मंगलवार, 24 अगस्त 2021

राम भक्त कल्याण सिंह - “राम काज कीन्हें बिनु, मोहि कहां विश्राम"

  


राम भक्त कल्याण को शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !

कल्याण सिंह अब हमारे बीच नहीं है, यह अफवाह नहीं हकीकत है, लेकिन जब तक अयोध्या में राम मंदिर रहेगा और राम मंदिर के संघर्ष का इतिहास रहेगा, वह इस लोक में हमेशा विराजमान रहेंगे. उन्हें समस्त हिन्दू जनमानस और राम भक्तों की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि. जय श्रीराम

कल्याण सिंह कौन थे ? उनका जन्म कहां हुआ था? उनकी शिक्षा दीक्षा कहां हुई? उन्होंने राजनीति में कब प्रवेश किया? यह सब महत्वपूर्ण है, लेकिन सबसे अधिक महत्वपूर्ण वह है जब समूचे विश्व में कल्याण सिंह का महामानव स्वरूप देखा और वह तिथि थी ६ दिसम्बर १९९२, जब उन्होंने साफ ऐलान कर दिया था कि वह अयोध्या में एकत्रित लगभग चार लाख राम भक्त कारसेवकों पर गोली नहीं चलाएंगे क्योंकि ऐसा करने से हजारों लोगों की जान जाएगी, भारी नरसंहार होगा. उन्होंने यह आदेश पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को लिखित में दे दिया. अयोध्या से लखनऊ और लखनऊ से दिल्ली तक राजनीतिक माहौल बेहद तनावपूर्ण और गहमागहमी भरा रहा लेकिन दृढ़ निश्चचयी कल्याण सिंह अपने फैसले पर अटल रहे.

उस दिन पूरी दुनिया ने जाना कि कल्याण सिंह जैसे महामानव सैकड़ों वर्षो में जन्म लेते हैं. राम मंदिर से बाबर का अतिक्रमण उनके शासनकाल में ही हटाया गया इसलिए सही अर्थों में राममन्दिर की नींव उन्होंने ही रखी. अगर 6 दिसंबर १९९२ को बाबर का अतिक्रमण नहीं हटाया गया होता तो शायद राम मंदिर बनने का सपना आज भी साकार नहीं हुआ होता.

दिसंबर 1992 को दोपहर होते-होते अयोध्या में कारसेवक विवादित परिसर में घुस गए और वह गुम्बदों पर चढ़ गए . उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक ने कल्याण सिंह से गोली चलाने की अनुमति देने का आग्रह किया जिसे उन्होंने ठुकरा दिया और स्पष्ट किया कि अन्य सभी तरह के विकल्प आजमाये जाएं लेकिन गोली नहीं चलेगी. दोपहर तक कारसेवकों ने तीनों गुंबदों को ढहा दिया और राम मंदिर से आतंकी बाबर का अतिक्रमण पूरी तरह से साफ कर दिया गया.

कल्याण सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दाखिल कर यह जरूर कहा था कि वह विवादित ढांचे की सुरक्षा करने का हर संभव प्रयास करेंगे और यही उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में भी कहा था लेकिन यह साफ-साफ कह दिया था कि वह कारसेवकों पर गोली नहीं चलाएंगे इसलिए उनका मस्तिष्क इस विषय में पहले से ही पूरी तरह साफ था और कहीं कोई भ्रम की गुंजाइश नहीं थी.

विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद उन्होंने इस घटना की पूरी जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली और साफ साफ शब्दों में कहा कि उन्होंने गोली न चलाने का लिखित आदेश दिया था और जो हुआ उसमें किसी भी पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी की कोई भूमिका नहीं है. “ इस घटना में कोई कार्यकर्ता, नागरिक, राम भक्त कारसेवक जिम्मेदार नहीं है, घटना की पूरी जिम्मेदारी मेरी है. किसी का कोई दोष नहीं, कोई कसूर नहीं, कोई कमी नहीं। सारी जिम्मेदारी मैं अपने ऊपर लेता हूं। कहीं कोई दंड देना हो तो किसी को ना देकर मुझे दिया जाए।”

कल्याण सिंह का ये बेबाक और बेहद जिम्मेदारी भरा बयान भला कौन भूल सकता है? विवादित ढांचा गिरने के बाद उन्होंने कहा था कि उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित गाइडलाइंस का पूरी तरह से पालन किया है और यदि विवादित ढांचे की रक्षा नहीं की जा सके तो इसकी पूरी जिम्मेदारी लेते हुए मैंने त्यागपत्र दे दिया है.

