पृथ्वी पर अल्पसंख्यकों का
स्वर्ग है भारत !
भारत सनातन संस्कृति का देश है, हिंदुओं का देश है, राम और कृष्ण का देश है, अगर आप ऐसा सोचते हैं तो
आप बहुत बड़ी गलतफहमी में जी रहे हैं. विशुद्ध रूप से भारत अल्पसंख्यकों का देश है, और वह भी केवल मुस्लिम
अल्पसंख्यकों का, जिसे बापू और चाचा ने मिलकर बड़े योजनाबद्ध तरीके से उनके लिए
बनाया है. यह अलग बात है कि इसमें
बहुसंख्यक हिंदू भी रहते हैं लेकिन उनकी स्थिति
द्वितीय श्रेणी के नागरिक से ज्यादा कुछ भी नहीं है. आजादी के बाद लागू हुए
नये संविधान के अंतर्गत हिंदुओं की स्थिति लगातार दयनीय होती जा रही है. इस समय 9 राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं. नागालैंड मे 8%, मिज़ोरम में 2.7%, मेघालय में 11.5%, अरुणाचल प्रदेश
में 29%,
मणिपुर में 41.4%, पंजाब में 39%, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 32%, लक्षद्वीप में २%, लदाख 2% हिंदू ही बचे हैं। कुछ राज्यों में हिंदुओं की
आबादी विलुप्त होने के कगार पर है.
भारत में अल्पसंख्यक का मतलब सिर्फ मुस्लिमान
है इसलिए यदि किसी राज्य में अन्य संप्रदाय अल्पसंख्यक हैं तो भी मुसलमान ही
अल्पसंख्यक माने जाते हैं और उन्हें ही
सारी सुविधाएं प्राप्त होती हैं. उदाहरण के लिए केंद्र शासित प्रदेश
लक्ष्यदीप में मुसलमानों की जनसंख्या 97% से अधिक है और हिंदू केवल 2% हैं लेकिन वहां भी अल्पसंख्यकों की सुविधाएं
बहुसंख्यक मुसलमानों को ही दी जाती हैं.
इस सब के बावजूद भारत की धर्मनिरपेक्षता और संविधान के प्रति उनकी
प्रतिबद्धता कितनी है वह इस बात से समझा
जा सकता है कि पिछले दो दशक से मुसलमानों के विरोध के कारण लक्षद्वीप में गांधी की
प्रतिमा स्थापित नहीं की जा सकी है क्योंकि
उनका कहना है कि इस्लाम में मूर्तियां वर्जित हैं.
हाल ही में
एक प्रखर राष्ट्रवादी एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में
एक जनहित याचिका दायर की गई है जिसमें उन
राज्यों में जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं उन्हें अल्पसंख्यकों के अधिकार और
सुविधाएं देने की मांग की गई है. सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका सुनवाई के लिए
स्वीकार कर ली है और केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने के लिए कहा है. संभवत:
ग्रीष्मावकाश के बाद उस पर सुनवाई हो सकती है. अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका
से एक बार फिर अल्पसंख्यक घोटाला सुर्खियों में आ गया है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण
विचारणीय प्रश्न यह है इन राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हुए क्यों और कैसे? इसका एकमात्र कारण है कि
विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां इन सुविधा भोगी अल्पसंख्यकों द्वारा
बहुसंख्यक हिंदुओं का लगातार धर्मांतरण
किया जा रहा है. यह प्रक्रिया दशकों से
बिना रोक टोक चल रही है. अपने-अपने स्वार्थ के कारण राजनैतिक दल आंखें बंद किये
हैं.
हिंदूओं का दुर्भाग्य देखिए कि उन्हें अपने ही
देश में अल्पसंख्यक होकर विलुप्त होने का खतरा गहराता जा रहा है और वे अपने लिए
अल्पसंख्यकों के अधिकार दिए जाने की गुहार लगा रहे हैं किन्तु सरकार मुकर रही है, इसलिए मजबूरी में उन्हें
अदालत की शरण लेनी पड़ी है. विडंबना देखिए कि जिस राष्ट्रवादी मोदी सरकार के पीछे
हिंदू एकजुट होकर खड़े हैं उसने अदालत में स्वीकार किया है कि जिन राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं वहां राज्य सरकारें चाहें तो हिंदुओं को अल्पसंख्यक
का दर्जा दे सकती हैं लेकिन फिर मोदी
सरकार ने जम्मू कश्मीर, लद्दाख और लक्षद्वीप जैसे
केंद्र शासित और भाजपा शासित प्रदेशों में ऐसा क्यों नहीं किया.
