गंगा-जमुनी तहज़ीब, भाईचारा और शांति का शोर || इस्लामिक राष्ट्र में रहने के लिए आप कितने तैयार ? || राजनीतिक इस्लाम का वैश्विक है प्रभाव
पिछले कई वर्षों से मैं अपने लेखों के माध्यम से भारत में गज़वा-ए-हिंद के जिहादी षड्यंत्रों से इस्लामीकरण के बढ़ते खतरे के प्रति आगाह करता रहा हूँ। बिहार के फुलवारी शरीफ में बरामद दस्तावेजों से यह खुलासा हुआ था कि पीएफआई 2047 तक भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने की योजना पर काम कर रहा है। मुझे अंदेशा नहीं था कि यह खतरा इतने बड़े रूप में और इतनी जल्दी सामने आ जाएगा। दिल्ली के लाल किले के पास हुए बम विस्फोट में जिहादी डॉक्टरों की भूमिका सामने आई है, जो फरीदाबाद के निकट अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े थे। इस विश्वविद्यालय का इस्तेमाल व्हाइटकॉलर टेरर मॉड्यूल तैयार करने के लिए किया जा रहा था। महिला डॉक्टरों की संलिप्तता भी चिंता का बड़ा कारण है। दो ऐसी महिला डॉक्टरें गिरफ्तार की गई हैं जिन्होंने बांग्लादेश में पढ़ाई की है और जिनके संबंध तुर्की तथा अन्य इस्लामी देशों के आतंकी संगठनों से बताए जा रहे हैं।
दिल्ली विस्फोट में जो तथ्य सामने आ रहे हैं वे बेहद चिंताजनक और चौंकाने वाले हैं। यह एक आत्मघाती विस्फोट था जिसे मुख्य आरोपी डॉ. उमर उन नबी, विशेषज्ञ डॉक्टर और अल-फलाह यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर था — ने आत्मघाती हमलावर बनकर अंजाम दिया। अब तक सुरक्षा एजेंसियों का अनुमान था कि इस्लामी आतंकवाद में आत्मघाती विस्फोट भारत में संभव नहीं होंगे क्योंकि भारतीय इस्लाम और भारतीय मुसलमान दुनिया भर के अन्य मुसलमानों से अलग हैं। मानव बम आईएसआईएस की रणनीति है, जिसने कई देशों में मानवता के विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा है। काफिरों को मारने या किसी देश को नुकसान पहुँचाने के लिए स्वयं को मानव बम बनाकर मार डालना इस्लामी कट्टरता की पराकाष्ठा है। जब किसी देश में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो उसे संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है। भारत में भी अब इसकी शुरुआत बेहद चिंता का विषय है।
भारत में जिन गंगा-जामुनी तहज़ीब, भाईचारे और शांति की बातें लंबे समय से की जा रही हैं,वे धोखा हैं और वे भारत के इस्लामीकरण के षड्यंत्रकारी प्रयासों को छिपाने का कवच हैं। विश्वविद्यालय से जुड़े कई लोग व्हाइट‑कॉलर टेरर मॉड्यूल के सदस्य थे, जो आतंकवादी गतिविधियाँ को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दे रहे थे। जिन डॉक्टरों की गिरफ्तारी हुई है, वे पाकिस्तान‑समर्थित आकाओं के इशारों पर काम कर रहे थे। यूनिवर्सिटी को एक सुरक्षित पनाहगाह के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था। इस यूनिवर्सिटी में 415 करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े का भी खुलासा हुआ है, जिसमें विश्वविद्यालय के फंड्स का दुरुपयोग आतंकवादी मोड्यूल बनाने में किया गया था। अल-फलाह यूनिवर्सिटी में उपजे व्हाइट‑कॉलर टेरर मॉड्यूल का संबंध कश्मीर से भी जुड़ा हुआ पाया गया है।
