रविवार, 31 जनवरी 2021

पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की नई किताब "बाइ मैनी ए हैपी ऐक्सिडेंट: रीकलेक्शंस ऑफ ए लाइफ" नए खुलासे नए विवाद

 

27 जनवरी 2021 को विमोचन की गई यह किताब अमेज़न पर ₹125 मूल्य पर उपलब्ध है. इस किताब को सुर्खियों में लाने के लिए हामिद अंसारी ने नरेंद्र मोदी के साथ हुए उनके वार्तालाप और घटनाओं को सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत किया है. इसके अतिरिक्त इस किताब में कुछ भी खास नहीं है.

इस किताब के बारे में विमर्श करने से पहले 26 जनवरी 2021 को हामिद अंसारी और नरेंद्र मोदी के बीच हुई एक संक्षिप्त वार्तालाप से नरेंद्र मोदी और हामिद अंसारी के बीच के रिश्ते और उनकी संवैधानिक भूमिका के बारे में काफी कुछ समझा जा सकता है.

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी 26 जनवरी को राष्ट्रपति भवन में “एट होम” का आयोजन किया गया था. कोविड-19 के कारण आयोजन पहले ही काफी संक्षिप्त था, उस पर दिल्ली में हो रही घटनाओं ने इसे फीका बना दिया था. आयोजन की परंपरा के अनुसार सभी आमंत्रित लोग समय से आधे घंटे पूर्व पहुंच जाते हैं और प्रोटोकॉल के अनुसार तय समय पर सबसे पहले प्रधानमंत्री, उसके कुछ देर बाद उपराष्ट्रपति और आखिर में राष्ट्रपति आते हैं.

मोदी ने पहुंचकर अपनी आदत के अनुसार प्रत्येक मेज पर जाकर लोगों का हालचाल जाना और अभिवादन किया. हामिद अंसारी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के पास बैठे थे. मोदी जब उनके पास पहुंचे तो हामिद अंसारी ने मुस्कुराते हुए पूछा “कैसे हैं जनाब ?”

मोदी ने भी उसी तत्परता से जवाब दिया “ जी रहे हैं.. साहब, …… आपके बिना” इसके बाद हामिद अंसारी के चेहरे पर मुस्कुराहट गायब हो गई.

बात बहुत छोटी है लेकिन बहुत कुछ कहती है. पास खड़े हुए लोगों ने भी इसे शिद्दत से महसूस किया. एक वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश सिंह,जो इस आयोजन में आमंत्रित थे, ने अपने ब्लॉग में इसका उल्लेख किया है.

( २७ जनवरी २०२१ को राष्ट्रपति भवन में एट होम में हामिद अंसारी और मोदी )

स्वतंत्र भारत के इतिहास में शायद ही कभी उपराष्ट्रपति के पद पर बैठा कोई व्यक्ति इतना विवादित रहा हो, पद पर रहने के दौरान और पद पर छोड़ने के बाद भी जितना हामिद अंसारी हैं. उनके डीएनए में भी खिलाफत आंदोलन के बीज हैं, क्योंकि उनके नाते-रिश्तेदार 19वीं सदी में धार्मिक आधार पर हुए इस पहले आंदोलन का हिस्सा रहे थे, जहां से जन्मे मुस्लिम अलगाववाद ने आखिर देश का विभाजन भी करवा दिया. धार्मिक आधार पर – हिंदुस्तान और पाकिस्तान अस्तित्व में आए. हामिद अंसारी आज भी उसी मानसिकता में जी रहें हैं.

अपनी नई किताब " बाई मैनी ए हैप्पी एक्सीडेंट रिकलेक्शन ऑफ़ ए लाइफ " में उन्होंने मोदी पर जमकर भड़ास निकाली है .

हामिद अंसारी ने बतौर उपराष्ट्रपति अपने कार्यकाल के आखिरी सवा तीन वर्षों में पीएम मोदी और उनकी सरकार को परेशान करने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी.

पीएम मोदी ने 10 अगस्त 2017 के अपने भाषण में गिनाया था कि किस तरह हामिद अंसारी के कैरियर का ज्यादातर समय मध्य और पश्चिम एशिया के देशों में बीता, जहां वो कूटनीति की अलग-अलग भूमिकाओं में थे. रिटायरमेंट के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे, फिर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष, जहां से सीताराम येचुरी जैसे अपने वामपंथी मित्रों की मदद से यूपीए-1 के दौरान वो उपराष्ट्रपति बनने में कामयाब रहे थे.

