शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

सोरोस की शतरंज पर भारतीय मोहरे

 

                        सोरोस की शतरंज पर भारतीय मोहरे   





हंगरी मूल के अमेरिकी धन्नासेठ जॉर्ज सोरोस इस समय भारत में लगातार चर्चा में हैं. उन पर हो रहे नित नए खुलासों से लोग आश्चर्यचकित हैं. जॉर्ज सोरेस के बारे में यह जानना बहुत जरूरी है कि वह अकूत संपत्ति के मालिक तो हैं लेकिन न तो उनकी कोई फैक्टरी / कारखाने हैं और न ही वे कोई उत्पाद बनाते या बेचते हैं। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजार में कृत्रिम उठापटक और अस्थिरता से पैसा बनाना उनका बिज़नेस मॉडल है।

 फोर्ब्स की वेबसाइट के अनुसार जॉर्ज सोरोस की नेटवर्थ  6.7 बिलियन डॉलर है ( As on 23.02.2023)। 2018 में 18 बिलियन डॉलर अपने संगठन ओपन सोसाइटी फाउंडेशन को देने के साथ वे अब तक कुल 32 बिलियन डॉलर दान दे चुके हैं। यह दान वास्तव में उनके व्यवसायिक हितों के लिए निवेष है। जार्ज सोरोस का ओपन सोसाइटी फाउंडेशन नाम का एक संगठन है, जिसका हेडक्वाटर न्यूयार्क में है, और यह भारत सहित दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में सक्रिय है। इसका उद्देश्य प्रथम दृष्टया सामाज सेवा प्रतीत होता है लेकिन इसका वास्तविक उद्देश्य अंततोगत्वा अस्थिरता उत्पन्न करके वित्तीय लाभ उठाना होता है। अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए वह इस संगठन के माध्यम से कई देशों के राजनैतिक और सामाजिक आंदोलनों, मीडिया संस्थानों, पत्रकारों और बुद्दिजीवियों खासतौर से वामपंथ और इस्लाम प्रेरित, को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराते हैं। विभिन्न देशों के राजनीतिक दलों और उनके ट्रस्ट और संगठनों को भी दान देते हैं। लाभार्थियों को मोहरा बनाकर उन देशों पर अपनी पकड़ मजबूत करते हैं और  समय समय पर उन देशों की कमजोरी का फायदा उठाकर लाभ कमाते हैं। जार्ज सोरोस ने इस तथ्य को कभी छिपाया भी नहीं।

1992 में ब्रिटेन की करेन्सी पाउंड स्टर्लिंग और यूरोपियन यूनियन की करेंसी यूरो के बीच एक्सचेंज रेट मैकेनिज्म की कमजोरी को भांप कर उन्होंने बड़ी मात्रा में पाउंड स्टर्लिंग की शॉर्ट सेलिंग की जिसके परिणाम स्वरूप  पाउंड में भारी गिरावट के बाद 16 सितंबर 1992 को ब्रिटेन एक्सचेंज रेट से बाहर होना पड़ा। जॉर्ज सोरोस ने इस गिरावट के कारण एक बिलियन डॉलर से भी ज्यादा का लाभ कमाया। इस सफलता के बाद इस तरह की गतिविधियां उनका आदर्श बिज़नेस मॉडल बन गई। उसके बाद उन्होंने थाईलैंड और मलेशिया सहित कई देशों में भी वही खेल खेला और अरबों डॉलर कमाए। अमेरिका सहित अन्य देशों की राजनीति में दखल देना उनका शौक नहीं उनके बिज़नेस मॉडल का हिस्सा है। अमेरिका में जहां जार्ज बुश को हराने के लिए उन्होंने एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया और बहुत पैसा खर्च किया, वहीं बराक ओबामा, हिलेरी क्लिंटन आदि को भरपूर वित्तीय सहायता प्रदान की। डोनाल्ड ट्रंप को हराने के लिए भी विडेंन की भरपूर सहायता की। राष्ट्रवाद के सख्त विरोधी सोरोस का स्वाभाविक रूप से झुकाव वामपंथी बुद्धिजीवियों की तरफ रहता है, जो राष्ट्रवाद से लड़ते हुए इस्लामिक संगठनों का साथ देते हैं। अंतर्राष्ट्रीय विमर्श गढ़ने के लिए सोरोस दुनिया भर के प्रमुख मीडिया संस्थानों और पत्रकारों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराते हैं, और अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उनका भरपूर उपयोग करते हैं.

