मंगलवार, 15 जून 2021

राम मंदिर जमीन विवाद क्या है? विपक्षी दल इसको इतना तूल क्यों दे रहे हैं?

 राम मंदिर जमीन विवाद :  हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने की साजिश




सभी हिंदुओं को खास तौर से सभी राम भक्तों को एक   प्राचीन वैदिक सिद्धांत, जो आज भी प्रबंधन का सर्वश्रेष्ठ नियम है, याद रखना चाहिए कि- 

"अगर हम किसी व्यक्ति  या संस्था पर विश्वास करते हैं तो यह संपूर्ण होना चाहिए . इसका मतलब है कि यदि हम किसी व्यक्ति या संस्था पर विश्वास करते हैं तो उसके कार्यों पर संदेह नहीं करना चाहिए."

हम टुकड़ों टुकड़ों में विश्वास नहीं कर सकते  कि एक काम पर तो हम विश्वास करें और दूसरे कार्य पर संदेह करें. यदि पौराणिक काल से लेकर आज तक अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं का विवेचन करें तो पाएंगे कि  जानबूझ कर अविश्वास फैलाने के पीछे हमेशा कोई न कोई  बड़ा  षड्यंत्र और दुर्भावना होती है.

राम मंदिर निर्माण के संदर्भ में  खरीदे गए भूखंड  पर  विपक्ष द्वारा जो आरोप लगाए जा रहे हैं वह भी एक राजनीतिक षड्यंत्र के अलावा कुछ नहीं है.  हमें याद रखना होगा  कि राम मंदिर  निर्माण के  हर काम में कुछ न कुछ साजिश और  अड़ंगे   हमेशा लगाए जाते रहे हैं और आगे भी लगाये जाते रहेंगे.  लगभग 500 वर्षों के  सतत  संघर्ष  के बाद अब जबकि राम मंदिर निर्माण का सुअवसर आया है तो भी  कुछ लोग  कुत्सित  राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं. 

हम उन लोगों की बातों का कैसे विश्वास कर सकते हैं  जिन्होंने - 

  • जिन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के साथ धोखा किया हो ?

  • हजारों राम भक्तों  पर  अंधाधुंध   गोलियां  चलाकर  अयोध्या को रक्तरंजित कर दिया हो ?

  • राम के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाया हो?

  • रामसेतु तोड़ने का प्रयास किया हो?

  • राम मंदिर के न्यायिक निर्णय को विलंबित करने का प्रयास किया हो?

अब  इस पूरे मामले  का  विस्तार से विश्लेषण करते हैं.

भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने यह निर्णय लिया है कि मंदिर से लगी और मंदिर के रास्तों में पडने वाली ज्यादा से ज्यादा जमीनों को खरीदा जाए ताकि श्री राम के भव्य मंदिर के साथ-साथ, वास्तु को भी सुधारा जा सके और अयोध्या को पौराणिक भव्यता प्रदान करने के लिए सभी संबंधित निर्माण कार्य किए जा सकें तथा श्रद्धालुओं को भी राम मंदिर पहुंचने   में कोई कठिनाई न हो.  ट्रस्ट ने इसके लिए बड़े पैमाने पर योजना तैयार की है और मंदिर के लिए महत्वपूर्ण जमीन चिन्हित भी कर ली हैं और लोगों से जिसमें दोनों समुदाय के लोग हैं, जमीन खरीदने हेतु विमर्श शुरू कर दिया गया है. ट्रस्ट का यह निर्णय अत्यंत दूरदर्शी और स्वागत योग्य है क्योंकि हमने देखा है कि ज्यादातर पौराणिक और प्रसिद्ध मंदिरों में जगह के अभाव के कारण  श्रद्धालुओं की भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है जिससे श्रद्धालुओं को असुविधा के साथ साथ दुर्घटनाएं भी होती रहती हैं. ट्रस्ट के इस फैसले के बाद विपक्षी राजनीतिक खेमों में इस बात का विरोध किया गया और कहा गया कि ऐसा करना एक अलग हिंदू शहर बसाने जैसा होगा जिससे अयोध्या में रहने वाले अल्पसंख्यकों के मन में असुरक्षा की भावना उत्पन्न होगी. 

वह  भूखंड जिस पर  आम आदमी पार्टी  समाजवादी पार्टी  सहित  अन्य विपक्षी राजनीतिक पार्टियां घोटाले का आरोप लगा कर कह रही हैं कि 5 मिनट के अंदर 2 करोड़ की जमीन 18.5 करोड़ की कैसे हो गई? 

