भारतीय अर्थव्यवस्था का हलाल
कर्नाटक में एक वर्ग
विशेष द्वारा शिक्षण संस्थाओं में हिजाब पहनने के मामले को अनावश्यक तूल दिए जाने की स्वाभाविक प्रतिक्रिया स्वरूप बहुत सी ऐसी बातें
धरातल पर आ गई हैं जिन पर बहुसंख्यक वर्ग कोई खास ध्यान नहीं देता था. इनमें
धार्मिक और आर्थिक रूप से सबसे अधिक महत्वपूर्ण है हलाल प्रमाणीकरण.
ज्यादातर लोगों ने हलाल मांस का नाम सुना होगा. इसके अंतर्गत जानवरों का वध इस्लामिक प्रक्रिया के द्वारा किया जाता है, जिसमें मक्का की दिशा में अल्लाह के नाम पर इस्लामिक आयत बिस्मिल्लाह के उच्चारण के बाद वध किया जाता है. इस प्रक्रिया से जानवरों को काफी देर तक अत्यधिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है. इसलिए कई पश्चिमी देशों में कानूनी रूप से बिना बेहोश किये जानवरों का वध निषेध किया जा चुका है. इसका धार्मिक पक्ष यह है कि इस तरह के मांस को अल्लाह को पहले ही अर्पित कर दिया गया होता है, इसलिए यह अल्लाह का प्रसाद होता है और स्वाभाविक रूप से दूसरे धर्मावलंबी इसे स्वयं खाने और अपने धार्मिक अनुष्ठानों में इसे प्रयोग नहीं करते हैं.
भारत में प्राचीन काल से झटका मांस प्रचलन में है जिसके अंतर्गत जानवर
का एक झटके से वध कर दिया जाता है और उसे पीड़ा और मानसिक यंत्रणा से नहीं गुजरना पड़ता है, यह पश्चिमी देशों में भी
स्वीकार्य है, किंतु इस्लाम मानने वाले इसे
हराम मानते हैं. हलाल मांस के संदर्भ में
उनका तर्क होता है कि है यह ज्यादा शुद्ध पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होता है किंतु
इसके विपरीत नवीन खोजों से यह ज्ञात हुआ है कि चूंकि हलाल प्रक्रिया में जानवर बेहद पीड़ा और मानसिक यंत्रणा से गुजरते हैं, उनके मस्तिष्क में नकारात्मक ऊर्जा
उत्पन्न होती है जो जहरीले रसायन के रूप में उनके पूरे शरीर में फैल जाती है, जिस कारण इस तरह का
जहरीला मांस मनुष्य में नकारात्मक प्रभाव डालता है और स्वास्थ्य के प्रतिकूल होता है. धार्मिक रूप से कहा जाता है
कि इस तरह मरने वाला जीव असहनीय पीड़ा और वेदना के कारण श्राप या बददुआएं देता है, जिससे इस तरह के मांस
खाने वाले को यह बददुआएं या श्राप लगता है. कल्पना करिए कि आपका क़त्ल निश्चित है और
हलाल या झटका में से किसी एक से क़त्ल होने का विकल्प है तो आप क्या चुनेंगे ? आपका उत्तर ही
जानवरों का उत्तर है.
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर कुछ
मुस्लिम संस्थाओं ने हलाल का सर्टिफिकेट
दे कर शुल्क वसूलना शुरू कर दिया जहाँ विभिन्न उत्पादों और सेवाओं के लिए सरकारी मानकीकरण पहले से ही प्रचलन में है. खाद्य पदार्थों की शुद्धता और गुणवत्ता के लिए
सरकार द्वारा FSSAI प्रमाणन पहले से ही उपलब्ध है, अन्य उत्पादों और सेवाओं
के लिए ISI (BIS), ISO होता है ऐसे में हलाल सर्टिफिकेट की कोई आवश्यकता नहीं है,
लेकिन पिछली सरकारों ने वोट बैंक और तुष्टिकरण की राजनीति के चलते न केवल हलाल
सर्टिफिकेशन को अनदेखा किया बल्कि निर्यात
किए जाने वाले मांस को हलाल सर्टिफाइड होना अनिवार्य भी कर दिया था, जिसके कारण मांस के
निर्यात पर मुस्लिमों का पूरी तरह से कब्जा हो गया था और गैर मुस्लिम लोग धीरे-धीरे इस व्यवसाय से बाहर
हो गए. इसके दुष्परिणाम स्वरूप जहाँ हिंदू
खटीक जो सदियों से इस व्यवसाय से जुड़े हैं, बेरोजगार होकर
तंगहाली और आर्थिक बदहाली के कारण दूसरा रोजगार करने लगे.इससे स्वाभाविक
रूप से अन्य रोजगार क्षेत्रों भी दबाव
पड़ा.
