शनिवार, 15 मई 2021

 क्या अखिलेश यादव दुबारा मुख्यमंत्री बन सकते हैं ?

जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है, इसलिए बहुत खराब बातें भी ज्यादा दिन याद नहीं रहती. भारत में इसके अनगिनत उदाहरण है.

1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल और उसमें हुई भयंकर ज्यादतियों के प्रतिकार स्वरूप जनता ने 1977 के चुनाव में कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंका और स्वयं इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गई लेकिन इसके ढाई साल बाद 1980 में हुए मध्यावधि चुनाव में इंदिरा गांधी सत्ता में वापस आ गई. जनता सरकार के भ्रष्टाचार रहित कार्यकाल और तमाम अच्छे कार्यों के बावजूद पार्टी की आंतरिक कलह और उठापटक के कारण जनता ने पुनः इंदिरा गांधी की सरकार बना दी.

इसलिए उत्तर प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी ? सटीक तो नहीं कहा जा सकता लेकिन एक बात अवश्य है कि प्रदेश के लोग इस बात को खुले आम स्वीकारते हैं कि योगी सरकार का अब तक का कार्यकाल पिछले 15- 20 साल में रहे मुख्यमंत्रियों राजनाथ सिंह, मायावती, मुलायम सिंह और अखिलेश यादव से काफी बेहतर है. ये भ्रष्टाचार रहित और अपराध मुक्त रहा है. कानून व्यवस्था की इतनी अच्छी स्थिति पिछले 20 साल में प्रदेश में कभी नहीं रही.

उत्तर प्रदेश की जनसंख्या मिश्रित है और यह की राजनीति अगड़ों, पिछड़ों, दलित और अल्पसंख्यक में बुरी तरह विभाजित है. 2017 के विधानसभा चुनाव में अमित शाह की सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला हिट रहा और भाजपा को अभूतपूर्व सफलता मिली. 2022 की जीत भी काफी हद तक इसी सोशल इंजीनियरिंग और योगी सरकार के कामकाज पर निर्भर करेगी.

इस बीच कोरोना महामारी के परिणाम स्वरूप स्वास्थ्य ढांचा चरमरा जाने के कारण सरकार के प्रति लोगों में तात्कालिक आक्रोश है क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर में ग्रामीण अंचल की बहुत बुरी तरह प्रभावित हैं, जहां पर स्वास्थ्य सुविधाएं नाममात्र को है, यद्यपि इसका दोष केवल योगी सरकार का नहीं है लेकिन जनता का आक्रोश तो वर्तमान सरकार के प्रति ही होता है और जब कोई अपनों को इस तरह खोता है तब वह राजनीति का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व भूल जाता है.

चुनाव में अभी समय है, जनता के आक्रोश की भरपाई की जा सकती है और निश्चित रूप से भाजपा और योगी सरकार इसमें कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ेगी क्योंकि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर जाता है.

अब बात करते हैं अखिलेश यादव के २०२२ में मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं पर .

इसके लिए उनके पिछले कार्यकाल की उपलब्धियों और मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनके योगदान की चर्चा करनी पड़ेगी.

पिछले चुनाव में अखिलेश यादव के विरुद्ध एक नारा भाजपा ने उछाला था “ जो अपने बाप का नहीं हुआ वह आपका क्या होगा” इसका जनता पर व्यापक असर हुआ था और यह नारा उत्तर प्रदेश में आज भी जीवित है. इसकी संक्षिप्त कहानी यह है कि अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव की जीवन भर की कमाई के रूप में बनाई समाजवादी पार्टी पर बलात कब्जा कर लिया था और उन्हें पार्टी के सभी पदों से हटाकर स्वयं पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए . चाचा शिवपाल सिंह को भी बेइज्जत करके निकाल दिया . यह षड्यंत्र इतने अच्छे और गुपचुप ढंग से किया गया कि पार्टी के ज्यादातर विधायक और सांसद अखिलेश के साथ लामबंद हो गए. मुलायम सिंह यादव को उम्र के इस पड़ाव पर उनकी बेटे ने दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया. इतना बड़ा धोखा, इतना बड़ा अपमान और इतनी बड़ी पीड़ा उनके अपने जिगर के टुकड़े ने दी जिसे उन्होंने स्वयं मुख्यमंत्री बनाया था. उन्होंने अखिलेश का नाम प्यार से टीपू (सुल्तान) रखा था, जिसने पूरे मुगलिया अंदाज में अपने पिता को पदच्युत कर दिया. महीनों मुलायम सिंह इस सदमे से उबर नहीं सके थे. इसके बाद अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के सर्वे सर्वा बन गए .

समाजवादी पार्टी का ताना-बाना भी समझ लेना बहुत आवश्यक है.

मुलायम सिंह यादव ने बहुत मेहनत और तिकड़म से पार्टी बनाई थी. उन्होंने यह अच्छी तरह समझ लिया था कि गुंडे, अपराधी और माफिया लोगों के बिना राजनीति पर मजबूत पकड़ बनाना मुश्किल है इसलिए उन्होंने पार्टी में प्रदेश स्तर से लेकर बूथ स्तर तक गुंडे और माफियाओं को भी शामिल किया जो लोगों को डराने धमकाने से लेकर फर्जी वोटिंग और बूथ कैप्चरिंग तक का काम करते थे. बदले में इन अपराधियों को वसूली करने की पूरी छूट मिलती थी. इसलिए बीहड़ों के कई नामी-गिरामी डाकू और पूर्व डाकू भी समाजवादी पार्टी का समर्थन करते थे. दस्यु सुंदरी फूलन देवी तो समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद चुनी गई थी. उत्तर प्रदेश के जितने भी बाहुबली और माफिया डॉन के नाम आपने सुने होंगे वह सब सपा के साथ कभी न कभी जरूर जुड़े रहे होंगे.

तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह कार्यकाल में तो अपहरण उद्योग बन गया था, हत्या सामान्य बात थी और बलात्कार लड़कों से हुई छोटी मोटी गलती हुआ करती थी. उनके कार्यकाल में मुख्तार अंसारी सरीखे बड़े बड़े माफिया जेल में बंद रहते हुए फाइव स्टार होटल की सुविधाएं प्राप्त करते थे और उनके साथ बैडमिंटन खेलने के लिए जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक पहुंचते थे.

पूर्वांचल के उनके एक विधायक के घर में बने एक तालाब में मगरमच्छ पाले जाते थे. लोग बताते हैं कि विधायक या सपा विरोधी लोगों को इस तालाब में फेंक कर मगरमच्छों के हवाले कर दिया जाता था.

