चाटुकारों का चक्रव्यूह || राहुल का मोदी विरोध, कैसे बन जाता है भारत विरोध ?
कांग्रेस नेता शशि थरूर के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधि मण्डल अमेरिका, पनामा कोलंबिया, ब्राज़ील, और गुयाना की यात्रा पर हैं. ऑपरेशन सिंदूर की सफलता अर्जित करने के बाद भारत सरकार ने सात प्रतिनिधिमण्डल अपने रणनैतिक साझीदार तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों में भेजें हैं, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान द्वारा अपने देश में उगाई जा रही आतंकवाद की फसल के बारे में बताना और ये अनुरोध करना है कि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान द्वारा लाए गए किसी भी भारत विरोधी प्रस्ताव का विरोध करें क्योंकि पाकिस्तान इस समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है.
शशि थरूर की अमेरिका यात्रा इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि उन्होंने अमेरिका अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे की पोल खोल दी जिसमें उन्होंने भारत और पाकिस्तान के मध्य युद्धविराम कराने का श्रेय लिया था. थरूर ने भारत का पक्ष इतनी मजबूती से रखा जिससे पूरा देश गौरवान्वित हुआ लेकिन उनकी धारदार और प्रभावी शैली स्वयं उनकी पार्टी कांग्रेस को रास नहीं आई. पार्टी प्रवक्ताओं ने उनपर जोरदार हमला बोला और उन्हें मोदी का चमचा तक करार दे दिया. स्वाभाविक है ऐसा पार्टी आलाकमान के निर्देश पर ही किया गया है. सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल के लिए कांग्रेस ने शशि थरूर का नाम नहीं दिया था लेकिन सरकार ने थरूर के संयुक्त राष्ट्र में अनुभव और अंतरराष्ट्रीय नीतियों की समझ को देखते हुए प्रतिनिधिमण्डल का नेता बना दिया. कांग्रेस हाई कमान की अनिच्छा के बाद भी शशि थरूर ने प्रतिनिधिमण्डल का नेता बनना स्वीकार किया तथा अपने अनुभव एवं ज्ञान का भरपूर लाभ देश को दिया.
कांग्रेस को वॉशिंगटन और पनामा में शशि थरूर द्वारा दिए गए प्रस्तुतिकरण पर आपत्ति है, क्योंकि उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में उड़ी सर्जिकल स्ट्राइक में पहली बार भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पार करके पाकिस्तान स्थित आतंकी अड्डों तथा लॉन्च पैडों को नष्ट किया. थरूर ने कहा कि कारगिल युद्ध के दौरान भी भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पार नहीं की थी लेकिन उरी हमले के बाद की. जब पुलवामा में आतंकी हमला हुआ तो भारतीय सेना ने, न केवल नियंत्रण रेखा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सीमा भी पार करते हुए पाकिस्तान में घुस कर बालाकोट में आतंकवादियों का मुख्यालय नष्ट किया. उन्होंने आगे कहा कि ऑपरेशन सिंदूर भारत का एक नया सामान्य तरीका था. इस बार हम, न केवल नियंत्रण रेखा और अंतर्राष्ट्रीय सीमा से आगे गए, बल्कि हमने पाकिस्तान की हृदयस्थली पंजाब और पाकिस्तान के गैरकानूनी कब्जे वाले कश्मीर में नौ जगहों पर आतंकी ठिकानों, प्रशिक्षण केंद्रों, आतंकी मुख्यालयों पर हमला करके उन्हें नष्ट कर दिया. यह नया सामान्य तरीका होने जा रहा है। प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ऑपरेशन सिंदूर जरूरी था क्योंकि पाकिस्तान से आये आतंकवादियों ने 26 हिंदू महिलाओं के माथे से सिंदूर मिटा दिया था।
पाकिस्तान प्रयोजित आतंकवाद की जितनी घटनाएं भारत में हो चुकी है यदि उनका वर्णन किया जाए तो कई पुस्तकें तैयार हो जाएंगी लेकिन कुछ घटनाओं को भूलना संभव नहीं है. इनमें 26 नवंबर 2008 को मुंबई हमला भी है जिसमें 171 से अधिक लोग मारे गए थे और 300 से अधिक घायल हुए थे. कांग्रेस ने इसे भगवा आतंकवाद बनाने की कोशिश की लेकिन पाकिस्तान के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की. यूपीए सरकार के 10 वर्ष के कार्यकाल में पूरे भारतवर्ष में पाकिस्तानी आतंकियों ने घूम घूमकर हमले किए लेकिन सरकार ने पाकिस्तान के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की. अब कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार से पहले भी सर्जिकल स्ट्राइक होती रही है और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी 6 बार सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी लेकिन कांग्रेस ने कभी उनका राजनैतिक लाभ लेने की कोशिश नहीं की. यह भी एक तथ्य है कि कांग्रेस शासनकाल की सर्जिकल स्ट्राइक का लेखाजोखा कम से कम भारतीय सेना के पास तो नहीं है. मोदी कार्यकाल में भी पांच बड़े पाकिस्तान प्रयोजित आतंकी हमले हो चुके हैं. जिनमें पहलगाम के अतिरिक्त, उडी, गुरदासपुर, पठानकोट, पुलवामा और अमरनाथ यात्रियों पर हमला शामिल है. लेकिन पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए ऑपरेशन सिंदूर से पहले भी मोदी सरकार ने दो सर्जिकल स्ट्राइक की थी.