( सेवा निवृत्ति के अवसर पर हामिद अन्सारी)

अंसारी ने अपनी किताब में कहा भी है कि मोदी ने खास तौर पर मुस्लिम देशों में उनके कैरियर का जिक्र और एक खास दृष्टिकोण की बात कर साफ संकेत देने की कोशिश की थी.

मोदी ने हामिद अंसारी के विदाई भाषण में माइनॉरिटी सिंड्रोम से पीड़ित होने का जो आरोप इशारों-इशारो में लगाया था और सांप्रदायिक सोच की तरफ भी इशारा किया था, उसके पीछे भी कई वजहें रहीं. हामिद अंसारी ने सार्वजनिक तौर पर कई बार इस्लामिक कार्ड खेला था. यही नहीं, मध्यपूर्व के कई मामलों में उनकी राय भारत सरकार की राय से अलग मुस्लिम प्रेम के नाते थी. पद छोड़ने के तुरंत बाद भी वो विवादास्पद संगठन, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के केरल के एक कार्यक्रम में भी शरीक हो आए थे, जिस पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के ढेरों आरोप हैं.

अंसारी ने किताब में लिखा हैं कि जिस समय एनडीए ये मांग कर रही थी डिन यानी शोर-शराबे के बीच भी महत्वपूर्ण बिल राज्य सभा में पारित कराए जाएं, उसी दौर में एक दिन पीएम मोदी बिना किसी पूर्व सूचना के उनके चेंबर में आए और बड़े अधिकार पूर्वक कहा कि उनसे ज्यादा जिम्मेदारी से अपनी भूमिका निभाने की उम्मीद की जाती है, लेकिन वो उनकी सहायता नहीं कर रहे हैं.

सवाल ये उठता है कि अपनी पुस्तक को सनसनीखेज बनाने के लिए इस तरह की घटनाओं का जिक्र किताब में करना चाहिए था? यह उपराष्ट्रपति की गरिमा के अनुकूल नहीं है.

लगता है कि उनका इरादा दुनिया को यह बताना है कि मोदी किस तरह से उपराष्ट्रपति के पद पर बैठे शख्स को धमकाने आए थे.

बतौर राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी का कार्यकाल बेहद पक्षपात पूर्ण रहा. हामिद अंसारी ने अपनी किताब में लिखा है कि यूपीए के दौरान उन पर कभी शोर-शराबे के बीच बिल पास कराने का दबाव नहीं आया .

मोदी के साथ अपनी उसी बातचीत का जिक्र करते हुए हामिद अंसारी ने किताब में ये भी लिखा है कि पीएम मोदी राज्यसभा टीवी के कामकाज से नाराज थे और कहा था कि ये सरकार के अनुकूल नहीं है,

राज्यसभा टीवी का गठन और इसका कामकाज शुरु से विवादों के घेरे में रहा है, और इस विवाद के केंद्र में रही है खुद अंसारी की भूमिका.

राज्यसभा में नियुक्तियों में राजनीतिक विचारधारा और प्रभाव को हर तरह महत्व दिया गया, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक पत्रकार की ऐसी नियुक्ति हुई, जो कांग्रेस के बड़े नेता ( दिग्विजय सिंह ) की बाद में पत्नी बन गयीं .

राज्यसभा टीवी में उपकरणों की खरीद से लेकर बाहर से कार्यक्रम बनाए जाने के नाम पर जो करोड़ों का भ्रष्टाचार हुआ, उसकी जांच जरूर शुरु हो गई है, इससे भी हामिद अंसारी परेशान हैं .

कुछ लोग विवादों से बचते हैं तो हामिद अंसारी जैसे कुछ लोग विवादों का हमेशा पीछा करते हैं.

शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

क्या रजिस्ट्री के बाद म्युटेशन करवाना जरूरी है और न करवाने के क्या नुकसान हैं?

ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट १८८२ के अनुसार किसी भी संपत्ति के स्वामित्व हस्तांतरण हेतु अभिलेख ( सेल डीड, गिफ्ट डीड या अन्य ) का पंजीकरण या रजिस्ट्री होना अनिवार्य है.

