शुक्रवार, 2 सितंबर 2022

बाल बाल बचे योगी

 

बाल बाल बचे योगी

सर्वोच्च न्यायालय नी अपनी 26 अगस्त 2022 के फैसले ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बड़ी राहत देते हुए उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उनके विरुद्ध 2007 में गोरखपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों के संबंध में मुकदमा चलाए जाने का आदेश देने का अनुरोध किया गया था. 15 साल पुराना यह मामला अब सदा सर्वदा के लिए बंद हो गया है लेकिन जहाँ इस मुकदमे द्वारा योगी को फंसाने की बड़ी साजिश रची गई थी वहीं इस मुकदमे का अनायास और आनन फानन में सर्वोच्च न्यायालय में लिस्ट कराया जाना भी किसी बड़े रहस्य से कम नहीं है. अगर सर्वोच्च न्यायालय इस याचिका पर मुकदमा चलाए जाने का आदेश दे देता तो योगी के लिए बहुत बड़ी मुसीबत साबित हो जाता क्योंकि इस मुकदमे धारा 302 जैसी अत्यंत संगीन धाराएं भी जोड़ी गई थी, जिसके कारण उनका मुख्यमंत्री का पद भी खतरे में पड़ सकता था.

जनवरी 2007 में मोहर्रम के जुलूस में हुए उपद्रव के कारण उपजे सांप्रदायिक तनाव कि कारण इस मुकदमे की उत्पत्ति हुई जिसका मुख्य कारण तुष्टीकरण और वोटों की राजनीति था. उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जो कार सेवकों पर गोली चलवाकर एक वर्ग विशेष वोटों पर आधिपत्य हासिल कर चूके थे, शशी डे योगी आदित्यनाथ की गिरफ्तारी का आदेश दिया कुशीनगर से गोरखपुर आते समय रास्ते में ही उन्हें गिरफ्तार किया गया क्योंकि शहर के अंदर या मंदिर परिसर में उन्हें गिरफ्तार करना बहुत मुश्किल था. योगी की गिरफ्तारी के बाद पूर्वांचल की राजनीति ने अभूतपूर्व राजनीतिक घटनाक्रम देखा. योगी को पुलिस लाइन से केवल चार किलोमीटर दूर स्थित जेल ले जाए जाने में  8 घंटे  से अधिक समय लगा. गोरखपुर तथा आसपास के अन्य जिलों में  भी सांप्रदायिक तनाव फैल गया. योगी आदित्य नाथ को 11 दिन बाद जमानत मिल सकी और तब तक स्वतः स्फूर्ति  में गोरखपुर के सभी बाजार बंद रहे. गोरखपुर के इतिहास में यह सबसे लंबी बाजार बंदी थी. मुलायम सिंह यादव ने गोरखपुर और आसपास के क्षेत्रों में योगी आदित्यनाथ के इतने अधिक राजनीतिक प्रभाव कल्पना नहीं की थी. उन्हें भय सताने लगा कि कहीं  तुष्टीकरण के कारण हिंदू मतों से भी हाथ धोना पड़ जाए और इस कारण गोरखपुर के जिलाधिकारी और पुलिस प्रमुख को रातों रात हटा दिया गया. गोरखपुर में आंदोलन की धार को देखते हुए नव नियुक्त जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान को  हेलिकॉप्टर से पुलिस लाइन में उतारा गया था.

योगी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनसे मिलने वालों का तांता लगा रहता था और इसलिए जेल में सुरक्षा चेकिंग को बंद करना पड़ा और जेल की दीवार तोडकर उनकी बैरक तक पहुँचने का एक रास्ता तैयार किया गया ताकि बड़ी संख्या में मिलने आने वाले लोगों भीड़ में तब्दील होने से रोका जा सके. हे जेल में भी योगी की दिनचर्या में कोई खास परिवर्तन नहीं आया और वो हमेशा की तरह ब्रह्म मुहूर्त में जागकर पूजा अर्चना करते थे  और इसलिए 11 दिनों में जेल में  गोरखनाथ मंदिर की तरह माहौल बनने लगा था. योगी ने संसद में रुंधे गले से जब प्रशासन द्वारा उन पर ज्यादती करने और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा तुष्टिकरण के आधार पर पक्षपातपूर्ण कार्रवाई करते हुए जेल भेजे जाने की घटना का उल्लेख किया तो पूरा सदन सकते में आ गया.

