शनिवार, 2 जुलाई 2022

सर्वोच्च न्यायालय भी बहुत डरा हुआ है.

 



भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी कितना  डरा हुआ है, इसका पता हम सबको नहीं है.  

नूपुर शर्मा प्रकरण अब भारत में बच्चे बच्चे को पता है. ज्ञानवापी मस्जिद में काशी विश्वनाथ मंदिर कि अवशेष मिलने के बाद मुस्लिम समुदाय कोई न कोई बड़ा विवाद खड़ा करने का बहाना ढूंढ रहे थे और  जल्द ही उन्हें नूपुर शर्मा के टीवी डिबेट में मिल गया. बस फिर क्या था तलवारें खिंच गई, देश में मोदी भाजपा विरोधी माहौल बनने लगा और विदेशों में भारत विरोधी. मोदी और भाजपा ने दबाव में आकर नूपुर शर्मा को पार्टी से निकाल  दिया लेकिन मामला शांत नहीं हुआ क्योंकि शांतिप्रिय धर्म के लोग मांग कर रहे थे कि गुस्ताख ए रसूल की एक ही सजा सर तन से जुदा, सर तंन से जुदा.

जुमे की जंग की शुरुआत कानपुर से होकर प्रयागराज और तमाम शहरों में फैल गई. ऐसा लग रहा है कि जैसे एक वर्ग  हमेशा दंगा, फसाद, और गृह युद्ध  लिए तैयार करता रहता है और समय अमे पर इसका परीक्षण भी करता है. दुकानें मकान जलाने मैं किसी को कोई संकोच नहीं होता, सार्वजनिक संपत्तियों की तो बात ही क्या की जाए. आखिर यह  देश संविधान और कानून से चलेगा या मजहबी कानून से . हाल ही में बहुत सी घटनाएं ऐसी हुई है जिन्हें  विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र सरकार द्वारा उतनी गंभीरता से नहीं लिया गया जितना देश की एकता अखंडता कायम रखने के लिए लिया जाना चाहिए था. इसका परिणाम यह निकला कि इस तरह की घटनाएं अब जल्दी जल्दी हो रही है, आम होती जा रही हैं. चाहे केरल में एक व्यक्ति के हाथ काट देने का मामला हो महाराष्ट्र में एक व्यक्ति का सिर धड़ से जुदा कर देने का मामला हो, लखनऊ में कमलेश तिवारी की जघन्य और निर्ममता पूर्वक की गई हत्या का मामला हो और अब उदयपुर में कन्हैयालाल तेली का सर तंग से जुदा करने की दुस्साहसिक वारदात जिसमे जिहादी आतंकियों ने न केवल कन्हैया लाल के सिर को तन से जुदा किया उन्होंने घटना के  पहले भी वीडियो पोस्ट किया था और उसके बाद भी वीडियो में  खून से सने हुए हथियार लहराते हुए न केवल इस घटना का की जिम्मेदारी ली  बल्कि ये नारा भी बुलंद किया कि  गुस्ताखे रसूल की एक ही सजा सर तन से जुदा .... उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को भी चुनौती दी कि उनकी तलवार उनकी गर्दन तक भी पहुंचेगी.

 नूपुर शर्मा के विरुद्ध विभिन्न राज्यों में पुलिस ने एफआईआर दर्ज की गई अब यह एक फैशन हो गया है कि राजनीतिक आधार पर विरोधी दलों या खास दलों का विरोध करने वाले लोगों को सबक सिखाने के लिए एफआईआर दर्ज की जाती है और इस तरह एक ही मामले में पूरे देश भर में सैकड़ों एफआईआर दर्ज हो जाती है. कानून व्यवस्था और न्यायिक दृष्टि से देखा जाए तो एक ही मामले के लिए इतनी सारी एफआइआर अलग अलग जगहों पर दायर किया जाना न्यायोचित नहीं कहा जा सकता. एफआइआर की अंतिम परिणति न्यायालय में मुकदमा चलाने की होती है ऐसे में एक अपराध के लिए सैकड़ों मुकदमे और सैकड़ों जगह .. सोचिए किसी साधारण परिवार का व्यक्ति अगर चाहे भी तो इतनी जगह और कोर्ट कचहरी में नहीं जा सकता उसे तो इतनी जगह हाजिर होने के लिए अपने मुकदमे लड़ने के लिए कई जन्म लेने पड़ेंगे. एक मुकदमा तो इस जन्म में खत्म नहीं हो पाता इतने सारे मुकदमे खत्म करने के लिए उसे कितने  जन्म लेने पड़ेंगे और जब लोग सर तन से जुदा करने के लिए पीछे पड़े हो, तो  इस व्यक्ति का क्या हाल होगा बड़ी आसानी से समझा जा सकता है.