  • इस रजिस्ट्रेशन या पंजीकरण पर सरकार कर लगाती है जो स्टैंप ड्यूटी के रूप में क्रेता को देनी पड़ती है, जिसका निर्धारण संपत्ति के मूल्य या सरकार द्वारा निर्धारित सर्किल रेट के अनुसार किया जाता है.
  • अगर संपत्ति का विक्रय किया जाता है तो इसे सेल डीड, अगर गिफ्ट दिया जाता है तो इसे गिफ्ट डीड कहा जाता है.
  • रजिस्ट्रेशन या रजिस्ट्री की कार्यवाही रजिस्ट्रार के कार्यालय में संपादित की जाती है जो इस तरह के स्थानांतरण और विक्रय का रिकॉर्ड रखते हैं.
  • रजिस्ट्रेशन या रजिस्ट्री संपत्ति हस्तांतरण की पहली प्रक्रिया है और यह एक तरह से संपत्ति हस्तांतरण के लिए प्रमाण पत्र की तरह होती है लेकिन यह अपने आप में स्वामित्व का हस्तांतरण नहीं है.

इसे थोड़ा विस्तार से समझ लेना बहुत आवश्यक है.

  • हर संपत्ति का ब्यौरा सरकार के संपत्ति रजिस्टर या सरकारी दस्तावेजों में होता है और यह किसी भी संपत्ति के स्वामित्व या मालिकाना हक का अंतिम दस्तावेज माना जाता है.
  • अगर यह कृषि भूमि है तो इसका विवरण राजस्व दस्तावेजों में होता हैं, जो तहसील या स्थानीय राजस्व कार्यालय में होते हैं.
  • अगर यह शहरी भूमि या मकान है, तो इसका विवरण संबंधित विकास प्राधिकरण, नगर निगम, नगर महापालिका या अन्य संबंधित विभाग में होता है.
  • जब भी कभी संपत्ति का क्रय - विक्रय होता है तो इन सरकारी दस्तावेजों में संपत्ति स्वामी के नाम के स्थान पर नए खरीदार का नाम लिखवाना अत्यंत आवश्यक है.
  • मूल सरकारी दस्तावेजों में नाम परिवर्तित करने की इस प्रक्रिया को म्यूटेशन, इंतकाल या दाखिल खारिज कहा जाता है. इसलिए जब तक म्यूटेशन इंतकाल या दाखिल खारिज नहीं हो जाता है तकनीकी रूप से खरीदार को स्वामित्व नहीं मिलता और सम्पत्ति पर पुराने मालिक का नाम अंकित रहता है .

म्यूटेशन इंतकाल या दाखिल खारिज न करवाने के नुकसान

  • म्यूटेशन न करवाए जाने पर संपत्ति के सरकारी दस्तावेजों में पहले वाले भू -स्वामी का नाम रहता है और तकनीकी तौर पर वह संपत्ति का मालिक होता है.
  • जब तक संपत्ति रजिस्टर में पुराने भू - स्वामी का नाम है, किसी धोखाधड़ी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
  • बिना धोखाधड़ी किये भी एक स्वाभाविक परेशानी होती है कि सरकारी दस्तावेजों में दर्ज भू स्वामी की मृत्यु के पश्चात उत्तराधिकार कानून के अनुसार थोड़ी सी औपचारिकता के बाद ( मृत्यु प्रमाण पत्र और उत्तराधिकार प्रमाण पत्र) तहसील, नगर निगम और नगर महापालिका में मृतक के उत्तराधिकारियों का नाम आ जाना बहुत आम बात है.
    • ये उत्तराधिकारी खरीदार को अनावश्यक कोर्ट कचहरी के चक्कर में डाल सकते हैं.
  • मूल भूस्वामी भी लालच में आकर अपनी संपत्ति की दोबारा रजिस्ट्री कर सकता है और इस तरह एक ही संपत्ति के दो खरीदार हो जाएंगे.
  • अगर दूसरा खरीदार ज्यादा तेज हुआ और उसने पहले म्यूटेशन करा लिया तो भी अनावश्यक मुकदमे बाजी शुरू हो जाएगी.
  • रजिस्ट्री कराने के बाद यदि काफी समय हो गया है तो भी संबंधित विभाग को एक लंबी प्रक्रिया का पालन करना होता है जिसके अनुसार क्षेत्रीय समाचार पत्रों में इस म्यूटेशन के आवेदन की सार्वजनिक सूचना दी जाती है ताकि यदि किसी को आपत्ति हो तो वह अपनी आपत्ति दर्ज करा सके.
    • इसमें अनावश्यक परेशानी तो होगी ही समय और पैसे की भी बर्बादी होगी.
    • दुर्भाग्य से अगर किसी ने आपत्ति दाखिल कर दी तो व्यर्थ की मुकदमे बाजी भी शुरू हो सकती है.

क्या सावधानी बरतें ?