घाटी में छापेमारी और गिरफ्तारियों के बीच इस्लाम का राजनीतिक स्वरूप भी खुलकर सामने आया। महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि “यह धमाका देश में बनाए गए प्रेशर‑कुकर माहौल का नतीजा है” और उन्होंने केंद्र सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया। उनका कहना था कि कश्मीर की जो मुसीबत थी, वह लाल किले के सामने बोल पड़ी है। उन्होंने कहा कि देशभर में इस्लामोफोबिया और मुसलमानों पर उत्पीड़न बढ़ रहा है। कुछ लोग आतंकी हमले करते हैं और उसके बाद कश्मीरी समुदाय के खिलाफ बदले की कार्रवाई, सामूहिक सज़ा और जातीय‑प्रोफाइलिंग का चक्र शुरू हो जाता है। इसलिए कश्मीरी कठिन आर्थिक, सामाजिक और सुरक्षा‑दुविधाओं के बीच फँसे हुए हैं। उनका यह बयान आतंकी गतिविधियों को परोक्ष समर्थन देने जैसा प्रतीत होता है।
महबूबा मुफ़्ती की बेटी इल्तिजा मुफ़्ती ने लाल किले के पास हुए विस्फोट के मामले में आत्मघाती हमलावर डॉ. उमर नबी पर चिंता जताई है। उन्होंने इस घटना को इस्लामोफोबिया से जोड़कर सुरक्षा बलों की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं।
जम्मू‑कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि दिल्ली कार बम धमाके के लिए कुछ लोग जिम्मेदार हैं, पर यह धारणा बनायी जा रही है कि हम सब दोषी हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के पिता फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि लाल किले के पास हमले में शामिल आतंकी कश्मीरियों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। उन्होंने देशभर में रह रहे कश्मीरियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह किया। देश के दुश्मनों के साथ कश्मीरियों को नहीं खड़ा किया जा सकता और न ही उनके अपराधों की सजा निर्दोष कश्मीरियों को दी जा सकती है। पहलगाम आतंकी घटना से कुछ समय पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद आगा सैयद रूहुल्लाह मेहदी ने कहा था कि कश्मीर में टूरिज़्म पर आधारित सांस्कृतिक हमला हो रहा है और इससे कश्मीर की असल पहचान प्रभावित हो रही है।
प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष रूप से इस तरह के बयानों से आतंकवादी घटनाओं और पृथकतावादी जिहादियों का समर्थन करने, तथा पूरी कौम को पीड़ित और शोषित बताने का विमर्श फैलाने जैसी प्रवृत्तियाँ राजनीतिक इस्लाम का कार्य हैं। वैश्विक स्तर पर यह बड़ी सफलता से किया जा रहा है और यही अब इस्लाम की एक विशेषज्ञता भी है।
इसमें संदेह नहीं कि भारत को शीघ्राति‑शीघ्र इस्लामी राष्ट्र बनाने की कोशिशें हो रही हैं, जिन्हें अधिकांश मुस्लिम समूहों का समर्थन प्राप्त है। गज़वा‑ए‑हिंद को इस्लाम के धार्मिक युद्ध के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जिसका उद्देश्य भारत को “दार‑अल-इस्लाम” या इस्लामी राष्ट्र बनाना है। दारुल उलूम देवबंद जैसे संस्थान इस विचार को वैध ठहराते दिखते हैं। व्हाइट‑कॉलर टेरर मॉड्यूल जैसे नेटवर्क, जहाँ उच्च शिक्षित लोग आतंकी गतिविधियों में शामिल हैं, इस षड्यंत्र की गंभीरता को दर्शाते हैं।
महमूद मदनी का लक्ष्य 2030 तक एक करोड़ मुस्लिम युवाओं को शारीरिक दक्षता और सामाजिक सुरक्षा हेतु लाठी‑डंडे और हथियारों का प्रशिक्षण देकर तैयार करना है। 2019 से शुरू हुए इस अभियान में अब तक लगभग 70 लाख युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। यह प्रशिक्षण कार्य वैसा ही है है जो पूर्व में पीएफआई अपने शिविरों में संचालित करता रहा है। उनका यह काम संदिग्ध है और गज़वा‑ए‑हिंद में गृह‑युद्ध छेड़ने में इसकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
