शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

सोरोस की शतरंज पर भारतीय मोहरे

 

                        सोरोस की शतरंज पर भारतीय मोहरे   





हंगरी मूल के अमेरिकी धन्नासेठ जॉर्ज सोरोस इस समय भारत में लगातार चर्चा में हैं. उन पर हो रहे नित नए खुलासों से लोग आश्चर्यचकित हैं. जॉर्ज सोरेस के बारे में यह जानना बहुत जरूरी है कि वह अकूत संपत्ति के मालिक तो हैं लेकिन न तो उनकी कोई फैक्टरी / कारखाने हैं और न ही वे कोई उत्पाद बनाते या बेचते हैं। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय बाजार में कृत्रिम उठापटक और अस्थिरता से पैसा बनाना उनका बिज़नेस मॉडल है।

 फोर्ब्स की वेबसाइट के अनुसार जॉर्ज सोरोस की नेटवर्थ  6.7 बिलियन डॉलर है ( As on 23.02.2023)। 2018 में 18 बिलियन डॉलर अपने संगठन ओपन सोसाइटी फाउंडेशन को देने के साथ वे अब तक कुल 32 बिलियन डॉलर दान दे चुके हैं। यह दान वास्तव में उनके व्यवसायिक हितों के लिए निवेष है। जार्ज सोरोस का ओपन सोसाइटी फाउंडेशन नाम का एक संगठन है, जिसका हेडक्वाटर न्यूयार्क में है, और यह भारत सहित दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में सक्रिय है। इसका उद्देश्य प्रथम दृष्टया सामाज सेवा प्रतीत होता है लेकिन इसका वास्तविक उद्देश्य अंततोगत्वा अस्थिरता उत्पन्न करके वित्तीय लाभ उठाना होता है। अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए वह इस संगठन के माध्यम से कई देशों के राजनैतिक और सामाजिक आंदोलनों, मीडिया संस्थानों, पत्रकारों और बुद्दिजीवियों खासतौर से वामपंथ और इस्लाम प्रेरित, को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराते हैं। विभिन्न देशों के राजनीतिक दलों और उनके ट्रस्ट और संगठनों को भी दान देते हैं। लाभार्थियों को मोहरा बनाकर उन देशों पर अपनी पकड़ मजबूत करते हैं और  समय समय पर उन देशों की कमजोरी का फायदा उठाकर लाभ कमाते हैं। जार्ज सोरोस ने इस तथ्य को कभी छिपाया भी नहीं।

1992 में ब्रिटेन की करेन्सी पाउंड स्टर्लिंग और यूरोपियन यूनियन की करेंसी यूरो के बीच एक्सचेंज रेट मैकेनिज्म की कमजोरी को भांप कर उन्होंने बड़ी मात्रा में पाउंड स्टर्लिंग की शॉर्ट सेलिंग की जिसके परिणाम स्वरूप  पाउंड में भारी गिरावट के बाद 16 सितंबर 1992 को ब्रिटेन एक्सचेंज रेट से बाहर होना पड़ा। जॉर्ज सोरोस ने इस गिरावट के कारण एक बिलियन डॉलर से भी ज्यादा का लाभ कमाया। इस सफलता के बाद इस तरह की गतिविधियां उनका आदर्श बिज़नेस मॉडल बन गई। उसके बाद उन्होंने थाईलैंड और मलेशिया सहित कई देशों में भी वही खेल खेला और अरबों डॉलर कमाए। अमेरिका सहित अन्य देशों की राजनीति में दखल देना उनका शौक नहीं उनके बिज़नेस मॉडल का हिस्सा है। अमेरिका में जहां जार्ज बुश को हराने के लिए उन्होंने एड़ी चोटी का ज़ोर लगाया और बहुत पैसा खर्च किया, वहीं बराक ओबामा, हिलेरी क्लिंटन आदि को भरपूर वित्तीय सहायता प्रदान की। डोनाल्ड ट्रंप को हराने के लिए भी विडेंन की भरपूर सहायता की। राष्ट्रवाद के सख्त विरोधी सोरोस का स्वाभाविक रूप से झुकाव वामपंथी बुद्धिजीवियों की तरफ रहता है, जो राष्ट्रवाद से लड़ते हुए इस्लामिक संगठनों का साथ देते हैं। अंतर्राष्ट्रीय विमर्श गढ़ने के लिए सोरोस दुनिया भर के प्रमुख मीडिया संस्थानों और पत्रकारों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराते हैं, और अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उनका भरपूर उपयोग करते हैं.

