इसका अत्यंत धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है. हजारों साल पहले वैदिक ग्रंथों में जो लिखा गया था उसे मात्र सौ साल पहले ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझा जा सका है.
इससे पहले मकर संक्रांति और सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन होने की घटना को भारतीय धार्मिक मानसिकता करार दिया जाता था. दुर्भाग्य से इस पर विश्वास न करने वालों में ज्यादातर भारतीय ही थे और कुछ आज भी हैं.
महाभारत का समय ईशा पूर्व 5000 वर्ष पश्चिमी विद्वान स्वीकार करे हैं उसके अनुसार आज से 7000 हजार वर्ष पूर्व भीष्म पितामह सरसय्या पर लेटे हुए अपना शरीर छोड़ने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी . इसका मतलब है कि उस समय भी लोगों को ब्रह्माण्ड की यह खगोलीय घटना की जानकारी थी और वैज्ञानिकों को केवल 100 वर्ष पूर्व यह घटना और इसके प्रभाव पता चल सके. यह है भारत का वैदिक ज्ञान.
आज जब इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण सिद्ध हो चुका है तो हम इसके धार्मिक और वैज्ञानिक खगोलीय दृष्टिकोण का संक्षेप में विश्लेषण करते हैं.
- भारतीय धार्मिक मान्यता
- वैदिक ग्रंथों के अनुसार जब सूर्य उत्तरी गोलार्ध से दक्षिणी गोलार्ध की तरफ गमन करने लगता है तब इसे सूर्य का दक्षिणायन होना कहते हैं और जब दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की तरफ गमन करता है तो उसे सूर्य का उत्तरायण होना कहा जाता है.
- सूर्य पृथ्वी के लिए ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है और आज सूर्य की किरणें दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की तरफ बढ़ने लगती हैं, जिसके कारण आज से दिन बड़ा होने लगता है और मौसम शरद से ग्रीष्म ऋतु में परिवर्तित होने लगता है.
- सूर्य के उत्तरायण होने का मतलब है सूर्य द्वारा मकर रेखा को संक्रांत करना और धनु से मकर पर पहुंचना.
- मकर राशि का स्वामी शनि होता है और वह सूर्य का पुत्र है. इसलिए माना जाता है कि सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए जाते हैं.
- शनि को अंधेरे का प्रतीक माना जाता है इसलिए आज के दिन सूर्य का मकर पर पहुंचना पूरे ब्रह्मांड को प्रकाश पहुंचाता है.
- आज के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर उत्तर की तरफ बढ़ने लगता है. मकर राशि में सूर्य के प्रवेश करने को मकर संक्रांति कहा जाता है.
- ऐसा माना जाता है कि देवता उत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी गोलार्ध में रहते हैं और जब सूर्य उत्तरायण होने लगता है तो इसे अत्यंत शुभ माना जाता है.
- इस संक्रांति के कारण जलवायु पर असर पड़ता है और वातावरण में होने वाली विभिन्न जैविक / अजैविक क्रियाओं के कारण मानव शरीर पर दुष्प्रभाव होने की संभावना रहती है इसलिए आज के दिन शुद्धता का विशेष महत्व बताया गया है.
- इस दिन वेद मंत्र उच्चारण के साथ जल तीर्थों में जप, तप, स्नान, ध्यान, दान के माध्यम से तन मन की शुद्धि के अनुष्ठान का प्रावधान है.
- पाचन संबंधी विकारों से बचने के लिए चावल और दाल मिश्रित खिचड़ी खाने का प्रावधान है और आज हल्के फुल्के और शरीर में ऊष्मा उत्पन्न करने वाले पदार्थ जैसे गुड़ तिल आदि खाने का प्रावधान है.
- आज के दिन काशी प्रयाग पर गंगा सागर में स्नान करने का विशेष महत्व है.
- दूरदराज से साधु, सन्यासी और ऋषि कल्पवास करने के लिए प्रयाग और काशी पहुंचते हैं जहां ये गंगा के किनारे वास करते हैं जिससे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- आज के दिन ही भगीरथ गंगा को लेकर गंगासागर पहुंचे थे.
- आज काशी में गंगा भी उत्तरवाहिनी हो जाती है.
- आज के ही दिन खरमास की समाप्ति होती है.
2. वैज्ञानिक और खगोलीय महत्व :
- वैज्ञानिक दृष्टि से यह सिद्ध हो चुका है कि मकर संक्रांति खतरनाक विकरण और उसमें भी सबसे खतरनाक अल्ट्रावायलेट ‘सी’ से सुरक्षित रखने में सहायता करता है.
- सूर्य के उत्तरायण होने की स्थिति में पूरे भारतवर्ष में खासतौर से उत्तर भारत में कैंसर उत्पन्न करने वाली तथा त्वचा को झुलसाने वाली पराबैंगनी किरणों का प्रभाव कम होने लगता है.
- मकर संक्रांति के कारण पूरे उत्तरी गोलार्ध में ओजोन परत में सघनता आ जाती है और इसके कारण नुकसानदायक किरणें और विकरण पृथ्वी पर नहीं पहुंच पाता है.
- खगोलीय घटना के अनुसार आज का दिन सौर मंडल के केंद्र जो स्वयं सूर्य हैं, से लेकर उसकी परिधि शनि तक सब प्रकाशित हो जाने का पर्व है.
भारत में इस पर्व की विविधता :
पूरे भारतवर्ष में मकर संक्रांति का पर्व विभिन्न रूपों में मनाया जाता है इसे मकर संक्रांति, पोंगल, लोहड़ी, भोगाली, भोगी आदि नामों से श्रद्धा और विश्वास से मनाया जाता है.
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