कुख्यात गेस्ट हाउस काण्ड जिसमें मायावती को इज्जत बेइज्जत एवं शर्मसार करने तथा उन्हें जान से मारने का षड्यंत्र किया गया था, मायावती चाहे भले ही भूल जाय, जनता नहीं भूल सकती.

2007 से 2012 तक मुख्यमंत्री रही मायावती के मूर्ति प्रेम, मुस्लिम तुष्टिकरण और भ्रष्टाचार से परेशान होकर जनता ने समाजवादी पार्टी को सत्ता सौंप दी . पार्टी को पहली बार अपने दम पर पूर्ण बहुमत मिला था. मुलायम सिंह के अंदर प्रधानमंत्री बनने का सपना हिलोरे ले रहा था इसलिए उन्होंने अपने भाई शिवपाल सिंह को दरकिनार करते हुए अपने बेटे अखिलेश यादव उर्फ़ टीपू को तश्तरी में सजा कर मुख्यमंत्री का पद भेंट कर दिया.

लोगों का कहना है कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव में बहुत समानता है. अंतर सिर्फ इतना है कि राहुल गांधी राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं और अखिलेश यादव राज्य स्तर के खिलाड़ी हैं.

अखिलेश यादव ने अपनी पारी की शुरुआत जीत के जश्न के साथ शुरू की

जिसे उन्होंने अपने गांव सैफई में फिल्मी कलाकारों के नाच गाने से किया था. राज्य सरकार के सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करके इस आयोजन में फिल्मी कलाकारों को लखनऊ हवाई अड्डे से उनके गांव सैफई तक मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर को टैक्सी की तरह इस्तेमाल करके लाया ले जाया गया.

साढ़े चार मुख्यमंत्री :

अखिलेश यादव के कार्यकाल में एक कहावत प्रचलित थी कि प्रदेश में साढ़े चार मुख्यमंत्री हैं, मुलायम सिंह, आजम खान, शिवपाल सिंह, राम गोपाल सिंह और आधे वह स्वयं. समाजवादी पार्टी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि अखिलेश यादव अनुभवहीन होने के कारण स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर पा रहे थे इसलिए मुलायम के एक बेहद करीबी राजेंद्र चौधरी को उनके पीछे लगा दिया गया था जो हमेशा साये की तरह उनके साथ देखे जाते थे. अखिलेश यादव मुख्यमंत्री के कार्यालय में कम ही आते थे और उनके आने जाने का कोई समय निर्धारित नहीं था. सरकारी कर्मचारियों की तरह जल्दी कार्यालय से निकल जाते थे और मुख्यमंत्री आवास में अपने बच्चों और उनके दोस्तों के साथ क्रिकेट आदि खेला करते थे. आप समझ सकते हैं कि प्रदेश में क्या-क्या नहीं हुआ होगा.

अखिलेश यादव का कार्यकाल दंगों के लिए हमेशा याद रखा जाएगा .

अखिलेश के कार्यकाल में कितने दंगे हुए उसका ठीक-ठीक आकलन करना बहुत मुश्किल है. लगभग 2500 से अधिक छोटे-बड़े दंगे हुए जिसका औसत 500 दंगे प्रतिवर्ष से भी अधिक है. कार्यकाल के अंतिम समय तक वोट बैंक के तुष्टिकरण के कारण अखिलेश यादव दंगों पर कोई नियंत्रण नहीं कर सके. आजम खान जैसे कई मंत्री तो लगता था कि जैसे सिर्फ दंगे करवाने के लिए ही मंत्री बनाए गए थे .

अखिलेश के कार्यकाल में पूरा प्रदेश भयानक सांप्रदायिकता की चपेट में रहा. पुलिस और पीएसी की इतनी छीछालेदर आजादी के बाद कभी नहीं हुई. सपा समर्थित अपराधियों द्वारा कितने पुलिस वालों को इज्जत - बेइज्जत किया जाता था, सरेआम पीटा जाता था और कितनों को मौत के घाट उतार दिया गया इसके आंकड़े शर्मसार करने वाले हैं.

संपत्तियों की लूट और मथुरा कांड

हर शहर और कस्बे में सपाइयों द्वारा संपत्तियों की लूट चल रही थी. बंद मकान का ताला तोड़कर कब्जा कर लेना बहुत सामान्य घटना थी. कितनो ने ऋण लेकर मकान बनवाए थे जिन पर सपाइयों का कब्जा था, क़िस्त वह अदा करते थे रहते सपाई थे.

कानपुर में स्टेट बैंक के अधिकारियों के 250से अधिक भूखण्डों पर सपा के एक स्थानीय नेता का आज भी कब्ज़ा है .

मथुरा के 280 एकड़ के जवाहर पार्क पर सपा के करीबी रामवृक्ष यादव ने कब्जा कर लिया और एक छोटा-मोटा शहर बसा लिया. सुर्खियां बनने पर जब पुलिस ने खाली कराने की कोशिश की तो गोलीबारी में 24 पुलिस के जवान शहीद हो गए जिसमें पुलिस अधीक्षक और उपाधीक्षक स्तर के अधिकारी भी शामिल थे.

इन मृत पुलिस अधिकारियों को आर्थिक सहायता देने में भी हिंदू और मुसलमान का भेदभाव किया गया. मथुरा में मारे गए पुलिस अधिकारी हिंदू थे तो उन्हें ₹20 लाख की आर्थिक सहायता दी गई लेकिन कुंडा में जिया उल हक नाम के एक पुलिस उपाधीक्षक की मौत पर ₹50 लाख का मुआवजा दिया गया था और उसकी पत्नी को सीधे पुलिस उपाधीक्षक नियुक्त किया गया था जो उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ था.

कुख्यात दादरी हत्याकांड

जिसमें अखलाक की हत्या कर दी गई थी, जिसे जानबूझकर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया गया. अपनी नाकामी छुपाने के लिए सपा सरकार ने इस हत्याकांड को मोदी सरकार की असहिष्णुता बता कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया और इसके लिए नरेंद्र मोदी कटघरे में खड़ा किया गया .

अखिलेश यादव का कार्यकाल प्रदेश में महिलाओं के लिए नर्क से भी बदतर रहा

बदायूं में दो नाबालिग लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद मौत के घाट उतार दिया गया और उनकी लाश को गांव के बाहर पेड़ से लटका दिया गया. बदायूं और बुलंदशहर बलात्कार कांड सीधे सपा नेताओं से जुड़े थे और जिस पर लड़कों की छोटी गलती बता कर पल्ला झाड़ लिया जाता था .

