रविवार, 9 जुलाई 2023

हिंदू साम्राज्य दिवस और हिंदवी स्वराज

 

हिंदू साम्राज्य दिवस और हिंदवी स्वराज

आधुनिक भारत में छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दू सम्राज्य को नए सिरे से पुनः स्थापित किया था और 1674 में ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी तदनुसार 6 जून 1674 को  महाराष्ट्र में पांच हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित रायगढ़ किले में एक भव्य समारोह में शिवाजी का राज्याभिषेक किया गया था । प्रत्येक वर्ष इस दिन को हिंदू साम्राज्य दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को हिन्दू साम्राज्य, संस्कृति, सभ्यता और सौहार्द के प्रति जागरूक करना है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित कई हिंदूवादी संगठन हर वर्ष इसे त्यौहार के रूप में मनाते हैं. जहाँ कुछ संगठन हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को मनाते हैं, वही पूरे भारत में प्रत्येक वर्ष 6 जून को बहुत उत्साह और गौरव पूर्वक मनाया जाता है। 4 अक्टूबर 1674 को शिवाजी ने दूसरी बार छत्रपति की उपाधि ग्रहण की जिसमे उन्होंने हिंदवी स्वराज्य की स्थापना का उदघोष करते हुए स्वतंत्र शासक के रूप में अपने नाम का सिक्का भी चलाया। इसके पश्चात् शिवाजी पूर्णरूप से छत्रपति अर्थात् एक प्रखर हिंदू सम्राट के रूप में स्थापित हुए। शिवाजी ने अनुशासित सेना व सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों के सहयोग से सुव्यवस्थित प्रशासन की स्थापना की।

शिवाजी के राज्याभिषेक का भारत के लिए अत्यंत महत्त्व है क्योंकि इसने सभी को भारत के हिंदू चरित्र और एक नए साम्राज्य के उद्देश्य से परिचित कराया। सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि उस समय तक जो भी हिंदू राजा थे उन्हें किसी मुस्लिम सम्राट ने ही यह उपाधि प्रदान की थी। मेवाड़ और बुंदेलखंड को छोड़कर कोई भी राजा अपनी शक्ति सामर्थ्य के बल पर  राजा नहीं था लेकिन इन दोनों राज्यों में संपूर्ण भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने की दूर दृष्टि नहीं थी। इसलिए शिवाजी का प्रसंग सर्वथा  भिन्न है क्योंकि उन्होंने न केवल अपने बलबूते दिल्ली सल्तनत को चुनौती देते हुए अपना राज्य स्थापित किया और संपूर्ण भारत में हिंदवी स्वराज स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयास किया।

शिवाजी उन प्रारंभिक शासकों में से एक थे जिन्होंने समुद्री युद्ध की सर्वोच्च महत्ता को समझते हुए पश्चिमी तट पर दुर्गों का निर्माण किया और समुद्री जहाजों का प्रयोग सेना और व्यापार दोनों के लिए किया. इसलिए शिवाजी को भारतीय नौसेना का जनक माना जाता है. 15  से 50 वर्ष की आयु के मध्य उन्होंने 276 युद्ध लड़ें और उसमें से 268 में उनकी विजय हुई. आसानी से समझा जा सकता है कि उनकी सफलता का प्रतिशत कितना अच्छा था. शिवाजी का कहना था कि मानसरोवर से लेकर कन्याकुमारी तक और कन्याकुमारी से लेके ईरान तक यह राष्ट्र हमारा है और इसे हम लेकर रहेंगे. अपना  उद्देश्य  प्राप्त करने के लिए उन्होंने उत्तर भारत के सभी राजाओं महाराजाओं  को एकजुट करने का कार्य किया. सही अर्थों में मुगल साम्राज्य समाप्त करने का श्रेय क्षत्रपति शिवाजी को ही है.

638 से 711 ई. के बीच खलीफ़ाओं के निर्देश पर भारत पर 15 आक्रमण किए गए जिसमें 14 बार खलीफा की सेना को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. 15 वां आक्रमण 711 में मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में किया गया था, जिसे भी सिंध के राजा दाहिर ने परास्त कर दिया. मोहम्मद बिन कासिम ने पुनः बड़ी सेना लेकर  सिंध पर आक्रमण किया।  उसने राजा दाहिर के सिपहसलार को यह लालच देकर अपने साथ मिल लिया कि युद्ध में विजय के बाद उसे सिंध का राजा बना दिया जाएगा. राजा दाहिर ने सभी भारतीय राजाओं से मुस्लिम आक्रमण के विरुद्ध मदद मांगी लेकिन अधिकांश राजाओं ने कोई सहायता नहीं की. मोहम्मद बिन कासिम ने राजा दाहिर के विश्वासघाती सिपहसालार की सहायता से षड्यंत्र रचकर जीत हासिल की और बाद में विश्वासघाती सिपहसलार को भी मार दिया. इस तरह भारत में इस्लामिक साम्राज्य की स्थापना की नींव पड़ी. ग्यारहवीं शताब्दी तक दिल्ली पर इस्लामिक आक्रांताओं का कब्जा हो गया. हजरत मोहम्मद की मृत्यु के बाद छह वर्षों के अंदर उनके उत्तराधिकारियों ने सीरिया, मिस्र, उत्तरी अफ्रीका, स्पेन और ईरान को जीत लिया था, जिसके पीछे बहशीपन, क्रूरता, विश्वासघात और धोखाधड़ी का महत्वपूर्ण योगदान था. सारे षड्यंत्रों के बाद भी इस्लामिक जेहाद को  दिल्ली तक पहुँचने में  400 वर्ष लग गए.

