इसे राजनीतिक षड्यंत्र तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन यह किसान आन्दोलन के विरुद्ध एक षड़यंत्र अवश्य है.षड्यंत्रकारी राजनैतिक दल अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन हासिल करना चाहते हैं, जिन्हें जनता का कोई भी समर्थन हासिल नहीं है और किसानों की भलाई से तो इनका दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है.
यह भारत बंद प्राथमिक रूप से भाजपा और नरेंद्र मोदी के विरोध स्वरूप आयोजित किया गया है क्योंकि जो विपक्षी दल राजनीतिक रूप से नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने में सक्षम नहीं हैं वे कोई न कोई ऐसा मौका तलाशते रहते हैं जिसमें अप्रत्यक्ष रूप से नरेंद्र मोदी के साथ राजनीतिक हिसाब-किताब चुकता किया जा सके.
भारत बंद के बारे में किसानों के साथ साथ विपक्षी दलों को भी आशंका थी कि इसे जनता का समर्थन हासिल नहीं होगा . इसी कारण इस बंद का समय दिन में केवल 11:00 बजे से लेकर 3:00 बजे तक के लिए किया गया है. एसा लगता है कि किसी फिल्म का शो आयोजित किया गया है. बहुत स्पष्ट है कि सुबह का समय ऑफिस जाने वालों के लिए छोड़ दिया हैं और शाम का समय भी आफिस से आने वालों के लिए छोड़ा हैं , अन्यथा उन्हें जनता के सीधे विरोध का सामना करना पड़ता.
ऐसा लगता है कि भारत बंद आयोजित करके विपक्षी दलों के साथ-साथ प्रदर्शनकारी किसान भी फंस गए हैं और अब किसी तरह इसकी औपचारिकता भर पूरी करना चाहते हैं.
दिखावा ही करना था तो अच्छा होता कि भारत बंद के लिए रात 11:00 बजे से सुबह 3:00 बजे का समय चुना गया होता तो यह पूरी तरह से सफल होता और सड़कों पर सन्नाटा होता.
- अगर हम राज्य वार विश्लेषण करें तो पाते हैं कि प्रत्येक राज्य में बंद का वही समर्थन कर रहे हैं जो या तो राज्य में विपक्ष में है या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना दुश्मन मानते हैं.
- इनमें से भी ममता बनर्जी ने किसानों की मांगों का तो समर्थन किया है लेकिन उन्होंने बंद से किनारा कर लिया है.
- सत्ताधारी दलों में वाईएसआर कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश में, एआईडीएमके ने तमिलनाडु में, बीजू जनता दल ने उड़ीसा में बंद का समर्थन नहीं किया है.
- तेलंगाना में हैदराबाद निकाय चुनाव में बुरी तरह मात खाने वाली सत्ताधारी टीआरएस ने बंद का समर्थन किया है और यही नहीं टीआरएस के कार्यकर्ताओं ने हैदराबाद में रोजाना ड्यूटी पर जाने वाले लोगों के साथ पुलिस के सहयोग से दुर्व्यवहार भी किया है.
- जिन राज्यों में बंद का थोड़ा बहुत असर दिखाई पड़ रहा है ये वहीं राज्य हैं जहां पर सत्ताधारी दल नरेंद्र मोदी से व्यक्तिगत हिसाब-किताब चुकता करना चाहते हैं.
- बिहार में जहां राष्ट्रीय जनता दल और अन्य अनगिनत छोटे-छोटे दलों ने अभी हाल में हार का स्वाद चखा है वे पटना की सड़कों पर हुड़दंग मचा रहे हैं लेकिन न तो स्थानीय दुकानदारों का और ना ही पटरी दुकानदारों का उन्हें समर्थन हासिल है.
- उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने कल ही प्रेस कांफ्रेंस करके भारत बंद की हवा निकाल डी थी . आज छिटपुट जगहों पर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अराजकता फैलाने की कोशिश की जिसे पुलिस ने सख्ती से रोका. ज्यादातर जगहों पर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता फोटो खिंचवाते ही दिखे और उनके समर्थन में कोई स्थानीय शामिल नहीं हुआ.
- भारत बंद का यह अभियान पूरी तरह से विपक्षी नेताओं के कहने से ही आयोजित किया गया था और इस चालाकी को दिल्ली में प्रदर्शन करने वाले किसान संगठन समझ नहीं सके. इसलिए उन्होंने 5 दिसंबर की वार्ता की असफलता के बाद पून: 7 दिसंबर को वार्ता का प्रस्ताव सिर्फ इस आधार पर ठुकरा दिया था कि 8 दिसंबर को भारत बंद आयोजित किया गया है. इसलिए अगली वार्ता 9 दिसंबर को रखी जाए.
- वास्तव में किसान संगठन पूरे भारत में आंदोलन को मिल रहे समर्थन का मूल्यांकन करना चाहते थे.
निष्कर्ष :
- अब पूरी तरह से स्पष्ट है कि इस आंदोलन का व्यापक जनसमर्थन नहीं है . इसलिए किसान संगठनो को अपने रुख को लचीला बनाते हुए सरकार से वार्ता में सहयोग करना चाहिए और संदेहास्पद बिंदुओं पर सरकार से स्पष्टीकरण लेना चाहिए और परस्पर सहमति से कानून में संशोधन स्वीकार कर लेना चाहिए.
- सभी जानते हैं कि भारत में तीन चौथाई किसान बहुत छोटे किसान हैं जिन्हें न तो न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ मिलता है,और न हीं मंडियों में बिचौलिए होने का कोई अतिरिक्त फायदा होता है. उन्हें केवल प्रधान मंत्री मोदी द्वारा सीधे दिए जाने वाले रु. ६००० बार्षिक मिलते हैं. उनका भरोसा मोदी पर ज्यादा है.
- पंजाब सहित पूरे भारत के छोटे किसान इस समूचे आंदोलन से बहुत दूर है क्योंकि कुछ बड़े किसान जो मंडियों पर भी काबिज है वही उनके शोषण के प्रमुख कारक हैं. इसलिए इस आंदोलन में ज्यादातर बड़े किसान और बिचौलिए ही शामिल हैं.
- अब जबकि आन्दोलन रास्ते से भटक गया है, जैसे -जैसे समय गुजरता जाएगा लोगों को पूरी बात समझ में आती जाएगी और इस आंदोलन की धार कुंद होती जाएगी .
- फिर इस आंदोलन का अंत उसी तरह से होगा जैसे शाहिनबाग आंदोलन का हुआ था केवल समय की बात है .
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