ऐसा लगता है कि कांग्रेस ऑपरेशन सिंदूर की सफलता से बहुत घबराई हुई है और उसे अपने राजनीतिक अस्तित्व पर संकट लगने लगा है. उरी और बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कांग्रेस ने मोदी सरकार से सुबूत मांग कर जनता में भ्रम फैलाने की कोशिश की थी ताकि इसका राजनैतिक लाभ भाजपा को न मिल सके. लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के लिए मोदी ने जबरदस्त तैयारी की थी. पहले से ही ऐलान कर दिया था कि कार्यवाही करेंगे. पूरे ऑपरेशन की लाइव वीडियोग्राफी हो रही थी और वॉर रूम में सैन्य अधिकारियों के साथ बैठ कर मोदी स्वयं इसका लाइव कवरेज देख रहे थे. अबकी बार कांग्रेस के पास सुबूत मांगने का विकल्प भी नहीं हैं. भारतीय सेना ने जो वीडियो और फोटो जारी किए हैं उन्हें देखकर पूरा विश्व आश्चर्यचकित हैं. इतना अचूक प्रहार किया गया और पाकिस्तानी वायु रक्षा तंत्र को भनक तक नहीं लगी. पाकिस्तान को तब पता चला जब ऑपरेशन सिन्दूर पूरा हो चुका था. पाकिस्तानी सेना ने बाद में भारत में नागरिक ठिकानों पर गोले दागे और ड्रोन हमले किए. भारतीय सेनाओं ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए पाकिस्तान के कई सैन्य हवाई पट्टियों को नष्ट कर दिया जिसमें सरगोधा और नूर खान जैसे महत्वपूर्ण एयरबेस भी शामिल है जिन्हें पाकिस्तान ने भारत पर परमाणु हमले करने के उद्देश्य से बनाया था है. इन एयर बेस के पास किराना हिल्स में पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने भी मिसाइल धमाकों से कांप उठे और उनसे विकिरण लीक होने की सूचनाएं अमेरिका तक पहुँच गई. घबराए पाकिस्तान ने भारत से सीजफायर की गुहार लगाई, जिसे भारत ने स्वीकार भी कर लिया क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य आतंकियों और उनके आकाओं के ठिकानों को नेस्तनाबूद करना था जो काफी हद तक पूरा हो चुका था. सबसे बड़ी बात, भारत किसी भी हालत में पकिस्तान के परमाणु संयंत्रों पर हमले का आरोप अपने ऊपर नहीं लगने देना चाहता था.
जहाँ तक शशि थरूर का प्रश्न है, कांग्रेस में पिछले काफी समय से उन्हें अनदेखा किया जा रहा है और ऐसी परिस्थितियां बनाई जा रही है कि वे स्वयं कांग्रेस छोड़ दें. पार्टी में अपने उदय के बाद राहुल गाँधी स्वयं योग्यता और विद्वता का पैमाना बन गए हैं. लोकप्रिय प्रभावशाली, कुशल और विद्वान व्यक्ति राहुल के नेतृत्व के लिए खतरा बन सकता है, इसलिए ऐसे व्यक्ति को पार्टी में दरकिनार किया जाता है. उसे राहुल गाँधी की हाँ में हाँ मिलाने के लिए प्रेरित किया जाता है और ऐसा न करने पर अपमानित करके पार्टी छोड़ने पर विवश कर दिया जाता है. ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण हैं. 2014 में शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस के पास केवल 44 सीटें थी, जो नेता विपक्ष के लिए आवश्यक संख्या से कम थीं. तब थरूर की योग्यता को अनदेखा करके मल्लिकार्जुन खड़गे को लोकसभा में नेता बनाया गया था. 2019 में भी कांग्रेस नेता विपक्ष के लिए पर्याप्त संख्या नहीं जुटा सकी. थरूर के चौथी बार चुनकर आने के बाद भी अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में नेता बनाया गया. ये दोनों नेता थरूर की तुलना में कहीं नहीं ठहरते. यदि थरूर को मौका दिया गया होता तो पार्टी लोकसभा में अपना पक्ष बेहतर ढंग से प्रस्तुत कर सकती थी. पार्टी अध्यक्ष पद के लिए भी शशि थरूर एक प्रत्याशी थे लेकिन गाँधी परिवार ने मल्लिकार्जुन खड़गे पर दांव लगाया. ये घटनाएं और परिस्थितियां पार्टी में शशि थरूर की महत्वहीनता और पार्टी की दिशा और दशा भी रेखांकित करती हैं.
कांग्रेस में योग्यता की अहमियत न होने के कारण स्वाभिमानी नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. अब अधिकांश ऐसे लोग बचे हैं जो गाँधी परिवार के चाटुकार हैं और अपने अस्तित्व के लिए पूरी तरह से गाँधी परिवार पर निर्भर है. पार्टी में प्रबुद्ध मंडल अब बचा नहीं, और चाटुकार मण्डली के बस का कुछ है नहीं. इसलिए राहुल गाँधी और अन्य नेताओं द्वारा अनर्गल बयानबाजी की जा रही है, जिससे कांग्रेस की स्थिति दिन प्रतिदिन हास्यास्पद बनती जा रही है. अनर्गल बयानबाजी के बीच शशि थरूर ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमण्डल के नेता के रूप में अपने प्रस्तुतिकरण से देश और विदेश में प्रभावी नेता के रूप में अपने आपको स्थापित कर लिया है. इसलिए कांग्रेसी चाटुकारों का चक्रव्यूह उनका कुछ बिगाड़ पाएगा, इसकी संभावना नहीं है.
~~~~ शिव मिश्रा~~~~~~
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