यद्यपि पुलिस ने योगी के विरुद्ध उपयुक्त धाराओं में मुकदमा पहले ही दर्ज कर रखा था. एक वर्ग विशेष के मामले में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ इतनी  उदार वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं की वह कभी कभी देश की मुख्यधारा के विरुद्ध हे षडयंत्र का रूप ले लेता है.  गोरखपुर के मामले में भी वर्ग विशेष से संबंध रखने वाले एक तथाकथित पत्रकार और एक समाजसेवी ने सरकार से अनुरोध किया कि योगी के विरुद्ध जो प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई है हैं उसमें कड़ी धाराएं नहीं लगाई गई है और इसलिए धारा 302 सहित अत्यन्त सख्त धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए.  

उस समय जनसामान्य में आम चर्चा थी कि मुलायम सिंह यादव ने तुष्टिकरण के लिए योगी आदित्यनाथ को गिरफ्तार किया  था क्योनी  मुलायम सिंह को  लगता था कि योगी की  गिरफ्तारी से उनकी अल्पसंख्यक समाज में पैठ बढ़ेगी।  योगी के पक्ष में अपार जनसमर्थन  देखते हुए मुलायम सिंह ये आशंका होने लगी थी कि अगर साम्प्रदायिक तनाव बढ़ता गया तो मतों का ध्रुवीकरण भाजपा की तरफ हो सकता है, हे जिससे उनकी सरकार की वापसी मुश्किल हो जाएगी. हे आगामी चुनाव को देखते हुए हे और खासतौर से भाजपा को रोकने के लिए उन्होंने गोरखपुर की अपनी योजना से कदम पीछे खींच लिए. लाख कोशिशों के बाद भी मुलायम सिंह मुस्लिम समुदाय को खुश नहीं कर सके। विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने बसपा का समर्थन किया और मायावती ने 206 सीटें जीत कर पहली बार अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी।

गोरखपुर के इन तथाकथित पत्रकार और समाजसेवियों की योगी पर अतिरिक्त  धाराओं के साथ नई एफआईआर दायर करने की मांग नहीं मानी गई हे तो वे लोग उच्च न्यायालय पहुँच गए जहाँ से उन्हें स्थानीय अदालत भेजा गया. हे स्थानीय अदालत में तमाम कार्रवाई के बाद भी याचिकाकर्ता अदालत को संतुष्ट नहीं कर सके और इसलिए उनकी नई एफआईआर दायर करने की मांग नहीं मानी गई. हे इसके बाद ये लोग पुन: उच्च न्यायालय पहुँच गए  तो एक नई एफआइआर दायर करने का आदेश दे दिया गया और इस प्रकार 2008 में  योगी  तथा उनके अन्य नजदीक लोगों के विरुद्ध धारा 302 सहित कई अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया. राज्य सरकार ने दबाव में आकर पूरे मामले की जांच सीबीसीआईडी से करवाई लेकिन जांच में अंकित उचित और पर्याप्त सबूत नहीं मिले. 2015 में सीबीसीआईडी ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट सरकार को सौंप दी और योगी के विरुद्ध कार्यवाही करने की अनुमति मांगी. राज्यपाल ने योगी के विरुद्ध मुकदमा चलाने की अनुमति पर फैसला नहीं किया. इस बीच मार्च 2017 में योगी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और मई 2017 में सरकार ने योगी के विरुद्ध मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया. इसके बाद याचिकाकर्ता पुनः उच्च न्यायालय पहुंचे और उन्होंने जांच किसी निष्पक्ष और स्वतंत्र एजेंसी से कराने की मांग के साथ साथ योगी के विरुद्ध मुकदमा चलाने का आदेश देने का अनुरोध किया.