वैसे तो भारत को इस्लामी बनाने के प्रयास सातवीं शताब्दी से इस्लामी आक्रमणों के साथ शुरू हुए थे, पर भौगोलिक विशालता, भाषाई विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि के कारण भारत पर आक्रमण सफल नहीं हुआ। लेकिन अंदरूनी भितरघात और जिस राजनीतिक इस्लाम की कारगुजारियों के कारण भारत का विभाजन हुआ वैसी स्थितियां पुन: उत्पन्न की जा रही हैं । भारत के कई राजनीतिक दल वोट‑राजनीति के चलते मुस्लिम तुष्टिकरण करते हैं और प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भारत के इस्लामीकरण का समर्थन कर रहे हैं। आतंकी घटनाएँ, धर्मांतरण, अवैध घुसपैठ, जनसंख्या विस्फोट, सांप्रदायिक दंगे और वक्फ बोर्ड के माध्यम से अधिक से अधिक भूमि पर कब्ज़ा करने के प्रयासों को जोड़कर देखा जाए तो इन सबका उद्देश्य एक जैसा प्रतीत होता है — गज़वा‑ए‑हिंद के एजेंडे को मूर्त रूप देना।
भारत के राष्ट्रांतरण की भूमिका संविधान के कुछ प्रावधानों में भी निहित दिखाई देती है, जो एक ओर बहुसंख्यक हिंदुओं को आज भी गुलाम बनाए हुए है और दूसरी ओर दूसरी सबसे बड़ी आबादी को अल्पसंख्यक बनाकर धार्मिक संस्थानों के संचालन की स्वायत्तता प्रदान करते हैं। उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर अनुच्छेद 25‑26 के अंतर्गत अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने और संस्थान चलाने की स्वतंत्रता दी गई है। इस कारण मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी संस्थाओं द्वारा शरिया‑सम्बंधी प्रथाओं को लागू करने की कोशिशें और अनगिनत मदरसों के माध्यम से कट्टरता के बीज बोये जा रहे हैं। वक्फ बोर्ड भूमि‑संपत्ति पर कब्ज़ा करता जा रहा है। पूजा‑स्थल कानूनों से कई ऐसे धार्मिक स्थल और राष्ट्रीय अस्मिता के प्रतीकों की यथास्थिति बनाए रखने के लिए हिन्दू बाध्य हैं । संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यक समुदायों को सांस्कृतिक पहचान और शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने का विशेष अधिकार देते हैं, जिसके आड़ में मदरसे संचालित हो रहे हैं और जिनके कारण धार्मिक कट्टरता तथा पृथकतावादी मानसिकता उत्पन्न की जा रही है। वही बहुसंख्यक वर्ग इन विशेष अधिकारों से वंचित महसूस करता है।
मुसलमानों के जितने धार्मिक संगठन भारत में हैं, उतने शेष विश्व में नहीं हैं । ये संगठन मिलकर भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। वहाबी और सलाफी जैसे समूहों पर विश्व के कई देशों में रोक और निगरानी है, पर भारत में ये कुछ भी करने को स्वतन्त्र हैं । कुछ देशों में मस्जिदें केवल नमाज़ के समय खोली जाती हैं और तत्पश्चात बंद कर दी जाती हैं, जबकि भारत में मस्जिदें लगातार खुली रहती हैं, जिससे धार्मिक उन्माद फैलाया जा रहा है। कई देशों में शुक्रवार की तकरीरों पर नियंत्रण और वक्ताओं के लिए शैक्षणिक मान्यता व सरकारी प्रमाणन की आवश्यकता होती है; और मदरसों पर रोक है.
भारत में अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान के नाम पर दी गई छूट के कारण कट्टरपंथी गतिविधियाँ अनियंत्रित हो गयी हैं। इसका नतीजा यह है कि आज भारत पर इस्लामीकरण के खतरे की धार तीव्र हो गयी है। यदि शीघ्र और उपयुक्त कदम नहीं उठाए गए तो देश आत्मघाती हमलों और गृह‑युद्ध जैसी विनाशकारी दिशाओं की ओर जा सकता है। आगे का रास्ता दिन‑प्रतिदिन और कठिन होता जाएगा।