शनिवार, 29 मई 2021

वीर सावरकर : एक प्रखर राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कवि , लेखक और विचारक

 वीर सावरकर को कोटिश : नमन !




भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानी और राष्ट्रवादी नेता विनायक दामोदर सावरकर की आज 28 मई 2021 को 138वीं जयंती है। वीर सावरकर को शत शत नमन !

इस उपलक्ष पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कई अन्य मंत्रियों ने भी सावरकर को नमन करते हुए श्रद्धांजलि दी है।

कभी अटल बिहारी वाजपेई ने इन शब्दों में वीर सावरकर को श्रद्धांजलि अर्पित की थी.



2018 में धानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंडमान की सेलुलर जेल जाकर जेल की उसी कोठी में रखी वीर सावरकर की फोटो के सामने बैठकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए .

मेरी सेलुलर जेल यात्रा :

  1. दिसंबर 2017 में मैं जब अंडमान निकोबार के पोर्ट ब्लेयर स्थित  इस सेल्यूलर जेल  देखने पहुंचा तो क्रांतिकारियों पर अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार  उनके परमाणु देखकर ह्रदय द्रवित हो गया.   

  2. वीर सावरकर की कोठरी जो लगभग 12-13 फीट लंबी और 7 फीट चौड़ी थी,  जिसमें  उन्हें हथकड़ियां और बेड़िया लगाकर रखा जाता था. उस कोठरी में  कोई खिड़की नहीं थी सिर्फ लोहे का दरवाजा था. कोठरी  के किनारे पर पानी पीने का मिट्टी का एक बर्तन और लघु शंका से निवृत होने के लिए भी एक मिट्टी का बर्तन रखा  जाता था.   

  3. जरूरत पड़ने पर दीर्घ शंका  भी कैदियों को वही कोठरी  में करनी पड़ती थी.   

  4. यह कोठरी वीर सावरकर को जानबूझ कर दी गई थी, क्योंकि इसके ठीक नीचे फांसी घर  और यातना घर  बने हुए थे ताकि  कैदियों पर हो रहे अत्याचार के स्वर  लगातार  उनके कानों में जाते रहे  और उन्हें मानसिक  रूप से भी तोड़ा  जा सके.  

  5. भूतल पर लगे हुए तेल निकालने के कोल्हू में कैदियों को बैल की तरह जोता जाता था  और निश्चित मात्रा में प्रतिदिन तेल निकालना  प्रत्येक कैदी के लिए आवश्यक होता था.   

  6. इसी कोठरी में सावरकर ने  अपने जीवन के लगभग 10 साल बिताए. 

  7. मन  में लगातार एक प्रश्न  कौंधता  रहा कि  एक तरफ ऐसे  प्रखर राष्ट्रवादी  क्रांतिकारी थे   जिन्होंने इतनी  यातनाएं  सही  और दूसरी तरफ  जवाहरलाल नेहरू  जैसे  तथाकथित स्वतंत्रता सेनानी भी थे  जिन्हें जेल में  वीआईपी सुविधाएं मिलती थी, जिनसे  प्रतिदिन  पूछा जाता था कि वे नाश्ते में क्या खाएंगे, लंच  और डिनर में  में क्या खाएंगे.  जिन की लिखी हुई चिट्ठियों को  डाक घर तक पहुंचाने के लिए एक  जेल कर्मचारी  की ड्यूटी लगाई जाती थी.  ऐसा व्यक्ति  देश का प्रधानमंत्री बन जाता है  और वीर सावरकर  जैसे क्रांतिकारियों के  कार्यों को भी इतिहास से मिटाने की भरपूर कोशिश की जाती है, उन्हें बदनाम किया जाता है  ताकि कोई भी देश भक्त  उसे प्रेरणा ले सकें.   अंग्रेजों ने कांग्रेस की स्थापना  अपने शासन की निरंतरता बनाए रखने के लिए की थी और कांग्रेस  सरकार  ने  क्रांतिकारियों  और राष्ट्रवादियों  की वीर गाथाएं इतिहास से हटाकर और उन्हें लांछित  कर अपनी  सत्ता  बनाए रखने का असफल प्रयास किया . अंग्रेज तो केवल शारीरिक  यातनाएं  देते थे,  लेकिन कांग्रेस ने धार्मिक सांस्कृतिक और राष्ट्रवाद पर चोट करने की  ऐसी भयंकर यातनाएं इस देश को दी हैं,  जिसका उद्देश्य  समूचे  राष्ट्र का विध्वंस करना है, इसके   दुष्परिणाम  देश को कम से कम  अगले  100 वर्ष तक भोगने पड़ेंगे.  

महाराष्ट्र के नासिक के निकट भागुर गांव में 28 मई 1883 को जन्में वीर सावरकर एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार थे। राजनीति में हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा को विकसित करने में सावरकर का बहुत बड़ा योगदान है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनसंघ के सदस्य न होते हुए भी संघ परिवार में वीर सावरकर का बहुत सम्मान है क्योंकि वह राष्ट्र भक्ति की जीती जाती मिसाल थे.