शाहजहांपुर के एक पत्रकार जोगिंद्र सिंह को जिंदा जला दिया गया

क्योंकि उन्होंने समाजवादी पार्टी के एक नेता के बलात्कार की कहानी सुर्खियों में ला दी थी. अपने मृत्यु पूर्व बयान में पत्रकार ने अखिलेश के एक मंत्री का नाम लिया लेकिन अपने पूरे कार्यकाल में अखिलेश यादव उसको बचाने में लगे रहे .

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष पद पर परिवार

के करीबी अनिल यादव को बैठा दिया गया जिसकी योग्यता लोक सेवा आयोग में क्लर्क बनने के लायक भी नहीं थी . आगरा निवासी अनिल यादव के विरुद्ध अनेक मुकदमे दर्ज है. उन्होंने भ्रष्टाचार के नए आयाम बनाए और चयन सूची में एक जाति विशेष और एक धर्म विशेष के लोग होते थे और मेधावी युवा हाथ मलते रह जाते थे.

इनके विरुद्ध छात्रों ने जबरदस्त आंदोलन छेड़ा तब जाकर कहीं 2011 की सिविल सेवा परीक्षा उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद रद्द की गई.

उच्च न्यायालय ने यादव को इस पद के लिए अयोग्य ठहराया और बर्खास्त कर दिया था. अखिलेश यादव के कार्यकाल में कई प्रतिष्ठित संस्थानों और चयन आयोगों के अध्यक्ष पदों पर ऐसे अयोग्य, जातिवादी , भ्रष्ट और बेईमान लोगों को बिठाया गया जिसकी सड़ांध के बहुत दूरगामी परिणाम होंगे. ऐसे चार अध्यक्षों को उच्च न्यायालय ने स्वयं बर्खास्त कर दिया.

यादव सिंह या मनी मिन्टिंग मशीन,

सपा के एक करीबी यादव सिंह नोएडा के चीफ इंजीनियर बनाए गए जो जूनियर इंजीनियर से प्रोन्नति पाते हुए तमाम वरिष्ठ इंजीनियरों को लांघते हुए इस पद पर पहुंच गए और हजारों करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार का अंबार लगा दिया . उत्तर प्रदेश के इतिहास में शायद यह पहला मौका था जब कोई जूनियर इंजीनियर इतने कम समय में नोएडा जैसे जगह चीफ इंजीनियर बना दिया गया हो .

गायत्री प्रजापति ने भ्रष्टाचार का नया कीर्तिमान बनाया

मुलायम सिंह के बेहद करीबी गायत्री प्रजापति को खनन राज्य मंत्री बनाया गया. जैसे-जैसे उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते गए वैसे वैसे उनका प्रमोशन होता गया. गायत्री प्रजापति ने सपा के लिए धन इकट्ठा करने में सारी मर्यादा तोड़ दी, उन पर बलात्कार और हत्या के आरोप भी हैं . आजकल वह जेल में है.

लखनऊ के तत्कालीन आईजी पुलिस अमिताभ ठाकुर की पत्नी नूतन ठाकुर एक सामाजिक कार्यकर्ता है उन्होंने गायत्री प्रजापति के खिलाफ कई शिकायत की थी जिसके कारण मुलायम सिंह यादव ने स्वयं आईजी अमिताभ ठाकुर को फोन करके धमकाया जिसका ऑडियो टेप वायरल हो गया और शायद इसी कारण आईजी को निलंबित कर दिया गया था .

माइनिंग माफिया का एक और कारनामा अखिलेश यादव के लिए शर्मिंदगी का सबब बन गया

जब उन्होंने गौतम बुद्ध नगर जिले की जिला अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को खनन माफिया के विरुद्ध कार्रवाई करने के कारण निलंबित कर दिया. इससे सभी अधिकारियों को संदेश दे दिया गया था कि जो हो रहा है उसे होने दिया जाए.

लोकायुक्त नियुक्त करने में षड्यंत्र

सपा के बेहद करीबी जस्टिस वीरेंद्र सिंह को प्रयागराज उच्च न्यायालय में 2009 में न्यायाधीश नियुक्त किया गया था, लेकिन प्रदेश में लोकायुक्त की जगह खाली होने पर उन्हें इस्तीफा दिला कर सेवानिवृत्त न्यायाधीश बना लिया गया ताकि वह लोकायुक्त बनने के लिए पात्र हो सके. लोकायुक्त के पैनल में उनका नाम शामिल किया गया जिस पर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा नेता विपक्ष ने आपत्ति की थी. वीरेंद्र सिंह पर सरकारी भूमि पर पर कब्जा करने जैसे कई गंभीर आरोप भी थे. सपा द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर गुमराह किया गया जिसके कारण सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें लोकायुक्त बनाने का निर्देश दिया. बाद में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखने के बाद उनका शपथ ग्रहण रोक दिया गया और उनकी नियुक्ति निरस्त की गई.

भ्रष्टाचार के मामले में अखिलेश सरकार ने मायावती और मुलायम सिंह की सरकारों को मीलों पीछे छोड़ दिया.

सी ए जी की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है की बेरोजगारी भत्ते के नाम पर अखिलेश सरकार ने खुली लूट की. ऑडिट में सामने आया कि 1. 25 लाख युवाओं में ₹20 करोड़ का बेरोजगारी भत्ता बांटने के लिए हुई मीटिंग में ₹15 करोड़ केवल चाय नाश्ते के मद में खर्च दिखाकर हड़प लिए गए. अखिलेश ने जो चेक समारोह आयोजित कर बेरोजगार युवाओं में बांटे भी उन्हें भी बेहद धांधली की गई “अंधा बांटे रेवड़ी आपन आपन देय” .

लखनऊ की रिवर फ्रंट योजना

लखनऊ में गोमती नदी के दोनों किनारों को सुंदर बनाने के लिए गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट तैयार किया गया जिसके लिए 550 करोड रुपए का प्रावधान बजट में किया गया लेकिन इसके विरुद्ध इस पर बिना किसी स्वीकृत के 1500 करोड़ से अधिक खर्च किए गए जिसके लिए फर्जी बिलों का सहारा लिया गया. मामले की जांच चल रही है और कई इंजीनियर और अधिकारी जेल में है और कुछ जांच के दायरे में है.