 तलवार की  दम पर पूरी दुनिया में फैल रहे इस्लाम का जब भारतीय संस्कृति से सामना हुआ तो भारी खून खराबा और नरसंहार हुआ. अमेरिकी इतिहासकार स्टैनले वोलपर्ट ने लिखा है कि इस्लाम और हिंदू धार्मिक जीवन शैली में इतनी अधिक भिन्नता है कि इनके बीच शांति या सामंजस्य की कल्पना करना भी असंभव है. अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 8 करोड़ हिंदुओं का नरसंहार किया गया है जो मानव सभ्यता के इतिहास में सर्वाधिक है।  हिंदुस्तान ने पहली बार ऐसे बाहरी हमलावरों को देखा था, जो मजहब के नाम पर लोगों का क़त्ल करते थे, महिलाओं का बलात्कार करते थे और लूट-पाट करते थे. 1202 में तुर्क-अफगान हमलावरों ने बौद्ध धर्म के महान केंद्र नालंदा पर हमला करके तहस-नहस कर दिया। नालंदा के महाविहार में रह रहे हज़ारों बौद्ध भिक्षुओं का क़त्ल कर दिया गया और हजारों को अपनी जान बचाकर नेपाल और तिब्बत भागना पड़ा। यह इस्लाम का ही असर था कि जिस मिट्टी में बौद्ध धर्म पैदा हुआ था, वहीं से उसे देश निकाला दे दिया गया था।

पृथ्वीराज चौहान ने 17 बार मुहम्मद गौरी को युद्ध में परास्त किया था और भारतीय संस्कृति की महान परंपराओं को ध्यान में रखते हुए लेकिन युद्धनीति और कूटनीति को अनदेखा करते हुए क्षमा कर दिया था।  अठारहवीं बार मुहम्मद गौरी ने जयचंद की सहायता से पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में हरा दिया और बंदी बनाकर अपने साथ ले गया. मोहम्मद गौरी के हाथों पृथ्वीराज की हार ने भारत में हिंदू साम्राज्य और सनातन संस्कृति को  पराभव के अंधे मोड़ पर खड़ा कर दिया जिसने दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति, वैज्ञानिकता पूर्ण जीवन शैली और ज्ञान के वैभव पर ग्रहण लगा दिया। कालांतर में यह भारतीय इतिहास में अमानवीय क्रूरता, मजहबी  कट्टरता और मानसिक संकीर्णता का निकृष्टतम काला अध्याय साबित हुआ.

शिवाजी ने इतिहास की भूलों से शिक्षा लेते हुए नया दृष्टिकोण अपनाया और कम संसाधनों के बाद भी, शक्तिशाली मुस्लिम साम्राज्य से लोहा लेने के लिए छापा मार शैली का उपयोग किया और दिल्ली सल्तनत की चूलें हिला कर अपना साम्राज्य स्थापित किया.  यद्यपि छत्रपति शिवाजी महाराज का कार्यकाल बहुत संक्षिप्त, केवल छह वर्ष के लिए  1674 से 1680 तक रहा  लेकिन उन्होंने सार्वभौमिक सम्राट के रूप में अपना दायित्व निभाया और   साम्राज्य स्थापित करने के संघर्ष, सुचिता, वीरता और नैतिकता के जो मापदंड स्थापित किये उसने  कालांतर में भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक और राजनैतिक दिशा तय कर दी जिसे इस्लामिक आक्रांता परिवर्तित करने का प्रयास कर रहे थे.

मुस्लिम आक्रांताओं ने इस देश को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए जितनी बर्बर कार्रवाइयां की थी, तलवार के ज़ोर पर धर्मांतरण करने का प्रयास किया था और सनातन धर्मावलंबियों का मान मर्दन किया था, जिससे उनके अंदर हीन ग्रंथि की भावना घर कर गयी थी. शिवाजी नें इसे बाहर निकलने और नई ऊर्जा से नई दिशा देने का कार्य किया. उनकी युद्ध कला, रणनीतिक कौशल ओर कूटनीतिक सफलता ने  सनातन धर्म और संस्कृति को संजीवनी देने का कार्य किया. जिस इस्लामिक जिहाद ने विश्व की अनेक सभ्यताओं को निगल लिया था, वह भारत में अब तक पूरी तरह से सफल नहीं हो पायी है.

शिवाजी की मृत्यु के बाद हुई अनेक घटनाओं से उनकी दूरदृष्टि और हिंदवी  स्वराज की परिकल्पना को और अधिक रेखांकित किया. शिवाजी की विरासत इतनी मजबूत थी कि उनकी मृत्यु के बाद स्वयं औरंगजेब को उनके राज्य पर चढ़ाई करने के लिए आना पड़ा. मुगलों की क्रूरता के प्रत्युत्तर में प्रत्येक घर एक किला और शारीरिक रूप से योग्य हर युवा हिंदवी स्वराज का सैनिक बन गया था। अप्रतिम वीरता और छापामार पद्धति के नए सेनापति सामने आए, जिन्होंने शत्रुओं की सेना पर जोरदार हमले किए।  अपनी विशाल सेना और सभी पारंगत योद्धाओं के बावजूद औरंगजेब को चार वर्ष तक चले लंबे संघर्ष में आखिरकार हार का सामना करना पड़ा और औरंगजेब की मृत्यु भी वही हो गयी. उसकी कब्र औरंगाबाद, जिसका नाम अब संभाजी नगर रख दिया गया है, में ही बनी, जहाँ इस समय औरंगजेब की फोटो सिर पर रखकर एक धर्म विशेष के लोग उत्पात मचा रहे हैं. औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही मुगलों के उत्कर्ष का भी अंत हो गया।  इस तरह हिंदवी स्वराज के चढ़ते सूरज के साथ भगवा प्रभात का आगमन हुआ।

भारत के धर्मांतरित इस्लाम को यह बात रास नहीं आई उन्होंने अफगानिस्तान के अब्दाली को भारत पर हमले हेतु बुलाया, जिसके पश्चात 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठा साम्राज्य की पराजय हुई लेकिन  कुछ ही वर्षों में मराठियों ने वापसी की ओर अटक से कटक तक भगवा परचम लहरा दिया एक प्रकार से संपूर्ण भारतवर्ष छत्रपति शिवाजी द्वारा प्रतिपादित हिंदवी स्वराज्य की ओर बढ़ चला था. शिवाजी के राजनैतिक आदर्श आज भी प्रासंगिक है, और जब भारत में सनातन धर्म और संस्कृति पर षड्यंत्र पूर्वक खतरे आज उत्पन्न किये जा रहे हैं, उनका समाधान शिवाजी के आदर्शों से ही संभव है।

      ~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~  

 

 

 








 

 

 

 

 

 

गज़वा-ए-हिंद में हिस्सेदारी

 

गज़वा-ए-हिंद में हिस्सेदारी

आखिर वहीं हुआ जिसका अंदेशा था. कर्नाटक में मिली अप्रत्याशित सफलता के बाद कांग्रेस ने खुलकर खेलना शुरू कर दिया है. मंत्रिमंडल ने अपनी बैठक में ऐसे फैसले लिए जिनसे जनसामान्य हतप्रभ है. धर्मांतरण कानून को वापस लेने का फैसला किया है. गोहत्या कानून पर मंथन हो रहा है कि इसे निष्प्रभावी किया जाए या पूरी तरह से वापस ले लिया जाए. चूंकि  मुस्लिम समुदाय इसे पूरी तरह से वापस लेने के लिए दबाव बना रहा है, इसलिए इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस कानून को भी पूरी तरह से अप्रसंगिक और निष्प्रभावी कर दिया जाएगा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख चेहरा केशव बलिराम हेडगेवार को शैक्षणिक पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया है. इसके साथ ही सभी स्कूलों में रोजाना प्रार्थना सभा में संविधान की प्रस्तावना पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया है.