  • जब भी कोई संपत्ति खरीदें चाहे वह कृषि भूमि हो या शहरी भूमि या कोई बना बनाया मकान , उसकी सर्च रिपोर्ट किसी वकील के माध्यम से जरूर बनवानी चाहिए.
  • यह वकील संबंधित रजिस्ट्री ऑफिस और संबंधित संपत्ति कार्यालय के कम से कम 12 साल के रिकॉर्ड देखेगा और नॉन इनकंब्रेंस सर्टिफिकेट बनाएगा.
  • इसके साथ ही वह वकील बिक्री करने वाले व्यक्ति और संपत्ति दस्तावेजों में अंकित अंतिम व्यक्ति की छानबीन करेगा और पिछले 30 सालों में संपत्ति हस्तांतरण की श्रंखला की जांच करेगा ( चैन ऑफ टाइटल डीड)
  • उपरोक्त दोनों चीजें सही होने पर ही संपत्ति खरीदनी चाहिए.
    • अगर आप किसी अच्छे बैंक से ऋण ले रहे हैं तो संभवत इन बातों का पालन किया जाएगा
      • स्टेट बैंक में बिना इन रिपोर्ट्स के ऋण नहीं दिया जा सकता . इस प्रक्रिया में काफी समय भी लगता है और थोड़ा खर्चा भी होता है इसलिए कई बार लोगों को स्टेट बैंक की प्रक्रिया काफी जटिल और लंबी लगती है.
      • मेरे राय में यह अत्यंत आवश्यक है कि जिस संपत्ति में आप इतना निवेश कर रहे हैं उसकी पूरी तरह से जांच पड़ताल होनी ही चाहिए.
  • एक बार जब आप सभी तरह की कमियों से मुक्त, साफ और स्वच्छ स्वामित्व वाली संपत्ति खरीदते हैं तो इसके तुरंत बाद संभव हो तो एक माह के अंदर नाम स्थानांतरण के लिए आवेदन कर देना चाहिए.
  • यही नहीं जब आपका नाम आ जाता है तो उसके बाद भी आप किसी वकील के माध्यम से एक छोटी सर्च रिपोर्ट प्राप्त कर सकते हैं ताकि आप सुनिश्चित कर सकें कि वह संपत्ति आपके नाम आ चुकी है.

                                                                            **************** 

भारत की अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार से आगे बढ़ाने के लिए हमें कैसी वित्तीय व्यवस्था अपनानी चाहिए?

तुरत फुरत किसी इकोनामिक मॉडल को बदल पाना बहुत मुश्किल होता है. स्वतंत्रता के बाद भारत की अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था बनाई गई थी, जिसका मतलब होता है पब्लिक सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर का साथ साथ काम करना.

दुर्भाग्य से पब्लिक सेक्टर में जहां निवेश किया गया वह ऐसे स्थान थे जहां प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा दिया जाना चाहिए था. श्रीमती इंदिरा गांधी के समय में इसमें कुछ परिवर्तन करने की कोशिश की गई, बहुत अच्छे परिणाम भी निकले लेकिन जल्दी ही सब कुछ वोट बैंक के हवाले हो गया.

इस कारण बैंक राष्ट्रीयकरण करने के एक अच्छे कार्य के बाद, बड़ी संख्या में कपड़ा, जूट, कताई, चीनी, खाद, बीज, स्कूटर, ट्रैक्टर, घड़ी जैसे तमाम तरह के यांत्रिक मिलों का भी अधिग्रहण सरकार ने किया जिसमे बहुत पैसा निवेश किया गया लेकिन कालांतर में यह सारी मिले बंद हो गई.

इस तरह के कार्य से पैसा तो बर्बाद हुआ ही, प्राइवेट सेक्टर को याचक की मुद्रा में खड़ा कर दिया गया और उसके बाद प्राइवेट सेक्टर और उस को गति देने वाली पूंजी पतियों को स्थाई रूप से चोर और बेईमान घोषित कर दिया गया, दुनिया में ऐसा कहीं नहीं होता और यह भी एक बहुत बड़ा कारण है भारतीय अर्थव्यवस्था के गति न पकड़ पाने का. दुनिया में जितनी भी बहुराष्ट्रीय कंपनी है, ज्यादातर या लगभग सब प्राइवेट सेक्टर से है और वह अपने देशों के लिए दुनिया भर से राजस्व कमा कर लाती हैं . क्या भारत में एक भी ऐसी प्राइवेट कंपनी है जिसका कोई भी उत्पाद पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो ?

