट होता है क्योंकि वह तड़प तड़प कर मरता है. इसके विपरीत झटका विधि के अनुसार जानवर का बध एक झटके से कर दिया जाता है जिसमे उसे कष्ट नहीं होता है.
हलाल सर्टिफिकेट जारी करने के लिए कई औपचारिकताएं होती हैं जिसमें उत्पाद बनाने के लिए मुसलमान कर्मचारियों का होना एक अनिवार्य शर्त है. यह बिना किसी संवैधानिक व्यवस्था के प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण करने जैसा है, जो मुस्लिम समुदाय को रोजगार प्राप्त करने के अवसर भी उपलब्ध कराता है. इसके अतरिक्त परिसर में प्रार्थना कक्ष, क़िबला दिशा सूचक, नमाज चटाई, स्थानीय नमाज की समय सूची, कुरान की कॉपी, रमजान से संबंधित सेवाएं उपलब्ध होना भी आवश्यक है. समझना मुश्किल नहीं है कि हलाल प्रमाण पत्र लेने वालों से ही इस्लाम का प्रचार और प्रसार करवाया जाता है.
हलाल सर्टिफिकेशन केवल खाद्य उत्पादों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसकी पहुँच जीवन के हर क्षेत्र में हो रही है जैसे गैर-अल्कोहल पेय पदार्थ, खाद्य प्रसंस्करण, फार्मास्यूटिकल और स्वास्थ्य उत्पाद, पारंपरिक हर्बल (आयुर्वेद) उत्पाद,सभी तरह के सौंदर्य प्रसाधन,सफाई उत्पाद और दैनिक उपभोग की सभी वस्तुए शामिल हैं. यही नहीं कच्चे माल, भण्डारण, और पूरी औद्योगिक इकाई पर भी हलाल प्रमाणन आवश्यक है। दो दशक पहले तक मांस को छोड़कर यह किसी पर लागू नहीं था। अब यह जीवन के हर क्षेत्र पर लागू है, जैसे अस्पताल, पर्यटन कंपनी, रेस्तरां, इन फ्लाइट भोजन, आवासीय योजना, फ्लैट, मकान तथा हलाल टूरिज्म आदि. अब तो हलाल डिजिटल करेंसी भी लांच की गयी है.
उद्देश्य स्पष्ट है इसके माध्यम से राष्ट्र का इस्लामीकरण करना जो केवल आतंवादियों और पत्थरबाजों द्वारा नहीं किया जा सकता. इसके लिए अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण भी आवश्यक है. गजवा ए हिन्द पर पहले से ही काम किया जा रहा है. भारत में हलाल अर्थ व्यवस्था अभी तो मकड़ी के जाल की तरह है, जिसे तुरंत साफ़ नहीं किया गया तो देश की अर्थव्यवस्था के लिए फांसी का फंदा साबित हो सकता है और भारत के राष्ट्रान्तरण का कारण भी बन सकता है.
~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~