शनिवार, 13 सितंबर 2025

नेपाल के बाद भारत की बारी ?

 


नेपाल के बाद भारत की बारी ? || नेपाल से पहले की गयी थी भारत में कोशिश लेकिन मोदी की सतर्कता के कारण ट्रम्प पीछे हटे || मलेशिया में राहुल गाँधी, अलेक्सेंडर सोरोस और जाकिर नाइक ने तय की नयी योजना


नेपाल में स्थिति अब लगभग साफ हो गई है और सत्ता परिवर्तन की जो मुहिम "जेन-जी" आंदोलन के रूप में शुरू की गई थी, वह अपने मुकाम पर पहुंच गई है। प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली इस्तीफा देकर फरार हो गए हैं. एक पूर्व प्रधानमंत्री को सेना ने बमुश्किल बचाया लेकिन उनकी पत्नी को जिंदा जला कर मार दिया गया. कई मंत्रियों के साथ हिंसा मारपीट की गई और सर्वोच्च न्यायालय सहित अनेक सरकारी भवनों को आग लगा दी गई । हिंसक उपद्रवी भीड़ ने जब पशुपति नाथ मंदिर पर हमला किया और तोड़ फोड़ शुरू की तो सेना को मोर्चा संभालना पडा. पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री बन गयी हैं जो यथाशीघ्र नई सरकार बनाने के लिए चुनाव करवाएंगी. चुनावी प्रक्रिया पूरी करने में 6 महीने से 1 वर्ष का समय लग सकता है तब तक नेपाल में अस्थिरता का वातावरण तो रहेगा ही । इस आंदोलन में पहली बार जेन-जी का नाम सामने आया जिसका मतलब होता है ऐसे लोग जिनकी उम्र 30 वर्ष से कम हो यानी इसमें अधिकांश छात्र हैं लेकिन इसे छात्र आंदोलन कहना इसलिए सही नहीं होगा क्योंकि पूरे आंदोलन की बागडोर कोई अदृश्य विदेशी शक्ति संभाल रही थी. इसमें धीरे-धीरे अराजक तत्व भी शामिल हो गए. इस्लामी कट्टरपंथी आतंकी संगठन हिजबुल आईएसआईएस और आईएसआई के भी शामिल हो जाने की सूचना मिली है क्योंकि पशुपतिनाथ मंदिर पर आक्रमण करने वाले ना तो हिंदू हो सकते हैं और न हीं नास्तिक ।

नेपाल की इस अद्भुत लगने वाली क्रांति ने केवल 2 दिन में प्रधानमंत्री को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया । फरार प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की वामपंथी सरकार के गिरने का रंच मात्र दुःख भारत को तो नहीं होना चाहिए क्योंकि वे नेपाल के हितों कीं अनदेखी कर चीन के लिए कार्य कर रहे थे. नेपाल की बहुत बड़े भूभाग पर चीन का कब्जा हो गया था लेकिन वह नया मानचित्र बना कर भारत के बड़े हिस्से को नेपाल का बता रहे थे. भ्रष्टाचार, भाई भतीजावाद और देश की बर्बादी के कारण जनता में उनके प्रति बेहद आक्रोश था. विडम्बना थी कि नेपाल की सरकार पक्ष और विपक्ष मिला कर चला रहे थे । इसलिए जमकर भ्रष्टाचार हो रहा था और यह बहुत बड़ा मुद्दा था, लेकिन पूरे आंदोलन में भ्रष्टाचार के अलावा सोशल मीडिया पर लगा प्रतिबंध भी एक बड़ा कारण रहा. इसलिए इस आंदोलन के पीछे बहुराष्ट्रीय अमेरिकी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और विदेशी शक्तियां ना हो ऐसा संभव नहीं।