2018 में उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए सरकार द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया में कोई खामी नजर नहीं आती और इसलिए योगी के विरुद्ध मुकदमा चलाए जाने का कोई आधार नहीं है. उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की उच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त करते हुए योगी के विरुद्ध मुकदमा चलाने का आदेश देने की मांग की, जहाँ यह मामला 2018 से लगातार लंबित था. 26 जुलाई 2022 को  सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले से  योगी के विरुद्ध पिछले 15 वर्षों से लगातार की जा रही एक गहरी  साजिश का पटाक्षेप कर दिया गया ये बिलकुल सही फैसला है. अगर इस मामले की पूरी क्रोनोलॉजी को देखा जाए तो एकदम से स्पष्ट हो जाता है कि यह मुकदमा एक बहुत बड़ी साजिश का हिस्सा था जिसमें न केवल योगी आदित्यनाथ बल्कि उनके निकटवर्ती प्रमुख सहयोगी जिसमें डॉक्टर राधा मोहन अग्रवाल, डॉक्टर वाईडी सिंह आदि को भी शामिल किया गया था. इससे यह भी स्पष्ट होता है कि सांप्रदायिक दुर्भावना के मुकदमे की रूप में शुरू हुई इस साजिश का प्रारंभिक उद्देश्य राजनीतिक लक्ष्य प्राप्त करना  था, जिसके अंतर्गत गोरखपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों में गोरक्षनाथ पीठ का असर कम करना और मुस्लिम वोटों को एकजुट करना था. जनवरी 2007 में गोरखपुर में सांप्रदायिक तनाव की पटकथा उस समय लिखी गई थी जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे ओर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का माहौल था.  इसका फायदा मुलायम सिंह यादव नहीं उठा सके और उस साल हुए विधानसभा चुनाव में उनकी सरकार की वापसी नहीं हो सकी.

 इंटरनेट मीडिया पर एक विश्लेषण तैर रहा है जिससे लोग खासे हैरान है. इसके अनुसार राज्य सरकार के  कुछ अधिकारियों ने स्वयं  अत्यधिक सक्रियता दिखाते हुए हुए सर्वोच्च न्यायालय में विशेष उल्लेख के जरिये इस मामले को अतिशीघ्र  सुनवाई के लिए खुलवाया. प्रयागराज उच्च न्यायालय द्वारा  22 फरवरी 2018 को दिए गए निर्णय के विरुद्ध फाइल की गई यह अपील से लंबित थी. यह मामला  परवेज परवाज तथा अन्य  ( वादी) बनाम उत्तर प्रदेश सरकार ( प्रतिवादी) थे.

20 जुलाई 2022 को प्रदेश के संयुक्त सचिव स्तर का एक अधिकारी अपने पत्र द्वारा  इस मामले को शुरू से देख रहे प्रदेश के एक अपर महाअधिवक्ता से लेकर एक अन्य नए अपर महाधिवक्ता को सौंपते हुए एक्सपीडाइट ऐप्लिकेशन दाखिल करके शीघ्र सुनवाई हेतु सूचीबद्ध कराने का अनुरोध करता है. ये मामला शीघ्रता से सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हो  जाता है  और 24 अगस्त की सुनवाई पूरी हो जाती है और सुरक्षित कर लिया जाता है, जिसे 26 अगस्त को सुनाया जाता है. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले द्वारा योगी के विरुद्ध मुकदमा चलाए जाने का आदेश नहीं दिया और याचिकाकर्ताओं की अपील खारिज कर दी. अगर सर्वोच्च न्यायालय मुकदमा चलाए जाने की अनुमति दे देता तो क्या होता ? प्रथम सूचना रिपोर्ट में जो धाराएं लगाई गई है उनमें धारा 302 भी शामिल है, जिसमे सामान्यतः अग्रिम जमानत नहीं दी जाती है. योगी तथा उनके अन्य सहयोगियों को जिन्हें याचिकाकर्ता ने अपनी प्रथम सूचना रिपोर्ट में नामित किया था उनकी गिरफ्तारी  अवश्यंभावी हो जाती. ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ता क्योंकि भाजपा में सुचिता के नाम पर पहले भी कई मुख्यमंत्रियो के विरुद्ध इस तरह की कार्यवाही की गई है जिसमें दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना और मध्य प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती शामिल हैं. ये बहुत स्वाभाविक था कि योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक भविष्य पर सदा सर्वदा के लिए ग्रहण लग जाता.