वह वीर सावरकर ही थे जिन्होंने पूरे विश्व में हिंदुओं का मान बढ़ाने के लिए हिंदुत्व की अवधारणा को शब्द प्रदान किए . वह प्रखर राष्ट्रवादी और हिंदुत्व के पुरोधा थे उनके द्वारा लिखे गए साहित्य को सावरकर साहित्य के नाम से जाना जाता है, जिसमें राष्ट्रवाद कूट कूट कर भरा हुआ है. उनकी हर एक रचना राष्ट्रवाद की भावना को बेहद मजबूत करती है और यही कारण है कि उनकी पुस्तकें हैं ब्रिटेन जर्मनी पोलैंड आदि देशों में चलती थी लेकिन भारत में उन्हें प्रतिबंधित किया गया था. नेहरू ने आजादी के 5 साल तक दी इन किताबों से प्रतिबंध नहीं उठाया जब तक कि राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और लाल बहादुर शास्त्री ने इसके लिए आवाज उठाई .

सावरकर ने दी थी हिंदुत्व की ये परिभाषा -

सावरकर ने एक पुस्तक लिखी 'हिंदुत्व - हू इज़ हिंदू?' इस किताब में उन्होंने पहली बार राजनीतिक विचारधारा के तौर पर हिंदुत्व का इस्तेमाल किया था। सावरकर के अनुसार भारत में रहने वाला हर व्यक्ति मूलत: हिंदू है और यही हिंदुत्व शब्द की परिभाषा है।

जिस व्यक्ति की पितृ भूमि, मातृभूमि और पुण्य भूमि भारत हो वही इस देश का नागरिक है। हालांकि यह देश किसी भी पितृ और मातृभूमि तो बन सकती है, लेकिन पुण्य भूमि नहीं।

  • वीर सावरकर १८५७ में हुए सैन्य विद्रोह को भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहां था और इस में मारे गए सैनिकों को शहीद का दर्जा दिया था लेकिन कांग्रेस के लोग इसे पसंद नहीं करते थे कांग्रेस के अनुसार यह केवल सैनिक विद्रोह था जिसे अंग्रेजों ने कुचल दिया था .

  • हकीकत यह है कि अंग्रेज भारतीय क्रांतिकारियों से बहुत डरते थे और अट्ठारह सौ सत्तावन की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसलिए 1885 में ए ओ ह्यूम नाम के एक अंग्रेज से जो उस समय इटावा के कलेक्टर हुआ करते थे कांग्रेस की स्थापना स्वयं अंग्रेजी शासन नहीं कराई थी.

  • इतिहासकार और लेखक विक्रम संपथ की किताब “सावरकर - इकोज फॉर्म फॉरगगोटिन पास्ट” ( Savarkar - Echos from forgotten past) में लिखते हैं की कांग्रेसका उद्देश्य भारत को स्वतंत्रता दिलाना हरगिज़ भी नहीं था कांग्रेस की स्थापना करने का मतलब था कि सावरकर जैसे बुद्धिजीवी क्रांतिकारियों को भारत की सोच सामान्य जनमानस को प्रभावित न करने पाए. संपथ ने इस किताब में वीर सावरकर के जीवन से जुड़ी अनेक अनसुनी बातें बताई हैं.

  • आजादी के बाद ज्यादातर शासन करने वाली कांग्रेस के समय हमेशा प्रयास किया गया की देशभक्ति का पाठ पढ़ाने वाले देश के असली नायकों को इतिहास से बाहर कर दिया जाए ताकि आगे की पीढ़ियों उनके नाम भी ना जान सके .

  • अक्तूबर, 1906 में लंदन में मोहनदास करमचंद गांधी को अपने यहाँ खाने पर बुला रखा था ( जो उस समय महात्मा गांधी नहीं थे ) जो दक्षिण अफ़्रीका में रह रहे भारतीयों के साथ हो रहे अन्याय के प्रति दुनिया का ध्यान आकृष्ट कराने लंदन आए हुए थे.

    • उन्होंने सावरकर से कहा कि अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ उनकी रणनीति ज़रूरत से ज़्यादा आक्रामक है. दोनों के बीच कुछ ऐसा हुआ कि गांधी बिना खाए हे चले गए .

  • १९०९ वीर सावरकर ने एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम था द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस, जिसमें उन्होंने 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम आंदोलन का विस्तार से वर्णन किया था. अंग्रेज इस किताब से इतना डरे हुए थे कि उन्हें इस किताब को प्रतिबंधित कर दिया.

