वैश्विक हिंदुत्व को खत्म
करने का आयोजन
इस कार्यक्रम के लिए चयनित समय भी विडंबना पूर्ण इसलिए रहा क्योंकि यह वही समय है जब अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड
सेंटर पर आतंकवादी हमला हुआ था. विश्व अभी भी नहीं भूला हैं कि अब से 128 वर्ष पहले 1893 में भारतीय
सन्यासी और विचारक स्वामी विवेकानंद जी ने
अमेरिका में आयोजित धर्म संसद में अपना
भाषण देकर दुनिया में धर्म और हिंदुत्व का
पाठ पढ़ाया था.
डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व को अमेरिका के 50 से अधिक विश्वविद्यालयों या उनके विभागों ने समर्थन दिया था और स्वाभाविक रूप से पश्चिमी मीडिया ने जिस में प्रमुख रूप से द वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, द गार्जियन, बीबीसी आदि ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. यह सभी संस्थान वैश्विक रूप से सनातन संस्कृत के विरुद्ध हमेशा ही अभियान छेड़े रहते हैं और जब से नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक संगठन बेहद हताशा और निराशा में लगातार कुछ न कुछ प्रपंच करते रहते हैं. इनकी गतिविधियां राजनीति से प्रेरित होती हैं, जिन्हें भारत के राजनीतिक बिरादरी के कुछ लोगों, मोदी और हिंदू विरोधी संगठनों का साथ भी मिलता है. इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ भी नहीं हो सकता कि जब भारत के राजनीतिक दल अपने स्वार्थ मैं अंधे होकर देश की पूर्ण बहुमत की निर्वाचित सरकार के विरुद्ध अभियान छेड़ने में देश विरोधी संगठनों का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साथ देते हैं और इस तरह वे स्वयं राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं.
इस कार्यक्रम में औरंगजेब की फैन ऑड्रे
ट्रुश्के, नक्सल पृष्ठभूमि
की कविता कृष्णन,
देश विरोधी प्रचार में लिप्त आनंद पटवर्धन और सोशल मीडिया
में भारत विरोधी अभियान की अति सक्रिय
मीना कंडासामी शामिल हैं ।
आज पूरा विश्व इस्लामिक चरमपंथी गतिविधियों की
भयावहता का शिकार है और ज्यादातर देशों में इस्लामिक चरमपंथियों की धर्मांतरण और
आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता स्पष्ट दिखाई पड़ती है. ऐसा लगता है कि पूरे
विश्व का ध्यान इन आतंकवादी और जिहादी गतिविधियों से हटाकर विश्व के प्राचीनतम
और सहिष्णुता की पराकाष्ठा माने जाने वाले सनातन धर्म को कलंकित करने का एक
नया हथकंडा है.
यह भी कम भी विडंबना पूर्ण नहीं कि पूरे विश्व
में अपने शैक्षणिक उत्कृष्टता का प्रचार करने वाले विश्वविद्यालय जिन पर अब वामपंथ
इस्लामिक गठजोड़ का असर साफ दिखाई पड़ता है, भी इस कुत्सित अभियान में शामिल है. इनके समर्थक प्रायोजकों में Northwestern, हार्वर्ड (Harvard), यूपीएन, प्रिंसटन, स्टैनफोर्ड, कॉर्नेल, यूसी बर्कले और एमोरी
जैसे विश्वविद्यालय शामिल हैं। इनके नाम देखकर ही आसानी से समझा जा सकता है कि अफगानिस्तान
में हो रही बर्बरता और नरसंहार से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इस सम्मेलन का
आयोजन किया गया है. इनमें से किसी भी विश्वविद्यालय या एकेडमिक संस्थान ने कभी
तालिबान या इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध कोई भी कार्यक्रम आयोजित नहीं किया है.
