योगी की योग्यता परखना भाजपा के लिए आत्मघाती होगा
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कुछ दिनों से सोशल मीडिया में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी को बदलने की अफवाह जोरों पर है. अफवाहों में सभी ने अपने अपने तर्क दिए हैं, कुछ ने कहा है कि योगी और मोदी के बीच में मतभेद गहराते जा रहे हैं तो कुछ ने कहा कि योगी किसी मंत्री या कार्यकर्ता की नहीं सुनते और उनकी कार्यशैली बिल्कुल तानाशाह जैसी हो गई है. विपक्ष और मीडिया ने कोरोना की दूसरी लहर में पूरे प्रदेश में हुई अत्यधिक मौतों को इसका कारण बताया है जिस के समर्थन में उन्होंने गंगा में बहते हुए शवों और श्मशान घाटों में में लंबी-लंबी कतारों का लगना बताया है, यह भी दावा किया गया है कि यह सब तब है जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने मौत के आंकड़े छुपाए हैं. कुछ स्वयंभू और गिद्ध पत्रकारों ने भी इन अफवाहों को ऑक्सीजन देने का काम किया है, जो कुछ दिन पहले तक श्मशान घाट से सजीव प्रसारण कर रहे थे और गंगा में बहती लाशों का विश्लेषण कर रहे थे.
विपक्ष ने भी इन अफवाहों को इसे हाथों-हाथ लपक लिया और उनके कार्यकर्ताओं ने भी सोशल मीडिया में हो रही इस अफवाह बाजी में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. आजकल सोशल मीडिया में झूठ को भी तेजी से फैलाने के लिए कई प्रोफेशनल एजेंसियां उपलब्ध हैं जो पैसे लेकर इस तरह के काम करती हैं, लेकिन सबसे आश्चर्यजनक यह है कि किसी राज्य से जुड़े मामले में विदेशी मीडिया भी बहुत सक्रिय है. यह भी कम आश्चर्यजनक बात नहीं है कि भाजपा का आईटी सेल जिसे भारत के सभी राजनीतिक दलों में सबसे मजबूत और हमलावर माना जाता है, इन दुर्भाग्यपूर्ण अफवाहों को रोकने और समुचित जवाब देने में सफल नहीं हो सका.
योगी के विरुद्ध इस तरह के दुष्प्रचार नये नहीं है उनके पूरे कार्यकाल में देश विरोधी और समाज विरोधी ताकते इस तरह के कारनामे करती रही हैं, जो स्वयं में स्पष्ट करता है कि उन्होंने योगी की शक्ति का सही मूल्यांकन भाजपा से कहीं ज्यादा अच्छे ढंग से किया है. प्रदेश में सांप्रदायिक दंगे न होने देने, संशोधित नागरिकता विरोधी आंदोलन से सख्ती से निपटने, सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वालों से वसूली करने, वांछित अपराधियों की फोटो चौराहों पर लटकाने, गुंडे और माफियाओं को उनकी औकात दिखाने और प्रदेश की कानून व्यवस्था को उस मुकाम पर पहुंचाने सहित योगी ने कई ऐसे काम किए हैं, जिसके लिए प्रदेश कई दशकों से तरस रहा था.
बहुत कम लोगों को यह बात मालूम होगी कि प्रदेश में जातीय विद्वेष फैलाने, सांप्रदायिक दंगे भड़काने, कानून व्यवस्था खराब करने और महिलाओं पर अत्याचार के नाम पर योगी की छवि को आघात पहुंचाने के लिए बड़े पैमाने पर साजिशें होती रही हैं. हाथरस में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना के परिपेक्ष में पीएफआई सहित कई ऐसे संगठनों ने भी एक बड़ी साजिश रची थी जिसके लिए बड़ी मात्रा में धन इकट्ठा किया दया था ताकि पूरे प्रदेश को जातीय और सांप्रदायिक हिंसा में लपेटा जा सके. उनके इस मिशन में कांग्रेस सहित लगभग सभी विपक्षी पार्टियों ने भी जमकर राजनीतिक रोटियां सेंकने और स्थिति खराब करने की कोशिश की. नफरत भरे पोस्टर बनाए गए, सोशल मीडिया पर फर्जी अकाउंट के माध्यम से झूठी खबरों की बमबारी की गई, लेकिन उनके प्रयास सफल नहीं हो पाए.
योगी को बदनाम करने के लिए अभी हाल में एक फर्जी ऑडियो क्लिप सोशल मीडिया में वायरल की गई जिसमें यह बताया जाता है कि योगी के पक्ष में ट्वीट करने पर प्रति ट्वीट ₹2 दिए जाएंगे. इस फर्जी ऑडियो क्लिप को एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी द्वारा भी ट्वीट कर योगी टूल किट के नाम से चलाया गया. इनके ट्वीट यह माध्यम से द वायर की पत्रकार रोहनी सिंह ने भी योगी के विरुद्ध जमकर दुष्प्रचार किया. यद्यपि उत्तर प्रदेश की साइबर पुलिस ने इस फर्जीवाड़े का शीघ्र भंडाफोड़ कर दिया और अभियुक्तों को गिरफ्तार भी कर लिया,लेकिन दुष्प्रचार तो हो चुका था .