कुछ समय पहले बांग्लादेश में इस तरह का हिंसक आंदोलन हुआ था और प्रधानमंत्री शेख हसीना को जान बचाकर भागना पड़ा था और भारत में शरण लेनी पड़ी थी. अंतरिम सरकार के रूप में अमेरिकी कठपुतली मोहम्मद यूनुस, जो दुर्भाग्य से नोबेल शांति पुरस्कार विजेता भी है, प्रधानमंत्री नियुक्त हुए लेकिन इतने लम्बे समय के बाद भी चुनाव कराने की स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है. वह सीधे अमेरिकी निर्देशों पर काम कर रहे हैं। उसके पहले श्रीलंका में भी इस तरह के हिंसक आंदोलन हुए थे और वहां भी राजनेताओं के विरुद्ध व्यापक संघर्ष हुआ था. वहां के राष्ट्रपति को जान बचाकर भागना पड़ा था. व्यापक हिंसा में सरकारी भवन, राष्ट्रपति भवन प्रधानमंत्री भवन को आग लगा दी गई थी और वहां के सामान लूट लिए गए थे. अराजकता का वीभत्स तांडव देखने को मिला जो सत्ता परिवर्तन का कारण बना। पाकिस्तान में वैसे तो बहुत कम समय ही चुनी हुई सरकार सत्ता में रह पाती है क्योंकि सेना जब चाहती है, सत्ता पर कब्जा कर लेती है. इसलिए इमरान खान को हटाये जाने की चर्चा बहुत ज्यादा मीडिया में नहीं हुई. इमरान की सरकार जनता द्वारा चुनी गई थी लेकिन जैसे ही उन्होंने अमेरिका के विरुद्ध बोलना शुरू किया, चुनाव में धांधली, भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर उनके विरुद्ध आंदोलन खड़ा किया गया और फिर सत्ता परिवर्तन हो गया और अब वे जेल में हैं । इस समय इंडोनेशिया में भी इस तरह का आंदोलन चलाया जा रहा है और कोई हैरत की बात नहीं कि थोड़े दिन में वहां भी सत्ता परिवर्तन देखने को मिले.

इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि सभी देश भारत के पड़ोसी देश हैं, जहाँ की घटनाओं के बाद भारत में यह माहौल बनाने की कोशिश की जाती है कि अब भारत में भी ऐसा होगा और मोदी सरकार का तख्ता पलट हो जाएगा । कांग्रेस काफी दिनों से इसकी आस लगाए बैठी है और इसके लिए खास प्रयास भी कर रही है लेकिन उसे इस कार्य में सफलता नहीं मिल रही है. ऐसा भी नहीं है कि भारत में इस तरह के प्रयास नहीं किये जा रहे हैं. वास्तव में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ही इस तरह के प्रयास शुरू हो गए थे क्योंकि अंतरराष्ट्रीय संगठन जो भारत में खुलकर खेल रहे थे, उनके काम पर मोदी सरकार ने अंकुश लगा दिया था. डीप स्टेट और विदेशी शक्तियों के इशारे पर काम करने वाले लाभार्थियों की दुकान बंद हो गई हैं. इनमें राजनेताओं के साथ पत्रकार, नौकरशाह, न्यायाधीश, सामाजिक और गैर सरकारी संगठनों के कर्ताधर्ता तथा प्रतिनिधि भी शामिल हैं । 2019 में मोदी सरकार की भारी बहुमत के साथ वापसी ने डीप स्टेट और कांग्रेस की नींद उड़ा दी. ये सब किसी भी हालत में मोदी सरकार को और बर्दाश्त नहीं करना चाहते हैं. इसलिए अमेरिकी एजेंसियों ने कुछ संगठनों के माध्यम से भारत में भी कार्यवाही तेज की. लोकतंत्र मजबूत करने, मतदाताओं को जागरूक करने आदि के नाम पर भारी भरकम राशि सरकार के विरुद्ध विमर्श तैयार करने मे की गयी ताकि उसे सत्ता से हटाया जा सके और अगर जरूरत पड़े तो जनता के आक्रोश के दम पर बड़ा जन आंदोलन खड़ा करके सरकार को सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सके, जैसा कि श्रीलंका, और बांग्लादेश मे हुआ और अब नेपाल में भी वहीं पटकथा दोहराई गई।

