शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

भ्रष्टाचार का इत्र में राजनीति की बदबू

 


ये कहानी है भ्रष्टाचार के इत्र की जिससे राजनीति की बदबू फैल रही है.

इस विषय पर मेरा एक लेख हिन्दी समाचार पत्र में छपा जिसका विवरण प्रस्तुत है .

हाल ही में एक इत्र व्यवसायी के कानपुर और कन्नौज के आवास और प्रतिष्ठानों पर जीएसटी इंटेलिजेंस ने छापेमारी की, जिसका आधार था गुजरात में चार ट्रक बिना कागजात के पान मसाला पकड़ा जाना. जाँच की आंच पियूष जैन तक पहुँची और आश्चर्यजनक रूप से उसके आवास से बड़ी मात्रा में ₹500 और ₹2000 के नोटों की गड्डियों के रूप में २८७ करोड़ से भी अधिक की नकदी बरामद हुई. जैन के कन्नौज स्थित आवास में छापा मारने पर भी बड़ी मात्रा में नकदी, 6 क्विंटल से अधिक चंदन का तेल, लगभग ६४ किलो सोने की विदेशी मार्क वाली ईंटें, बड़ी मात्रा में चांदी आदि बरामद हुई.

कन्नौज जैसी एक छोटी सी जगह में एक बड़ी सी कोठी का उपयोग नकदी, सोना, चांदी और अन्य बहुमूल्य चीजों के भंडारण के लिए किया जा रहा था. मकान में एक बड़ी सुरंग भी पाई गई जिसमें नोटों की गड्डियां बोरो में भरी रखी थी. सोना चांदी कंक्रीट की दीवारों में छुपा कर रखा गया था दीवारों में बायोमेट्रिक लाकर भी पाए गए. मकान की दीवारों और फर्श का स्कैन करने के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम का सहारा लिया गया. ३० ऐसी रहस्यमय चाभियाँ मिली हैं, जिनके तालों की तलाश है और यह ताले विभिन्न लॉकर तथा अन्य गुप्त स्थानों के हो सकते हैं जहां पर नकदी और सोने-चांदी के अलावा बहुमूल्य प्राचीन वस्तुएं होने की संभावना है. छापों में जीएसटी इंटेलिजेंस टीम के अलावा आयकर और इंफोर्समेंट डायरेक्टरेट की टीमें भी शामिल हैं, जिनके लिए यह अब तक की सबसे बड़ी बरामदगी है.


उ.प्र. में चुनाव के इस मौसम में राजनीति गरमा गयी है . विश्वस्त सूत्रों के अनुसार ये वही पियूष जैन हैं जिन्होंने कुछ समय पहले सपा के लिए समाजवादी इत्र तैयार किया था, तब सपा नेता अखिलेश यादव ने कहा था कि समाजवादी इत्र की खुशुबू पूरे प्रदेश में फैलेगी और भाजपा का सफाया कर देगी. बाईस में बाइसिकल का यह दांव उलटा पड़ता दिखाई पड रहा है.

कन्नौज के इत्र व्यापारियों ने कहा है कि पियूष जैन इत्र व्यापारी नहीं हैं, उनका व्यापर क्या है, सरकार को इसकी जांच करनी चाहिए. यह भी पता चला है कि पियूष जैन की इत्र कंपनी का टर्न ओवर लगभग ५ करोड़ है, अगर पूरे टर्न ओवर को लाभ मान लिया जाय तो भी इतनी बड़ी रकम नहीं बनायी जा सकती. फिर सवाल है कि पीयूष जैन ने कुबेर का खजाना कहां से इकट्ठा किया। एजेंसियों की शुरूआती जांच में ये बात सामने आयी है कि पीयूष इत्र के कारोबारी जरूर हैं लेकिन करोबार इतना बड़ा नहीं है कि इतनी कमाई हो. पीयूष जैन टैक्स चोरी से भी इतनी बड़ी रकम नहीं जुटा सकते हैं। वैसे उनका परिवार बेहद सादगी से रहता है, पीयूष जैन स्वयं स्कूटर से चलते हैं और उनके परिवार के पास लगभग 10 साल पुरानी कार है. ऐसा बहुत कम होता है कि इतनी धन संपत्ति के मालिक का पूरा परिवार इतनी सादगी से जीवन बिताये.

नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी के बाद व्यापार और कारोबार पर बुरा असर पड़ा था और इसके बाद कोरोना काल में लॉकडाउन में हुई बंदी से व्यापार और व्यवसाय अत्यधिक प्रभावित हुए थे। नोटबंदी और कोरोना काल के बाद कोई इत्र कारोबारी इतनी बड़ी रकम व्यवसाय से इकट्ठा नहीं कर सकता है। पियूष जैन ने कहा है कि यह पूरी रकम उन्ही की है, उन्होंने टैक्स नहीं चुकाया है जिसे चुकाने के लिए वह तैयार हैं. बाद में बयान बदलते हुए कहा कि उन्होंने परिवार का सोना बेचकर रकम इकट्ठी की है. उनके पारिवारिक आवास से 64 किलो सोने की विदेशी मार्क वाली ईंटे बरामद की गई हैं, जिसका वह जवाब नहीं दे सके. इतने बड़ी रकम इकट्ठा करने के लिए लगभग ६ कुंतल सोने की आवश्यकता है और इतना सोना उनके परिवार के पास कहां से आया, यह भी एक यक्ष प्रश्न है. उन्होंने किसे, कब और कहाँ सोना बेचा, इसका ब्योरा भी नहीं दे सके. यह निश्चित है कि इतनी बड़ी रकम अकेले पीयूष जैन की नहीं हो सकती है।