उत्तर प्रदेश में गुंडों और माफियाओं के विरुद्ध योगी ने सघन अभियान चलाया जिसके कारण कुख्यात माफिया या तो सलाखों के पीछे हैं या दूसरे राज्यों में छिपे हुए हैं और कुछ को एनकाउंटर में पुलिस ने मार गिराया गया है. इन माफियाओं द्वारा सरकारी भूमि पर किए गए अवैध कब्जों पर बनाई गई इमारतों को ध्वस्त किया गया और हजारों करोड़ रुपए मूल्य की सरकारी जमीन को खाली कराया गया. हाल ही में मुख्तार अंसारी की पंजाब से उत्तर प्रदेश वापसी की कहानी पूरे देश ने देखी और सुनी, जिसे पंजाब सरकार निहित स्वार्थ बस जानबूझकर उत्तर प्रदेश नहीं भेज रही थी और इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार को सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा लेकिन योगी सरकार ने इस कुख्यात माफिया को उत्तर प्रदेश की जेल में डाल कर ही दम लिया. उत्तर प्रदेश सरकार के ऐसे कार्यो ने जनता को सबसे अधिक प्रभावित किया है.
कानपुर के विकरू कांड जिसमें एक उपाधीक्षक सहित आठ पुलिस वालों की हत्या कर दी गई थी, के कुख्यात अपराधी विकास दुबे को जब एक एनकाउंटर में पुलिस ने मार गिराया तो अफवाह गैंग तुरंत सक्रिय हो गया और पुनः जातीय विद्वेष फैलाने की कोशिश की जाने लगी. सोशल मीडिया और दूसरे माध्यमों से यह अफवाह फैलाई गई कि योगी ठाकुर हैं और घोर ब्राह्मण विरोधी है इसलिए ब्राह्मणों की हत्या की जा रही है. एक सन्यासी सामाजिक जातिगत वर्गीकरण और सांसारिकताओं से ऊपर होता है और मैं योगी आदित्यनाथ को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं कि वह सनातन हिंदूवादी तो है, जो उन्हें होना भी चाहिए, लेकिन किसी जाति या धर्म विशेष के लिए उनके मन में कोई विद्वेष की भावना नहीं है. एक ऐसा सन्यासी जो कोरोना महामारी की प्रचंडता के बीच प्रदेश की जनता के प्रति अपने दायित्व निर्वहन के राजधर्म के कारण अपने पिता के अंतिम दर्शन के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली नहीं गया हो और उनकी मृत्यु के पश्चात उनके अंतिम संस्कार में भी सम्मिलित नहीं हुआ हो, उसके ऊपर इस तरह के निम्न स्तरीय आक्षेप लगाना प्रदेश की जनता को बहुत नागवार गुजरा है .
जहां तक कोरोना महामारी का प्रश्न है, योगी ने पूरे देश में कुशल मुख्यमंत्री होने का एक उदाहरण स्थापित किया है. जब ज्यादातर प्रदेशों के मुख्यमंत्री सोशल मीडिया और टीवी वार्ताओं तक ही सीमित थे, उन्होंने प्रदेश के हर जिले का सघन दौरा किया, अस्पतालों में गए, और स्थिति का जायजा लेकर प्रभाव कारी कदम उठाए. जब दिल्ली सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश और बिहार के प्रवासी मजदूरों को डीटीसी की बसों में भरकर उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर छोड़ दिया गया था , तो योगी ने इन हजारों प्रवासी श्रमिकों के रहने खाने-पीने की समुचित व्यवस्था की और उनके गंतव्य तक पहुंचने का भी पूरा इंतजाम किया. इसमें बड़ी संख्या में बिहार के प्रवासी श्रमिक भी थे. यही नहीं योगी ने कांग्रेस के बस घोटाले का भी मुंह तोड़ जवाब दिया और जनता के सामने कांग्रेस का झूठ उजागर कर दिया. बहुत बड़ी संख्या में दिल्ली, मुंबई और अन्य जगहों से लौटे प्रवासी मजदूरों की व्यवस्था करना किसी भी सरकार के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था, जिसे योगी सरकार ने बहुत कुशलता से संभाला. कोरोना की पहली और दूसरी लहर में योगी सरकार के प्रबंधन की विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी जमकर तारीफ की है और प्रधानमंत्री मोदी तो समय-समय पर योगी के कोरोना प्रबंधन पर उनकी पीठ थपथपाते रहे हैं.