आजादी के बाद जो संविधान लागू किया गया है, वह इस देश की सनातन
संस्कृति और प्राचीन विरासत अक्षुण्ण रखने में कतई सक्षम नहीं था और न है. इसमें
अनेक ऐसे प्रावधान हैं जिनके दुष्प्रभाव के कारण सनातन संस्कृति का धीरे धीरे
ह्रास होता जा रहा है और अगर रोकथाम के कारगर उपाय नहीं किए गए तो सनातन संस्कृति
एक दिन भारत में ही विलुप्त हो जाएगी.
देश का विभाजन धार्मिक आधार पर किया गया था - मुस्लिमों
के लिए पाकिस्तान और हिंदुओं के लिए हिंदुस्तान. पाकिस्तान तो मुस्लिमों के पूर्ण स्वामित्व का देश बन गया
लेकिन हिंदुस्तान, हिंदुओं का देश न
बनकर हिंदू और मुस्लिमों की साझे की खेती
बन गया. ऐसा जानबूझकर किया गया. विभाजन के बाद भारतीय क्षेत्र में रहने वाले
ज्यादातर मुस्लिम पाकिस्तान गये ही नहीं. अधिकांश मुस्लिम नेता भी नहीं गए
जिन्होंने पाकिस्तान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और जो डायरेक्ट एक्शन
सहित कई दंगों में भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े थे. इससे बड़ी विडंबना और
क्या हो सकती है कि ऐसे कई बड़े मुस्लिम नेता संविधान सभा के सदस्य भी बनाए गए.
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की स्पष्ट मांग के बाद भी जवाहरलाल नेहरू हिंदू और मुस्लिम
जनसंख्या की अदला बदली के लिए राजी नहीं हुए, यद्यपि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली इसके पक्ष में
थे. अंबेडकर ने तो यहां तक कहा था कि दुनिया भर में मुस्लिमों के व्यवहार को देखते
हुए अगर एक भी मुस्लिम विभाजन के बाद भारत
में रहता है तो, भारत कभी सुखी
नहीं रह सकता. नेहरू ने साफ मना करते हुए कहा कि अदला-बदली में हम लोगों का जीवन निकल जाएगा, और यह काम पूरा नहीं हो
पाएगा. उन्होंने कहा कि मुस्लिमों के भारत
से चले जाने से देश आर्थिक रूप से कमजोर हो जाएगा, तथा देश में भुखमरी फैल जाएगी. कितनी हास्यास्पद बात हैं क्योंकि गांधी और नेहरू
दोनों ही नहीं चाहते थे कि भारतीय क्षेत्र से मुस्लिम पाकिस्तान जायें बल्कि दोनों
की प्रयास कर रहे थे कि जो थोड़े से लोग पाकिस्तान चले भी गए हैं उन्हें भी वापस
लाया जाए. प्रश्न है कि जब ऐसा ही करना था तो कि भारत का विभाजन क्यों हुआ जिसके
लिए मुख्यतय: गांधी और नेहरू जिम्मेदार थे.
सरदार पटेल की निजी सचिव ने अपनी किताब में
लिखा हैकि आजादी के बाद नेहरू का पूरा ध्यान मुस्लिमों की सुरक्षा में लगा रहता था और नेहरु जी मुस्लिमों के साथ होने
वाली छोटी-मोटी घटनाओं पर बहुत परेशान हो जाते थे इसके विपरीत पाकिस्तान से आने
वाले हिंदू शरणार्थियों की कठिनाइयों पर वह बिल्कुल चिंतित नहीं होते थे. नेहरू
भारत में मुसलमानों के कल्याण और बराबरी के अधिकार के लिए हमेशा चिंतित रहते थे और
प्रधानमंत्री रहते हुए वे जो कर सकते थे वह हिंदुओं की कीमत पर भी किया. इस तरह के व्यवहार के कारण ही उनके हिंदू होने पर आज भी सवालिया निशान हैं, कारण चाहे जो भी हो लेकिन
इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि नेहरू ने
कांग्रेस में अपनी कमजोर स्थिति को मजबूत करने के लिए मुस्लिमों को अपना वोट बैंक
बनाने के उद्देश्य से तुष्टिकरण की शुरुआत की.