वास्तव में यह बहुत साधारण मामला है लेकिन आजकल एक चलन है की मूर्खता की  बात केवल  मूर्ख  ही नहीं  बुद्धिमान व्यक्ति भी करते हैं  जिसके पीछे का षड्यंत्र होता है जनता को भ्रमित करना  और यही इस पूरे मामले में किया गया है.  आजकल पत्रकारिता का स्तर भी यह हो गया है  कि बिना  जाने समझे  और छानबीन किए  ऐसी खबरें प्रसारित और प्रकाशित  होने  लगती  हैं,  और ऐसी सनसनीखेज खबरों से टीआरपी के साथ-साथ जनता का भ्रम बढ़ना भी स्वाभाविक है.   आसानी से समझने के लिए  इस भूखंड से  जुड़े  क्रय विक्रय  को    क्रम से देखते हैं

  •  4 मार्च 2011 को महफूज आलम तथा  अन्य  ने  अपने स्वामित्व वाले भूखंड (गाटा संख्या 242,243,244 और 246 कुल भूमि 2.334 हेक्टेयर)  बेचने के लिए  कुसुम पाठक, हरीश पाठक और मोहम्मद इरफान के साथ एक   विक्री  एग्रीमेंट  किया जो 3 साल के लिए वैध था और इस  भूखंड की  विक्रय राशि 1 करोड़  रुपए थी. 

  •  दिनांक 04.03.2011 को  निष्पादित इस बिक्री एग्रीमेंट को 04.03.2014 को रद्द कर दिया गया था।

  •  पुनः 20/11/2017 को महफूज आलम और  अन्य  ने कुसुम पाठक और उनके पति हरीश पाठक  को वही  भूखंड  के लिए (समान 4 गाटा संख्या, कुल भूमि 2.334 हेक्टेयर)  एक बिक्री विलेख पंजीकृत किया  जिसका विक्रय मूल्य  दो करोड़ रुपये  था.   इस एग्रीमेंट  में  एक अंतर यह आया  कि किए एग्रीमेंट कुसुम पाठक और उनके पति के पक्ष में था और क्रेताओं में से मोहम्मद इरफान  बाहर हो गए.  संभवत एग्रीमेंट निरस्त करने के पीछे यही कारण रहा होगा.   

  •  21/11/2017 को कुसुम पाठक और हरीश पाठक ने   यही भूखंड इच्छा राम सिंह, जितेंद्र कुमार सिंह और राकेश कुमार सिंह को रु. 2.16 करोड़  मैं बेचने हेतु एक बिक्री एग्रीमेंट किया । यह समझौता  भी 17/09/2019 को रद्द कर दिया गया था। 

  •  उसी दिन  यानी 17/09/2019 को कुसुम पाठक और हरीश पाठक द्वारा उपरोक्त भूमि को इच्छा राम सिंह, विश्व प्रताप उपाध्याय, मनीष कुमार, सूबेदार, बलराम यादव, रवींद्र कुमार दुबे, सुल्तान अंसारी और राशिद हुसैन को दो करोड़ में बेचने के लिए एक  नया विक्रय  समझौता किया  जिसकी वैधता अवधि 3 वर्ष थी । यह  विक्रय अनुबंध  भी 18/03/2021 को रद्द करने के लिए पंजीकृत किया गया था।

  •  इसी दिन  यानी 18/03/2021 को कुसुम पाठक और हरीश पाठक ने रवि मोहन तिवारी और सुल्तान अंसारी  को एक बिक्री विलेख द्वारा गाटा संख्या 243, 244 और 246 क्षेत्र 1.2080 हेक्टेयर भूमि  को   रु. 2 करोड़  में बैनामा कर दिया .  यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि इसमें गाटा संख्या 242 जिसका क्षेत्रफल 1.126 हेक्टेयर था,  विक्रेता कुसुम पाठक और उनके पति ने अपने पास रखा.  विक्रय किये गए इस  भूखंड पर  सर्किल रेट के अनुसार स्टाम्प  ड्यूटी दी गई. 

  •  उसी दिन  क्रेता  रवि मोहन तिवारी और सुल्तान अंसारी ने इस जमीन को राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र  ट्रस्ट को बेचने का समझौता किया जिसकी  विक्रय  राशि रु. 18.50 करोड रुपये  है . इस समझौते के एवज में   ट्रस्ट द्वारा  ऑनलाइन ट्रांजेक्शन से 17 करोड़ रुपए एडवांस के तौर पर  भुगतान किए  गए . 

  • विक्रेताओं के पक्ष में बैनामा और विक्रेताओं द्वारा राम मंदिर के पक्ष में रजिस्टर्ड सेल एग्रीमेंट करने के बीच 5 मिनट का अंतर है जिसका कारण यह हो सकता है कि जब राम मंदिर ट्रस्ट की उस भूखंड के मालिकों से खरीदने की बात पक्की हो गई तो उन्हें इसका बैनामा या रजिस्ट्री करवाना आवश्यक हो गया था  क्योंकि इसके बिना वह सेल एग्रीमेंट नहीं कर सकते थे.