इस समय नरेंद्र मोदी उनके निशाने पर हैं क्योंकि उनका मानना है कि मोदी  भारत के लिए खतरा हैं और इसलिए भारत में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना के लिए मोदी को सत्ता से उखाड़ने में जुट गये हैं। इस तरह 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए वह भारत में उन राजनीतिक दलों की सहायता कर रहे हैं, जिनसे उनके घनिष्ट संबंध है और जो अपने बलबूते मोदी को हराने में सक्षम नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की दोबारा जीत के बाद इस पर कार्य करना शुरू कर दिया गया था। अमेरिका की शॉर्ट सेलिंग व्यवसायिक फर्म हिंडनबर्ग की अडानी पर की गई सनसनीखेज रिपोर्ट और बीबीसी डॉक्यूमेंटरी  भी इस परियोजना का हिस्सा है।  म्यूनिख सेक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में जॉर्ज सोरेस ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का संदर्भ देते हुए गौतम अडानी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला किया। 2020 में उन्होंने आरोप लगाया था कि मोदी भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं। उन्होंने धारा 370 हटाने का विरोध करते हुए इसे मुस्लिमों के प्रति मोदी की घृणा बताया था । सोरोस ने लाभार्थी मीडिया का उपयोग करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की और शाहीन बाग जैसे कई देश विरोधी आंदोलनों को सहायता देकर अराजकता फैलाने की कोशिश की।   

सोरोस प्रचार कर रहे हैं कि मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं। मुस्लिमों के साथ की गई हिंसा के कारण ही मोदी का राजनैतिक कद बहुत तेजी से बढ़ा है। अडानी घटनाक्रम पर भविष्यवाणी करते हुए उन्होंने कहा कि कि भारत में लोकतांत्रिक बदलाव होगा यानी लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही मोदी सत्ता से हट जाएंगे और नई सरकार बनेगी। कांग्रेस की भारत जोड़ों यात्रा पर टिप्पणी करते हुए सोरोस ने कहा कि यह भारत के लोकतंत्र बचाने का अंतिम अवसर है। जॉर्ज सोरोस का यह अनर्गल प्रलाप लगभग वैसा ही है जैसा कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दल कार रहे हैं। भाजपा सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने पलटवार करते हुए जॉर्ज सोरोस के बयान को भारत विरोधी विदेशी साजिश बताते हुए लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने की कोशिश बताया।

विदेश मंत्री जयशंकर ने बिना लाग लपेट के बेहद सधी किन्तु तीखी प्रतिक्रिया दी और सोरोस के मोदी विरोधी बयानों को भारत के राजनीतिक दलों का एक विदेशी की मदद से विदेशी धरती से चुनावी अभियान करार दिया। कांग्रेस इन आरोपों में  घिरती नजर आ रही है क्योंकि कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तथ्य हैं जिनसे कांग्रेस की सोरोस या उनकी संस्थाओं से नजदीकी दृष्टिगोचर होती हैं। पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की बेटी अमृत सिंह जॉर्ज सोरोस के संगठन ओपन सोसाइटी जस्टिस इनिशिएटिव में राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी परियोजना की डायरेक्टर हैं। यूपीए सरकार के समय भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे शिव शंकर मेनन, जॉर्ज सोरोस के एक एनजीओ के बोर्ड में हैं। सोनिया गाँधी की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य रहे हर्ष मंदर ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव एडवाइजरी बोर्ड के अध्यक्ष हैं। हर्ष मंदर का एक संगठन “अमन बिरादरी ट्रस्ट” जो जॉर्ज सोरेस का लाभार्थी हैं, भी राजीव गाँधी फाउंडेशन ट्रस्ट के साथ कार्य कर चुका है। दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों में भी हर्ष मंदर का नाम जुड़ा है। कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए कि राजसी शान-शौकत से आयोजित भारत जोड़ो यात्रा, जिसमें सोरोस के खर्चे से पलने वाले NGO के वाईस प्रेसिडेंट सलील शेट्टी भी शामिल थे, का खर्चा किसने दिया? जार्ज सोरोस और शशि थरूर के मधुर संबंधो का आधार क्या है?  

