बुधवार, 13 दिसंबर 2023

बाबरी मस्जिद का भूत जिहादियों के सिर

6 दिसंबर सकुशल निकल गया और सोशल मीडिया को छोड़कर देश में कहीं कोई हलचल नहीं हुई. सोशल मीडिया पर भी जिहादी, कट्टरपंथी और गज़वा ए हिंद में संलिप्त कुछ लोगों द्वारा साम्प्रदायिकता फैलाने की कोशिश हुई और विभाजन के पहले जैसा वातावरण बनाने की कोशिश की. सबसे अधिक हिंदू विरोधी आक्रामक भाषण असदुद्दीन ओवैसी ने दिया. उन्होंने भाजपा और संघ परिवार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जब तक दुनिया रहेंगी वह 550 वर्ष पुरानी अपनी बाबरी मस्जिद की शहादत का मुद्दा प्रमुखता से उठाते रहेंगे. वह अपने बच्चों को सिखाकर इस दुनिया से जाएंगे कि बाबरी मस्जिद की शहादत को भूलना नहीं है. ओवैसी अकेले मुस्लिम नेता नहीं है, जो इस तरह के विचार रखते हैं. दुर्भाग्य से साम्प्रदायिक कट्टरता, नई पीढ़ी में और भी ज्यादा है जो इस बात को रेखांकित करती है कि उन्हें मदरसों में क्या पढ़ाया जा रहा है, मस्जिदों की तकरीर में क्या बताया जाता है. दुनिया में कई देशों में मदरसों पर प्रतिबंध है और मस्जिदे नमाज़ के समय ही खुलती है और नमाज़ के तुरंत बाद बंद कर दी जाती है. तकरीर पर पूरी तरह से प्रतिबंध है और लाउडस्पीकर का तो नामोनिशान भी नहीं है लेकिन हिंदुस्तान में उन्हें इतने विशेषाधिकार मिले हैं कि हिंदुओं के इस देश में संवैधानिक तौर पर हिंदुओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया गया है, जो मुस्लिम बढ़ते कट्टरपंथ का सबसे बड़ा कारण है.

भारत में रहने वाले हर मुसलमान को दो बातें बहुत अच्छे से मालूम है, एक कि हिंदुओं के प्रमुख धर्मस्थलों को मुस्लिम आक्रांताओं ने तोड़ा था और दूसरी कि वह धर्मान्तरण करके हिन्दू से मुसलमान बनाया गया है और उनके पूर्वज हिंदू थे. उन्हें यह बात भी अच्छी तरह से मालूम है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने भारत में इस्लाम के प्रचार और प्रसार के लिए हिंदुओं पर भयानक अत्याचार किए और करोडो हिन्दुओं का नर संहार केवल इसलिए किया कि उन्होंने धर्मान्तरित होने से इंकार किया था. इन्होने मंदिरों को तोड़ा और अपवित्र किया और तलवार की धार पर हिंदुओं का धर्मांतरण कराया. ज्यादातर भारतीय मुसलमान या तो तलवार के डर से या अपना घर द्वार और संपत्तियां बचाने के लिए मुसलमान बने थे. उन्हें यह बात भी अच्छी तरह से मालूम है कि अयोध्या में हजारों वर्ष पुराने राम मंदिर को तोड़कर धर्मांध जाहिल आक्रांता बाबर के सिपहसलार मीर बाकी ने तोड़ कर मस्जिद का निर्माण किया था और उसमें मंदिर के अवशेषों का ही इस्तेमाल किया गया था. भारत मे हजारों मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गई थी और आक्रांताओं ने उन सभी मे यही रणनीति अपनाई थी. काशी में हजारों वर्ष पुराने बाबा विश्वनाथ मंदिर को भी कट्टरपंथी औरंगजेब के जिहादी निर्देश पर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई थी. इसी तरह मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि का तोड़ कर शाही ईदगाह का निर्माण किया गया था. भारत में छोटे बड़े मिलाकर एक लाख से भी अधिक मंदिरों का विध्वंस मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा किया गया था. सीताराम गोयल ने अपनी पुस्तक में 40 हजार महत्वपूर्ण मंदिरों को सूचीबद्ध किया है. इन स्थलों से संबंधित वाद-परिवाद मुस्लिम सत्ता समाप्त होने के बाद, अंग्रेजों के समय ही शुरू हो गए थे लेकिन स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है. तमाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रमाणों के बावजूद अयोध्या में राम मंदिर के अलावा किसी भी महत्वपूर्ण मंदिर पर न्यायपालिका द्वारा मंदिरों के पुनरुद्धार संबंधी कोई फैसला नहीं सुनाया गया है.