नूपुर शर्मा के साथ भी ऐसा हुआ पूरे देश भर में उनके खिलाफ़ बहुत सारी एफआईआर दर्ज की गई है जिसके लिए उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि उनकी सारी एफआईआर को एक साथ क्लब करके उनकी सुनवाई दिल्ली में की जाए ताकि उनकी जान को जो गंभीर खतरा है उसे कुछ हद तक कम किया जा सके. सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी सुनवाई करते हुए कई टिप्पणियां की और उनके इस अर्जी को खारिज कर दिया.

 सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि नूपुर शर्मा की जान को खतरा है,  वे स्वयं देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन गई है. तो क्या देश की सुरक्षा के खतरे को टालने के लिए नूपुर शर्मा को जेहादियों के हवाले कर दिया जाए ताकि उनका सिर तन  से जुदा कर दिया जाए ? क्या चाहता है सर्वोच्च न्यायालय?

 सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उदयपुर की घटना नूपुर शर्मा के कारण हुई है. पूरे  देश में जो कुछ हो रहा है वह उसके लिए जिम्मेदार है? तो फिर सर्वोच्च न्यायालय को एनआईए और विभिन्न जांच एजेंसियों को आदेश देना चाहिए था कि वो जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है उन्हें छोड़ दें वो तो निर्दोष है क्योंकि जिसमे कन्हैया लाल की हत्या हुई गला रेतकर, उसमें ना तो सांप्रदायिकता है नहीं धर्मांधता है, ना ही कानून को अपने हाथ में लेने का कोई कारण है. उसका मूल कारण तो नूपुर शर्मा है.  न्यायाधीश ने कहा कि नूपुर शर्मा को पूरे देश से टीवी पर जाकर माफी मांगनी चाहिए उन्होंने जो माफी मांगी है बहुत देर से और सशर्त  मांगी है. नूपुर शर्मा को माफी पूरे देश से ही क्यों मांगनी चाहिए, पूरे संसार से क्यों नहीं ? क्योंकि इस्लाम तो एक अंतरराष्ट्रीय धर्म है, 57 इस्लामिक राष्ट्र हैं और लगभग सभी देशों में मुसलमान रहते हैं. इसलिए अच्छा तो यह होगा कि भारतीय टीवी ही नहीं दुनिया भर के टीवी पर जाकर नूपुर शर्मा सर्वसाधारण से माफी मांगे.

 सर्वोच्च न्यायालय ने नूपुर शर्मा की सीधे सर्वोच्च न्यायालय आने पर भी आपत्ति प्रकट की और कहा कि ऐसा लगता है इससे ज़ाहिर होता है कि वे बहुत अड़ियल और अभिमानी है और उनके सामने वे समझते हैं कि मजिस्ट्रेट छोटे हैं. जज ने एक कदम आगे जाते हुए कहा कि अगर आप किसी दूसरे के विरुद्ध एफआईआर लिखवाते हैं तो वे तुरंत गिरफ्तार हो जाते हैं और जब एफआईआर आपके विरुद्ध हुई है तो आपको कोई छूने की हिम्मत क्यों नहीं कर रहा है. इस तरह की  जो बातें न्यायाधीश ने कही शायद इससे बचा जाना चाहिए था. इस से  दलगत विरोध की गंध आती है क्योंकि इसी तरह का आरोप तमाम मुस्लिम राजनेता और विपक्षी पार्टियों के लोग लगा रहे हैं, वही भाषा न्यायाधीश की है.

सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय में किसी कानूनी पेचीदगी का जिक्र नहीं किया गया है. केवल  व्यक्तिगत पसंद नापसंद के आधार पर टिप्पणियां की गई है और इस तरह देश का कोई भी सामान्य बुद्धि और विवेक का व्यक्ति इस का विश्लेषण कर सकता है.

ट्विटर पर सर्वोच्च न्यायालय के विरुद्ध लोग तरह तरह की टिप्पणियां कर रहे हैं और मुझे लगता है शायद हिंदुओं की कोई भावना नहीं होती और इसलिए हिंदू धर्म की कोई कितनी भी निंदा  करें, हिंदू देवी देवताओं का कोई कितना भी अपमान करें, उनकी भावनाएँ आहत नहीं हो सकती. इस देश में जब हिंदुत्व और हिंदू देवताओं को गाली दी जाती है तो इसे  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार कहा जाता है और यही धर्मनिरपेक्षता की खूबसूरती बताई जाती है लेकिन अगर यह कभी दूसरे धर्म की तरफ मुड़ जाती है तो फिर सर्वोच्च न्यायालय भी दबाव में आ जाता है. जब देश का सर्वोच्च न्यायालय भी इतना डरा हुआ है इतना भयभीत हैं और उसे लगता है कि नूपुर शर्मा के बयान से देश की सुरक्षा को खतरा है तो फिर अब क्या बचता है? यह  देश इस रूप में कब तक बचता है, कहा नहीं जा सकता.

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- शिव मिश्रा 




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