वामपंथियों और इस्लामिक चरमपंथियों का गठजोड़
भी बेहद अजीब है, जो देश
कम्युनिस्ट होते हैं वहां इस्लाम नहीं होता और जो देश इस्लामिक होते हैं वहां वामपंथ नहीं होता और
जहां यह दोनों ही नहीं होते वहां इनकी दोस्ती दूसरे धर्म के विरुद्ध तरह तरह के
षड्यंत्र और प्रपंच करती है. जब पूरी दुनिया इस्लामिक आतंकवाद से त्रस्त है और
अफगानिस्तान में जो हो रहा है वह किसी से छुपा नहीं है और ऐसे समय में हिंदुओं के कथित
आतंक की बात करना कितना बड़ा षड्यंत्र है इसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं.
इस आयोजन के संदर्भ में
एक बात बेहद उल्लेखनीय है कि अबकी बार इस आयोजन का इतना विरोध हुआ जितना आयोजकों
ने सोचा भी नहीं था और इस कारण कार्यक्रम की वेबसाइट 2 दिन ठप रही और टि्वटर हैंडल
बंद रहा. कई विश्वविद्यालयों के सरवर भी ठप हो गए. इस अप्रत्याशित विरोध से
आयोजकों और प्रायोजकों सहित पूरी दुनिया को यह संदेश चला गया कि सनातन धर्म को कलंकित
करने के प्रयासों को दुनिया भर का हिंदू समुदाय अब और अधिक बर्दाश्त नहीं करेगा.
अगर हम पिछले 1000 साल का इतिहास खंगाले तो पाते हैं कि भारत पर वामपंथ, साम्राज्यवाद, इस्लामिक धर्मांधता और ब्रिटिश उपनिवेश सभी ने
वार किया। इतिहास ने मुग़ल, मंगोल, पारसी, पादरी, अंग्रेज़, डच और न जाने कितने
शासकों और घटनाओं का दौर देखा लेकिन, इतिहास के इन क्रूरतम झंझावातों के बाद भी
भारत आज भी इतने मजबूती और शान से खड़ा है। एक कवच है जिसने भारत कि हमेशा
रक्षा की है और वह है ‘’सनातन’’। इस्लाम ने
जब कट्टरता से जीतने की कोशिश की, सनातन ने उसे अपने अथाह सिंधु में समाहित कर लिया। अंग्रेज़ो
ने जब पाश्चात्य आधुनिकता से जीतने की कोशिश की, सनातन ने उसे और परिष्कृत किया।
सनातन धर्म अपनी वैज्ञानिकता
लचीलेपन, सहिष्णुता, परिवर्तन और वसुधेव
कुटुंबकम के सार्वभौमिक सिद्धान्त से केवल
पंथ या मजहब नहीं है बल्कि यह वैज्ञानिक
आधारित तर्कपूर्ण जीवन जीने की अद्भुत कला है. सनातन धर्म में कभी अपने प्रचार और
प्रसार के लिए कोई खास प्रयास नहीं किए जबकि दूसरी धर्म छल कपट के आधार पर
धर्मांतरण करके अपनी संख्या बढ़ाने का प्रयास करते रहते हैं . इस्लाम और
क्रिस्चियन सहित दुनिया के कई धर्म अपने प्रचार और प्रसार के लिए बड़ी संख्या में
चरमपंथी प्रचारको की एक भारी-भरकम फौज रखते हैं, जिसे क्रमश: इस्लामिक और पश्चिमी देश वित्तीय
सहायता उपलब्ध कराते हैं. वर्तमान दुनिया तो ऐसे
दौर से गुजर रही है जहां यह दोनों धर्म धर्मांतरण के लिए उचित अनुचित और
अमानवीय सभी तरह के कुकृत्य कर रहे हैं. हिंदुस्तान इन दोनों ही धर्मों के कुख्यात
कारनामों का उदाहरण है.
