रविवार, 28 जनवरी 2018

दर्द है ..जो रह रह कर छलकता है .....

रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन का कार्य काल मोदी सरकार ने नहीं बढ़ाया था . कारण चाहे जो भी हों लेकिन उन्होंने इसे सहजता से नहीं लिया था और कुछ विशेष राजनैतिक पार्टियों ने ऐसा माहौल बना दिया था कि मानों देश बिना रघुराम राजन के नहीं चल सकता था और राजन सिर्फ देश सेवा के लिए ही विदेश से यहाँ आये थे और उनका कार्यकाल न बढ़ाना शायद मोदी जी का देश विरोधी काम था . स्वाभाविक है, दर्द तो होना ही था . अब जब भी मौका मिलता है वे वर्तमान सरकार की निंदा करना नहीं भूलते . अक्सर बुद्धजीवी तरह के लोग ऐसा करते हैं और उनकी यही आदत उन्हें सामान्य व्यक्ति से भी कम कर देती है . अतीत में हमने कई अमर्त्यसेन भी देखे हैं .


प्रधान मंत्री मोदी के बाद रघुराम राजन भी दावोस पहुंचे और उन्होने मोदी के भाषण सहित हिन्दुस्तान की अर्थ व्यवस्था की गहन समीक्षा कर उसके नकारात्मक पहलुओं को प्रस्तुत किया . यहाँ यह ध्यान रखना उचित है कि अब उनकी पहचान भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर की होती है न कि किसी अमेरिकन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर की . अबकी बार उन्होंने अपने वक्तव्यों के राजनैतिक पुट भी दे दिया और मोदी ने जो लोकतान्त्रिक और विकाशशील हिंदुस्तान की झलक पेश की थी उस पर सवाल उठाये . उन्होंने मोदी के वक्तव्य " भारत में लोकतंत्र बहुरंगी आबादी और गतिशीलता देश का भाग्य तय कर रहें हैं और इसे विकाश के रस्ते पर ले जा रहे हैं ." की जमकर धाज्जिया उडाई . उन्होंने संदेह व्यक्त किया कि मोदी सरकार का काम काज लोकतान्त्रिक है ? उन्होंने कहा कि सरकार में सिर्फ कुछ लोग फैसले लेते हैं और नौकरशाहों को दरकिनार कर दिया गया है . समझा जा सकता है कि कांग्रेस और राजन का सूचना श्रोत एक ही है .


विश्व पटल पर हिन्दुस्तान की नकारात्मक छवि पेश करने से सभी को बचना चाहिए भले ही कितने ही राजनैतिक मतभेद क्यों न हों . 
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