दुर्भाग्य से ऐसी कोई भी कंपनी भारत में नहीं है.

कौन है सबके लिए जिम्मेदार ? केवल और केवल सरकारी नीतियां.

  • सरकार का काम व्यापार करना नहीं है और दुनिया की ज्यादातर सरकारें व्यापार में भाग नहीं लेती हैं . भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश में सरकार के पास इतना धन नहीं होता है कि वह व्यापार कर के अपनी पूंजी गवां दे और जो धन कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए गरीबों के जीवन उत्थान के लिए काम आ सकता है व्यर्थ में बर्बाद कर दिया जाए.
  • हमारा आयात बहुत ज्यादा है और निर्यात बहुत कम और यह व्यापार घाटा प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा है. इसका प्रमुख कारण है कि औद्योगिक क्षेत्र में भारत का निष्पादन गुणवत्ता और लागत के हिसाब से विश्व स्तर पर प्रतियोगी नहीं है.
  • जो सामान चीन से बन कर, तमाम करों का भुगतान करने के बाद भी फुटकर दुकानों में बहुत सस्ता मिलता है किन्तु उसकी उत्पादन लागत भारत में इतनी ज्यादा होती है कि वह इनके सामने कहीं नहीं ठहरते.
  • इससे उबरने के लिए हमें न केवल अपना औद्योगिक मूलभूत ढांचा व्यवस्थित करना पड़ेगा बल्कि हड़ताल और विभिन्न श्रमिक असंतोष उनसे मुक्ति पानी होगी.
  • भारत को न केवल अपने उपभोग की चीजों को देश में बनाना होगा बल्कि ऐसी चीजें भी बनानी होगी जिनका बड़े पैमाने पर निर्यात किया जा सके ताकि हमारा व्यापार घाटा खत्म हो सके.
  • स्वतंत्रता के बाद से सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान निरंतर घटता जा रहा है और अब यह लगभग 16% के आसपास आ गया है.
  • कितनी बड़ी विडंबना है कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जहां की 75% आबादी आज भी कृषि या कृषि आधारित उद्योगों पर आधारित हो , उस क्षेत्र का योगदान सिर्फ 16% है . हमें इसे बढ़ाना होगा ताकि न केवल नए रोजगार सृजित किए जा सकें बल्कि अर्थव्यवस्था को भी गति दी जा सके.
  • इसके लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है कृषि सुधारों की ताकि कृषि को लाभकारी तथा उपयोगी और उद्योगपूरक बनाया जा सके.

अगर भारत आने वाले कुछ वर्षों में कृषि तथा उद्योगों के बीच, और प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के बीच समन्वय स्थापित किया जा सके तो अब शीघ्र ही उत्प्रेरित किया जा सकता है.


क्या है मकर संक्रांति और सूर्य का उत्तरायण होना ?




सूर्य का उत्तरायण होना वास्तव में भारतीयता का उत्तरायण होना है.

इसका अत्यंत धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है. हजारों साल पहले वैदिक ग्रंथों में जो लिखा गया था उसे मात्र सौ साल पहले ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझा जा सका है.

इससे पहले मकर संक्रांति और सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन होने की घटना को भारतीय धार्मिक मानसिकता करार दिया जाता था. दुर्भाग्य से इस पर विश्वास न करने वालों में ज्यादातर भारतीय ही थे और कुछ आज भी हैं.

महाभारत का समय ईशा पूर्व 5000 वर्ष पश्चिमी विद्वान स्वीकार करे हैं उसके अनुसार आज से 7000 हजार वर्ष पूर्व भीष्म पितामह सरसय्या पर लेटे हुए अपना शरीर छोड़ने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी . इसका मतलब है कि उस समय भी लोगों को ब्रह्माण्ड की यह खगोलीय घटना की जानकारी थी और वैज्ञानिकों को केवल 100 वर्ष पूर्व यह घटना और इसके प्रभाव पता चल सके. यह है भारत का वैदिक ज्ञान.

आज जब इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण सिद्ध हो चुका है तो हम इसके धार्मिक और वैज्ञानिक खगोलीय दृष्टिकोण का संक्षेप में विश्लेषण करते हैं.