जॉर्ज सोरोस का कई देशों के आंतरिक मामलों में दखल देने का इतिहास है। भारत में अपने संगठनों के माध्यम से 1995 में सक्रिय हुए सोरोस ने  सामाज सेवा के नाम पर  वामपंथी अंतर्राष्ट्रीय संगठन के माध्यम से भारत विरोधी तत्वों को समर्थन देकर देश भर में अपना जाल फैला रखा है। प्रभावी राजनीतिक विमर्श बनाने के लिए उन्होंने  इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज़्म को बढ़ावा देने के नाम पर  भारत के प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एक बहुत बड़े वर्ग को भारी अनुदान दिया है, जो मोदी विरोध करते करते देश विरोधी कार्य करने में भी संकोच नहीं करता । मोदी सरकार के मुखर आलोचक और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन भी इस कार्य में सोरोस की सहायता कर रहे हैं।

केंद्रीय मंत्रियों द्वारा दिए गए वक्तव्य और स्पष्टीकरण बिलकुल उचित हैं। राष्ट्र और लोकतंत्र विरोधी षड्यंत्र के विरुद्ध प्रत्येक नागरिक को सचेत और जागरूक किए जाने की आवश्यकता है, लेकिन 9 वर्ष की केंद्रीय सत्ता का समय राष्ट्र विरोधी गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए कम नहीं होता। आखिर कब तक प्रधानमंत्री मोदी अपने लिए विक्टिम कार्ड खेलते रहेंगे कि अमुक उन्हें गाली दे रहा है, अमुक उन्हे सत्ता से हटाना चाहता है। पूर्ण बहुमत मिलने के बाद भी प्रधानमंत्री डरे सहमे हुए बेहद रक्षात्मक ढंग से कार्य कर रहे हैं।  बहुसंख्यकों की अपेक्षाओं को तो पूरी तरह से नज़रअन्दाज़ कर रहें हैं। कल्पना करिए कि यदि वामपंथी या कांग्रेसी इतने बहुमत के साथ सत्ता में होते तो क्या करते? बिना बहुमत के भी कांग्रेस ने पूजा स्थल और वक्फ बोर्ड कानून बनाकर हिंदुओं को रौंद डाला। भाजपा जब सत्ता में नहीं थी तब भी  कुछ नहीं कर सकी और जब सत्ता में है तो भी कुछ नहीं कर सकी। सरकार राष्ट्र विरोधी तत्वों के विरुद्ध बिना भय और पक्षपात के कार्रवाई करने के बजाय सबका विश्वास अर्जित करने में राष्ट्र का समय बर्बाद कर रही है।  बात शायद अटपटी लगे लेकिन आज भारत में बहुसंख्यक वर्ग बेहद डरा और घबराया हुआ है। “सबका विश्वास”  के बाद भाजपा द्वारा तुष्टीकरण और तृप्तिकारण जैसे जैसे बढ़ाया जा रहा है बहुसंख्यकों की आशंकाएं भी बढ़ती जा रही हैं।

सरकार 2047 तक भारत को विकसित देश बनाना चाहती है, और पीएफआई जैसे कई संगठन 2047 तक इसे  इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहते हैं। सरकार अपने काम में व्यस्त हैं और वे लोग अपने काम में व्यस्त हैं। भ्रम है कि कौन किसके लिए कार्य कर रहा है या दोनों एक दूसरे के लिए कार्य कार रहे हैं।  भाजपा के कोर वोटर और मोदी के कट्टर समर्थक भी पूरी तरह से हताश और निराश हैं।  इनमे कोई भी दूसरे राजनीतिक दल को न तो वोट करेगा और न ही उनके लिए काम करेगा लेकिन अगर ये 2024 के लोकसभा चुनाव में केवल घर बैठ गए तो भी  जॉर्ज सोरेस की भविष्यवाणी सही साबित हो जाएगी और मोदी सत्ता से बाहर हो जाएंगे। इसके बाद भाजपा की सत्ता में आने की संभावना सदा सर्वदा के लिए खत्म हो सकती हैं क्योंकि नयी सरकार संविधान और भाजपा के साथ करेगी, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है । भाजपा अगर जाग सके, और मोदी उनका विश्वास करें जिनके वोटों से वह प्रधान मंत्री बने हैं, तो अभी भी थोड़ा समय बाकी है।

-    शिव मिश्रा  

 

भारत इस्लाम की धरती, पहला हक मुसलमानों का

 