उन्होंने कहा कि “ ढांचा नहीं बचा इसका मुझे कोई गम नहीं, न मुझे इसका खेद है और ना ही प्रायश्चित नो रिग्रेट नो रिपेंटेंस नो सॉरी नो ग्रीफ . 6 दिसंबर की घटना राष्ट्रीय गर्व का विषय है” [

उन्होंने कहा था कि "राम मंदिर राष्ट्रीय अस्मिता का प्रश्न है विवादित ढांचा गिराए जाना सैकड़ों बरसों से हिंदू जनमानस की दबी कुचली भावनाओं का स्वत: स्फूर्त विस्फोट है, इसमें कोई धोखा नहीं कोई षड्यंत्र नहीं है."

अपनी जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. यह छोटा काम नहीं . ऐसे समय जब ज्यादातर लोग कुर्सी से चिपके रहते हैं और मुख्यमंत्री बने रहने के लिए क्या क्या जतन नहीं करते हैं, उन्होंने हंसते-हंसते अपनी सत्ता कुर्बान कर दी और कहा भी कि यह सरकार राम के कार्य के लिए ही बनी थी और राम काज के लिए ऐसी हजारों सरकारे कुर्बान की जा सकती हैं.

इस्तीफा देने के बाद भी कल्याण सिंह पर सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना का मामला चला और उन्हें 1 दिन के लिए तिहाड़ जेल भी जाना पड़ा.

कल्याण सिंह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे - पहली बार 24 जून 1991 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और विवादित ढांचा गिर जाने के बाद अपनी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए उन्होंने 6 दिसंबर 1992 को अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था.

दूसरी बार वह सितंबर 1997 से नवंबर 1999 तक मुख्यमंत्री रहे उनके दोनों कार्यकाल बेहद घटना प्रधान रहे.

अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने स्कूलों में भारत माता की प्रार्थना और वंदे मातरम को अनिवार्य किया और नकल विरोधी कानून बनाया क्योंकि उस समय शिक्षा का स्तर रसातल में था पूरी शिक्षा व्यवस्था गैस पेपर और नकल के भरोसे थी. नकल विरोधी कानून के अंतर्गत नकल करने और कराने वाले दोनों जेल जाने लगे जिसका ज्यादातर लोगों ने स्वागत किया लेकिन कुछ लोगों ने विरोध भी किया. मुलायम सिंह जैसे कुछ राजनेताओं ने तो यहां तक कहा कि यदि उनकी सरकार बनती है तो वह नकल विरोधी कानून को समाप्त कर देंगे . उनका पहला कार्यकाल उनके कुशल प्रशासक होने का साक्षी बना.

दूसरी बार बसपा और भाजपा के 6 -6 महीने के मुख्यमंत्री के आधार पर मायावती ने 6 महीने का अपना मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा कर लिया और उसके बाद कल्याण सिंह का नंबर आया वह मुख्यमंत्री बने लेकिन 1 महीने बाद ही मायावती ने समर्थन वापस ले लिया. राज्यपाल रोमेश भंडारी ने 2 दिन के अंदर उन्हें बहुमत साबित करने का आदेश दिया और कल्याण सिंह ने सदन में बहुमत साबित भी कर दिया लेकिन विपक्षी दलों ने सदन में जमकर हंगामा किया जिसे आधार बनाकर राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने अस्वीकार कर दिया.

21 फरवरी 1998 को राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर उनके कैबिनेट मंत्री जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. राज्यपाल के इस फैसले के विरोध में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई लखनऊ में अनशन पर बैठ गए. मामला उच्च न्यायालय तक गया और उच्च न्यायालय ने राज्यपाल के आदेश पर रोक लगा दी और मुख्यमंत्री के रूप में कल्याण सिंह की पुनः ताजपोशी सुनिश्चित कर दी.