नेहरू ने आधा कश्मीर भारत से निकल जाने के बाद
भी बचे कश्मीर के लिए धारा 370 और धारा 35 ए संविधान में जुड़वाने का कार्य किया, वही अपने पूरे शासनकाल
में मुस्लिम शिक्षा मंत्री बनाने और अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थाओं को अंधाधुंध
अनुदान देने, और हिंदू मंदिरों
का अधिग्रहण करने का महापाप भी किया.
बाबर की समाधि पर श्रद्धांजलि देने अफगानिस्तान
जाने वाली इंदिरा गांधी ने भी संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ कर हिंदूओं
के साथ धोखाधड़ी की, जिसे डॉ
आंबेडकर के विरोध के कारण नेहरु नहीं जोड सके थे. मुस्लिम तुष्टिकरण को और मजबूत
करते हुए राजीव गांधी ने शाहबानो मामले में न्यायालय के फैसले को ही कानून बनाकर
पलट दिया. पीवी नरसिम्हा राव ने उपासना स्थल
(विशेष उपबंध) अधिनियम,
1991 द्वारा पूजा स्थलों की 15 अगस्त 1947 के पहले की यथास्थिति
बनाए रखने का कानून बना दिया और राष्ट्रीय
अल्पसंख्यक आयोग का गठन भी किया. मनमोहन सिंह ने २००५ में मुसलमानों की सामाजिक
आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति के आकलन के लिए सच्चर कमेटी का गठन किया, यद्यपि बहुमत के अभाव में
सिफारिशें लागू नहीं हो सकी किंतु इसके बाद तुष्टीकरण की पराकाष्ठा पार करते हुए
सरकार ने हिंदुओं को गुलाम बनाने के लिए सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक 2011 पेश किया. इस बिल को
सोनिया गांधी की अगुवाई वाली एक समिति ने तैयार किया था जिसमें सैयद शहाबुद्दीन और
तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोग भी शामिल थे. इस विधेयक के अनुसार यदि हिन्दू, अल्पसंख्यक वर्ग के विरुद्ध घृणा फैलाने का
कार्य करते हैं तो उनके विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जाएगी लेकिन इसके उलट यदि
अल्पसंख्यक, हिन्दुओं के विरुद्ध घृणा फैलाने का कार्य करते हैं तो उनके विरुद्ध
कोई कार्यवाही का प्रावधान नहीं. सांप्रदायिक हिंसा होने की स्थिति में बहुसंख्यकों
को इसका उत्तरदायी माना जाएगा. सांप्रदायिक हिंसा में यदि कोई अल्पसंख्यक वर्ग का
व्यक्ति बहुसंख्यक वर्ग की महिला के साथ बलात्कार करता है तो यह अपराध नहीं माना
जाएगा. सोचिये हिन्दुओं के प्रति इससे
ज्यादा विद्वेष पूर्ण कार्य और क्या हो सकता है?
हिंदुओं के अपार
समर्थन से 30 साल बाद पूर्ण बहुमत
की मोदी सरकार सत्ता में आई तो हिंदुओं की अपेक्षाएं भी सातवें आसमान में पहुँच गयी. मोदी सरकार ने
धारा 370 हटाने और राम
मंदिर बनाने का मार्ग प्रशस्त करके अच्छी शुरूआत की. परिणाम स्वरूप हिन्दू और अधिक
मजबूती से से मोदी के पीछे खड़े हो गए.
इससे देश में विमर्श की दिशा तो बदल रही
है लेकिन बदलाव के लिए कोई ठोस कदम उठाए
जा रहे हो ऐसा नजर नहीं आता. सरकार को चाहिए कि हिंदुओं की लंबे समय से चली आ रही
मांगों का तुरंत समाधान निकालें, जिनमें प्रमुख हैं, - हिंदू मंदिरों की मुक्ति, अल्पसंख्यक को भारतीय परिवेश में परिभाषित किया जाए . विश्व के किसी भी देश में दूसरी सबसे बड़ी
आबादी को अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त नहीं है इसलिए सरकार को आर्थिक सहायता और
सुविधाएं देने का आधार सिर्फ आर्थिक ही रखना चाहिए. दुनिया में मुसलमानों की आबादी 200 करोड़ से भी अधिक है और 57 देश इस्लामिक देश हैं
ऐसे में मुसलमान किसी भी अंतरराष्ट्रीय अवधारणा से अल्पसंख्यक नहीं हो सकते. राष्ट्रीय
अल्पसंख्यक आयोग को बदल कर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाया जाए और समान नागरिक
संहिता तुरंत लागू की जाए.
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शिव मिश्रा