भारत इस्लाम की धरती, पहला हक मुसलमानों का



दिल्ली के रामलीला मैदान में 11 और 12 फरवरी 2023 को जमीयत उलेमा ए हिंद का 34 वां अधिवेशन चचा-भतीजे के विवादित बयानों के कारण कुख्यात हो गया और यह लंबे समय तक आलोचनाओं से घिरा रहेगा. वैसे तो भारत में जितनी मुस्लिम संस्थाएँ और संगठन है, उतने सभी 57 इस्लामिक देशों में मिलाकर भी नहीं है और शायद पूरी दुनिया में भी नहीं है, लेकिन भारत के इन सभी संगठनों और संस्थाओं की बैठकों में जो प्रस्ताव पास किए जाते हैं, उनमें जबरदस्त समानता होती है और उसका केंद्र बिंदु होता है, राजनीतिक इस्लाम, जो “विक्टिम कार्ड”  भी खेलता है, और सरकार तथा बहुसंख्यकों को धमकी भी देता है. इसलिए लगभग हर आयोजन में यह अवश्य दोहराया जाता है कि भारत में मुसलमानों की स्थिति अच्छी नहीं है, भारत का मुसलमान डरा हुआ है, फिरकापरस्त ताकतें (इसका मतलब केवल हिंदू संगठन,भाजपा और आरएसएस होता है)  सिर उठा रही हैं, मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ रही है, उनके साथ सरकार तथा बहुसंख्यकों का व्यवहार अच्छा नहीं है. इसके साथ साथ सरकार और बहुसंख्यकों को धमकी दी जाती  है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में किसी तरह की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी और  समान नागरिक संहिता किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है.

यह सब तब होता है जब भारत में मुसलमानों को विशेषाधिकार प्राप्त है, जितने किसी मुस्लिम देश में भी प्राप्त नहीं है. तुलनात्मक रूप से इस तथाकथित हिंदू राष्ट्र में हिंदुओं की स्थिति दोयम दर्जे के नागरिक से भी बदतर है.

जमीयत उलेमा ए हिंद का ये अधिवेशन समय से  पूर्व बुलाया गया था, स्वाभाविक है कि कुछ न कुछ विशेष और महत्वपूर्ण एजेंडा जरूर होगा. प्रथम दृष्टया इसका उद्देश्य 2024 के लोकसभा चुनाव और उसके पहले नौ राज्यों के विधानसभा चुनावों को देखते हुए मुस्लिमों को भाजपा के विरुद्ध एकजुट करना प्रतीत होता है, ताकि मोदी को सत्ता से हटाया जा सके क्योंकि चाचा-भतीजे ने कभी यह कहने में संकोच नहीं किया कि भारत के मुसलमानों को प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी स्वीकार्य नहीं है. अधिवेशन में पारित तमाम प्रस्तावों का उद्देश्य  पूरे विपक्ष को मुस्लिम वोटों की कीमत बताना है ताकि केंद्रीय सत्ता के दावेदार और प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार उचित और अधिकतम बोली लगा सके.





अबकी बार का अधिवेशन इस मामले में अलग रहा कि इसमें चचा भतीजे की जोड़ी ने हिंदुत्व पर प्रहार करने का जो दुस्साहस किया उसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी. इस्लाम की उत्पत्ति को भारत में स्थापित करने और उसे दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म सिद्ध करने की हास्यास्पद कोशिश में चाचा-भतीजे मज़ाकिया किरदार में नजर आए. अधिवेशन में कौमी एकता दर्शाने के लिए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख और क्रिश्चियन धर्मगुरुओं को भी आमंत्रित किया गया था किन्तु नाटकीय अंदाज में जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष और देवबंद मदरसे के प्रिंसिपल अरशद मदनी ने मंच से यह कहते हुए सबको हतप्रभ ही नहीं, घोर अपमानित भी कर दिया कि ओम और अल्लाह एक ही है. जिसे वह हजरत आदम कहते हैं और जिसकी औलाद को आदमी कहा जाता है, हिंदू उन्हें मनु कहते हैं और उनकी संतानों को मनुष्य कहा जाता है. उस समय न राम थे, न ब्रह्मा थे, न शिव थे, मनु यानी हजरत आदम ओम यानी अल्लाह की पूजा करते थे. इसलिए इस्लाम की उत्पत्ति भारत में हुई और यह दुनिया का सबसे पुराना धर्म है. स्तब्ध जैन मुनि लोकेश ने उसी मंच से नाराज़गी प्रदर्शित की और मौलाना अरशद मदनी की बात को बकवास बताते हुए अन्य धर्मगुरुओं के साथ मंच छोड़ दिया. उन्हें मंच पर रोकने की कोशिश की गई और न रुकने पर  हमला करने की भी कोशिश की गई, और पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा लेकिन वह न डरे और न रुके. लोकेश मुनि ने जो किया उसकी जितनी प्रशंसा की जाए उतना कम है.