  1. मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए शाहीन बाग आंदोलन के नाम पर दिल्ली में 6 महीने तक जमावड़ा लगाया गया. दुर्भाग्य से सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस आंदोलन के विरोध में निर्णय देने के बजाय समझौते के लिए अपने वार्ताकार नियुक्त कर दिए, जिन्होंने स्थिति को और भी जटिल बना दिया. अंत में दिल्ली दंगे आयोजित किये गए. सरकार पर तो असर नहीं पड़ा लेकिन आंदोलन अपनी मौत मर गया ।  
  2. किसान आंदोलन के रूप में भारत में सत्ता परिवर्तन के लिए एक नया विमर्श खड़ा करने की कोशिश की गई. कथित आंदोलनकारी किसान दिल्ली की सीमाओं को घेर कर एक साल से भी अधिक समय तक बैठे रहे, जिससे अरबों रुपए का राष्ट्रीय नुकसान हुआ लेकिन इसे सरकार की परिपक्वता कहा जाय या कमजोरी, उसने आंदोलनकारियों के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग नहीं किया. मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंचा लेकिन भारत की न्याय व्यवस्था विमर्शकारियों के प्रभाव से कभी अछूती नहीं रही. यद्यपि सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानून भारत की कृषि व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए बेहद उपयोगी थे लेकिन न्यायपालिका के असहयोग और कथित किसानों की हठधर्मिता के कारण सरकार ने कृषि कानून वापस ले लिये। कथित आंदोलनकारी सरकार द्वारा अचानक उठाये गए इस कदम के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे, इसलिए वे कृषि कानून वापस होने के बाद भी आंदोलन समाप्त करने के लिए तैयार नहीं हुए और न्यूनतम समर्थन मूल्य की संवैधानिक गारंटी को लेकर फिर से आंदोलन करने का प्रयास किया गया. गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजधानी दिल्ली में इन कथित किसानों द्वारा उपद्रव किया गया. तिरंगे का अपमान हुआ और लाल किले से तिरंगा हटाकर एक धर्म विशेष का झंडा लगाकर भारत के सामाजिक ताने-बाने को झुलसाने की कोशिश भी की गई. मीडिया के एक वर्ग ने इस आग में घी डालने का काम किया. भरपूर प्रयास किए गए कि गणतंत्र दिवस के अवसर पर लोगों को सड़क पर लाया जा सके और सरकार पर दबाव बनाकर सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सके लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 
  3. 2024 के आम चुनाव के लिए अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रकारियों, इस्लामिक चरमपंथियों और वामपंथियों ने विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस, के साथ मिलकर मोदी को चुनाव में मात देने की पूरी कोशिश की और वे आंशिक रूप से इसमें सफल भी हुए क्योंकि मोदी अपने दम पर बहुमत पाने से चूक गए लेकिन नायडू और नीतीश के सहारे सरकार बनाने में सफल हो गए । इन चुनावों में अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्रकारियों का अभियान शायद सफल भी हो सकता था यदि जनता के बीच विपक्ष की थोड़ी सी भी साख होती, खासतौर से कांग्रेस की, जिसको जनता ने राष्ट्र विरोधी हरकतों के लिए अपने दिल दिमाग से निकाल दिया है. यही कारण है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा विदेशी शक्तियों से सांठ गांठ करके और इस्लामिक- वामपंथ गठजोड़ की बैसाखियों के सहारे भारत की सब्जा सत्ता पर कब्जा करने का सपना देख रही है.  