लखनऊ आगरा एक्सप्रेस वे

इसको अखिलेश यादव अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि बताते हैं लेकिन इसे बनाने में जितना रुपया खर्च किया गया उससे इस तरह के कम से कम ४ एक्सप्रेस वे बनाए जा सकते थे. इस परियोजना को स्वीकृत करने के पहले ही सपा परिवार के नजदीकियों ने एक्सप्रेस वे में आने वाले खेत खरीद लिए और बाद में सरकारी अधिग्रहण में कई गुना पैसा मुआवजा के तौर पर सरकार से लिया और एक्सप्रेस वे के किनारे की जमीन में भी अच्छा खासा पैसा कमाया. अन्य परियोजनाओं की तरह अखिलेश इस परियोजना को भी अपने कार्यकाल में पूरा नहीं कर सके केवल तीन चार किलोमीटर के टुकड़े पर सेना के लड़ाकू विमान को उतार कर वाहवाही लूटने का कार्य किया गया. परियोजना योगी सरकार आने के 2 साल बाद पूरी हो सकी.

लखनऊ मेट्रो परियोजना भी अधर में छोड़ी

केंद्र सरकार द्वारा 550 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता और 3500 करोड़ों रुपए का ऋण उपलब्ध कराने के बाद भी लखनऊ मेट्रो का प्रथम चरण भी पूरा नहीं कर सके और केवल 9 किलोमीटर का एक ट्रैक बनाकर परियोजना का उद्घाटन कर दिया . इस परियोजना का बचा हुआ कार्य योगी सरकार में पूरा किया गया.

अखिलेश यादव किसी भी बड़ी परियोजना को अपने कार्यकाल में पूरा नहीं कर सके और इस कारण अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम, जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय केंद्र, जनेश्वर मिश्रा पार्क, डायल 100, और यहां तक कि अपने लिए मुख्यमंत्री का हाईटेक कार्यालय भी 5 साल में पूरा नहीं कर सके . बताया जाता है कि अपने बंगले में उन्होंने अनेक कार्य कराए थे लेकिन मुख्यमंत्री का बंगला खाली करने के बाद उनके बाथरूम की टोटियां गायब मिली, स्विमिंग पूल सहित इटालियन टाइल्स के फ्लोर टूटे मिले.

2017 में सपा और कांग्रेस ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा और “यूपी के लड़के” की थीम पर प्रशांत किशोर ने काफी जोर आजमाइश की लेकिन चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा. पलायनवादी प्रवृत्ति और योगी के प्रति उनकी एलर्जी के कारण वह राज्य में विपक्षी नेता के रूप में अपने आप को सहज नहीं कर सके और 2019 के चुनाव में लोकसभा पहुंच गए.

योगी सरकार आने के बाद और कोरोना महामारी में भी वह अपने आप को संयत नहीं कर सके. हमेशा ट्विटर पर नकारात्मक वक्तव्य देना उनकी आदत में शामिल है. अखिलेश के ट्वीट और वक्तव्य राहुल गांधी से काफी मेल खाते हैं . उत्तर प्रदेश में प्रियंका के उदय के बाद लोगों की कांग्रेस के प्रति गंभीरता लगभग खत्म हो गई है और अखिलेश यादव को भी अब लोग बहुत गंभीरता से नहीं लेते .

प्रदेश के लोग अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के रूप में देख चुके हैं और वोट करते समय निश्चित रूप से योगी और अखिलेश की तुलना करेंगे और इस तुलना में अखिलेश कहीं नहीं ठहरते.

कोरोना महामारी के समय मायावती की बहुत ही जिम्मेदार और संयत भूमिका देखने को मिली और इस हिसाब से अखिलेश यादव की तुलना में मायावती का पलड़ा भारी है. सपा और बसपा दोनों ही मुस्लिम मतों पर आश्रित हैं और पिछले दो चुनावों में देखने को मिला है कि मुस्लिम मत दोनों ही पार्टियों को मिलते रहे हैं और अगर यह सिलसिला आगामी चुनाव में भी होता है तो न तो सपा और न ही बसपा सत्ता की दहलीज तक पहुंच पाएगी.

योगी आदित्यनाथ अपनी व्यक्तिगत साफ-सुथरी हिंदूवादी किंतु संवेदनशील छवि, कठोर किंतु कुशल प्रशासक, और 5 सालों में भ्रष्टाचार रहित सरकार के लोकप्रिय और जन हितकारी कार्यों के आधार पर जनता की अदालत में पहुंचेंगे. मुकाबला बेहद रोमांचकारी होगा लेकिन योगी तो योगी हैं, उनका पलड़ा सबसे भारी है.

इसलिए इस बात की संभावना नहीं दिखाई देती कि जनता अखिलेश यादव को दुबारा मुख्यमंत्री बनायेगी, और इसके बहुत उचित कारण भी हैं .[1] [2] [3]

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- शिव मिश्रा

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क्या अखिलेश यादव को दुबारा मुख्यमंत्री बनना चाहिए ?

  क्या अखिलेश यादव दुबारा मुख्यमंत्री बन सकते हैं ?

जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है, इसलिए बहुत खराब बातें भी ज्यादा दिन याद नहीं रहती. भारत में इसके अनगिनत उदाहरण है.

1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल और उसमें हुई भयंकर ज्यादतियों के प्रतिकार स्वरूप जनता ने 1977 के चुनाव में कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंका और स्वयं इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गई लेकिन इसके ढाई साल बाद 1980 में हुए मध्यावधि चुनाव में इंदिरा गांधी सत्ता में वापस आ गई. जनता सरकार के भ्रष्टाचार रहित कार्यकाल और तमाम अच्छे कार्यों के बावजूद पार्टी की आंतरिक कलह और उठापटक के कारण जनता ने पुनः इंदिरा गांधी की सरकार बना दी.

इसलिए उत्तर प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी ? सटीक तो नहीं कहा जा सकता लेकिन एक बात अवश्य है कि प्रदेश के लोग इस बात को खुले आम स्वीकारते हैं कि योगी सरकार का अब तक का कार्यकाल पिछले 15- 20 साल में रहे मुख्यमंत्रियों राजनाथ सिंह, मायावती, मुलायम सिंह और अखिलेश यादव से काफी बेहतर है. ये भ्रष्टाचार रहित और अपराध मुक्त रहा है. कानून व्यवस्था की इतनी अच्छी स्थिति पिछले 20 साल में प्रदेश में कभी नहीं रही.