ऐसे में यह प्रश्न उठना बहुत स्वाभाविक है कि जब सरकार प्रतिवादी थी तो सरकार की ओर से इस मामले की जल्दी से जल्दी सुनवाई के लिए प्रयास क्यों किए गए और इसमें किसकी रुचि थी और क्यों. क्या पार्टी और सरकार में बैठे कुछ लोग योगी को निपटाना चाहते थे. इसका उत्तर मिलना बहुत मुश्किल है लेकिन योगी के विरुद्ध इस तरह के प्रयास होते रहे हैं. अभी हाल ही में राज्य कर्मचारियों के स्थानांतरण में हुई गड़बड़ियों ने राजनीतिक हलचल पैदा कर दी थी और लगभग उसी समय एक मंत्री के इस्तीफ़े ने भूचाल लाने का काम किया था. योगी के पहले कार्यकाल में भी उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने के प्रयास किए गए थे. तब यह माहौल बनाने की कोशिश की गई थी कि योगी राज़ में प्रदेश के अधिकारी विधायको, पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की बात नहीं सुनते और इस कारण जनता में नाराजगी बढ़ रही है. ये भी जोड़ा गया कि एक जाति विशेष का बोलवाला है. बिकरू कांड के बाद तो सोशल मीडिया पर बकायदा अभियान चलाया गया और  कहा जाने लगा था कि  प्रदेश के ब्राह्मण योगी से बहुत नाराज है क्योंकि उनका उत्पीड़न किया जा रहा है और ऐसे में वह भाजपा की बजाय किसी अन्य दल को चुनाव में समर्थन करेंगे. इन सब का सारांश ये था कि योगी के मुख्यमंत्री रहते भाजपा की प्रदेश की सत्ता में वापसी नहीं हो पाएगी. इस तरह के अभियान ने जहाँ भाजपा के कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित किया वहीं विपक्ष के हौसले बुलंद किये. भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने वस्तुस्थिति का जायजा लेने के लिए बकायदा एक टीम बनाकर प्रदेश में भेज दी थी. जनता में “योगी प्रभाव” की महती भूमिका को देखते हुए भाजपा ने योगी के नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव में जाने का फैसला किया. इस विवेकपूर्ण निर्णय से न केवल योगी बाल बाल बच गए बल्कि भाजपा की सत्ता में वापसी भी संभव हो सकी. इस पत्र के 23 जुलाई के अंक में छपे अपने लेख में मैंने लिखा था कि प्रदेश में अच्छे, निस्वार्थ और निष्पक्ष अधिकारियों की कमी नहीं है, योगी को गंभीरता पूर्वक अपने आस पास देखना चाहिए और जहाँ जरूरत हो वहाँ तुरंत बदलाव करना चाहिए और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से अपनी निष्ठावान टीम का निर्माण करना चाहिए जो उन्हें संभावित खतरों से न केवल समय रहते आगाह कर सके बल्कि बचा सके.

-    शिव मिश्रा ResponseToSPM@gmail.com

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