लगभग 25 करोड़ की जनसंख्या वाला उत्तर प्रदेश विश्व में 4 देशों को छोड़कर सभी देशों से बड़ा है और स्वास्थ्य की सीमित मूलभूत सुविधाओं के बावजूद प्रदेश में संक्रमितों की संख्या और मृत्यु दर ज्यादातर प्रदेशों और विश्व के ज्यादातर देशों की तुलना में बहुत अच्छी रही है. यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि योगी के 4 साल के अब तक के कार्यकाल का डेढ़ साल सिर्फ कोरोना महामारी के आकस्मिक प्रबंधन करते हुए बीता. इस सब के बाद भी उत्तर प्रदेश आर्थिक विकास के पथ पर तेजी से कार्य किया और नए एयरपोर्ट के साथ देश में सबसे अधिक साथ एयरपोर्ट वाला राज्य बन गया. प्रदेश में सड़कों में भी कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं चल रही हैं इनमें कुछ पूरी हो चुकी हैं और कुछ तेजी से पूरी होने की ओर अग्रसर है. इनमें पूर्वांचल एक्सप्रेस वे, गंगा एक्सप्रेस वे, बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस वे, बलिया लिंक एक्सप्रेस वे सहित अन्य राष्ट्रीय राजमार्ग शामिल है. प्रदेश की कई महत्वाकांक्षी परियोजनायें अयोध्या, चित्रकूट, मथुरा और काशी में चल रही हैं, जिनसे सनातन संस्कृति के प्रसार के साथ-साथ पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा और आर्थिक गतिविधियां बढ़ेगी. नोएडा में फिल्म सिटी का कार्य भी काफी प्रगति पर है . ऐसी अनेकों औद्योगिक गतिविधियों के कारण उत्तर प्रदेश एक बीमारू राज्य की स्थिति से उबर चुका है और 2020-21 में वह पूरे देश में महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बाद तीसरे नंबर की सबसे बड़ी नॉमिनल जीडीपी ( 17 लाख करोड़ से अधिक ) वाला प्रदेश बन चुका है.
उत्तर प्रदेश भाजपा में संगठन और सरकार में बदलाव की अफवाहों को तब और बल मिला जब दिल्ली में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राष्ट्रीय महासचिवों और प्रभारियों की बैठक के बाद उत्तर प्रदेश के भाजपा प्रभारी राधा मोहन सिंह, राष्ट्रीय महासचिव संगठन बीएल संतोष ने लखनऊ का दौरा किया . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले के लखनऊ दौरे को भी उन्हीं अटकलों के साथ जोड़कर देखा जा रहा है. राधा मोहन सिंह ने तो राज्यपाल आनंदीबेन और विधानसभा अध्यक्ष श्री हृदय नारायण दीक्षित से भी मुलाकात की जिससे अटकलों का बाजार और गर्म हो गया. यद्यपि राधा मोहन सिंह ने इन मुलाकातों को शिष्टाचार मुलाकात बताया और अपने दौरे का उद्देश्य 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों से संबंधित बताया किंतु एक सामान्य राजनीतिक समझ वाला व्यक्ति भी यह अनुमान जरुर लगाएगा कि कुछ न कुछ तो चल रहा है अन्यथा राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष से मिलने की क्या जरूरत थी ? इन मुलाकातों का 2022 के विधानसभा चुनाव से क्या संबंध हो सकता है यह अभी भी एक अबूझ पहेली है .
इन नेताओं द्वारा दे गए स्पष्टीकरण के बाद जनता को आश्वस्त होना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में भाजपा मुख्यमंत्री बदलने नहीं जा रही है और मंत्री स्तर के बदलाव से जनता पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता.
जो भी हो भाजपा कैडर आधारित विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है और उसे यह अवश्य मालूम होगा कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं और केंद्र में सरकार बनाने का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर ही जाता है लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को यह जरूर समझ लेना चाहिए कि पंचायत चुनाव में प्रदर्शन किसी भी राजनीतिक दल के लिए विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए कोई बहुत महत्वपूर्ण संकेत नहीं होता, अगर यह इतना ही महत्वपूर्ण होता तो 2017 में भाजपा को इतनी सफलता कैसे मिली ? अभी कुछ माह पहले इंडिया टुडे द्वारा कराए गए एक जनमत सर्वेक्षण में यह बात सामने आई थी कि उत्तर प्रदेश में योगी की लोकप्रियता के आगे भाजपा या विपक्ष का कोई नेता कहीं दूर दूर तक नहीं ठहरता. इसलिए भाजपा को यह भी अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में की गई एक छोटी सी भूल भी पार्टी के लिए बहुत विनाशकारी साबित हो सकती है.
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शिव मिश्रा
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