  • प्रखर हिंदूवादी होने के कारण मार्क्सवादी राजनीतिज्ञों, विश्लेषकों व इतिहासकारों ने हमेशा उनकी आलोचना की और उनकी स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका को लेकर भी लगातार सवाल उठाए और सावरकर को नाज़ीवाद व फासीवाद से जोड़ने की भी भरपूर कोशिश की.

  • लेकिन भारत के वामपंथियों का ढोंग ही कहा जाएगा क्योंकि एक ऐतिहासिक तथ्य यह है कि कार्ल मार्क्स के पोते लोंगुएट ने हिंदुत्व के पुरोधा सावरकर का एक अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में में न केवल बचाव किया था बल्कि उनके व्यक्तित्व और राष्ट्रीय आंदोलन में उनकी भूमिका की जबरदस्त प्रशंसा भी की थी.

    • यद्दपि वह सावरकर को बचा नहीं सके और फैसला अंग्रेजों के पक्ष में गया. जिसके कारण 1911 में वीर सावरकर को काले पानी की सजा सुनाई गई और उन्हें अंडमान की सेल्यूलर जेल में भेज दिया गया.

  • उन्हें 25-25 साल की दो अलग-अलग सजाएं सुनाई गईं . उन्हें 698 कमरों की सेल्युलर जेल में 13.5 गुणा 7.5 फ़ीट की कोठरी नंबर 52 में रखा गया.

  • मैं जब स्वयं इस सेलुलर जेल और सावरकर की कोठरी के दर्शनार्थ पहुंचा तो विश्वास करिए आपके आंसू आ जायेंगे .

    • इस छोटी सी कोठी में ही उन्हें लघु शंका से निवृत होना पड़ता था जिसके लिए मिट्टी का एक बर्तन रखा रहता था और जरूरत पड़ने पर उन्हें दीर्घ शंका भी वही करनी पड़ती थी. हथकड़ी और बेड़ियों से जकड़ा व्यक्ति तो बैठ भी नहीं सकता था. सभी कैदियों का जीवन नर्क से भी बदतर था.

( सेलुलर जेल और वह कोठरी जहां सावरकर को रखा गया था- मेरे द्वारा स्वयं ली गई फोटो)

अंडमान में सरकारी अफ़सर बग्घी में चलते थे और राजनीतिक कैदी इन बग्घियों को खींचा करते थे. उन्हें कोनों में बैल की जगह जूता जाता था जहां पर नारियल से तेल निकालने का काम उनसे कराया जाता था.

(सेलुलर जेल के अंदर बना तेल निकालने का कोल्हू जिसमें सावरकर को बैल की तरह जोता जाता था - मेरे द्वारा स्वयं ली गई फोटो )

( सेलुलर जेल के अंदर बना शहीद स्मारक- मेरे द्वारा स्वयं ली गई फोटो )

जेल में बिताए अपने अनुभवों के आधार पर सावरकर ने एक पुस्तक लिखी जिसका शीर्षक है “मेरा आजीवन कारावास” जिसमें जेल में उन्हें दी गई यातनाओं का बहुत लोम हर्षक वर्णन किया गया है.

दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने सेलुलर जेल के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा।

वर्ष 1949 में सावरकर पर गांधी हत्याकांड में शामिल होने का आरोप लगा था और उन्हें इस आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन सबूतों के अभाव में अदालत द्वारा उन्हें बरी कर दिया गया था।

26 फरवरी 1966 को भारत के इस महान क्रांतिकारी का निधन हुआ। उनका संपूर्ण जीवन स्वराज्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करते हुए ही बीता। वीर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी एवं प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे।

कांग्रेस ने अपने शासनकाल में वीर सावरकर के नाम को हमेशा बदनामी के गर्त दबाने की कोशिश की. जनता पार्टी के शासन काल में अंडमान के पोर्ट ब्लेयर स्थित सेलुलर जेल को स्वतंत्रता सेनानियों का स्मारक बनाया गया.

( सिग्नल जेल के अंदर लगा पत्थर - फोटो मेरे द्वारा स्वयं ली गई )

वर्ष 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्पति केआर नारायणन के पास सावरकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' देने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया था.

उन्हें भारत रत्न देने की मांग यदा-कदा चलती रहती है यदि अब उन्हें भारत रत्न दिया जाता है तो शायद कोई और नहीं है लेकिन मेरा मानना है वीर सावरकर का जो स्थान है सभी देश भक्ति भारतीयों के हृदय में है उसके लिए भारत रत्न कोई बात नहीं रखता है हां यदि भारत रत्न दिया जाता है तो निश्चित रूप से भारत रखती ही गौरवान्वित होगा.

References - [1] [2] [3]

फुटनोट

[1] मार्क्स के पोते ने की थी सावरकर की पैरवी, भारत के मार्क्सवादियों द्वारा उनका विरोध कितना तर्कसंगत

[2] तो ऐसे विनायक दामोदर सावरकर के नाम के आगे लग गया था 'वीर'

[3] वीर सावरकर : स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी नेता। Vinayak Damodar Savarkar