भाजपा सरकार के इन फैसलों को पलटने के साथ ही कांग्रेस सरकार ने मुस्लिमों को बड़ा संदेश दे दिया है, जिनके 98% से भी अधिक मत पाकर कांग्रेस सरकार बनाने में सफल हुई है. कहने की आवश्यकता नहीं है कि धर्मांतरण का उद्देश्य भू जनसांख्यिकी बदल कर इस्लामिक देश की स्थापना करना है और यह बात किसी से भी छिपी नहीं है. वैसे तो कांग्रेस ने खुले तौर पर कर्नाटक की जनता को पांच गारंटी दी थी लेकिन परदे के पीछे एक समुदाय विशेष को कुछ और गारंटी दी थी. चुनाव में विजय के बाद मुस्लिम संगठनों ने कांग्रेस को इन गारंटियों की न केवल याद दिलाई थी बल्कि सत्ता में भागीदारी के लिए भी दबाव बनाया था. कांग्रेस ने समुदाय विशेष को गारन्टी को पूरा करने में विलंब भी नहीं किया. पूरे कर्नाटक में बुर्के का जश्न मनाया जा रहा है उससे लगता है कि शीघ्र ही कानून बना कर स्कूलों कॉलेजों और विश्वविद्यालय में बुर्का पहनने की खुली छूट दे दी जाएगी.

अगर छल कपट, गैर कानूनी और षड्यंत्रपूर्वक धर्मांतरण न किया जाए तो भला किसी को धर्मांतरण कानून से क्या परेशानी हो सकती है. इसलिए धर्मांतरण कानून समाप्त करने का उद्देश्य धर्मांतरण को बढ़ावा देने के अलावा और कुछ नहीं हो सकता. धर्मांतरण द्वारा जनसंख्या परिवर्तन और तदनुसार राष्ट्र परिवर्तन,  गज़वा-ए-हिंद का एक प्रमुख हथियार है. तो क्या कांग्रेस गज़वा-ए-हिंद में सहायता कर रही है या स्वयं भागीदारी कर रही है. इस परिपेक्ष्य में राहुल गाँधी की अमेरिका यात्रा को समझना बेहद आसान है, जिसमें उनकी सभाओं के रजिस्ट्रेशन मस्ज़िदों में किए गए, सभाओं में भाग लेने वालों के लिए बसें भी मस्ज़िदों ने उपलब्ध कराई, सभाओं के प्रायोजक वर्ग विशेष की कुख्यात संस्थाओं से जुड़े हुए थे. ये सभी कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अंतर्राष्ट्रीय वामपंथ-इस्लामिक गठजोड़ के संगठनों से संबद्ध हैं, जिनके तार पाकिस्तान और अफगानिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों से भी जुड़े हुए हैं. ये चीन और अरब देशों से फंडिंग प्राप्त करके भारत और सनातन संस्कृति के विरुद्ध विदेशों में अभियान चला रहे हैं. प्रत्यक्ष रूप से ये सभी संगठन भारत के गज़वा ए हिंद को गति प्रदान करते हैं. भारत में वर्ग विशेष द्वारा बहुसंख्यकों के प्रति की जाने वाली हिंसा, हिंदू विरोधी, संविधान विरोधी, गैरकानूनी और आतंकवादी गतिविधियों को ढकने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदू विरोधी और भारत विरोधी अभियान चलाते हैं. ये सभी अंतरराष्ट्रीय सोशल मीडिया पर भारतीय मुसलमानों के लिए विक्टिम कार्ड भी खेलते हैं.

आज इन संगठनों के अतिरिक्त विश्व के अनेक संगठन हैं  जो जॉर्ज सोरोस जैसे धनकुबेरों से वित्तीय सहायता लेकर मोदी को हटाने का षडयंत्र रच रहे हैं. ऐसे समय में जब मोदी को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने वाला हिंदू समुदाय, मोदी से हताश भी है और नाराज भी, 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति को अत्यधिक कमजोर नजर आती है. दुर्भाग्य से भाजपा इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही है और केवल विकास के सहारे एक बार फिर 2024 के लोकसभा चुनावों की वैतरणी पार करने की कोशिश कर रही है, जो बेहद खतरनाक और आत्मघाती है. अगर २०२४ भाजपा की सरकार नहीं बन पाती है तो भाजपा सहित देश के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण होगा और शायद सनातन संस्कृति को बचाने का अंतिम प्रयास भी विफल हो जाएगा. इसलिए भाजपा को तो इस पर विचार करना ही होगा किन्तु भाजपा से नाराज समर्थकों और कार्यकर्ताओं को भी राष्ट्रहित में पुनर्विचार करना चाहिए.

