रविवार, 30 जनवरी 2022

क्या नेहरू एक अय्याश व्यक्ति थे?


यह एक खुला रहस्य है और इसमें जितना गहराई तक जायेंगे उतनी ही गंदगी दिखाई पड़ेगी. इसलिए मेरा मानना है कि इसमें बहुत अधिक पड़ने की आवश्यकता नहीं है लेकिन आज के युवा वर्ग को सच्चाई जानने की उत्सुकता रहती है, इसलिए इस तरह के प्रश्न बार बार आते रहेंगे. उनका जबाब दिया ही जाना चाहिए.

गांधी और नेहरू के बारे में भारतीय बच्चों को कम से कम 10+2 वही सब कुछ मालूम होता है जो पाठ्य पुस्तकों में पढ़ाया जाता है वही परीक्षा में पूछा जाता है और स्वाभाविक रूप से बच्चे रट लेते हैं. इसलिए उनके मन में गांधी नेहरू के प्रति श्रद्धा और लोकप्रियता के किस्से जबरदस्ती ठूंसे गए हैं. भारत के इतिहास में नेहरू को बेहद महान, प्रगतिशील और भारत के भाग्य विधाता वाली छवि कृत्रिम रूप से गढ़ी गई है और उसे ही पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है.

जिस किसी भी लेखक ने नेहरू के बारे में सच्चाई लिखी उन किताबों को प्रतिबंधित कर दिया गया. सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में कुछ भी छुपाना मुश्किल है और इसलिए नेहरू के बारे में बहुत सी जानकारी, जिन्हें विदेशी लेखकों ने लिखा उपलब्ध है. भारतीय लेखकों की प्रतिबंधित पुस्तकें भी आज इंटरनेट पर उपलब्ध है.

इन सब के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जवाहरलाल नेहरू का चरित्र साफ सुथरा नहीं था. अय्यासी उनके चरित्र का अनिवार्य हिस्सा थी. वह सेक्स के शौकीन थे. स्त्री बच्चे और यहां तक कि कुछ पुरुषों के प्रति भी उनका आकर्षण था.

नेहरू ने अपने सात साल के लंदन प्रवास में एक ख़्वाब जैसी जिंदगी जी थी - अच्छी पढ़ाई, शानदार सोसाइटी व रिश्ते , बेहतरीन शामें, हसीन रातें, खुली, उन्मुक्त और आज़ाद जिंदगी. भारत में इसे आप अय्यासी ही कहेंगे. यहीं से अय्यासी उनके जीवन का हिस्सा बन गयी लेकिन यह उनका निजी मुद्दा है और देश को इससे ज्यादा मतलब नहीं बशर्ते इससे उनका कर्तव्य निर्वहन बाधित नहीं होता हो.

लेडी माउंटबेटन या एडविना से उनका दिव्य प्रेम सार्वजनिक है और इसे नेहरू ने भी कभी छुपाया नहीं. एडविना के लिए उन्होंने सबकुछ दावं पर लगा दिया था, देश को भी, क्या इसे कोई उचित ठहरा सकता है. कुछ लोग इसका जबाब हाँ में दे सकते हैं क्योंकि यह सच्चाई अब सामने आ चुकी है कि नेहरु को प्रधानमंत्री बनाने में एडविना की प्रमुख भूमिका थी. इसके बाद वाइसराय ( माउंट बैटिन ) ने गांधी जो को तैयार किया जिन्होंने चालाकी से सरदार बल्लभ भाई पटेल को किनारे कर दिया.

एडविना को उपहार देना, प्रेमपत्र लिखना तो ठीक है लेकिन यदि देश का विभाजन, कश्मीर का एक भाग पाकिस्तान को सौपना (अप्रत्यक्ष रूप से कश्मीर का भी विभाजन ) आदि के पीछे भी एडविना है, और जिन्ना ने एडविना का स्तेमाल किया है तो इसे क्या कहा जाएगा ? दुर्भाग्य से नेहरू की इस चरित्रहीनता ने भारत को बहुत अधिक प्रभावित किया आजादी के पहले भी और उसके बाद तो आज तक हम सभी भुगत रहें हैं.

मॉर्गन जेनेट ने अपनी किताब ‘एडविना माउंटबेटन: अ लाइफ ऑफ़ हर ओन’ में लिखा है कि वे नेहरू को समझाने मशोबरा - एक हिल स्टेशन - ले गईं. नेहरु मान गए थे.

एडविना की बेटी ने एक किताब " India Remebered" लिखी है जिसमें आज़ादी के पहले और बाद की बहुत सी ऐसी बातें लिखी हैं जिनमे एडविना द्वारा नेहरु के स्तेमाल की साफ़ झलक है.

