गुरुवार, 21 अप्रैल 2022

पकिस्तान बनाने के बाद भी मुस्लिम भारत में क्यों रहे?

भारत और पाकिस्तान के धार्मिक  आधार पर विभाजन के समय सारे मुसलमान पाकिस्तान क्यों नहीं गए?



यह बहुत बड़ा षड्यंत्र है. इसे समझाने के लिए थोडा पीछे जाना पडेगा.  भारत के मुसलमानों में लगभग सभी धर्मातरित हैं और वे  पहले हिंदू थे, लेकिन ये  सब इतने कट्टर हो गए कि वे स्वयं भी काफिरों का  यानी अपने हिंदू भाइयों का सफाया करने लगे. अंग्रेजों के शासन से मुक्ति के लिए जब 1857 में सैन्य विद्रोह हुआ और स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम आंदोलन शुरू हुआ तो उसमें भी हिंदू और मुसलमानों के बीच मतैक्य नहीं था. जब बहेलिया के जाल में दो अलग-अलग प्रजातियों के पक्षी फसते हैं तो मुक्ति के लिए दोनों साथ-साथ प्रयास करते हैं लेकिन यहां ऐसा भी नहीं हो पाया. मुसलमान चाहते थे कि अंग्रेजों ने मुगलों से शासन छीना है तो स्वतंत्रता के बाद शासन की बागडोर मुसलमानों के हाथ होनी चाहिए. 

इस मानसिकता के साथ उनकी मांग थी कि आंदोलन का मुखिया कोई मुसलमान हो. उस समय हिंदुओं की जनसंख्या 90% से भी अधिक थी फिर भी हिंदुओं ने दिल पर पत्थर रखकर अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर द्वितीय को आंदोलन का नेता स्वीकार कर उनकी अगुवाई में आंदोलन शुरू किया गया. बहादुर शाह जफर की उम्र लगभग 80 वर्ष थी और वह अपने पाजामे का नाड़ा भी खुद नहीं बाँध पाते थे. वह अंग्रेजों के मुखबिर बन गए और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सभी सेनानी एक-एक करके अंग्रेजी सेना के हाथों मारे गए. यहां से मुसलमानों को लगने लगा कि वह संख्या में कम होने के बाद भी जो चाहे कर सकते हैं.

1885 में अंग्रेजों ने कांग्रेश की स्थापना की ताकि इसके माध्यम से स्वतंत्रता की चाह रखने वाले लोगों को उलझा कर रखा जाए और अगले 100 वर्ष तक निश्चिंत होकर भारत पर शासन किया जा सकें. इस बीच हिंदू मुस्लिमों के बीच दूरियां बढ़ने लगी और 1906 मुस्लिम लीग की स्थापना के बाद सभी को यह आभास हो गया था कि मुस्लिम कुछ गड़बड़ करेंगे. मुस्लिम नेताओं ने अंग्रेजों पर दबाव बनाकर भारत के साथ अन्य कई देशों जहां अंग्रेजों का शासन था, को शामिल करके बृहत भारत बनाने का सुझाव दिया ताकि उसमें मुसलमानों की संख्या इतनी ज्यादा हो जाए कि वे स्वयं सरकार बनाने में सक्षम हो जाएं, लेकिन जब ऐसा नहीं हो सका तो उन्होंने भारत की सत्ता पर काबिज होने के लिए अंग्रेजों पर दबाव बनाया. आखिरी दांव के तौर पर 1940 में लाहौर में प्रस्ताव पास करके मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए एक अलग देश पाकिस्तान बनाने की मांग कर दी.

भारत में ऐसे मुसलमानों की संख्या लगभग नगण्य थी जो पाकिस्तान की पक्षधर नहीं थे इससे कई हिन्दू  बुद्धिजीवियों को भरोसा था कि विभाजन के बाद  हिंदू और मुसलमान शांतिपूर्वक रह सकेंगे लेकिन देश का भौगोलिक बंटवारा इतना आसान नहीं था क्योंकि हिंदू और मुसलमान लगभग पूरे भारतवर्ष में मिलीजुली आबादी में  थे. इसलिए पाकिस्तान बनाने के लिए ऐसे भौगोलिक स्थान चुने गए जहां मुस्लिम जनसंख्या घनत्व बहुत ज्यादा था. 

बेहद चालाकी से पूर्वी और पश्चिमी छोर पर स्थान चिन्हित किए गए और ऐसे राज्य भी पाकिस्तान में मिलाने के प्रयास किए गए जहां पर शासक मुस्लिम थे लेकिन अधिकतर जनसंख्या हिंदू थी. इनमें जूनागढ़ और हैदराबाद प्रमुख थे. निजाम ने तो हैदराबाद में मुस्लिम जनसंख्या बढ़ाने के लिए बर्मा और चीन से भी मुसलमानों को लाकर बसाया. टर्की, मलेशिया, सऊदी अरब, अफगानिस्तान आदि के मुस्लिम धार्मिक  संगठन भारतीय मुसलमानों को निर्देश दे रहे थे कि वह पाकिस्तान मिल जाने के बाद भी  भारत में रह कर जिहाद करें  ताकि ghazwa-e-hind का काम लगातार चलाया जा सके.  इसलिए भारतीय मुस्लिम नेताओं का निष्कर्ष यही था कि मुसलमानों को पाकिस्तान नहीं जाना चाहिए. एक समय ऐसा भी आया जब पाकिस्तान ने भी भारतीय मुसलमानों को संदेश दिया कि उन्हें हैदराबाद जाकर बसना चाहिए.