उत्तर प्रदेश की जनसंख्या मिश्रित है और यह की राजनीति अगड़ों, पिछड़ों, दलित और अल्पसंख्यक में बुरी तरह विभाजित है. 2017 के विधानसभा चुनाव में अमित शाह की सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला हिट रहा और भाजपा को अभूतपूर्व सफलता मिली. 2022 की जीत भी काफी हद तक इसी सोशल इंजीनियरिंग और योगी सरकार के कामकाज पर निर्भर करेगी.

इस बीच कोरोना महामारी के परिणाम स्वरूप स्वास्थ्य ढांचा चरमरा जाने के कारण सरकार के प्रति लोगों में तात्कालिक आक्रोश है क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर में ग्रामीण अंचल की बहुत बुरी तरह प्रभावित हैं, जहां पर स्वास्थ्य सुविधाएं नाममात्र को है, यद्यपि इसका दोष केवल योगी सरकार का नहीं है लेकिन जनता का आक्रोश तो वर्तमान सरकार के प्रति ही होता है और जब कोई अपनों को इस तरह खोता है तब वह राजनीति का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व भूल जाता है.

चुनाव में अभी समय है, जनता के आक्रोश की भरपाई की जा सकती है और निश्चित रूप से भाजपा और योगी सरकार इसमें कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ेगी क्योंकि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश होकर जाता है.

अब बात करते हैं अखिलेश यादव के २०२२ में मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं पर .

इसके लिए उनके पिछले कार्यकाल की उपलब्धियों और मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनके योगदान की चर्चा करनी पड़ेगी.

पिछले चुनाव में अखिलेश यादव के विरुद्ध एक नारा भाजपा ने उछाला था “ जो अपने बाप का नहीं हुआ वह आपका क्या होगा” इसका जनता पर व्यापक असर हुआ था और यह नारा उत्तर प्रदेश में आज भी जीवित है. इसकी संक्षिप्त कहानी यह है कि अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव की जीवन भर की कमाई के रूप में बनाई समाजवादी पार्टी पर बलात कब्जा कर लिया था और उन्हें पार्टी के सभी पदों से हटाकर स्वयं पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए . चाचा शिवपाल सिंह को भी बेइज्जत करके निकाल दिया . यह षड्यंत्र इतने अच्छे और गुपचुप ढंग से किया गया कि पार्टी के ज्यादातर विधायक और सांसद अखिलेश के साथ लामबंद हो गए. मुलायम सिंह यादव को उम्र के इस पड़ाव पर उनकी बेटे ने दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया. इतना बड़ा धोखा, इतना बड़ा अपमान और इतनी बड़ी पीड़ा उनके अपने जिगर के टुकड़े ने दी जिसे उन्होंने स्वयं मुख्यमंत्री बनाया था. उन्होंने अखिलेश का नाम प्यार से टीपू (सुल्तान) रखा था, जिसने पूरे मुगलिया अंदाज में अपने पिता को पदच्युत कर दिया. महीनों मुलायम सिंह इस सदमे से उबर नहीं सके थे. इसके बाद अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के सर्वे सर्वा बन गए .

समाजवादी पार्टी का ताना-बाना भी समझ लेना बहुत आवश्यक है.

मुलायम सिंह यादव ने बहुत मेहनत और तिकड़म से पार्टी बनाई थी. उन्होंने यह अच्छी तरह समझ लिया था कि गुंडे, अपराधी और माफिया लोगों के बिना राजनीति पर मजबूत पकड़ बनाना मुश्किल है इसलिए उन्होंने पार्टी में प्रदेश स्तर से लेकर बूथ स्तर तक गुंडे और माफियाओं को भी शामिल किया जो लोगों को डराने धमकाने से लेकर फर्जी वोटिंग और बूथ कैप्चरिंग तक का काम करते थे. बदले में इन अपराधियों को वसूली करने की पूरी छूट मिलती थी. इसलिए बीहड़ों के कई नामी-गिरामी डाकू और पूर्व डाकू भी समाजवादी पार्टी का समर्थन करते थे. दस्यु सुंदरी फूलन देवी तो समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद चुनी गई थी. उत्तर प्रदेश के जितने भी बाहुबली और माफिया डॉन के नाम आपने सुने होंगे वह सब सपा के साथ कभी न कभी जरूर जुड़े रहे होंगे.

तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह कार्यकाल में तो अपहरण उद्योग बन गया था, हत्या सामान्य बात थी और बलात्कार लड़कों से हुई छोटी मोटी गलती हुआ करती थी. उनके कार्यकाल में मुख्तार अंसारी सरीखे बड़े बड़े माफिया जेल में बंद रहते हुए फाइव स्टार होटल की सुविधाएं प्राप्त करते थे और उनके साथ बैडमिंटन खेलने के लिए जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक पहुंचते थे.

एसटीफ एक पुलिस उपाधीक्षक शैलेन्द्र सिंह ने मुख़्तार को सेना के एक भगोड़े से एल एम जी खरीदते हुए पकड़ा और उस पर पोटा लगा दी, अधिकारियों और जनता से उसे बधाइयों का तांता लगा गया लेकिन सपा सरकार ने उससे तुरंत पोटा हटाने और मुख़्तार से क्षमा माँगने के लिए कहा. ऐसा न करने पर उसे जेल में डाल दिया गया और सरकार की ओर से कई गंभीर धाराओं में केस लगा दिए गए. सबक सिखाने के लिए उसे जान से मारने की कोशिश भी की गयी . योगी ने इस अधिकारी के विरुद्ध झूठे मुकदमें वापस लिए. फिर भी उस युवक की ईमानदारी और कर्तव्य परायणता का परिणाम हुआ ? उसके परिवार की माली हालत पर सभी को बेहद दुःख होगा .

राजपरिवार से सम्बन्ध रखने वाले पूर्वांचल के उनके एक विधायक के घर में बने एक तालाब में मगरमच्छ पाले गए थे. लोग बताते हैं कि विधायक या सपा विरोधी लोगों को इस तालाब में फेंक कर मगरमच्छों के हवाले कर दिया जाता था.

कुख्यात गेस्ट हाउस काण्ड जिसमें मायावती को इज्जत बेइज्जत एवं शर्मसार करने तथा उन्हें जान से मारने का षड्यंत्र किया गया था, मायावती चाहे भले ही भूल जाय, जनता नहीं भूल सकती.

