रविवार, 24 अप्रैल 2022

रघुराम राजन का बयान "अल्पसंख्यक विरोधी" छवि भारत और भारतीय कंपनियों को नुकसान पहुंचाएगी.

रघुराम राजन ने कहा है कि "अल्पसंख्यक विरोधी" छवि भारत और भारतीय कंपनियों को नुकसान पहुंचाएगी। 


राहुल गांधी और रघुराम राजन के बीच क्या संबंध है? के लिए शिव मिश्रा (Shiv Mishra) का जवाब

रघुराम राजन ने जो कहा है उस पर विश्लेषण करने के पहले मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि मेरी राय में रघुराम राजन बहुत अच्छे और स्तरीय अर्थशास्त्री नहीं है, लेकिन भारत में उनका बहुत ज्यादा महिमामंडन किया गया है जिसका कारण है एंटी मोदी और एंटी इंडिया मीडिया और भारत का एक तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग जो मोदी के विरोध में खड़े हर व्यक्ति के साथ खड़ा हो जाता है.

आज यह बिल्कुल प्रमाणित है कि वह भारत विरोधी हैं और केंद्र में भाजपा और मोदी सरकार होने की वजह से देश के हालात को भारत विरोधी विदेशी लॉबी के चश्मे से देखते हैं.

उनकी नियुक्ति यूपीए के शासनकाल में हुई थी और उनके कार्यकाल का कुछ हिस्सा कांग्रेस सरकार और बाकी मोदी सरकार में था.

उनकी हार्दिक इच्छा राहुल गांधी के मनमोहन सिंह बनने की थी ( राहुल प्रधानमंत्री और वह वित्तमंत्री ). वह सोचते थे कि अगर 2019 में कांग्रेस की सरकार बनती है तो वह वित्त मंत्री बन जाएंगे और उसके बाद अगर मिली जुली गठबंधन की सरकार का दौर चला तो कांग्रेश और गांधी परिवार के प्रति उनकी निष्ठा के कारण सर्वसम्मति के प्रधानमंत्री भी बन सकते हैं. उन्हें प्रधानमंत्री का पद अपने से सिर्फ दो कदम दूर लगता था एक कदम वित्त मंत्री बनना और दूसरा कदम प्रधानमंत्री बन जाना.

रिजर्व बैंक के गवर्नर की नियुक्ति 3 साल के लिए होती है जिसे और २ साल के लिए बढ़ाया जा सकता है. उनके कार्यकाल के दौरान डॉ सुब्रमण्यम स्वामी अनेक ऐसे तथ्य लाए जिनसे साबित होता था कि वह भारतीय अर्थव्यवस्था और सरकार के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं. मोदी सरकार आने के बाद भी वह लगातार अपने गुरु पी चिदंबरम के संपर्क में रहते थे और उनकी सलाह पर कार्य करते थे. डॉक्टर स्वामी के जबरदस्त विरोध के कारण ही मोदी सरकार ने रघुराम राजन का कार्यकाल नहीं बढ़ाया. तब से लेकर आज तक रघुराम राजन मोदी और भाजपा सरकार के विरोध में खड़े हैं और हर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर सरकार की आलोचना करने का कोई भी अवसर हाथ से नहीं जाने देते.

रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में डॉक्टर रघुराम राजन ने भारतीय बैंकिंग व्यवस्था में कोई खास सुधार तो नहीं किया लेकिन मोदी सरकार के आने के बाद सरकार से उनका सामंजस्य टूट गया था. वैसे तो रिजर्व बैंक एक स्वायत्तशासी संस्था है लेकिन अगर रिजर्व बैंक सरकार से सहयोग करना बंद कर दें तो अर्थव्यवस्था की दुर्गति हो सकती है.

राजन के नीतिगत फैसलों के कारण बैंकिंग व्यवस्था चरमरा गई थी. बैंकों से ढूंढ ढूंढ कर एनपीए निकालना और उसके विरुद्ध प्रोविजन करना उनके कार्यकाल का एक प्रमुख कार्य कहा जा सकता है. इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय बैंकिंग व्यवस्था की साख को बहुत धक्का लगा.

मजेदार तथ्य है कांग्रेश शासन के समय उन्होंने भारत में इस्लामिक बैंकिंग शुरुआत करने को सिद्धांत मंजूरी दे दी थी और प्रायोगिक तौर पर केरल में इसकी शुरुआत भी कर दी गई थी. रिजर्व बैंक से उनकी विदाई के बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

आज अगर रघुराम राजन कहते हैं कि "भारत में तानाशाही है जो अपने अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करता है, जिसकी खबरें इकोनॉमिस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट में छपती हैं. देश में मौत के आंकड़े भी छिपाये जा रहे हैं।" इन सब बातों से बिल्कुल स्पष्ट है कि उनका रुख भारत विरोधी है और वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं. उनका यह कहना कि "अल्पसंख्यक विरोधी छवि भारत और भारतीय कंपनियों को नुकसान पहुंचाएगी" एक तरह से विदेशी निवेशको और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को भारत के प्रति प्रतिकूल संदेश देना है. उनके कथन के ठीक विपरीत अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और अन्य संस्थाएं भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रशंसा कर रही हैं, जैसे नीचे के चार्ट से देखा जा सकता है

वैसे तो उन्होंने कई भारतीय मुद्दों जैसे अर्थव्यवस्था की रिकवरी, श्रम कानून, न्यूनतम समर्थन मूल्य और निजीकरण आदि पर विवादित और बकवास पूर्ण बयान दिए हैं.

समझा जा सकता है कि आरबीआई के गवर्नर के रूप में उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल किया होगा. अच्छी बात यह है कि देश और विदेश में लोग उन्हें समझ गए हैं इसलिए उनकी बातों का कोई बहुत फर्क नहीं पड़ता. मेरी व्यक्तिगत राय है कि हम सभी को डॉ सुब्रमण्यम स्वामी का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से ऐसी ऐसी सूचनाएं सार्वजनिक की जिसे कारण भाजपा सरकार भी बैक फुट पर आ गयी और उसने राजन का कार्यकाल नहीं बढ़ाया और देश का बड़ा नुकसान होने से बच गया हालाँकि इस पर बहुत दिनों शोर शराबा किया जाता रहा.
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- शिव मिश्रा 

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