गांधी के बारे में अनेक तथ्य सामने आए हैं वह अंग्रेजों के एजेंट थे या नहीं यह विमर्श का विषय हो सकता है लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि गांधी हिंदुओं के परीक्षा मुसलमानों के ज्यादा बड़े हितैषी थे. नेहरू के बारे में भी इस तरह की तमाम बातें की जाती हैं और उनकी हिंदू होने पर संदेह किया जाता है क्योंकि उनके पिता मोतीलाल नेहरू से आगे के वंश का कोई प्रमाणिक पारिवारिक इतिहास नहीं मिलता है. नेहरू की स्थिति कांग्रेस में अत्यंत कमजोर थी लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री का पद मिला जो उनकी योग्यता या लोकतांत्रिक प्रक्रिया के आधार पर नहीं बल्कि एडविना माउंटबेटन की सहायता और गांधी के कांग्रेश पर तानाशाही पूर्ण वर्चस्व के कारण ही मिल सका था. कांग्रेस कार्यसमिति ने भारी बहुमत के आधार पर सरदार बल्लभ भाई पटेल को प्रधानमंत्री के रूप में चयनित किया था जिसे गांधी ने अपने तानाशाही वीटो से पलट दिया था और नेहरू को प्रधानमंत्री बना दिया था .

पूरा देश जिन्ना के साथ-साथ गांधी और नेहरू को विभाजन का प्रमुख गुनाहगार मानता था और इसलिए इन दोनों की लोकप्रियता में भारी गिरावट आ गई थी. गांधी मुस्लिम प्रेम में पागल थे और उनके लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार थे. लोग गांधी के सामने ही उनको भलाबुरा कहते थे गली देते थे. गांधी के बड़े  बेटे ने गांधी से स्वयं कहा था कि वह हिन्दुओं के नाम पर कलंक हैं.   

गांधी- नेहरू ने  मिलकर विभाजन के बाद मुसलमानों को हिंदुस्तान में  रोकने के लिए अनेक षड्यंत्र किये. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अपनी पुस्तक पाकिस्तान या भारत का विभाजन में लिखा है बिना जनसंख्या की अदला-बदली के हिंदुस्तान बनने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि पूरे विश्व में मुसलमानों के व्यवहार को देखते हुए अगर थोड़े से  मुसलमान भी हिंदुस्तान में बच जाते हैं तो वह हिंदुओं को शांति  से नहीं रहने देंगे और इसका सबसे अधिक नुकसान दलित समुदाय को होगा. डॉक्टर अंबेडकर ने जवाहरलाल नेहरू को इस संबंध में एक पत्र भी लिखा, जिसके जवाब में नेहरू ने बेहद हास्यास्पद बयान दिया था. उनका कहना था कि जनसंख्या की  अदला बदली करते हुए उनकी (नेहरु की ) पूरी उम्र निकल जाएगी, और कार्य पूरा नहीं हो पाएगा. मुसलमानों के जाने से उद्योग धंधों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी, देश में भुखमरी फैल जाएगी और हम अपनी जनता को मरता हुआ नहीं देख सकते. 


गांधी ने तो यहां तक कहा कि भारत से कोई भी मुसलमान  पाकिस्तान न जाय  बल्कि जो मुसलमान पाकिस्तान चले गए हैं उनको वापस लाया जाएगा. एक  अत्यंत हृदय विदारक बात गांधी ने  कही  कि पाकिस्तान से आने वाले हिंदू शरणार्थियों को भारत न आने  दिया जाए, और जो आ गए हैं उन्हें वापस पाकिस्तान भेजा जाएगा. पूर्वी पाकिस्तान से आने वाली हिंदू शरणार्थियों के लिए नेहरू ने कहा था कि उनके लिए परमिट व्यवस्था लागू की जाए ताकि वहां से  अनावश्यक रूप से हिंदू  शरणार्थी भारत में प्रवेश न कर सके। गांधी ने नवंबर 1947 में  कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में एक प्रस्ताव पास करवाया जिसमें कहा गया था कि मुसलमानों को भारत से पाकिस्तान नहीं जाने दिया जाएगा और जो मुसलमान पाकिस्तान चले गए हैं उन्हें वापस लाकर बसाया जाएगा.  गांधी में विश्वास रखने वाले पकिस्तानी इलाकों रहने वाले हिन्दुओं की लाशे ही रेलों से भारत आ सकीं.