इस समय नरेंद्र मोदी उनके निशाने पर हैं क्योंकि उनका मानना है कि मोदी  भारत के लिए खतरा हैं और इसलिए भारत में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना के लिए मोदी को सत्ता से उखाड़ने में जुट गये हैं। इस तरह 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए वह भारत में उन राजनीतिक दलों की सहायता कर रहे हैं, जिनसे उनके घनिष्ट संबंध है और जो अपने बलबूते मोदी को हराने में सक्षम नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की दोबारा जीत के बाद इस पर कार्य करना शुरू कर दिया गया था। अमेरिका की शॉर्ट सेलिंग व्यवसायिक फर्म हिंडनबर्ग की अडानी पर की गई सनसनीखेज रिपोर्ट और बीबीसी डॉक्यूमेंटरी  भी इस परियोजना का हिस्सा है।  म्यूनिख सेक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में जॉर्ज सोरेस ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का संदर्भ देते हुए गौतम अडानी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला किया। 2020 में उन्होंने आरोप लगाया था कि मोदी भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं। उन्होंने धारा 370 हटाने का विरोध करते हुए इसे मुस्लिमों के प्रति मोदी की घृणा बताया था । सोरोस ने लाभार्थी मीडिया का उपयोग करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की और शाहीन बाग जैसे कई देश विरोधी आंदोलनों को सहायता देकर अराजकता फैलाने की कोशिश की।   

सोरोस प्रचार कर रहे हैं कि मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं। मुस्लिमों के साथ की गई हिंसा के कारण ही मोदी का राजनैतिक कद बहुत तेजी से बढ़ा है। अडानी घटनाक्रम पर भविष्यवाणी करते हुए उन्होंने कहा कि कि भारत में लोकतांत्रिक बदलाव होगा यानी लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही मोदी सत्ता से हट जाएंगे और नई सरकार बनेगी। कांग्रेस की भारत जोड़ों यात्रा पर टिप्पणी करते हुए सोरोस ने कहा कि यह भारत के लोकतंत्र बचाने का अंतिम अवसर है। जॉर्ज सोरोस का यह अनर्गल प्रलाप लगभग वैसा ही है जैसा कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दल कार रहे हैं। भाजपा सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने पलटवार करते हुए जॉर्ज सोरोस के बयान को भारत विरोधी विदेशी साजिश बताते हुए लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करने की कोशिश बताया।

विदेश मंत्री जयशंकर ने बिना लाग लपेट के बेहद सधी किन्तु तीखी प्रतिक्रिया दी और सोरोस के मोदी विरोधी बयानों को भारत के राजनीतिक दलों का एक विदेशी की मदद से विदेशी धरती से चुनावी अभियान करार दिया। कांग्रेस इन आरोपों में  घिरती नजर आ रही है क्योंकि कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तथ्य हैं जिनसे कांग्रेस की सोरोस या उनकी संस्थाओं से नजदीकी दृष्टिगोचर होती हैं। पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की बेटी अमृत सिंह जॉर्ज सोरोस के संगठन ओपन सोसाइटी जस्टिस इनिशिएटिव में राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी परियोजना की डायरेक्टर हैं। यूपीए सरकार के समय भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे शिव शंकर मेनन, जॉर्ज सोरोस के एक एनजीओ के बोर्ड में हैं। सोनिया गाँधी की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य रहे हर्ष मंदर ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव एडवाइजरी बोर्ड के अध्यक्ष हैं। हर्ष मंदर का एक संगठन “अमन बिरादरी ट्रस्ट” जो जॉर्ज सोरेस का लाभार्थी हैं, भी राजीव गाँधी फाउंडेशन ट्रस्ट के साथ कार्य कर चुका है। दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों में भी हर्ष मंदर का नाम जुड़ा है। कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए कि राजसी शान-शौकत से आयोजित भारत जोड़ो यात्रा, जिसमें सोरोस के खर्चे से पलने वाले NGO के वाईस प्रेसिडेंट सलील शेट्टी भी शामिल थे, का खर्चा किसने दिया? जार्ज सोरोस और शशि थरूर के मधुर संबंधो का आधार क्या है?  