 इसके पहले अरशद मदनी के भतीजे और जमीयत उलेमा ए हिंद के महासचिव महमूद मदनी ने महमूद मदनी ने कहा था कि इस्लाम धर्म दुनिया का सबसे पुराना मजहब है. इस दुनिया में इस्लाम धर्म के पहले पैगंबर हजरत आदम आए थे, जो  पूरी मानवता के पितामह हैं, वो इसी धरती पर (भारत) आए थे, ऐसे में मुसलमानों को बाहरी कहना गलत है. उन्होंने कहा कि मोहम्मद साहब तो इस्लाम धर्म के आखरी पैगंबर हैं, जो हजरत आदम की दी हुई शिक्षा को पूर्ण करने आए थे. इसलिए भारत की धरती इस्लाम की धरती है, क्योंकि इस्लाम के पहले पैगंबर हजरत आदम को ईश्वर ने स्वर्ग से इसी धरती पर उतारा था और इसलिए भारत पर पहला हक मुसलमानों का है.

जमीयत के इस अधिवेशन की यही बातें प्रमुख हैं, शायद इसका एकमात्र अजेंडा भी यही था. इसके संदेश भारत की एकता, अखंडता और  धर्मनिरपेक्षता के लिए बेहद खतरनाक और चिंताजनक हैं. हिंदू जनमानस इस संदेश के निहितार्थ समझकर कितना सतर्क हो पाता है, यह देखने की बात है. पसमांदा वोटों के लालच में, भाजपा और आरएसएस का न केवल मुहं बंद है, बल्कि कुछ भी करने को तैयार है. एचएएल ट्रेनर एयरक्राफ्ट से हनुमान जी का लोगो हटाना, लालच और दबाव का ताजा और निकृष्टतम उदाहरण है. इसलिए सरकार कोई कारगर कदम उठायेगी इसकी संभावना नहीं है.

चचा भतीजे के विषवमन को समझने के लिए इनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि समझना आवश्यक है. अरशद मदनी के पिता हुसैन अहमद मदनी भी दारुल उलूम देवबंद के प्रिंसिपल थे और इसी मदरसे से शिक्षा प्राप्त कर परिवार सहित वह मदीना चले गए थे क्योंकि उनके उनके पिता अपने आप को पैगंबर मोहम्मद साहब का वंशज बताते थे. जब उनके शिक्षक और दारुल उलूम देवबंद के प्रिंसिपल महमूद उल हसन को “सिल्क लेटर कॉन्सपिरेंसी” में मक्का से गिरफ्तार किया गया था, और माल्टा जेल  भेजा जा रहा था, तो हुसैन अहमद मदनी  उनकी सेवा करने के लिए उनके साथ गए यद्यपि उन्हें कोई सजा नहीं सुनाई गई थी. जिसका मदनी अपने परिवारीजनों को  स्वतन्त्रता संग्राम में माल्टा जेल जाने की बात कहते हैं. ये सही है कि सिल्क लेटर आंदोलन देवबंद से संचालित था जिसका उद्देश्य प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ऑटोमन अंपायर, तुर्की, इम्पीरीयल जर्मनी, अफगानिस्तान की सहायता से भारत के जनजातीय इलाकों में अंग्रेजों के प्रति मुस्लिम विद्रोह शुरू करना था. इनका मानना था कि  भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर ध्यान केंद्रित करने से सर्व-इस्लामिक उद्देश्य की पूर्ति सबसे अच्छी तरह की जा सकेगी.