कर्नाटक में लोगों को अब भाजपा सरकार याद आ रही है, जिसे उसने हाल के चुनाव में बुरी तरह से हराया था. भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं को भी अब चुनाव में भाजपा के लिए समुचित मेहनत न करने का पछतावा हो रहा है लेकिन अब पछताने और दुख करने से कोई लाभ नहीं. पता नहीं भाजपा को भी अपनी गलतियों पर पछतावा हो रहा है या नहीं. भाजपा को लोगों की आकांक्षाएं पूरा करने के लिए कटिबद्धता और समय सीमा के लिए निश्चित रूप से कांग्रेस से सीखने की जरूरत है. भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बसव राज बोम्मई ने कर्नाटक में सरकार के नियंत्रण वाले सभी मंदिरों को मुक्त करने की घोषणा की थी, जो संभवत: वरिष्ठ नेताओं के दबाव में नहीं किया जा सका. अगर मंदिर मुक्ति का कानून भी बना दिया गया होता तो कर्नाटक में भाजपा किसी भी कीमत पर चुनाव नहीं हारती. भाजपा पता नहीं किसी हीन ग्रंथि का शिकार है या किसी से भयग्रस्त रहती है कि वह हमेशा रक्षात्मक ढंग से काम करती है. केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार तो केंद्रीय कानून बनाकर सभी राज्यों में सरकार के नियंत्रण वाले मंदिरों को मुक्ति कर सकती थी और इसमें किसी भी दूसरे संप्रदाय के लोगों को आपत्ति भी नहीं हो सकती थी, फिर भाजपा ने ये क्यों नहीं किया, समझ में न आने वाली बात है. भाजपा की वर्तमान पूर्ण बहुमत वाली सरकार की तुलना अगर 1991 की  पी वी नरसिम्हा राव की अल्पमत सरकार से की जाए तो भाजपा और कांग्रेस की कार्यशैली का अंतर स्पष्ट हो जाता है. नरसिम्हा राव सरकार ने अल्पमत में होते हुए भी पूजा स्थल विधेयक कानून बना कर समूचे हिंदू समाज और सनातन संस्कृति के हाथ पैर बांध दिए. वक्फ बोर्ड का ऐसा कानून बना दिया जो कभी भी कहीं भी किसी की भी संपत्ति हड़प सकता है. अल्पसंख्यक आयोग को संवैधानिक दर्जा भी दे दिया गया. उस समय 120 सांसदों के साथ भाजपा मुख्य विपक्ष की भूमिका में थी, कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी सदन में थे. पीवी नरसिम्हाराव अटल बिहारी वाजपेयी को अपना गुरु मानते थे. इसलिए आज भी कोई यह नहीं समझ पा रहा है कि ये तीनों राष्ट्रविरोधी और सनातन विरोधी कानून, बेहद खतरनाक प्रावधानो के साथ कैसे पास होने दिए गए, जबकि आज छोटी छोटी पार्टियां हफ्तों सदन नहीं चलने देती और पूर्ण बहुमत की सरकार असहाय बनी रहती है.

पूर्ण बहुमत की यह भाजपा सरकार पिछले 10 साल से कार्य कर रही है लेकिन एक भी साहसिक कदम को पूरी निष्ठा और कर्तव्यबोध के साथ आगे नहीं बढ़ा सकी है. धारा 370 हटाने का कदम निश्चित रूप से बेहद साहसिक और प्रशंसनीय है लेकिन बाद में स्थायी निवासी होने तथा संपत्ति खरीदने के लिए 15 साल निवास की अनिवार्यता ने आशाओं पर तुषारापात कर दिया. सीएए और एनआरसी कानून ने सभी राष्ट्रवादियों में नए उत्साह का संचार कर दिया लेकिन एक शाहीन बाग से घबराकर सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया जिससे राष्ट्रवादियों का मनोबल  टूट गया. पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं की अनदेखी और उन्हें उनके हाल पर हिंसा का शिकार होने के लिए छोड़ देने से कार्यकर्ता भी नाराज हुए और समर्थक भी. जिसका परिणाम कर्नाटक की बुरी हार के रूप में सामने आया.

गाँधी और नेहरू दोनों ही मुस्लिम प्रेमी थे. गाँधी को साउथ अफ्रीका में ही ये प्रेम रोग हो गया था और नेहरू के तो जैसे खून में ही यह प्रेम था. इसलिए स्वतंत्रता के बाद षड्यंत्रपूर्वक जनसंख्या की अदला बदली नहीं की गई बल्कि नेहरू ने राष्ट्र की कीमत पर मुस्लिमों  के पक्ष में और हिंदुओं के विरुद्ध सुनियोजित षडयंत्र किए. बाद की कांग्रेसी सरकारों ने भी मुस्लिम तुष्टिकरण की नई नई परिभाषाएं गढ़ी और क्षेत्रीय दल तो मानो मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए ही गठित किए गए हैं. आज पूरे देश में धर्मांतरण अपने चरम पर है. लव जिहाद, जमीन जिहाद, जनसंख्या जिहाद, और घुसपैठ जिहाद पूरे ज़ोर शोर से बिना किसी भय बाधा के चल रहा है. इनका विरोध कर रहे लोगों को फिरकापरस्त सांप्रदायिक और दक्षिणपंथी करार दिया जा रहा है.  धीरे धीरे गृहयुद्ध जैसे हालात बनते जा रहे हैं. भाजपा की जो सरकार शाहीन बाग, किसान आंदोलन यहाँ तक कि पहलवान आंदोलन को भी रोकने में सफल नहीं हो सकी, उसने उत्तरकाशी में लव जिहाद, जमीन जिहाद और जनसंख्या परिवर्तन के खतरों पर विचार विमर्श के लिए होने वाली महापंचायत को सख्ती से रोक दिया है. पूरा देश आज रोहिंग्याओं और  अवैध घुसपैठियों अपने घेर रखा है. रेलवे ट्रैक के किनारे अवैध झुग्गियां बनी हुई है जिससे रेलवे ट्रैक को किसी भी समय रोका जा सकता है, जिससे यात्री और कारोबार से सेना आवागमन भी निरुद्ध किया जा सकता है. अवैध बाजारों और झुग्गी झोपड़ियों ने हवाई अड्डे की चारदीवारियों को भी घेर रखा है. पूरा परिदृश्य बेहद खतरनाक नजर आता है और ऐसे में पूर्ण बहुमत की सरकार से अपेक्षा है कि वह  उन लोगों का विश्वास और दिल जीतने का प्रयास करें जिससे उसे सत्ता के शिखर पर पहुंचाया है ताकि न केवल राष्ट्र की एकता अखंडता बल्कि भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति की रक्षा की जा सके.