2007 से 2012 तक मुख्यमंत्री रही मायावती के मूर्ति प्रेम, मुस्लिम तुष्टिकरण और भ्रष्टाचार से परेशान होकर जनता ने समाजवादी पार्टी को सत्ता सौंप दी . पार्टी को पहली बार अपने दम पर पूर्ण बहुमत मिला था. मुलायम सिंह के अंदर प्रधानमंत्री बनने का सपना हिलोरे ले रहा था इसलिए उन्होंने अपने भाई शिवपाल सिंह को दरकिनार करते हुए अपने बेटे अखिलेश यादव उर्फ़ टीपू को तश्तरी में सजा कर मुख्यमंत्री का पद भेंट कर दिया.

लोगों का कहना है कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव में बहुत समानता है. अंतर सिर्फ इतना है कि राहुल गांधी राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं और अखिलेश यादव राज्य स्तर के खिलाड़ी हैं.

अखिलेश यादव ने अपनी पारी की शुरुआत जीत के जश्न के साथ शुरू की.

जिसे उन्होंने अपने गांव सैफई में फिल्मी कलाकारों के नाच गाने से किया था. राज्य सरकार के सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करके इस आयोजन में फिल्मी कलाकारों को लखनऊ हवाई अड्डे से उनके गांव सैफई तक मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर को टैक्सी की तरह इस्तेमाल करके लाया ले जाया गया.

साढ़े चार मुख्यमंत्री :

अखिलेश यादव के कार्यकाल में एक कहावत प्रचलित थी कि प्रदेश में साढ़े चार मुख्यमंत्री हैं, मुलायम सिंह, आजम खान, शिवपाल सिंह, राम गोपाल सिंह और आधे वह स्वयं. समाजवादी पार्टी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि अखिलेश यादव अनुभवहीन होने के कारण स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर पा रहे थे इसलिए मुलायम के एक बेहद करीबी राजेंद्र चौधरी को उनके पीछे लगा दिया गया था जो हमेशा साये की तरह उनके साथ देखे जाते थे. अखिलेश यादव मुख्यमंत्री के कार्यालय में कम ही आते थे और उनके आने जाने का कोई समय निर्धारित नहीं था. सरकारी कर्मचारियों की तरह जल्दी कार्यालय से निकल जाते थे और मुख्यमंत्री आवास में अपने बच्चों और उनके दोस्तों के साथ क्रिकेट आदि खेला करते थे. आप समझ सकते हैं कि प्रदेश में क्या-क्या नहीं हुआ होगा.

अखिलेश यादव का कार्यकाल दंगों के लिए हमेशा याद रखा जाएगा .

अखिलेश के कार्यकाल में कितने दंगे हुए उसका ठीक-ठीक आकलन करना बहुत मुश्किल है. लगभग 2500 से अधिक छोटे-बड़े दंगे हुए जिसका औसत 500 दंगे प्रतिवर्ष से भी अधिक है. कार्यकाल के अंतिम समय तक वोट बैंक के तुष्टिकरण के कारण अखिलेश यादव दंगों पर कोई नियंत्रण नहीं कर सके. आजम खान जैसे कई मंत्री तो लगता था कि जैसे सिर्फ दंगे करवाने के लिए ही मंत्री बनाए गए थे .

अखिलेश के कार्यकाल में पूरा प्रदेश भयानक सांप्रदायिकता की चपेट में रहा. पुलिस और पीएसी की इतनी छीछालेदर आजादी के बाद कभी नहीं हुई. सपा समर्थित अपराधियों द्वारा कितने पुलिस वालों को इज्जत - बेइज्जत किया जाता था, सरेआम पीटा जाता था और कितनों को मौत के घाट उतार दिया गया इसके आंकड़े शर्मसार करने वाले हैं.

संपत्तियों की लूट और मथुरा कांड

हर शहर और कस्बे में सपाइयों द्वारा संपत्तियों की लूट चल रही थी. बंद मकान का ताला तोड़कर कब्जा कर लेना बहुत सामान्य घटना थी. कितनो ने ऋण लेकर मकान बनवाए थे जिन पर सपाइयों का कब्जा था, क़िस्त वह अदा करते थे रहते सपाई थे.

कानपुर में स्टेट बैंक के अधिकारियों के 200 वर्गमीटर वाले 250 से अधिक भूखण्डों की पूरी सोसाइटी जिसकी उस समय कीमत १०० करोड़ रुपये से भी अधिक थी, पर सपा के एक स्थानीय नेता और माफिया का आज भी कब्ज़ा है, दुर्भाग्य से उसमें एक भूखंड मेरा भी है.

मथुरा के 280 एकड़ के जवाहर पार्क पर सपा के करीबी रामवृक्ष यादव ने कब्जा कर लिया और एक छोटा-मोटा शहर बसा लिया. सुर्खियां बनने पर जब पुलिस ने खाली कराने की कोशिश की तो गोलीबारी में 24 पुलिस के जवान शहीद हो गए जिसमें पुलिस अधीक्षक और उपाधीक्षक स्तर के अधिकारी भी शामिल थे.

इन मृत पुलिस अधिकारियों को आर्थिक सहायता देने में भी हिंदू और मुसलमान का भेदभाव किया गया. मथुरा में मारे गए पुलिस अधिकारी हिंदू थे तो उन्हें ₹20 लाख की आर्थिक सहायता दी गई लेकिन कुंडा में जिया उल हक नाम के एक पुलिस उपाधीक्षक की मौत पर ₹50 लाख का मुआवजा दिया गया था और उसकी पत्नी को सीधे पुलिस उपाधीक्षक नियुक्त किया गया था जो उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार हुआ था.

कुख्यात दादरी हत्याकांड

जिसमें अखलाक की हत्या कर दी गई थी, जिसे जानबूझकर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया गया. अपनी नाकामी छुपाने के लिए सपा सरकार ने इस हत्याकांड को मोदी सरकार की असहिष्णुता बता कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया और इसके लिए नरेंद्र मोदी कटघरे में खड़ा किया गया .

अखिलेश यादव का कार्यकाल प्रदेश में महिलाओं के लिए नर्क से भी बदतर रहा

बदायूं में दो नाबालिग लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद मौत के घाट उतार दिया गया और उनकी लाश को गांव के बाहर पेड़ से लटका दिया गया. बदायूं और बुलंदशहर बलात्कार कांड सीधे सपा नेताओं से जुड़े थे और जिस पर लड़कों की छोटी गलती बता कर पल्ला झाड़ लिया जाता था .