वैसे यह गांधी परिवार के लिए बड़ी बात नहीं है. नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक सभी इस कार्य में लिप्त रहे हैं. किसी का भी लगाव देश के प्रति दिखाई नहीं पड़ा. सबके दिल में भारत की सनातन संस्कृति और सनातन धर्म के प्रति बेहद नफरत का भाव है। उन्हें भारत भूमि से नहीं, उसकी सत्ता प्यार है. इसलिए सत्ता में रह कर कभी राष्ट्रहित की परवाह नहीं करते । नेहरू, इंदिरा, राजीव और सोनिया गांधी के नेतृत्व में चली कांग्रेस की कठपुतली सरकारों के देश विरोधी और हिंदू विरोधी कार्यों की एक लंबी सूची है। कांग्रेस सरकार का प्रधानमंत्री भले ही गांधी परिवार का ना हो लेकिन वह कांग्रेस की रीति नीति से अलग नहीं हो सकता. नरसिम्हा राव जैसे विद्वान व्यक्ति ने भी पूजा स्थल, वक्फ बोर्ड, अल्पसंख्यक आयोग को संवैधानिक दर्जा देने जैसे कई कानून बनाकर देश और सनातन धर्म का कितना नुकसान किया है, इसका सहज अनुमान लगाना मुश्किल है. मनमोहन सिंह का तो प्रधानमंत्री के रूप में कोई अस्तित्व ही नहीं था, सब कुछ सोनिया के राष्ट्रविरोधी और विदेशी सलाहकार करते थे। बेहाल राहुल विदेशी इशारे पर भारत के साथ ऐसा कुछ करना चाहते हैं, जो और उनके परिवार और कांग्रेस ने कभी न किया हो। वह दो मोर्चों पर एक साथ काम कर रहे हैं, पहला हिंदू समाज और सनातन धर्म को नष्ट भी करना चाहते हैं और दूसरा देश की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं. हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म को नष्ट करते हुए सत्ता प्राप्त करें या सत्ता प्राप्त करके हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म नष्ट करे, लेकिन अंतिम लक्ष्य है भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाना, जो मुस्लिम भी चाहते हैं । इसलिए दोनों एक दुसरे के संपूरक हैं.

ऑपरेशन सिन्दूर के बाद अमेरिका और भारत के बिगड़ते संबंधो के बीच भी एक बहुत बड़ा षड़यंत्र किया गया जिसमें मोदी के दोंनो समर्थकों नितीश और नायडू को भाजपा से समर्थन वापसी के लिए दबाव बनाया गया. इसके लिए कांग्रेस ने एक उद्योग पति सहित उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ को भी मोहरा बनाया लेकिन मामले की भनक मोदी और अमित शाह को लग गयी जिससे अमेरिकी चाल बेकार हो गयी और राहुल गाँधी का सपना एकबार फिर टूट गया. जातिगत जनगणना, चुनाव आयोग पर प्रश्न चिन्ह लगाना और चुनाव प्रक्रिया को संदिग्ध बनाना डीप स्टेट का एजेंडा है, जिसे “वोट चोर गद्दी छोड़” नारा लगाकर राहुल गांधी दोहरा रहे हैं. कई बार अमेरिकी डीप स्टेट, राहुल गांधी के माध्यम से आंदोलन खड़ा करने की कोशिश कर चुका है लेकिन एक तो भारत की परिस्थितियों अलग है, जनता में सरकार के प्रति कोई आक्रोश नहीं है, कांग्रेस का भ्रष्टाचार और राष्ट्र विरोधी गतिविधियां जनता भूली नहीं है और राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता किसी को भी विश्वास नहीं है. इसलिए अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्रकारियों और कांग्रेस का तख्ता पलटने का एजेंडा कभी पूरा नहीं हो सकेगा। नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका बहुत छोटे देश हैं जिनकी तुलना में भारत बहुत बड़ा देश है, जिसकी अर्थव्यवस्था दुनिया की चौथी सबसे बड़ी है.

नरेंद्र मोदी के रूप में भारत को राजनैतिक रूप से कुशल और परिपक्व नेतृत्व प्राप्त है. पुलिस, अर्ध सैनिक बल, और सेना का अपना विशिष्ट चक्र व्यूह है. इसलिए भारत में पड़ोसी देशों की तरह तख्ता पलट की कोई संभावना नहीं है. फिर भी कोई आग न लगा सके, इसके लिए घर में रखे राजनैतिक, सामाजिक और सांप्रदायिक ज्वलनशील पदार्थों पर कठोर नियंत्रण और सतत निगरानी अत्यंत आवश्यक है. समूचे राष्ट्र को जागरूक रहने की आवश्यकता है.

~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~



नेपाल के बाद भारत की बारी ?

  नेपाल के बाद भारत की बारी ? || नेपाल से पहले की गयी थी भारत में कोशिश लेकिन मोदी की सतर्कता के कारण ट्रम्प पीछे हटे || मलेशिया में राहुल ग...