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भारत अमेरिका संबंधों पर इस्लामिक दुष्प्रभाव

 

भारत अमेरिका संबंधों पर इस्लामिक दुष्प्रभाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा आशा के अनुकूल ही  रही. उन्होंने अपने कार्यकाल में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और विदेश नीति को एक नया आयाम दिया है. वैश्विक राजनेताओं से व्यक्तिगत संबंध बनाने में भारत में आज तक मोदी जैसा कोई नहीं हुआ. नेहरू ने इस दिशा में प्रयास जरूर किए लेकिन उनके प्रयास देश की बजाय अपने आप को अंतरराष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित करने के लिए ज्यादा थे. यह भी कहना अनुचित नहीं होगा कि वैश्विक राजनेताओं की कतार में अपने आप को खड़ा करने के लिये कई बार उन्होंने राष्ट्रीय हितों की बलि चढ़ाने में भी संकोच नहीं किया. 

नेहरू के बाद भारत की विदेशनीति उनके द्वारा खींची गई लाइन के अंदर ही चलती रही जो कहने के लिए तो गुटनिरपेक्ष थी लेकिन सोवियत रूस के नज़दीक थी. बाद में इंदिरा गाँधी ने नेहरू के कदमों पर ही आगे बढ़ती रही. उसके बाद केवल मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी को ही दो बार का कार्यकाल मिला. मनमोहन सिंह के पास अपना राजनैतिक सामर्थ्य नहीं था, इसलिए उनमें आत्मविश्वास की भयंकर कमी थी. स्वाभाविक रूप से वह राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप नहीं छोड़ सके. मोदी ने प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह से लेकर अब तक अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और वैश्विक राजनेताओं से संबंध बढ़ाने की दिशा में तेज और महत्वपूर्ण कदम उठाए, जिसकी की प्रशंसा की जानी चाहिए.

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और उनकी पत्नी जिल बाइडन के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की राजकीय यात्रा पर हैं. अमेरिका में जहाँ कहीं वह जाते हैं, वह स्थान मोदीमय हो जाता है. मोदी मोदी  के नारे उनके स्वागत का स्लोगन बन गया है. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर 21 जून को उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय में 100 से अधिक देशों को योगाभ्यास में शामिल कर के एक नया कीर्तिमान रच दिया. अमेरिका में उनका जैसा भव्य स्वागत किया गया, और राष्ट्रपति जो वाइडन  और उनकी पत्नी जिल वाइडन जिस गर्मजोशी से उनका स्वागत किया, वह हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है, विशेष रूप से अमेरिका में बसे भारतीयों के लिए जिन्हें व्हाइट हाउस में इतनी बड़ी संख्या में जाने का मौका संभवतः पहली बार मिला होगा.

भारत में राजनीति का स्तर इतना गिर चुका है कि कांग्रेस ने कहा कि नेहरू का स्वागत मोदी से कहीं ज्यादा गर्म जोशी और भव्य तरीके  से किया गया था. इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि उन्होंने इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी और मनमोहन सिंह के कार्यकाल के लगभग 26 वर्ष अमेरिकी संबंधों के हिसाब से निरर्थक सिद्ध कर दिये. अन्य विपक्षी दलों ने भी कहा कि जब मणिपुर जल रहा है तो प्रधानमंत्री विदेश में जाकर यशोगान करवा रहे हैं. छुद्र राजनीति करने वाले यह भी भूल जाते हैं कि आज  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा पर पूरी दुनिया की नजर है। भारत और अमेरिकी संबंधों में मोदी की यह यात्रा मील का पत्थर साबित होंगी, जिसमे कई रक्षा सौदों, अंतरिक्ष में सहयोग, स्वास्थ्य, ड्रोन तकनीक, भारत में जेट इंजन का निर्माण और तकनीक हस्तांतरण, भारतीयों के लिए वीजा में  ढील तथा दो नए वाणिज्य दूतावास खोला जाना आदि शामिल है.

अमेरिकी मीडिया ने भी  मोदी की यात्रा को बहुत अधिक महत्त्व देते हुए मोदी और भारत अमेरिका संबंधों पर लंबे लंबे लेख प्रकाशित किए हैं. मोदी की मुखर आलोचना करने वाले  अमेरिकी समाचार पत्रों - वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, आदि ने भी  मोदी की तारीफ में लेख लिखें. न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट, सीएनएन जैसे प्रमुख मीडिया संस्थानों ने पीएम मोदी के अमेरिका दौरे को लेकर काफी विस्तार से लिखा है।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ साथ  सबसे ज्यादा आबादी वाला देश भी है। ऐसे में  जलवायु परिवर्तन से लेकर प्रौद्योगिकी में प्रगति तक किसी भी बड़ी वैश्विक चुनौती को भारत की भागीदारी के बिना संबोधित नहीं किया जा सकता है। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव के दौर में, अमेरिका को भारत से बहुत उम्मीदें भी है। मोदी से मीटिंग के ठीक पहले, बाइडन ने शी जिनपिंग को तानाशाह करार दिया जो दर्शाता है कि चीन को लेकर अमेरिका की नीति बदल रही है। मोदी का भी ये दौरा चीन के लिए भी एक बड़ा संदेश है कि उसकी विस्तारवादी नीति किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं की जा सकती.

अमेरिका में जब मोदी का ज़ोरदार स्वागत हो रहा है, हर जगह मोदी मोदी का स्वर गूंज रहा है, इसके बीच इस यात्रा के विरोध में भी कुछ सुर सुनाई दिए, जिसका अंदेशा पहले से ही था, क्योंकि राहुल गांधी ने ही अपनी अमेरिका यात्रा में ही इसकी पटकथा लिखी थी. अमेरिका मोदी की यात्रा के लिए पिछले छह महीने से तैयारी कर रहा था और यात्रा से कुछ समय पहले ही राहुल गाँधी ने अमेरिका जाकर माहौल को इस तरह विषाक्त करने की कोशिश की जिससे न केवल मोदी को मुस्लिम विरोधी आरोपित किया जाए बल्कि यह भी संदेश देने की कोशिश की जाए कि भारत में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में लगभग 98% मुस्लिम मत पाकर जीती कांग्रेस यही मॉडल राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, मिज़ोरम और तेलंगाना तथा 2024 के लोकसभा चुनाव में दोहराना चाहती है. इसी परिपेक्ष में अमेरिका में राहुल की सभाओं का आयोजन जिन लोगों ने किया उनमें अधिकतर ऐसे कट्टरपंथी व्यक्ति और संस्थाएँ थी, जिनका संबंध अफगानिस्तान, पाकिस्तान, आईएसआई तथा आतंकवादी संगठनों से था. राहुल की सभाओं में भाग लेने के लिए रजिस्ट्रेशन मस्ज़िदों में किया गया था और मस्ज़िदों के बाहर ही सभा स्थल तक ले जाने के लिए बसें खड़ी की गयी थी, जिनके द्वारा मुफ्त यात्रा की व्यवस्था की गयी थी. राहुल की सभाओं में कई ऐसे कुख्यात व्यक्ति भी देखे गए थे, जिनके नाम तो हिंदू थे लेकिन वास्तव में वह अंतर्राष्ट्रीय वामपंथ इस्लामिक गठजोड़ के लिए काम करते हैं, और इसलिए भारत विरोध, मोदी विरोध  हमेशा उनका स्वाभाविक एजेंडा होता है.