विश्व में जब भी किसी देश को गुलामी से मुक्ति मिली, उसने सबसे पहला काम किया गुलामी के चिन्हों से मुक्ति पाने का, देश की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने और राष्ट्रीय स्वाभिमान की पुनर्स्थापना करने का. भारत की प्राचीन अत्यंत विकसित और वैज्ञानिक आधारित महान सनातन संस्कृति से डरे अंग्रेजों ने अपनी राजसत्ता के लिए हिंदुओं के स्वाभिमान को समाप्त करने और सनातन संस्कृति को अप्रत्यक्ष तरीके से नष्ट करने के का काम किया. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अंग्रेजों ने सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म को जितना नुकसान पहुंचाया उतना विदेशी / मुस्लिम आक्रांता भी नहीं कर सके थे. इसका कारण था कि मुस्लिम आक्रांता अनपढ़, जाहिल और राक्षसी प्रवृत्ति के थे इसलिए उन्होंने हिंदुओं का नरसंहार करने और उनके धर्म स्थलों को नष्ट करने का कार्य किया. इसके विपरीत अंग्रेज शिक्षित, शातिर और बेहद चालाक थे, इसलिए उन्होंने बिना किसी मंदिर और धार्मिक स्थल को तोड़े, सभी महत्वपूर्ण मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में कर लिया और चढ़ावा हड़पकर न केवल अपने लिए आय का एक श्रोत बना लिया बल्कि मंदिर आधारित अर्थव्यवस्था को भी नष्ट कर दिया. सभी महत्वपूर्ण मंदिरों द्वारा कला, साहित्य, संगीत, शिक्षा और सामाजिक कार्य संबंधित संस्थान और गुरुकुल चलाए जा रहे थे, जो मंदिरों पर कब्जे के कारण स्वतः समाप्त हो गए. सनातन धर्म और संस्कृति के पतन का यह सबसे प्रमुख कारक है. स्वतंत्रता के बाद इन सभी की पुनर्स्थापना की जानी चाहिए थी क्योंकि इससे न केवल शिक्षा और सामाजिक विकास जुड़ा हुआ था बल्कि भारत की प्राचीन उन्नत अर्थव्यवस्था भी इस पर आधारित थी. दुर्भाग्य से गोरे अंग्रेजों से काले अंग्रेजों को स्थानांतरित सत्ता ने बहुसंख्यक हिंदुओं, प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को सदैव गुलामी की बेड़ियों में जकड़ने के उद्देश्य से न केवल अंग्रेजों के हिन्दू विरोधी काले कानून बनाए रखें बल्कि उन्हें और अधिक हिंदू विरोधी बना दिया.

ऐसा क्या हुआ ? क्यों हुआ ? कि स्वतंत्रता के बाद भारत में गुलामी के प्रतीकों को नहीं हटाया जा सका और राष्ट्रीय अस्मिता और स्वाभिमान की पुनर्स्थापना नहीं की जा सकी. एक आयोग बनाकर सभी विवादित धर्मस्थलों का धार्मिक, ऐतिहासिक और आस्था के आधार पर निपटारा किया जा सकता था. दूसरे पक्ष को सरकार जमीन और अनुदान देकर बनाने के लिए प्रेरित कर सकती थी लेकिन तुष्टीकरण आधारित वोटबैंक की रक्षा के लिए जानबूझकर ऐसा नहीं किया गया. प्रमुख हिंदू मंदिर आज भी सरकारी नियंत्रण में है, जिनके चढ़ावे की राशि अन्य धर्मों पर खर्च की जा रही है.