हाल
में केंद्र सरकार ने मांस की
निर्यात प्रक्रिया में थोड़ा सुधार
किया है और ऐसे देश जो हलाल मांस की मांग नहीं करते, उन्हें निर्यात किए जाने वाले मांस में हलाल
सर्टिफिकेट की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है लेकिन यह नाकाफी है क्योंकि देश में
शुल्क लेकर इस तरह का सर्टिफिकेशन करना सरकार के समानांतर अपनी सरकार चला कर टैक्स
वसूल करना है. यह रंगदारी वसूल करने जैसा ही गैरकानूनी कार्य है.
अगर हम भारतीय और वैश्विक परिवेश में देखें तो
तो हलाल केवल एक प्रक्रिया नहीं बल्कि चालाकी से बनाया गया अर्थशास्त्र है जिसे
हलाल-इकोनॉमिक्स या हलालोनॉमिक्स कहते हैं. यह सभी जिहादों की जननी और ऐसा हथियार है जिसका उद्देश्य वैश्विक
अर्थव्यवस्था पर कब्जा करके गैर मुस्लिमों से पैसा वसूल कर पूरी दुनिया में इस्लाम का वर्चस्व कायम करना है. हलाल का जाल
अब केवल मांस तक सीमित नहीं है बल्कि यह दैनिक जीवन में प्रयोग किए जाने वाले सभी
उत्पादों और सेवाओं पर फैल गया है.
सौंदर्य प्रसाधन, घर गृहस्थी के सभी सामान, दवाइयां और अस्पताल भी इसके दायरे में आ गए
हैं. मुसलमान जानबूझ कर ऐसी वस्तुओं की मांग करते हैं जो इस्लाम के अनुसार वैध हों
यानी हलाल प्रमाणित हों और हलाल सर्टिफिकेट स्वयंभू निजी मुस्लिम संस्थाएं देंगी अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क
भी स्थापित कर लिया है. हलाल सर्टिफिकेट के नाम पर उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं से बड़ी रकम
वसूली जाती है, जिसका उपयोग
घोषित रूप से इस्लाम के प्रचार और प्रसार के लिए किया जाता है लेकिन यह समझना
मुश्किल नहीं कि इस पैसे का उपयोग कहां कहां और क्यों किया जाता है.
भारत में हलाल सर्टिफिकेट जारी करने वाली
प्रमुख संस्थाएं हैं - जमियत उलेमा-ए-हिन्द, हलाल इंडिया प्रा. लिमिटेड, हलाल सर्टिफिकेशन सर्विसेस इंडिया प्रा.
लिमिटेड, जमियत उलेमा-ए-महाराष्ट्र, हलाल काऊन्सिल ऑफ इंडिया, ग्लोबल इस्लामिक शरिया
सविर्र्सेस आदि. जमीयत उलेमा ए हिंद के
बंगाल प्रदेशाध्यक्ष सिद्दीकुल्ला चौधरी ने संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में केंद्रीय गृहमंत्री अमित
शाह को हवाई अड्डे से बाहर नहीं निकलने देने की धमकी दी थी.यही संगठन उत्तर प्रदेश
के हिन्दू नेता कमलेश तिवारी के हत्या प्रकरण के आरोपियों का अभियोग लड़ रहे हैं
। इस संगठन ने ७/११ का मुंबई रेल बम विस्फोट, वर्ष २००६ का मालेगांव बम विस्फोट, पुणे में जर्मन बेकरी
बमविस्फोट, २६/११ का मुंबई
आक्रमण, मुंबई के जवेरी
बजार में बमविस्फोटों की शृंखला, दिल्ली जामा मस्जिद विस्फोट, कर्णावती (अहमदाबाद)
बमविस्फोट आदि अनेक आतंकी घटनाओं के आरोपी मुसलमानों को कानूनी सहायता उपलब्ध
कराई है । इसी संस्था ने गोधरा कांड में मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा पाने
वाले आतंकवादियों का मामला सर्वोच्च न्यायालय ले जाने की घोषणा की है. यह संस्था ऐसे 1000 से अधिक संदिग्ध आतंकियों के अभियोग लड रही है,
जिसके लिए आवश्यक धन आप मुहैया करा
रहे हैं, हलाल उत्पाद खरीद कर या हलाल सर्टिफिकेट लेकर. यानी आपकी की जूती और आपकी
चांद.