जॉर्ज सोरोस का कई देशों के आंतरिक मामलों में दखल देने का इतिहास है। भारत में अपने संगठनों के माध्यम से 1995 में सक्रिय हुए सोरोस ने  सामाज सेवा के नाम पर  वामपंथी अंतर्राष्ट्रीय संगठन के माध्यम से भारत विरोधी तत्वों को समर्थन देकर देश भर में अपना जाल फैला रखा है। प्रभावी राजनीतिक विमर्श बनाने के लिए उन्होंने  इनवेस्टिगेटिव जर्नलिज़्म को बढ़ावा देने के नाम पर  भारत के प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एक बहुत बड़े वर्ग को भारी अनुदान दिया है, जो मोदी विरोध करते करते देश विरोधी कार्य करने में भी संकोच नहीं करता । मोदी सरकार के मुखर आलोचक और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन भी इस कार्य में सोरोस की सहायता कर रहे हैं।

केंद्रीय मंत्रियों द्वारा दिए गए वक्तव्य और स्पष्टीकरण बिलकुल उचित हैं। राष्ट्र और लोकतंत्र विरोधी षड्यंत्र के विरुद्ध प्रत्येक नागरिक को सचेत और जागरूक किए जाने की आवश्यकता है, लेकिन 9 वर्ष की केंद्रीय सत्ता का समय राष्ट्र विरोधी गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए कम नहीं होता। आखिर कब तक प्रधानमंत्री मोदी अपने लिए विक्टिम कार्ड खेलते रहेंगे कि अमुक उन्हें गाली दे रहा है, अमुक उन्हे सत्ता से हटाना चाहता है। पूर्ण बहुमत मिलने के बाद भी प्रधानमंत्री डरे सहमे हुए बेहद रक्षात्मक ढंग से कार्य कर रहे हैं।  बहुसंख्यकों की अपेक्षाओं को तो पूरी तरह से नज़रअन्दाज़ कर रहें हैं। कल्पना करिए कि यदि वामपंथी या कांग्रेसी इतने बहुमत के साथ सत्ता में होते तो क्या करते? बिना बहुमत के भी कांग्रेस ने पूजा स्थल और वक्फ बोर्ड कानून बनाकर हिंदुओं को रौंद डाला। भाजपा जब सत्ता में नहीं थी तब भी  कुछ नहीं कर सकी और जब सत्ता में है तो भी कुछ नहीं कर सकी। सरकार राष्ट्र विरोधी तत्वों के विरुद्ध बिना भय और पक्षपात के कार्रवाई करने के बजाय सबका विश्वास अर्जित करने में राष्ट्र का समय बर्बाद कर रही है।  बात शायद अटपटी लगे लेकिन आज भारत में बहुसंख्यक वर्ग बेहद डरा और घबराया हुआ है। “सबका विश्वास”  के बाद भाजपा द्वारा तुष्टीकरण और तृप्तिकारण जैसे जैसे बढ़ाया जा रहा है बहुसंख्यकों की आशंकाएं भी बढ़ती जा रही हैं।

सरकार 2047 तक भारत को विकसित देश बनाना चाहती है, और पीएफआई जैसे कई संगठन 2047 तक इसे  इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहते हैं। सरकार अपने काम में व्यस्त हैं और वे लोग अपने काम में व्यस्त हैं। भ्रम है कि कौन किसके लिए कार्य कर रहा है या दोनों एक दूसरे के लिए कार्य कार रहे हैं।  भाजपा के कोर वोटर और मोदी के कट्टर समर्थक भी पूरी तरह से हताश और निराश हैं।  इनमे कोई भी दूसरे राजनीतिक दल को न तो वोट करेगा और न ही उनके लिए काम करेगा लेकिन अगर ये 2024 के लोकसभा चुनाव में केवल घर बैठ गए तो भी  जॉर्ज सोरेस की भविष्यवाणी सही साबित हो जाएगी और मोदी सत्ता से बाहर हो जाएंगे। इसके बाद भाजपा की सत्ता में आने की संभावना सदा सर्वदा के लिए खत्म हो सकती हैं क्योंकि नयी सरकार संविधान और भाजपा के साथ करेगी, इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है । भाजपा अगर जाग सके, और मोदी उनका विश्वास करें जिनके वोटों से वह प्रधान मंत्री बने हैं, तो अभी भी थोड़ा समय बाकी है।

-    शिव मिश्रा  

 

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