  1. भारतीय धार्मिक मान्यता
  • वैदिक ग्रंथों के अनुसार जब सूर्य उत्तरी गोलार्ध से दक्षिणी गोलार्ध की तरफ गमन करने लगता है तब इसे सूर्य का दक्षिणायन होना कहते हैं और जब दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की तरफ गमन करता है तो उसे सूर्य का उत्तरायण होना कहा जाता है.
  • सूर्य पृथ्वी के लिए ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है और आज सूर्य की किरणें दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की तरफ बढ़ने लगती हैं, जिसके कारण आज से दिन बड़ा होने लगता है और मौसम शरद से ग्रीष्म ऋतु में परिवर्तित होने लगता है.
  • सूर्य के उत्तरायण होने का मतलब है सूर्य द्वारा मकर रेखा को संक्रांत करना और धनु से मकर पर पहुंचना.
  • मकर राशि का स्वामी शनि होता है और वह सूर्य का पुत्र है. इसलिए माना जाता है कि सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए जाते हैं.
  • शनि को अंधेरे का प्रतीक माना जाता है इसलिए आज के दिन सूर्य का मकर पर पहुंचना पूरे ब्रह्मांड को प्रकाश पहुंचाता है.
  • आज के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर उत्तर की तरफ बढ़ने लगता है. मकर राशि में सूर्य के प्रवेश करने को मकर संक्रांति कहा जाता है.
  • ऐसा माना जाता है कि देवता उत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी गोलार्ध में रहते हैं और जब सूर्य उत्तरायण होने लगता है तो इसे अत्यंत शुभ माना जाता है.
  • इस संक्रांति के कारण जलवायु पर असर पड़ता है और वातावरण में होने वाली विभिन्न जैविक / अजैविक क्रियाओं के कारण मानव शरीर पर दुष्प्रभाव होने की संभावना रहती है इसलिए आज के दिन शुद्धता का विशेष महत्व बताया गया है.
  • इस दिन वेद मंत्र उच्चारण के साथ जल तीर्थों में जप, तप, स्नान, ध्यान, दान के माध्यम से तन मन की शुद्धि के अनुष्ठान का प्रावधान है.
  • पाचन संबंधी विकारों से बचने के लिए चावल और दाल मिश्रित खिचड़ी खाने का प्रावधान है और आज हल्के फुल्के और शरीर में ऊष्मा उत्पन्न करने वाले पदार्थ जैसे गुड़ तिल आदि खाने का प्रावधान है.
  • आज के दिन काशी प्रयाग पर गंगा सागर में स्नान करने का विशेष महत्व है.
  • दूरदराज से साधु, सन्यासी और ऋषि कल्पवास करने के लिए प्रयाग और काशी पहुंचते हैं जहां ये गंगा के किनारे वास करते हैं जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
  • आज के दिन ही भगीरथ गंगा को लेकर गंगासागर पहुंचे थे.
  • आज काशी में गंगा भी उत्तरवाहिनी हो जाती है.
  • आज के ही दिन खरमास की समाप्ति होती है.

2. वैज्ञानिक और खगोलीय महत्व :

  • वैज्ञानिक दृष्टि से यह सिद्ध हो चुका है कि मकर संक्रांति खतरनाक विकरण और उसमें भी सबसे खतरनाक अल्ट्रावायलेट ‘सी’ से सुरक्षित रखने में सहायता करता है.
  • सूर्य के उत्तरायण होने की स्थिति में पूरे भारतवर्ष में खासतौर से उत्तर भारत में कैंसर उत्पन्न करने वाली तथा त्वचा को झुलसाने वाली पराबैंगनी किरणों का प्रभाव कम होने लगता है.
  • मकर संक्रांति के कारण पूरे उत्तरी गोलार्ध में ओजोन परत में सघनता आ जाती है और इसके कारण नुकसानदायक किरणें और विकरण पृथ्वी पर नहीं पहुंच पाता है.
  • खगोलीय घटना के अनुसार आज का दिन सौर मंडल के केंद्र जो स्वयं सूर्य हैं, से लेकर उसकी परिधि शनि तक सब प्रकाशित हो जाने का पर्व है.

भारत में इस पर्व की विविधता :

पूरे भारतवर्ष में मकर संक्रांति का पर्व विभिन्न रूपों में मनाया जाता है इसे मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी, भोगाली, भोगी आदि नामों से श्रद्धा और विश्वास से मनाया जाता है.


सर्वोच्च न्यायालय ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन ऐक्ट 2004 को असंवैधानिक करार देने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के 22 मार्च 2024 के फैसले पर लगाई रोक

हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए कुछ निर्णय चर्चा में रहे जिनमें न्यायिक सर्वोच्चता के साथ साथ न्यायिक अतिसक्रियता भी परलक्...