इस्लामी अर्थव्यवस्था या हलाल इकोनामी को धार्मिक आधार देते हुए बहुत
चतुराई से गैर मुस्लिमों को शिकंजे में कसने और इस्लामी साम्राज्य बनाने का काम
बड़ी तेजी से हो रहा है. निकट भविष्य में इस बात की पूरी संभावना है की स्थानीय
व्यापारियों, पारंपरिक
उद्यमियों, उपभोक्ता वस्तुओं
से जुड़े उद्योगों, शैक्षणिक
संस्थाओं, अस्पतालों के
समक्ष बहुत बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा और इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम गैर मुस्लिमों
को बेरोजगार होने के रूप में सामने आएगा. भारत में आज बिना हलाल सर्टिफिकेशन के ही
फल, सब्जी, लकड़ी और फर्नीचर, चमड़ा, ऑटो रिपेयरिंग सहित बाल काटने व् चूड़ी जैसे
कामों पर मुसलमानों का वर्चस्व है. इन व्यवसायों
और उद्योगों से निकले हिंदू बेरोजगार केवल आरक्षण की बैसाखी के सहारे सरकारी
नौकरी की आश में जीवन बर्बाद कर रहे हैं और अपनी ही सरकार के विरुद्ध आन्दोलन करते हैं और हलाल अर्थव्यवस्था का रास्ता साफ़
करते जा रहे हैं.
पूरे विश्व में हलाल अर्थव्यवस्था ८ ट्रिलियन
यूएस डॉलर पार कर चुकी है. विश्व हलाल कॉन्फ्रेंस में बोस्निया के ग्रैंड मुफ्ती
मुस्तफा सरिक ने कहा था कि “अब उन्हें
हथियार उठाकर युद्ध और आतंक फैलाने की जरूरत नहीं है, हलाल अर्थव्यवस्था के माध्यम
से ही वे पूरे विश्व में पर राज कर
सकेंगे.” भारत के मुसलमान अन्य देशों की
अपेक्षा कुछ ज्यादा ही मुसलमान होते हैं, इसलिए यहां हलाल सर्टिफिकेट का दायरा हलाल मांस से होता हुआ
रोजमर्रा की चीजों तक पहुंच गया है इसलिए यह प्रश्न बहुत स्वाभाविक है की आटा, सत्तू ,नमक, बोतलबंद पानी, नमकीन, मिठाई, आयुर्वेदिक और एलोपैथिक
दवाओं, सौंदर्य प्रसाधन-
लिपस्टिक पाउडर क्रीम, सूखे मेवे- बदाम, अखरोट, पिस्ता, यहां तक कि शहद आदि इन सब
में हलाल सर्टिफिकेट की क्या आवश्यकता है? यह पूरे देश के शरियाकरण / इस्लामीकरण की प्रक्रिया है, इससे भारतको निकट भविष्य
में बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है.
बिक्री बढ़ाने के लिए कई उत्पादक अनावश्यक रूप
से हलाल सर्टिफिकेट ले रहे हैं इनमें हल्दीराम, बिकानों, आयुर्वेदिक दवाई बनाने वाली हिमालय, ब्रिटानिया, नेस्ले, मदर डेयरी आदि अनेक कंपनियां
शामिल है. बेहद आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में राष्ट्रवाद की बात
करने वाले स्वामी रामदेव भी अपने शाकाहारी
औषधीय उत्पादों का हलाल सर्टिफिकेशन करवाने के लिए मुस्लिम संगठनों को भारी भरकम
फीस देते हैं। मैकडॉनल्ड का पिज़्ज़ा और डोमिनोस का बर्गर भी हलाल प्रमाणित है.
ज्यादातर एयरलाइंस में मिलने वाला खाना भी हलाल प्रमाणित है. आईआरसीटीसी, संसद भवन और सरकारी
प्रतिष्ठानों की कैंटीन से लेकर बड़ी संख्या में होटलों ने भी हलाल
सर्टिफिकेट ले रखा है. भारत के कई नामी-गिरामी अस्पतालों ने भी हलाल सर्टिफिकेट ले
रखा है. हाल ही में केरल के कोच्चि शहर में
हलाल सर्टिफाइड फ्लैट्स बनाए गए
हैं,
बड़ी विचित्र स्थिति यह है कि कई प्रोडक्ट के
ऊपर तो हलाल प्रमाणित का लोगों बना रहता है लेकिन कई पर नहीं लिखा रहता है. इसी
तरह अस्पतालों में भी ज्यादातर अस्पतालों में नहीं लिखा रहता है कि वह हलाल
सर्टिफाइड है इसलिए इन उत्पादों और सेवाओं का उपभोग करने वाले गई मुस्लिमो को मालूम
भी नहीं पड पाता है कि वह हलाल हो रहे हैं.
सरकार कुछ करे न करे लेकिन आप हलाल उत्पादों का
बहिष्कार कर, और इस सम्बन्ध में जागरूकता फैला कर देश और सनातन संस्कृति को काफी हद तक बचा सकते
हैं, और यह काम आप आज से ही शुरू करें क्योंकि कल बहुत देर हो जायेगी.
- - शिव मिश्रा