इनमें से कुछ लोग ही मोदी की अमेरिका यात्रा का विरोध कर सके. अमेरिकी संसद की दो मुस्लिम महिला सांसदों ने पहले से ही घोषणा कर दी थी  कि वह मोदी के संबोधन का बहिष्कार करेंगी. वाइडन प्रशासन के पुख्ता इंतजाम के चलते मोदी विरोध अधिकतर सोशल मीडिया तक ही सीमित रहा, इसलिए जॉर्ज सोरेस के साजिश गैंग  ने आनन फानन में मोदी मीटिंग के ठीक पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा से एक इंटरव्यू किया जिसमें बराक ओबामा ने कहा कि यदि वह राष्ट्रपति होते  और उनकी मुलाकात मोदी से होती तो वह निश्चित रूप से भारत में मुसलमानों की सुरक्षा का मुद्दा उठाते. भारत में तो हम हामिद अंसारी को ही कोसते हैं लेकिन बराक ओबामा ने सिद्ध कर दिया कौम की आवाज उठाने के लिए वे भी टूलकिट गैंग के साथ हैं. यह सब रेखांकित करता है कि राजनैतिक इस्लाम अन्तराष्ट्रीय स्तर पर कितना प्रभावी और साधन संपन्न है कि यह झूठ को सच और सच को झूठ साबित कर सकता है. इसके लिए वे जिस किसी देश को इस्लामीकरण के लिए चुनते हैं, उसके लिए विमर्श बनाते हैं कि वहां मुसलमानों के साथ अत्याचार हो रहा है और उस देश में  मुसलमानों द्वारा की जाने वाली हिंसा, अराजकता और धर्मान्तरण के खेल को ढंकने का काम किया जाता है.    

कितनी बड़ी विडंबना है कि भारत में बहुसंख्यक हिंदू त्रस्त है. उन्हें सामान्य संवैधानिक अधिकार भी प्राप्त नहीं है जबकि मुस्लिमों को विशेषाधिकार प्राप्त हैं. गज़वा ए हिंद की योजना पर बड़ी तेजी से काम किया जा रहा है. लवजेहाद, अब जबरन जेहाद बनता जा रहा है, न जाने कितनी श्रद्धा और साक्षी फ्रिज और बोरों में भरी जा रही है. सरकार भी वर्ग विशेष के सामने असहाय नजर आती है.  इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत में कोई और नहीं, हिंदू ही असुरक्षित है लेकिन  कांग्रेस सत्ता पाने के लिए कुछ भी कर सकती है, देश को तोड़ सकती है और देश को बेच सकती है.   

भारत और अमेरिका के बढ़ते सम्बन्ध समय की आवश्यकता है जिसमे मोदी ने उत्प्रेरक की भूमिका अदा की लेकिन उन्होंने भारत के पुराने मित्र रूस को है न तो  नाराज़ किया, और  न ही  नजरंदाज. भारत पश्चिमी देशों के विरोध के बावजूद रूस से कच्चे तेल की खरीद कर रहा है और जरूरत पड़ने पर दोस्त का फर्ज अदा कर रहा है. लेकिन इस यात्रा से पाकिस्तान और चीन से अधिक भारत के विपक्षी दल परेशान हैं. कांग्रेस को लगता है की मोदी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण उनको सत्ता से हटा पाना मुश्किल हैं इसलिए वह देश विरोधी हथकंडे अपना रही है. राष्ट्र की अस्मिता एकता और अखंडता से समझौता करने वाले किसी  भी राजनैतिक दल को लोकतांत्रिक पद्धति से सत्ता प्राप्त नहीं हो सकती. इसलिए सभी राजनीतिक दलों को वर्तमान स्थिति पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और राजनीति को व्यवसाय नहीं बनाना चाहिए.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~

 

 

 


 

चिदम्बरम मंदिर पर सरकारी नियंत्रण

 एक और हिन्दू मंदिर पर सरकारी कब्जा


तामिलनाडू के प्राचीनतम मंदिरों में से एक विश्व प्रसिद्ध चिदम्बरम मंदिर को सरकारी नियंत्रण में लाने के लिए राज्य सरकार द्वारा कुत्सित प्रयास किया जा रहा है.

ये दक्षिण भारत के अलावा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी सुर्ख़ियों में रहा पर पता नहीं कोरा पर इसका कोइ संदर्भ क्यों नहीं है.



मंदिर के पुजारी विरोध मार्च पर


वे सभी लोग जो मंदिर मुक्ति के पक्षधर हैं संभवत: उन्हें इसकी जानकारी अवश्य होगी और उनसे अनुरोध है कि इस घटना से सम्बंधित जानकारी सभी चिंतित लोगों को अवश्य दें.


तमिलनाडु में डीएमके और कांग्रेस की गठबंधन सरकार का हिंदू विरोधी घृणित चेहरा एक बार फिर सामने आया है. राज्य के प्राचीनतम मंदिरों में से एक विश्व प्रसिद्ध चिदम्बरम मंदिर को सरकारी नियंत्रण में लाने के लिए राज्य सरकार द्वारा कुत्सित प्रयास किया जा रहा है. स्टॅलिन सरकार ने मंदिर में पुलिस भेजकर अपने इरादे साफ़ कर दिए. पुलिस ने 11 पुजारियों के विरुद्ध इस आधार पर मुकदमा दर्ज किया कि उन्होंने श्रद्धालुओं कोविशेषतय: दलितों को मंदिर में प्रवेश से रोका.