उ.प्र. में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं इसलिए यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि हवाला के जरिए इत्र कारोबारी के ठिकानों पर रकम इकट्ठा की जा रही थी जिसे विधानसभा चुनाव में खपाने की तैयारी थी। आखिर किस राजनीतिक दल ने ऐसा किया है, यह जांच का विषय है और पीयूष जैन इस पूरे घटनाक्रम का एक मुख्य किरदार है. उसका मुंह खुलते ही प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ जाएगा. अभी 18 नवंबर को अखिलेश यादव के चार करीबियों के यहाँ लखनऊ, मऊ, मैनपूरी में छापेमारी हुई थी। इस छापेमारी के बाद सपा ने इस पर तीखी प्रतिक्रया व्यक्त की थी लेकिन इस बार अखिलेश खामोश हैं. पियूष जैन सपा के एमएलसी पम्मी जैन के करीबी हैं, और समाजवादी इत्र के निर्माता हैं, इसलिए शक की सूई सपा की तरफ घूमना स्वाभाविक है.

भारत में राजनीति बहुत बड़ा और सर्वाधिक लाभ देने वाला उद्योग बन चुका है, इसलिए कई राजनैतिक दल इसमें अनाप-शनाप निवेश करते हैं और इसके लिए सालों से काला धन इकठ्ठा कर चुनाव की तैयारी करते हैं. जिसे एकबार भी सत्ता प्राप्त हो जाती है उसके लिए कालाधन बनाना आसान हो जाता है . स्वाभाविक रूप से कालेधन का श्रोत भ्रष्टाचार ही होता है जो जनता की गाड़ी कमाई और करदाताओं के पैसे पर डाका होता है लकिन कौन परवाह करता है इसकी. सभी पैसा, पद, प्रतिष्ठा के लिए सत्ता प्राप्ति की जोड़तोड़ करते हैं. इसलिए गठबंधन बनते हैं, सरकार बनाने के लिए समझौते होते हैं, मंत्री पद के बंटवारे होते हैं और ऐसा करने के लिए देश और समाज के हित को ताक पर रख दिया जाता है.

दुर्भाग्य से भारत का विभाजन भी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के कारण हुआ था और आज भारत जिस दुर्गति में है उसका कारण भी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के कारण सत्ता पर काबिज बने रहना ही है. इसके लिए राष्ट्र हित को बार बार दांव पर लगाया गया, भ्रष्टाचार से सत्ता का दोहन किया गया और रक्षा समझौतों मे भी जमकर कमीशन बाजी की गयी. कई सत्ताधीशों ने भ्रष्टाचार की काली कमाई विदेशी बैंकों में जमा की, और चुनावों में भी इसका जमकर दुरूपयोग किया. कई राज नेताओं की असामयिक मौत के कारण उनकी काली कमाई देश में वापस भी नहीं आ पाई. आज चुनाव इतने महंगे हो गए है कि कोई सामान्य ईमानदार व्यक्ति विधायक या संसद का चुनाव लड़ कर जीत नहीं सकता.

भ्रष्टाचार की काली कमाई इतनी आकर्षक होती गयी कि कई राजनैतिक दल केवल परिवार की संपत्ति बन गए और सत्ता के सिंहांसन पर पीढी दर पीढी परिवार के लोग बैठते गए, राज्य खोखले होते गए और देश भी पनप नहीं सका. परिवारवाद की राजनीति ने ऐसे ऐसे लोगो को सत्ता के सिंहासन पर बैठा दिया जो इतने अयोग्य हैं जिन्हें आज खुले बाजार में १० -१५ हजार रुपये की नौकरी भी नहीं मिल सकती, लेकिन वे करोडो लोगों के भाग्य विधाता बन चुके हैं या बनने का प्रयास कर रहे हैं. क्या होगा इस देश का या समाज का, इसकी उन्हें न कोई चिंता है और न ही समझ . ऐसे लोगो का एकमेव उद्देश्य सत्ता हाशिल करना और भ्रष्टाचार से कमाई करना है. ऐसा केवल एक राज्य में हो ऐसा भी नहीं है. लगभग हर राज्य में इस तरह के उदाहरण हैं. जब तक ऐसा होता रहेगा तब तक भ्रष्टाचार कभी ख़त्म नहीं हो सकता और काले धन की समस्या कमोवेश बनी रहेगी.

कालेधन को ख़त्म करने के उद्देश्य से लाई गयी नोटबंदी काले धन को ख़त्म करने में अपेक्षित सफल भले ही न हुई हो लेकिन इतना तो अवश्य हुआ कि कई राजनैतिक दलों का खजाना लुट गया और इसलिए जितना विरोध राजनीतिक दलों ने किया उतना आम जनता ने नहीं किया. चुनाव लड़ने में इन दलों को वित्तीय संकट का सामना करना पडा और इस कारण कई दलों को राज्यसभा, लोकसभा और विधान सभा / विधान परिषद् के टिकट नीलाम करने पड़े . इस कारण भ्रष्टाचार और कालाधन और बढ़ने की संभावना है.

इन परस्थितियों में केवल चुनाव सुधार की नहीं बल्कि राजनीतिक सुधार की आवश्यकता है, जिसमें दो दलीय चुनाव प्रणाली की सख्त आवश्यकता है, जिससे क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों को रोका जा सके. चुनाव आयोग को इतना स्वतन्त्र करना होगा कि वह राजनैतिक दलों में आतंरिक लोकतंत्र सुनिश्चित कर सके जिससे परिवारवाद की राजनीति पर रोक लग सके. इससे तुष्टिकरण की राजनीति पर भी रोक लगेगी और लोग राष्ट्रहित के मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित कर सकेंगे.

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- शिव मिश्रा