उत्तर प्रदेश में अभी हाल ही में बहुत बड़े
धर्मांतरण रैकेट का पर्दाफाश हुआ है
जिसमें न जाने कितने मुल्ला और मौलवी
शामिल पाए गए हैं जिन्हें विदेशों से बड़े
पैमाने पर वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई गई है. इस धर्मांतरण गिरोह के सबसे खतरनाक वे लोग पाए गए है जिन्होंने हाल
ही में हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम स्वीकार किया था. कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश कैडर के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी
के अपने सरकारी आवास पर धर्मांतरण के पक्ष
में तकरीरें करते हुए वीडियो वायरल हुए हैं. पूरी तरह धार्मिक लिबास में रहने वाले
इन आईएएस अधिकारी के विरुद्ध उत्तर प्रदेश सरकार ने उच्च स्तरीय जांच बैठा दी है लेकिन यह उदाहरण बेहद चिंता
उत्पन्न करने वाला है क्योंकि ऐसे लोग पुलिस, सेना और अन्य जगहों पर भी जरूर होंगे और उनके इस तरह
के मजहबी कारनामों के क्या दुष्परिणाम
होंगे. कम से कम ये महाशय चन्द भटक हुए लोगों में नहीं हो सकते. जो भी
हो समस्त जनता, सरकार और समूची व्यवस्था को बेहद सावधान हो
जाने की जरूरत है क्योंकि जब घर में ही देश विरोधी गतिविधियां हो रही हो तो इनके
रोकने के उपाय बहुत मुश्किल हो जाते हैं.
हिंदी फिल्म उद्योग से जुड़े एक मुस्लिम समुदाय
के कुख्यात दुष्टात्मा जिनका धर्मांधता और
असहिष्णुता का पुराना इतिहास है और जो
फिल्मों द्वारा सनातन और हिंदुत्व के विरुद्ध नैरेटिव स्थापित करने के
अभियान में शामिल रहे हैं, ने सनातन को बदनाम करने के लिए तालिबान को
आरएसएस और इस्लामिक अफगानिस्तान को भारत से जोड़ने की मूर्खतापूर्ण बातें की है। तालिबान के समर्थन में भारत कई अन्य लोग भी आ गए . अच्छा हुआ कि उनके चेहरे से नकाब उठ गया. लखनऊ के एक मजहबी शायर जो
पिछले कुछ वर्षों से हिंदू विरोधी और देश विरोधी गतिविधियों में सम्मिलित हैं, तालिबान की तुलना
बाल्मीकि से कर दी. उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख राजनीतिक दल के सांसदों ने भी
तालिबान शासन की प्रशंसा की और उन्हें अपना समर्थन दे दिया. उत्तर प्रदेश में
एटीएस द्वारा धर्मांतरण के षड्यंत्रकारी के रूप में गिरफ्तार एक मुस्लिम सदस्य के
घर उत्तर प्रदेश के एक राजनीतिक दल के
पदाधिकारियों ने उनके परिवार को हर संभव सहायता देने का वचन दिया.
यह कुछ चंद
उदाहरण है लेकिन सभी देश भक्त नागरिकों विशेषकर हिंदू समुदाय के लिए यह कठिन परीक्षा की घड़ी है कि वह इस अंतर्राष्ट्रीय
घटनाक्रम को किस परिपेक्ष में लेता है. आज हिंदू समुदाय के लोग भले ही यह कहे कि" मिटती नहीं हस्ती हमारी", लेकिन वर्तमान हालात निश्चित रूप से सनातन संस्कृति पर एक गंभीर खतरे
का आगाज है और ऐसे में सभी सनातन प्रेमियों को एकजुट होकर न केवल अंतरराष्ट्रीय साजिश का पर्दाफाश करना चाहिए बल्कि सरकार के हर राष्ट्रवादी कदम के साथ
चट्टान की तरह खड़े रहना चाहिए. बात केवल मोदी विरोध की नहीं है अगर मोदी को कटघरे
में खड़ा करने के लिए यदि सनातन संस्कृति को कलंकित करने का पाप किया जाएगा तो उसे
हिंदू जनमानस बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करेगा और उसका पुरजोर विरोध करेगा.
लेखक – स्वतन्त्र राजनैतिक विश्लेषक और समसामयिक
विषयों के जानकार हैं