मंदिर के गर्भगृह में पुलिस भेजने के कुकृत्य का बचाव करते हुए धार्मिक मामलों के मंत्री पीके शेखरबाबू ने कहा कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि मंदिर के अंदर श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो और इसके लिए सरकार इस मंदिर को अपने नियंत्रण में लेने के प्रयासरत हैक्योंकि सभी श्रद्धालु ऐसी मांग कर रहे हैं. इस संबंध में यह बात ध्यान देने योग्य है कि सर्वोच्च न्यायालय ने 2014 में मद्रास उच्च न्यायालय के 2009 के आदेश को रद्द करते हुए यह व्यवस्था दी थी कि पोधु दीक्षितर ही मंदिर चलाएंगे और राज्य सरकार का इसमें कोई दखल नहीं होगा. पोधु दीक्षितर भगवान शिव के उन शिष्यों के वंशज माने जाते  हैं जो उनके साथ आये थे. राज्य सरकार चिदम्बरम मंदिर को सरकारी नियंत्रण में लाने के लिए प्रयासरत है जिसके लिए  मंदिर में की प्रतिदिन की जाने वाली पूजा अर्चना से लेकर विभिन्न आयोजनों पर पैनी निगाह रखती है और पुजारियों का उत्पीड़न करती है.

प्रत्येक वर्ष “आनी थिरुमंजनम” त्योहार के अवसर पर मंदिर में भारी भीड़ एकत्र होती है. पौराणिक मान्यता है कि आनी उथिरम के दिन ही भगवान शिव कुरुंदई वृक्ष के नीचे तपस्यारत ऋषि मणिक्कवाकर से प्रसन्न होकर प्रकट हुए थे और आनंद तांडव के माध्यम से उन्हें उपदेश दिया था. नृत्य करते भगवान शिव का यह रूप ही नटराज कहलाया । 4 दिन चलने वाले इस त्योहार में उथ्रम नक्षत्र में भगवान नटराज का अभिषेक किया जाता है. सुरक्षा कारणों से इन चार दिनों में श्रद्धालुओं को पवित्र मंच, जो छोटा और सीमित स्थान है, के ऊपर खड़े होने या पूजा करने की अनुमति नहीं दी जाती है। इस वर्ष भी 24 से 27 जून तक मनाए जाने वाले इस त्योहार पर यह व्यवस्था की गयी थी. इसे बहाना बनाकर तमिलनाडु सरकार ने आपत्ति जताई और मंदिर में पुलिस भेज कर इस व्यवस्था को रोक दिया.

तमिलनाडु अत्यंत प्राचीन, अद्भुत अलौकिक और आध्यात्मिकता के प्रमुख मंदिरों का राज्य है लेकिन दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद मंदिरों पर सरकारी नियन्त्रण और सनातन संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट करने का बृहत अभियान नेहरू के संरक्षण में तमिलनाडु से ही शुरू हुआ. भारत की कथित स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी यहाँ सनातन संस्कृति और ब्राह्मण विरोधी अभियान रुका नहीं है. राज्य के ज्यादातर ब्राह्मण दूसरे राज्यों या विदेशों में पलायन कर चुके हैं, केवल वही बचे हैं जो नहीं जा सकते हैं या जो वहीं जीना-मरना चाहते हैं. तमिलनाडु  में चिदंबरम मंदिर ही एक ऐसा बड़ा प्राचीन मंदिर बचा है जो राज्य सरकार के नियंत्रण में नहीं है लेकिन राज्य में जब भी डीएमके की सरकार होती है तो  इस मंदिर पर सरकारी कब्जे का प्रयास किया जाता है. करुणानिधि, जो कट्टर हिंदू विरोधी थे और इसलिए अपने अपने आप को नास्तिक बताते थे किन्तु वह प्रो क्रिश्चियन और प्रो मुस्लिम थे, ने भी इस मंदिर पर नियंत्रण करने का कई बार प्रयास किया था लेकिन वह सफल नहीं हो सके. अब उनके पुत्र और वर्तमान मुख्यमंत्री स्टालिन उनके अधूरे काम को पूरा करना चाहते हैं.

तमिलनाडु की हिंदू और ब्राह्मण विरोधी राजनीति में ऐसा माना जाता है कि मंदिरों के रूप में राज्य की विश्व प्रसिद्ध धरोहरें केवल ब्राह्मणों से संबंधित है. इसलिए उन पर नियंत्रण करने से दलित, पिछड़े, मुस्लिम और क्रिश्चियन समुदाय खुश होगे. करुणानिधि की तो पूरी राजनीति हिंदू विरोधी और ब्राह्मण विरोधी मानसिकता पर आधारित थी जिसे उनके पुत्र स्टालिन आगे बढ़ा रहे हैं. उन्होंने सरकारी नियंत्रण वाले मंदिरों से प्राप्त आय का उपयोग दूसरे धर्मों करने की शुरुआत की.  आज तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्य, मंदिरों के चढ़ावे को क्रिश्चियनो की धर्मयात्रा और मुसलमानों के लिए हज सब्सिडी के रूप में इस्तेमाल करते हैं. पिछले वर्षों में तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने राज्य के प्रमुख मंदिरों से 10-10 लाख रूपये जबरन वसूले थे ताकि उस धनराशि का मदरसों और यतीमखानों में  मुफ्त राशन उपलब्ध कराने में उपयोग किया जा सके. सरकार ने हिंदू मंदिरों में किसी भी धर्म, संप्रदाय और जाति से पुजारी नियुक्त करने का कानून भी बनाया है जिस कारण प्राचीन परंपराएं मान्यताएँ और आध्यात्मिकता का बड़ी तेजी से क्षरण हो रहा है. डीएमके अपनी राजनीति के लिए दलित और ब्राह्मण वर्ग को आमने सामने करने का हमेशा प्रयास करती रहती है. इस योजना के अंतर्गत किसी दलित से शिकायत पत्र लेकर मंदिर के पुजारियों के विरुद्ध दलित विरोधी कानून का जमकर दुरुपयोग किया जाता है.