अगर असदुद्दीन ओवैसी की बात करें तो वह रजाकारों के वंशज हैं, जिन्हें नेहरू का आत्मीय संरक्षण प्राप्त था. आज नेहरूवियन इतिहास के कारण बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि नेहरू निजाम की हैदराबाद रियासत के भारत में विलय के पक्षधर नहीं थे. निज़ाम चाहते थे कि हैदराबाद या तो स्वतंत्र इस्लामिक राष्ट्र बने या उसका विलय पाकिस्तान में हो. वहां हिंदुओं की स्थिति लगभग वैसी ही थी जैसी गैर मुस्लिमों के लिए अरब देशों में आज है. वे सार्वजनिक और स्वतंत्र रूप से पारंपरिक विधि विधान के अनुसार कोई पूजा, अनुष्ठान या धार्मिक आयोजन नहीं कर सकते थे. मुसलमानों की संख्या बढ़ाने के लिए छल बल से हिंदुओं का धर्मांतरण किया जा रहा था. इनकार करने वाले हिंदुओं का रजाकारों द्वारा नरसंहार किया जाता था. हिन्दू महिलाओं के अपहरण और बलात्कार की घटनाएं बेहद सामान्य थी. दूसरे प्रदेशों और अन्य देशों से मुसलमानों को लाकर हैदराबाद में बसाया जा रहा था ताकि इसे इस्लामिक राष्ट्र बनाने में आसानी हो. इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निजाम के इशारे पर ही रजाकार संगठन के अतिरिक्त, एक राजनैतिक संगठन भी बनाया गया था जिसका नाम रखा गया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन या एमआईएम, जिसे आज सभी एआइएमआइएम के नाम से जानते हैं और जिसके अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी है. रजाकार संगठन और एमआईएम एक ही सिक्के के दो पहलू थे और दोनों ही हिन्दुओं के विरुद्ध एक साथ मिलकर काम करते थे. रजाकार संगठन की स्थापना कासिम रिजवी ने की थी जो बाद में एमआईएम का अध्यक्ष भी बना.