(एडविना की बेटी पामेला की किताब से लिया गया चित्र )

ब्रिटिश इतिहासकार फिलिप जिएग्लर ने माउंटबेटन की जीवनी में एक चिट्ठी का जिक्र किया है जो डिकी ने अपनी बेटी पेट्रिशिया को लिखी थी. नेहरू और एडविना का रिश्ता माउंटबेटन की जिंदगी के सबसे बड़े काम यानी विभाजन को आसान बना रहा था. वे यह भी समझते थे कि नेहरू के लिए एडविना उन्हें छोड़ नहीं सकतीं. इसलिए कहीं न कहीं वे इसे बढ़ावा भी दे रहे थे.

एलेक्स वॉन तुन्जलेमन ने अपनी किताब ‘इंडियन समर’ में एडविना और नेहरु की चिट्ठियों का ज़िक्र किया है. जवाहरलाल जहां भी कहीं जाते, एडविना के लिए तोहफ़े ख़रीदते. उन्होंने इजिप्ट से लायी गयी सिगरेट, सिक्किम से फ़र्न - एक तरह का पौधा, और एक बार उड़ीसा के सूर्य मंदिर में उकेरी हुई कामोत्तेजक तस्वीरों की किताब एडविना माउंटबेटन को भेजी और लिखा, ‘इस किताब को पढ़कर और देखकर एक बार तो मेरी सांसे ही रुक गयीं. इसे मुझे तुम्हें भेजते हुए किसी भी तरह की शर्म महसूस नहीं हुई और न ही मैं तुमसे कुछ छुपाना चाह रहा था.’

एडविना इसके जवाब में लिखती हैं कि उन्हें ये मूर्तिया रिझा रही हैं. ‘मैं संभोग को सिर्फ ‘संभोग’ की तरह से ही नहीं देखती यह कुछ और भी है, यह आत्मा की खूबसूरती जैसा है..’

जवाहरलाल नेहरू के संदर्भ में वैसे तो अनगिनत उदाहरण है लेकिन उनके निजी सचिव रहे एम ओ मथाई ने अपनी किताब 'Reminiscences of the Nehru Age', page 206. में लिखा है कि - 1948 की शरद ऋतु में बनारस की एक युवती श्रद्धा माता नामक संन्यासी के रूप में नई दिल्ली पहुंची, जिन्हें नेहरु के एक कर्मचारी एस.डी. उपाध्याय लाये थे.

वह एक संस्कृत विद्वान थीं और प्राचीन भारतीय शास्त्रों में पारंगत थीं. वह युवा, सुडौल और सुंदर थी. उनके प्रवचन सुनने के लिए सांसदों सहित लोग उनके पास उमड़ पड़े। नेहरू ने उन्हें अपना इंटरव्यू दिया था बाद में नेहरू की उनसे मुलाकात रात में अपना काम खत्म करने के बाद बार -बार होने लगी । एक दिन श्रद्धा माता ने उन्हें एक पत्र भेजा जिसे पढ़ कर नेहरु परेशान हो गए और उन्हें आधी रात में बुलाया गया . वह आयीं और इसके बाद अचानक श्रद्धा माता गायब हो गईं।

नवम्बर 1949 में बंगलौर एक कान्वेंट से पत्रों के एक बण्डल के साथ एक व्यक्ति प्रधान मंत्री आवास पहुंचा, ये पत्र नेहरु ने श्रद्धा माता को लिखे थे . उसने बताया कि उत्तर भारत से एक युवती यहां पहुंची थी जिसने कुछ महीने पहले कॉन्वेंट में एक बच्चे को जन्म दिया। उसने अपना नाम बताने या कोई विवरण देने से इनकार कर दिया था. जैसे ही वह बाहर जाने लाइक ठीक हो गई, वह बच्चे को छोड़ कर चली गयी लेकिन यह चिट्ठियों का यह बण्डल वहीं छूट गया था .

मथाई लिखते हैं कि उन्होंने बच्चे का पता लगाने की बहुत कोशिश की लेकिन पता नहीं चल सका. नेहरु के संज्ञान में यह बात आयी तो उन्होंने रहत की साँस ली.

सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा नायडू के आलावा 50 के दशक तक देश के शीर्ष उद्योगपति रहे रामकृष्ण डालमिया की बेटी नीलिमा और गुजरात के व्यापारी साराभाई परिवार की बेटी मृदुला से भी उनके प्रसंगो की हवा खूब उडी थी.

अब आप सोच सकते हैं, फैसला कर सकते हैं कि नेहरू का चरित्र कैसा था और उससे देश कैसे प्रभावित हुआ ?

बहुत से लोग नेहरु को आधुनिक भारत का निर्माता कहते हैं और यह बिलकुल सही है और मेरा इरादा नेहरु की महानता को कम करना बिलकुल भी नहीं है.

लेकिन कल्पना करिए कि आप भारत के पहले प्रधान मंत्री होते तो क्या अपनी पूरी शक्ति और सामर्थ्य से राष्ट्र निर्माण के लिए जी जान एक नहीं कर देते ? बिलकुल करते. और शायद भारत की अस्मिता और सार्वभौमिकता पर आंच भी नहीं आने देते


श्रीराम मंदिर निर्माण का प्रभाव

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