मदीना में 18 वर्ष तक रहने के बाद अरशद मदनी के पिता हुसैन अहमद मदनी  भारत आये तो उन्हें देवबंद दारुल उलूम का मुख्य शिक्षक बना दिया गया. उन्होंने कांग्रेस (मुख्यतया गांधी-नेहरु) को खलीफ़त आंदोलन को समर्थन देने के लिए तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. खलीफ़त आंदोलन, तुर्की में ब्रिटेन की भूमिका को इस्लाम पर आक्रमण मानकर भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध शुरू किया गया आन्दोलन था जिसका भारत की स्वतंत्रता से किसी भी तरह का प्रत्यक्ष संबंध नहीं था.

यह सही है कि उस समय कुछ मुस्लिम  नेताओं ने भारत के विभाजन विरोध किया था, क्योंकि उनका उद्देश्य पूरे भारत को प्राप्त करना था. हुसैन अहमद मदनी की, पाकिस्तान समर्थक अल्लामा इकबाल से बहस भी हुई थी जो बाद में समझौते में बदल गई. जिसके अनुसार जिन्हे चाहिए उन्हें पाकिस्तान लेने दिया जाए, और अन्य लोग भारत में रहकर अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए काम करते रहें यानी भारत को इस्लामिक राज्य बनाने की कोशिश में लगे रहे. महमूद मदनी का यह कहना कि “इस्लाम दुनिया का सबसे पुराना धर्म है और इसकी पैदाइश भारत में हुई, इसलिए  भारत पर पहला हक मुस्लमानों का है” इसी कोशिश का हिस्सा है. इसके पहले भी वह कह चुके हैं कि यह हमारा मुल्क है जिसे मुसलमानों से समस्या है वह देश छोड़कर चले जाएं. अरशद मदनी ने तो ओम और अल्लाह को एक बताकर और मनु और हजरत आदम को एक बता कर सनातन समूह के सभी धर्मों और पंथों हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म को भारत भूमि से पूरी तरह खारिज कर दिया. अन्य धर्मों के  धर्माचार्यों को बुलाकर अधिवेशन के मंच पर बैठाने का उद्देश्य अपने शातिराना और शरारतपूर्ण दुस्साहस को मान्यता दिलवाना था.

दारुल उलूम देवबंद दुनिया भर के मुसलमानों का प्रेरणा स्रोत है, और दुनिया भर के आतंकवादी भी अपने आपको देवबंद से प्रेरित बताते हैं. वैसे तो दारुल उलूम देवबंद में केवल इस्लामिक शिक्षा मिलती है, लेकिन यहाँ पढ़ाई जाने वाली “हिदाया” जिसका जिक्र कुछ समय पहले आरिफ मोहम्मद खान ने किया था, जेहाद के लिए प्रेरित करती है.  स्वाभाविक है कि ऐसा संस्थान, जो न केवल इस्लाम के प्रचार और प्रसार के लिए समर्पित है, बल्कि जिसका उद्देश्य  किसी भी कीमत पर अपने मजहब को सर्वश्रेष्ठ ठहराना और स्थापित करना है, और अशरफ मदनी जैसा व्यक्ति जिसका प्रिन्सिपल हो,  भारत और इसके अन्य संप्रदायों/ धर्मो  का भला नहीं कर सकता. 

ऐसे समय जब केंद्र की भाजपा सरकार और पसमांदा मुस्लिमों के वोट पाने के लिए  तृप्तिकरण में जुटी है, जमीयत ने पसमांदा मुस्लिमों के लिए आरक्षण की मांग करके बड़ा दांव चल दिया है. मोदी सरकार तो अक्टूबर 2022 में ही धर्मान्तरित हुए लोगों को अनुसूचित जाति और जनजाति का आरक्षण देने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन करके राष्ट्रघाती कदम उठा चुकी है. यदि इसकी रिपोर्ट सकारात्मक आती है तो केंद्र की कोई भी सरकार मुस्लिमों को आरक्षण दे देगी. इसके बाद भारत कब तक धर्म निरपेक्ष रहेगा, यह सिर्फ़ अनुमान लगाने की बात रह जाएगी.

काश मोदी जी यह समझ सके कि कांग्रेस के पैरों के नीचे से नहीं, पूरे हिन्दू समुदाय के पैरो के नीचे से जमीन खिसक रही है.

-    शिव मिश्रा

 

 

        

क्या मोदी भटक गए हैं ? या भटक गए थे?

  मोदी के तेवर बदल गयें हैं और भाषण भी, क्या मोदी भटक गए हैं ? या भटक गए थे? लोकसभा चुनाव के पहले दौर के मतदान के तुरंत बाद मोदी की भाषा और ...