दृढ़ निश्चयी लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने पुलिस ऐक्शन द्वारा हैदराबाद का भारत में विलय सुनिश्चित किया. रजाकार संगठन और एमआईएम पर प्रतिबंध लगा दिया गया. एमआईएम अध्यक्ष कासिम रिजवी सहित उसके अन्य सहयोगियों को जेल में डाल दिया गया. पटेल की मृत्यु के पश्चात नेहरू ने हैदराबाद रियासत में तुष्टीकरण का खेल शुरू कर दिया और 1957 के आम चुनावों के पहले एमआईएम से प्रतिबंध हटा लिया और उसके अध्यक्ष कासिम रिजवी सहित सभी कार्यकर्ताओं और नेताओं को जेल से छोड़ दिया गया. कासिम रिजवी तो पाकिस्तान चला गया लेकिन नेहरू ने एमआईएम से साठगांठ की, जिसके आगे ऑल इंडिया शब्द लगा दिया गया और ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तहादुल मुसलमीन या एआईएमआईएम के नाम से पुनर्जीवित कर दिया गया. अब्दुल वाहिद ओवैसी ( असदुद्दीन ओवैसी के बाबा) को इस का अध्यक्ष बना दिया गया. यह कट्टरपंथी मुस्लिम राजनैतिक संगठन पारिवारिक रियासत बन गया. इसकी बागडोर बाबा के बाद असदुद्दीन ओवैसी के पिता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी और फिर उनके पास आ गई. हैदराबाद विलय के बाद भी इस पार्टी ने कट्टरपंथी रूढ़िवादिता को नहीं छोड़ा और आज ओवैसी बंधु पूरे भारत में चरमपंथी इस्लामिक विचारधारा का प्रचार और प्रसार कर रहे हैं. मुसलमानों के हर छोटे बड़े, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुददे पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करते हैं. दूसरे राजनीतिक दल भले ही उन्हें भाजपा की बी टीम कहें लेकिन असलियत ये है कि रजाकार संगठन, एआईएमआईएम और ओवैसी खानदान का कांग्रेस से घनिष्ठ रिश्ता रहा है. ओवैसी ही नहीं, पार्टी के ज्यादातर नेताओं की विचारधारा आज भी एमआईएम तथा रजाकारों वाली ही है, 15 मिनट के लिए पुलिस हटा लो, हम( मुसलमान) 100 करोड़ पर भारी पड़ेंगे आदि इसका उदहारण है. हमास द्वारा इजराइल पर हमले के परिपेक्ष में इस पार्टी ने जो बयानबाजी की, उसके बाद इनसे राष्ट्रहित की अपेक्षा करना व्यर्थ है. राष्ट्रीय एकता अखंडता और धर्मनिरपेक्षता से इनका कोई लेना देना नहीं है. गज़वा ए हिंद के लिए तमाम मुस्लिम संगठनों दुष्कृत्यों को ओवैसी जैसे नेता राजनैतिक जामा पहनाते हैं. वैसे तो तेलंगाना में ओवैसी की पार्टी केसीआर की टीआरएस के साथ थी लेकिन कांग्रेस की सरकार बनते ही इसके कट्टरपंथी कांग्रेस के साथ मिलकर सांप्रदायिक विष वमन करने लगे हैं. कांग्रेस सरकार के शपथ ग्रहण के ही दिन भारत के राष्ट्रीय ध्वज में कलमा लिख कर सड़कों पर लहराया गया.

अयोध्या में राम मंदिर बन चुका है लेकिन इस बंद अध्याय को खोल रखे जाने के पीछे अप्रत्यक्ष रूप से सरकार और न्यायपालिका पर दबाव बनाना है की कल कहीं ऐसे फैसले ज्ञानवापी और कृष्ण जन्मभूमि के संबंध में ना आ जाए. कट्टरपंथी जानते हैं कि अयोध्या में विवादित ढांचे के विध्वंस के बाद दबाव में आए नरसिम्हा राव सरकार ने मुस्लिम तुष्टीकरण की सारी सीमाएं लांघते हुए पूजा स्थल ओर वक्फ बोर्ड कानून बनाकर बहुसंख्यक समुदाय को अकल्पनीय क्षति पहुंचाई. अल्पसंख्यक आयोग को संवैधानिक दर्जा देते हुए तुष्टीकरण की एक नई रेखा खींची. राममंदिर केवल एक मंदिर का मुद्दा नहीं था बल्कि यह भारतीय अस्मिता और राष्ट्रीय स्वाभिमान का विषय है और इसका संघर्ष इस मामले में बेहद निर्णायक और महत्वपूर्ण है कि हिंदुओं का पुनर्जागरण प्रारंभ हुआ.

हमें ऐसे सभी लोगों से अत्यंत सावधान रहने की जरूरत है जो जातिगत या सांप्रदायिक आधार पर हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति की आलोचना या अपमान करते हैं क्योंकि ये सभी भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के षड्यंत्रकारी हैं. भारत तिल तिल कर इस्लामीकरण की ओर बढ़ रहा है. हजारों मदनी, ओवैसी, स्वामी प्रसाद, स्टॅलिन जैसे लोग इस कार्य में लगे हैं. अगर इनके षड्यंत्र को विफल नहीं किया गया तो समझ लीजिये कि धर्म निरपेक्ष देश के रूप में भारत की आयु बहुत कम शेष रह गयी है.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

श्रीराम मंदिर निर्माण का प्रभाव

  मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के मंदिर निर्माण का प्रभाव भारत में ही नहीं, पूरे ब्रहमांड में और प्रत्येक क्षेत्र में दृष्ट्गोचर हो रहा है. ज...