कल्याण सिंह हमेशा राष्ट्रीय सेवक संघ में सक्रिय रहे और पूर्णकालिक सदस्य के रूप में काम करते 1975 में आपातकाल के दौरान 21 माह तक जेल में बंद रहे. भारतीय जनता पार्टी के राजनीति में मजबूत होने की बात होगी तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी का नाम ऐसा है जो कभी भी भुलाया नहीं जा सकता. उनके साथ उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह एक ऐसा नाम है जिन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति में तो कम से कम नहीं भुलाया जा सकता. कल्याण सिंह ने भाजपा को उस मुकाम पर लाकर खड़ा किया था कि पार्टी ने 1991 में अपने दम पर उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई थी और कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री बने थे .

पार्टी के शीर्ष नेतृत्व खासतौर से अटल बिहारी वाजपेई से अनबन हो जाने के कारण कल्याण सिंह ने दिसंबर 1999 में भाजपा छोड़ दी और मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. विरोधी राजनीतिक ध्रुव पर पले बढ़े दोनों नेताओं में बहुत दिनों तक तालमेल नहीं रह सका और 2004 के आम चुनाव में अटल बिहारी वाजपेई के अनुरोध पर वह भाजपा में पुनः शामिल हो गए. 2009 में एक बार फिर उन्होंने भाजपा छोड़ दीऔर एटा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से निर्दलीय सांसद चुने गये। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले नरेंद्र मोदी से हुई वार्ता के आधार पर उन्होंने पुनः भाजपा मैं शामिल हो गए. 4 सितंबर 2014 को उन्हें राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त किया गया . कुछ समय तक उनके पास हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार भी रहा.

राज्यपाल के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वह फिर भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में सक्रिय हो गए .

अस्पताल में भर्ती होने से कुछ समय पहले कल्याण सिंह ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में भाजपा अब अपराजेय बन गई है. केंद्र और उत्तर प्रदेश में भाजपा का कोई विकल्प नहीं है. कई पार्टियां बन रही, फिर टूट रही हैं. ऐसे में लोगों का विश्वास किसी अन्य दल पर नहीं बचा है. सपा-बसपा की सत्ता में वापसी के सवाल पर कल्याण सिंह ने कहा कि प्रदेश में अब इन दोनों दलों की वापसी संभव नहीं है. ये पार्टियां और इनके नेता जनाधार व जनता का विश्वास खो चुके हैं. भाजपा अपने काम के दम पर आगे बढ़ रही है. भाजपा के उप्र में वर्तमान में सबसे ज्यादा सदस्य बन चुके हैं. देश में मोदी और प्रदेश में योगी का कोई विकल्प ही नहीं है, बल्कि कोई पात्र भी नहीं है.

अस्वस्थ होने के बाद उन्हें लखनऊ के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था और इस बीच उनकी मृत्यु की एक झूठी खबर फैल गई, लेकिन २१ अगस्त 2021 को सायंकाल 9:00 बजे वह इस लोक से विदा हो गए.प्रधानमंत्री, भाजपा अध्यक्ष और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों, विपक्षी नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की.

राम के प्रति उनकी श्रद्धा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अपनी मृत्यु के कुछ समय पहले ही उन्होंने हाथ उठाकर जय श्री राम कहा और अस्पताल कर्मचारियों से हाथ उठाकर जय श्री राम कहलवाया. इसका एक फोटो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है बताया जाता है कि इसके बाद उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए.

वैसे तो अयोध्या में भगवान श्री राम के मंदिर के साथ उनका नाम हमेशा जुड़ा रहेगा लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ये घोषणा करके कि अयोध्या से राम मंदिर जाने वाले मार्ग को कल्याण सिंह मार्ग नाम दिया जाएगा, उनका नाम सदा सर्वदा केलिए रामंदिर के साथ जोड़ दिया है . अब श्रद्धालु उनके रास्ते पर चलकर ही राम मंदिर पहुंचेंगे और भगवान श्री राम के दर्शन करेंगे.

तुलसीदास द्वारा हनुमान जी के लिए रचित चौपाई उनके लिए बिल्कुल सटीक बैठती है

“राम काज कीन्हें बिनु, मोहि कहां विश्राम”

राम काज पूरा करने के बाद ही उन्होंने इस संसार को अलविदा कहा .

सनातन धर्म के महा मानव रामभक्त कल्याण को समस्त हिंदू जनमानस की विनम्र श्रद्धांजलि और शत-शत नमन ..


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