नेहरू ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश से किसी मुसलमान को पाकिस्तान न  जाने देने के आदेश दिए थे। देश का इससे अधिक दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि पाकिस्तान आंदोलन के मुस्लिम लीग के एक नेता को नेहरू ने संविधान सभा में शामिल कर लिया और जब 15 अगस्त 1947 को नेहरु स्वतंत्रता मिलने की घोषणा करने वाले थे उस दिन पाकिस्तान आंदोलन के कई नेता उनके साथ मंच पर बैठे थे.

 

पाकिस्तान आंदोलन की प्रमुख भूमिका निभाने वाली लखनऊ की बेगम एजाज रसूल भी पाकिस्तान नहीं गई और नेहरू ने उन्हें न केवलसंविधान सभा का सदस्य बनाया, बल्कि पद्म भूषण से सम्मानित भी किया. लखनऊ के जोश मलीहाबादी को नेहरू ने व्यक्तिगत अनुरोध करके भारत में रहने को कहा और इसकी एवज में उन्हें ऑल इंडिया रेडियो में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई. जोस  का परिवार पाकिस्तान जा चुका था जिसके लिए नेहरू ने विशेष तौर से उनको एक साल में 4 महीने का वेतन सहित अवकाश पाकिस्तान अपने परिवार से मिलने जाने के लिए स्वीकृत किया था. 


नेहरू ने एक षड्यंत्र के तहत मुस्लिम लीग के सभी नेताओं, कार्यकर्ताओं और अन्य मुस्लिमों से कांग्रेस की चार आने वाली सदस्यता ग्रहण करने के लिए कहा ताकि वह देश में अपने लिए एक महत्वपूर्ण वोट बैंक की स्थापना कर सकें. हिंदुओं का नरसंहार करने वाले रजाकार संगठन के प्रमुख कासिम रिजवी तो पाकिस्तान चले गए थे लेकिन उनके संगठन के ज्यादातर सदस्य कांग्रेस में शामिल हो गए और कुछ ने एआईएमआईएम नाम की पार्टी बना ली और इस पार्टी ने भी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया. आजकल असदुद्दीन ओवैसी इसके नेता है. 


विडंबना देखिए किस मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की आधारशिला रखी उसके भी अधिकतर लोग पाकिस्तान नहीं गए और उन्होंने मुस्लिम लीग  आगे  इंडियन यूनियन लगाकर इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग बना ली और जवाहरलाल नेहरू ने  उसके साथ गठबंधन भी कर लिया. 


नेहरू जहां अपने लिए वोट बैंक की स्थापना कर रहे थे वही टर्की से लेकर मलेशिया तक और सऊदी अरब से लेकर अफगानिस्तान तक मुस्लिम संगठन भारतीय मुसलमानों को निर्देश दे रहे थे कि वह पाकिस्तान मिल जाने के बाद भी  भारत में रहे ताकि ghazwa-e-hind का काम लगातार चलाया जा सके. 


विभाजन के समय भारतीय क्षेत्रों में लगभग चार करोड़ मुस्लिम आबादी थी, जिसमें से केवल 72 लाख मुस्लिम ही पाकिस्तान गए और इसमें से भी 50 लाख केवल पंजाब प्रांत से गए, शेष 22 लाख पूरे भारतवर्ष से गए. उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जहां पर मुस्लिम बड़ी संख्या में थे और जिन्होंने दंगे फसाद करने से लेकर पाकिस्तान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, अधिकतर मुस्लिम पाकिस्तान नहीं गए. 


इस तरह एक षड्यंत्र के तहत धार्मिक आधार पर पाकिस्तान की स्थापना हो जाने के बाद भी शेष भारत को हिंदू और मुसलमानों की ज्वाइंट प्रॉपर्टी बना दिया गया. कई बेशर्म जिनका नाम मिट्टी में मिल गया था, वह यह कहने से नहीं चूके कि  उनका खून भी शामिल है यहां की मिट्टी में. 


भारत अब एक फिर हिंदू मुस्लिम तनाव से झुलस रहा है और अविभाजित भारत की तरह शेष भारत पर भी एक विभाजन का खतरा मंडरा रहा है या संपूर्ण देश को गजवा ए हिंद का खतरा सता रहा है. अबकी बार यह खतरा पहले से कहीं बड़ा है क्योंकि  वामपंथी विचारधारा वाले हिंदू भी मुसलमानों के आक्रामक रुख में पूरी तरह भागीदार हैं. 

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- शिव मिश्रा 


सन्दर्भ -

१. भारत का विभाजन - डॉ आंबेडकर,

२. विभाजन के गुनाहगार - राम मनोहर लोहिया

३. अन ब्रेकिंग इंडिया - संजय दीक्षित

४. इंडिया विन्स फ्रीडम - अबुल कलाम आजाद

५. फ्रीडम एट मिडनाइट -लार्री कॉलिंस और डोमेनिक लेप्रे

६. सेलेक्ट वर्क्स ऑन नेहरु 






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