शाहजहांपुर के एक पत्रकार जोगिंद्र सिंह को जिंदा जला दिया गया

क्योंकि उन्होंने समाजवादी पार्टी के एक नेता के बलात्कार की कहानी सुर्खियों में ला दी थी. मजिसट्रेट के सामने मृत्यु पूर्व बयान में पत्रकार ने अखिलेश के एक मंत्री का नाम लिया लेकिन अपने पूरे कार्यकाल में अखिलेश यादव उसको बचाने में लगे रहे और सफल भी रहे .

उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष पद पर परिवार

मुलायम के करीबी अनिल यादव को लोक सेवा आयोग काअध्यक्ष बना दिया गया जिसकी योग्यता लोक सेवा आयोग में क्लर्क बनने लायक भी नहीं थी . यही नहीं आगरा निवासी अनिल यादव के विरुद्ध अनेक अपराधिक मुकदमे दर्ज है. उसने भ्रष्टाचार के नए आयाम बनाए और चयन सूची में एक जाति विशेष और एक धर्म विशेष के लोग होते थे . प्रदेश के मेधावी युवा, तैयारी करते थे, परीक्षा में बैठते थे, और परिणाम आने पर हाथ मलते रह जाते थे.

इसके विरुद्ध छात्रों ने जबरदस्त आंदोलन छेड़ा तब जाकर कहीं 2011 की सिविल सेवा परीक्षा उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद रद्द की गई.

उच्च न्यायालय ने यादव को इस पद के लिए अयोग्य ठहराया और बर्खास्त कर दिया था. अखिलेश यादव के कार्यकाल में कई प्रतिष्ठित संस्थानों और चयन आयोगों के अध्यक्ष पदों पर ऐसे अयोग्य, जातिवादी , भ्रष्ट और बेईमान लोगों को बिठाया गया जिसकी सड़ांध के बहुत दूरगामी परिणाम होंगे. ऐसे चार अध्यक्षों को उच्च न्यायालय ने स्वयं बर्खास्त कर दिया.

यादव सिंह या मनी मिन्टिंग मशीन,

सपा के एक करीबी यादव सिंह जो पॉलिटेक्निक डिप्लोमा होल्डर था , को नोएडा के चीफ इंजीनियर बनाया गया जो जूनियर इंजीनियर से प्रोन्नति पाते हुए तमाम वरिष्ठ इंजीनियरों को लांघते हुए इस पद पर पहुंच गया और हजारों करोड़ रुपए के भ्रष्टाचार का अंबार लगा दिया . उत्तर प्रदेश के इतिहास में शायद यह पहला मौका था जब कोई जूनियर इंजीनियर इतने कम समय में नोएडा जैसे जगह चीफ इंजीनियर बना दिया गया हो .

मुलायम के खासमखास गायत्री प्रजापति ने भ्रष्टाचार का नया कीर्तिमान बनाया

मुलायम सिंह के बेहद करीबी गायत्री प्रजापति को खनन राज्य मंत्री बनाया गया. जैसे-जैसे उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते गए वैसे वैसे उनका प्रमोशन होता गया. गायत्री प्रजापति ने सपा के लिए धन इकट्ठा करने में सारी मर्यादा तोड़ दी, उन पर बलात्कार और हत्या के आरोप भी हैं . आजकल वह जेल में है.

लखनऊ के तत्कालीन आईजी पुलिस अमिताभ ठाकुर की पत्नी नूतन ठाकुर एक सामाजिक कार्यकर्ता है उन्होंने गायत्री प्रजापति के खिलाफ कई शिकायत की थी जिसके कारण मुलायम सिंह यादव ने स्वयं आईजी अमिताभ ठाकुर को फोन करके धमकाया जिसका ऑडियो टेप वायरल हो गया और इसी आरोप में आईजी को निलंबित कर दिया गया था, उनके खिलाफ इतने केस किये गए कि बाद में उन्हें सेवा के लिए अयोग्य ठहरा दिया गया. आज बेचारे ठाकुर की ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा सड़क पर है.

माइनिंग माफिया का एक और कारनामा अखिलेश यादव के लिए शर्मिंदगी का सबब बन गया

जब उन्होंने गौतम बुद्ध नगर जिले की जिला अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को खनन माफिया के विरुद्ध कार्रवाई करने के कारण निलंबित कर दिया. इस आई ए एस दंपत्ति को अपनी इमानदारी की सजा स्वरूप अखिलेश के दरबार में माफी मंगने के लिए विवस किया गया .

यह मामला महीनों सुर्ख़ियों में रहा लेकिन इससे सभी अधिकारियों को संदेश दे दिया गया था कि जो हो रहा है उसे होने दिया जाए और कोई भी नमक का दरोगा बनने की कोशिश न करे.

लोकायुक्त नियुक्त करने में षड्यंत्र

सपा के बेहद करीबी जस्टिस वीरेंद्र सिंह को प्रयागराज उच्च न्यायालय में 2009 में न्यायाधीश नियुक्त किया गया था, लेकिन प्रदेश में लोकायुक्त की जगह खाली होने पर उन्हें इस्तीफा दिला कर सेवानिवृत्त न्यायाधीश बना लिया गया ताकि वह लोकायुक्त बनने के लिए पात्र हो सके. लोकायुक्त के पैनल में उनका नाम शामिल किया गया जिस पर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा नेता विपक्ष ने आपत्ति की थी. वीरेंद्र सिंह पर सरकारी भूमि पर पर कब्जा करने जैसे कई गंभीर आरोप भी थे. सपा द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर गुमराह किया गया जिसके कारण सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें लोकायुक्त बनाने का निर्देश दिया. बाद में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखने के बाद उनका शपथ ग्रहण रोक दिया गया और उनकी नियुक्ति निरस्त की गई.

भ्रष्टाचार के मामले में अखिलेश सरकार ने मायावती और मुलायम सिंह की सरकारों को मीलों पीछे छोड़ दिया.

सी ए जी की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है की बेरोजगारी भत्ते के नाम पर अखिलेश सरकार ने खुली लूट की. ऑडिट में सामने आया कि 1. 25 लाख युवाओं में ₹20 करोड़ का बेरोजगारी भत्ता बांटने के लिए हुई मीटिंग में ₹15 करोड़ केवल चाय नाश्ते के मद में खर्च दिखाकर हड़प लिए गए. अखिलेश ने जो चेक समारोह आयोजित कर बेरोजगार युवाओं में बांटे भी उन्हें भी बेहद धांधली की गई “अंधा बांटे रेवड़ी आपन आपन देय” .