  • राम मंदिर ट्रस्ट की रणनीति के अनुसार विक्रेताओं  के पक्ष में बैनामा होने के तुरंत बाद उन्हें अपना रजिस्टर्ड एग्रीमेंट करवाना था ताकि विक्रेता किसी राजनीतिक दबाव में जमीन बेचने से मुकर न जाएं
  • इसलिए विक्रेताओं के बैनामा और राम मंदिर ट्रस्ट के रजिस्टर्ड एग्रीमेंट का एक ही समय तय किया गया.
  • पहले विक्रेताओं ने अपने नाम पर बैनामा कराया और इसके बाद राम मंदिर ट्रस्ट के पक्ष में रजिस्टर्ड एग्रीमेंट कर दिया.
  • बिक्रेतओं के पक्ष में जो बैनामा हुआ वह वर्षों पहले तय कीमत के अनुसार ही हुआ और  राम मंदिर ट्रस्ट का इससे कोई लेना-देना नहीं है.  ट्रस्ट को तो यह भूखंड वर्तमान कीमत पर खरीदना है  और यह भूखंड ट्रस्ट के लिए किसी भी कीमत पर खरीदना उचित इसलिए है क्योंकि  रेलवे स्टेशन के पास यहीं पर  मंदिर का प्रवेश द्वार बन रहा है. 
  • चूंकि  विक्रेताओं ने  इस भूखंड को सितम्बर 2019 में उस समय खरीदा था  जब राम मंदिर निर्माण का सर्वोच्च न्यायालय का फैसला नहीं आया था  और उस समय  अयोध्या में जमीन की कीमत  सामान्य थी,  इसलिए इस भूखंड की कीमत उस समय काफी कम थी. इस भूखंड की रजिस्ट्री कभी भी की जाए  पुरानी कीमत पर ही की जाएगी, हां उस पर वर्तमान सर्किल रेट के आधार पर स्टैंप ड्यूटी देनी होगी जो उन्होंने दी है. 
  • ट्रस्ट ने यह भूखंड वर्तमान मूल्य पर खरीदा है इसलिए बहुत स्वाभाविक रूप से इसकी कीमत में अंतर होगा ही  क्योंकि राम मंदिर पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद अयोध्या में दिन-प्रतिदिन कीमतें आसमान छू रही हैं . इसे ५ मिनट के अंतर पर  इतनी अधिक मूल्य वृद्धि  का भ्रम  फैलाना राजनीतिक उद्देश्य के अलावा और कुछ भी नहीं है.   
 

एक  सबसे बड़ी बात यह है कि राम मंदिर ट्रस्ट एक प्राइवेट ट्रस्ट है जिसका सरकार से कोई लेना देना नहीं है और यह ट्रस्ट किसी भी व्यक्ति या संस्था से आपसी विचार विमर्श और तय कीमत के अनुसार कोई भी संपत्ति खरीदने के लिए स्वतंत्र है. यह भी संभव है कि राम मंदिर ट्रस्ट को कुछ संपत्तियां बाजार मूल्य से ज्यादा कीमत पर भी खरीदनी पड़े क्योंकि अयोध्या में इस समय जमीन की कीमत आसमान छू रही है और मंदिर के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जमीन के मालिक जमीन बेचने से इंकार कर सकते हैं या मुंह मांगे पैसे मांग सकते हैं लेकिन ट्रस्ट को  अगले  50  वर्ष  के विस्तार को ध्यान में रखते हुए  यह संपत्तियां खरीदनी ही चाहिए.  राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र  ट्रस्ट प्राइवेट ट्रस्ट होने के कारण सरकार इन संपत्तियों का अधिग्रहण कर के ट्रस्ट को नहीं दे सकती.

समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता पवन पांडे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के इस मुद्दे को उछाला जिसे आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने हाथों-हाथ लपक लिया. प्रियंका वाड्रा भी कहाँ पीछे रहने वाली थी तो वह भी इस अभियान में शामिल हो गई. इन  नेताओं और  इनके दलो  का अतीत ऐसा है कि  उन  पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं किया जाना चाहिए.

राम मंदिर निर्माण  आस्था से जुड़ा बहुत संवेदनशील  मामला  है जिसने हिंदू जनमानस को बहुत प्रभावित किया है,  यह प्रभाव आगामी विधानसभा  और लोकसभा चुनाव में भी दिखाई पड़ सकता है.  इसलिए विपक्षी पार्टियां मंदिर मुद्दे की धार को कमजोर करना चाहती हैं.   अपने  कुत्सित  राजनीतिक  उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अभी और भी अनर्गल प्रलाप सामने आएंगे लेकिन  अब जनता बहुत जागरूक है  इसलिए यह राजनीतिक दल  भ्रम फैलाने में  सफल नहीं होगे  बल्कि  उन्हें इसके दुष्परिणाम  भोगने पड़ सकते हैं.