लखनऊ की रिवर फ्रंट योजना

लखनऊ में गोमती नदी के दोनों किनारों को सुंदर बनाने के लिए गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट तैयार किया गया जिसके लिए 550 करोड रुपए का प्रावधान बजट में किया गया लेकिन इसके विरुद्ध इस पर बिना किसी स्वीकृत के 1500 करोड़ से अधिक खर्च किए गए जिसके लिए फर्जी बिलों का सहारा लिया गया. मामले की जांच चल रही है और कई इंजीनियर और अधिकारी जेल में है, कुछ जांच के दायरे में है और कई उच्चाधिकारी फरार हैं .

लखनऊ आगरा एक्सप्रेस वे

इसको अखिलेश यादव अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि बताते हैं लेकिन इसे बनाने में जितना रुपया खर्च किया गया उससे इस तरह के कम से कम ४ एक्सप्रेस वे बनाए जा सकते थे. इस परियोजना को स्वीकृत करने के पहले ही सपा परिवार के नजदीकियों ने एक्सप्रेस वे में आने वाले खेत खरीद लिए और बाद में सरकारी अधिग्रहण में कई गुना पैसा मुआवजा के तौर पर सरकार से लिया और एक्सप्रेस वे के किनारे की जमीन में भी अच्छा खासा पैसा कमाया. अन्य परियोजनाओं की तरह अखिलेश इस परियोजना को भी अपने कार्यकाल में पूरा नहीं कर सके केवल तीन चार किलोमीटर के टुकड़े पर सेना के लड़ाकू विमान को उतार कर वाहवाही लूटने का कार्य किया गया. परियोजना योगी सरकार आने के 2 साल बाद पूरी हो सकी.

लखनऊ मेट्रो परियोजना भी अधर में छोड़ी

केंद्र सरकार द्वारा 550 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता और 3500 करोड़ों रुपए का ऋण उपलब्ध कराने के बाद भी लखनऊ मेट्रो का प्रथम चरण भी पूरा नहीं कर सके और केवल 9 किलोमीटर का एक ट्रैक बनाकर परियोजना का उद्घाटन कर दिया . इस परियोजना का बचा हुआ कार्य योगी सरकार में पूरा किया गया.

अखिलेश ने जितना धन हज हाउस बनाने, कब्रिस्तान की चारदीवारी बनाने और नए कब्रिस्तान के लिए जमीन आवंटन में खर्च किया उससे हर जिले में मेडिकल कॉलेज और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बनये जा सकते थे.

अखिलेश यादव कोई भी बड़ी परियोजना अपने कार्यकाल में पूरा नहीं कर सके और इस कारण अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम, जयप्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय केंद्र, जनेश्वर मिश्रा पार्क, डायल 100, और यहां तक कि अपने लिए मुख्यमंत्री का हाईटेक कार्यालय भी 5 साल में पूरा नहीं कर सके .

बताया जाता है कि अपने बंगले में उन्होंने अनेक कार्य कराए थे लेकिन मुख्यमंत्री का बंगला खाली करने के बाद उनके बाथरूम की टोटियां गायब मिली, स्विमिंग पूल सहित इटालियन टाइल्स के फ्लोर टूटे मिले.

2017 में सपा और कांग्रेस ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा और “यूपी के लड़के” की थीम पर प्रशांत किशोर ने काफी जोर आजमाइश की लेकिन चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा.

पलायनवादी प्रवृत्ति और योगी के प्रति उनकी एलर्जी के कारण वह राज्य में विपक्षी नेता के रूप में अपने आप को सहज नहीं कर सके और 2019 के चुनाव मायावती के साथ मिलकर लड़े. बुआ बबुआ की जोड़ी को कोई सफलता हाथ नहीं आयी लेकिन खुद लोकसभा पहुंच गए.

मायावती ने मुलायम के विरुद्ध गेस्ट हाउस काण्ड का अपराधिक मुकदमा वापस ले लिया, जिसका वह अब अफ़सोस कर रही हैं .

योगी सरकार आने के बाद और कोरोना महामारी में भी अखिलेश अपने आप को संयत नहीं कर सके. हमेशा ट्विटर पर नकारात्मक वक्तव्य देना उनकी आदत में शामिल है. अखिलेश के ट्वीट और वक्तव्य राहुल गांधी से काफी मेल खाते हैं . उत्तर प्रदेश में प्रियंका के उदय के बाद लोगों की कांग्रेस के प्रति गंभीरता लगभग खत्म हो गई है और अखिलेश यादव को भी अब लोग बहुत गंभीरता से नहीं लेते .

प्रदेश के लोग अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री के रूप में देख चुके हैं और वोट करते समय निश्चित रूप से योगी और अखिलेश की तुलना करेंगे और इस तुलना में अखिलेश कहीं नहीं ठहरते.

वैसे जो भी हो लेकिन कोरोना महामारी के समय मायावती की बहुत ही जिम्मेदार और संयत भूमिका देखने को मिली और इस हिसाब से अखिलेश यादव की तुलना में मायावती का पलड़ा भारी है. सपा और बसपा दोनों ही मुस्लिम मतों पर आश्रित हैं और पिछले दो चुनावों में देखने को मिला है कि मुस्लिम मत दोनों ही पार्टियों को मिलते रहे हैं और अगर यह सिलसिला आगामी चुनाव में भी होता है तो न तो सपा और न ही बसपा सत्ता की दहलीज तक पहुंच पाएगी.

योगी आदित्यनाथ अपनी व्यक्तिगत साफ-सुथरी हिंदूवादी किंतु संवेदनशील छवि, कठोर किंतु कुशल प्रशासक, और 5 सालों में भ्रष्टाचार रहित बेदाग़ सरकार के लोकप्रिय और जन हितकारी कार्यों के आधार पर जनता की अदालत में पहुंचेंगे. मुकाबला बेहद रोमांचकारी होगा लेकिन योगी तो योगी हैं, उनका पलड़ा सबसे भारी है. वह लोकप्रियता के जिस शिखर पर हैं, उसकी तुलना में अखिलेश बौने नजर आते हैं .

इसलिए इस बात की संभावना नहीं दिखाई देती कि जनता अखिलेश यादव को दुबारा मुख्यमंत्री बनायेगी, और इसके अनगिनत और बहुत उचित कारण भी हैं

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            - शिव मिश्रा

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