आजकल भारत की राजनीति, गिरावट की  सभी सीमाएं तोड़कर  कुछ भी कर गुजरने को तत्पर दिखती है  और इस विडंबना देखिए कि मंदिर ट्रस्ट पर दान की रकम का दुरुपयोग और हेराफेरी करने  का आरोप  वही लोग लगा रहे हैं जिन्होंने मंदिर निर्माण के लिए एक  पैसे का दान नहीं किया.   क्या  ऐसे लोगों को दान में दुरुपयोग की बात कहने का तो कोई नैतिक अधिकार  है ? 


राम मंदिर ट्रस्ट से जुड़े हुए लोग  लोभ,  लालच   से दूर हैं और जिनकी सत्य निष्ठा किसी भी संदेह से परे है.  ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन राम मंदिर निर्माण के लिए समर्पित कर दिया  और अब राम के काम के अंतिम पड़ाव में  उन पर आरोप लगाना    पूरे  हिंदू जनमानस  की  धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना है.  आरोप लगाने वाले  वही लोग हैं  जिन्होंने मंदिर मुद्दे पर पूरे हिंदू समाज को अपमानित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. इन्होंने राम के अस्तित्व को ही  नकारते हुए   उन्हें  एक काल्पनिक चरित्र  बताया था .  इनमें से एक ऐसी पार्टी भी है जिसने राम मंदिर के स्थान पर सार्वजनिक शौचालय बनाने की भी बात की थी.  मजे की बात यह है कि आरोप लगाने वालों में  वे  दल  सबसे आगे हैं  जिन्होंने  अपने शासनकाल में  भ्रष्टाचार के नए-नए कीर्तिमान  गढ़े  थे .  कुछ दलों ने  फिल्मी सितारों के नाच गाने पर सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च किये थे  और अपने कार्यकाल में इतना भ्रष्टाचार किया जिसकी कुल राशि कई राज्यों की सकल घरेलू उत्पाद से भी ज्यादा हो सकती है . 


कुछ दलों ने  पारिवारिक  ट्रस्ट  के लिए  केंद्रीय बजट से आवंटन भी कराया और  राष्ट्रीय हितों को दरकिनार कर  कई  देशों से  चंदा  भी लिया.  जिनके रिश्तेदारों पर सरकारी सहयोग से  कौड़ियों के मोल जमीन खरीद कर   हजारों करोड़  रुपए कमाने के आरोप लगे. कुछ राजनीतिक दलों  के नेताओं पर कोरोना महामारी के दौरान  ऑक्सीजन  और महत्वपूर्ण दवाओं की कालाबाजारी और  सरकारी विज्ञापनों में  कमीशन खाने, अस्पतालों में  फर्जी नामों से बेड बुक करा कर जनता को बेवजह मारने  के आरोप लगे.  कुछ राजनीतिक दलों  के दामन पर प्रवासी श्रमिकों को  पलायन के लिए मजबूर  करने के भी दाग  है. महामारी के दौरान कुछ राजनीतिक दलों पर केंद्र सरकार की मुफ्त राशन योजना के दुरुपयोग का आरोप भी है जिसे  तथाकथित रूप से  अपात्र  लोगों, बांग्लादेशी घुसपैठियों  और रोहिंग्याओं को  उपलब्ध कराने का संगीन आरोप भी सामने आया है . 


उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव  नजदीक  हैं, जहाँ   समाजवादी पार्टी  सत्ता पाने के लिए बेकरार है,  तो कांग्रेश पार्टी अपनी खोई हुई सियासी जमीन तलाश रही  है, वही  आम आदमी पार्टी  दिल्ली के बाहर पांव पसारने   के लिए व्याकुल है.   इन सब पार्टियों के पास कोई बड़ा और गंभीर  मुद्दा नहीं है इसलिए वे मुद्दे ढूंढ कम,  खोद  ज्यादा रहे  हैं.  यह मुद्दा भी एक खोदा हुआ मुद्दा है. ऐसा लगता है कि 2024 के   लोकसभा चुनाव तक  विपक्ष इस तरह के स्टंट लगातार करता रहेगा.   ऐसे में सभी देशवासियों को चाहिए कि  किसी राजनैतिक दल  की  कोई भी बात सुनने से  पहले  उनकी नियति  और उसका अतीत अवश्य  ध्यान में  रखें तो सबकुछ स्पष्ट हो जाएगा.


                        " उघरहिं अंत न होइ निबाहू। कालनेमि जिमि रावन राहू" 

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- शिव मिश्रा

  


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