चिदम्बरम मंदिर के संबंध में पौराणिक और ऐतिहासिक तथ्य  है कि मंदिर की  स्थापना से पूर्व तमिलनाडु का यह भूभाग विशाल वनीय प्रदेश था जिसका नाम तिल्लई वन था, जहाँ अनेक ऋषि मुनि तपस्या करते थे और विभिन्न अनुष्ठान करते थे. ऋषि मुनियों की कठिन साधना से प्रसन्न होकर शिवजी यहाँ प्रकट हुए और आनंद तांडव नृत्य किया था.  भगवान शिव के आनंद तांडव का दर्शन करने के लिए भगवान विष्णु भी आदिशेष के रूप में यहां प्रकट हुए थे जो  अब भी इस मंदिर में गोविन्दराज के रूप में विराजमान हैं. मंदिर में पूजे जाने वाला भगवान शिव का प्राथमिक स्वरूप नृत्य देव एवं लौकिक नर्तक नटराज का है। मंदिर के पूर्वी गोपुरम पर  उनके नृत्य की विभिन्न मुद्राएं अंकित हैं, जो वास्तव में  केवल नृत्य मुद्राएं नहींअपितु आध्यात्मिक रूप से 108 कारण अथवा गतियां हैंजिनका शास्त्रीय नृत्य में प्रयोग किया जाता है.

तमिलनाडु सरकार द्वारा प्रसिद्ध थिल्लाई नटराज मंदिर या चिदम्बरम मंदिर में पुलिस भेज कर नियंत्रण करने के प्रयास को सभी राजनीतिक दलों ने अनदेखा किया. केवल भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई ने इसका विरोध किया लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व या केंद्र सरकार ने न तो  विरोध किया और न ही राज्य सरकार से यह पूछने की कोशिश की कि वह सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय और संवैधानिक व्यवस्था का उल्लंघन क्यों कर रही है, जिससे मंदिर मुक्ति आंदोलनकारियों और सभी हिन्दुओं में भारी क्षोभ है.

अमेरिका और मिस्र की सफल विदेश यात्राओ के बाद जिस ढंग से प्रधानमंत्री मोदी ने मध्यप्रदेश में अपने कार्यकर्ताओं का उत्साह वर्धन किया और समान नागरिक संहिता पर चर्चा की, उससे पूरे देश में यह संदेश गया था कि भाजपा ने कर्नाटक की जबरदस्त हार से सीख ली है लेकिन चिदम्बरम मंदिर पर चुप्पी से लगता है कि अपनी आदत के अनुसार दो कदम आगे और चार कदम पीछे चलने वाली भाजपा अभी वहीं खड़ी है जहाँ कर्नाटक चुनाव से पहले थी. कर्नाटक के तत्कालीन भाजपा मुख्यमंत्री वसव राज बोम्मई ने राज्य में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की घोषणा की थी जिसका कांग्रेस ने जबरदस्त विरोध किया था लेकिन दुर्भाग्य से बोम्मई को केंद्रीय नेतृत्व का साथ नहीं मिल सका. वहां कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर विरोधियो और वर्ग विशेष द्वारा प्रयोजित हमलों पर भी त्वरित और प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई और परिणाम सामने है. तमिलनाडु में भी भाजपा के कई बड़े कार्यकर्ता जेलों में बंद किए जा रहे हैं. सड़क चौड़ी करने, मजारों, दरगाहों, मस्ज़िदों और चर्चों को रास्ता देने के नाम पर प्राचीन मंदिर तोड़े जा रहे हैं लेकिन कोई भी राजनीतिक दल आवाज नहीं उठा रहा है.

यद्दपि तमिलनाडु में भाजपा के पास तुरंत खोने के लिए कुछ नहीं है लेकिन इसके गलत  संदेश पूरे देश में जाते हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, और तेलंगाना जहाँ निकट भविष्य में चुनाव होने हैं, में भी  अनेक महत्वपूर्ण मंदिर सरकारी नियंत्रण में हैं. केंद्र सरकार कानून बनाकर इन सभी मंदिरों को राज्य सरकार के चंगुल से एक झटके से मुक्त कर सकती है और अपनी छवि में सुधार कर समर्थकों का एक बड़ा वर्ग तैयार कर सकती है, अन्यथा इन राज्यों में केवल राजस्थान ही भाजपा के पास आ पाएगा और वह भी गहलोत-पायलट झगड़े के कारण लेकिन छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना आदि में कर्नाटक का इतिहास दोहराए जाने की पूरी संभावना है, क्योंकि केवल लच्छेदार भाषणों और राष्ट्रवाद के गीत गाने से हिंदुओं का दिल नहीं जीता जा सकता. भाजपा को चाहिए कि हिंदू समाज के लिए न सही, अपनी राजनीति के लिए ही सही, ऐसे कदम त्वरित गति से उठाने चाहिये अन्यथा 2024 लोकसभा चुनावों के लिए बहुत देर हो जाएगी.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


इस घटना ने मुझे स्तब्ध किया और इस पर मैंने कई मीडिया स्पेस में लेख भी लिखे. मेरा हाल में प्रकाशित एक लेख









जल रहे फ्रांस से भारत को सबक

 


कुछ वर्ष पहले एक एक तस्वीर वायरल हुई थी, जिसने पूरी दुनिया को झकझोर दिया था. इस तस्वीर में एक तीन वर्षीय बच्चे का मृत शरीर औंधे मुँह तुर्की के बोडरम समुद्र तट पर पड़ा था. सभी ने समवेत स्वर में इसे मानवता को शर्मसार करने वाला बताया था. सामने आई जानकारी के अनुसार एलन नाम के इस बच्चे के माता पिता अपने परिवार के साथ सीरिया के गृहयुद्ध से भयभीत होकर किसी यूरोपीय देश में शरण लेने के लिए निकले थे लेकिन किसी देश ने उन्हें घुसने नहीं दिया और उनकी नाव समुद्र में डूब गई जिसमे बच्चे के पिता के अलावा सभी सदस्य समुद्र में डूब गए थे. उस समय किसी ने भी इस तस्वीर के पीछे छिपी सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की और जो जानते थे उन्होंने उजागर नहीं की. इस्लामिक वामपंथ गठजोड़ के तथाकथित उदारवादियों ने मानवाधिकार के नाम पर ज़ोर शोर से पूरे विश्व में झूठे विमर्श गढ़े. उनके प्रभाव में आकर लगभग हर देश की मीडिया ने उदारपंथियों के झूठे षडयंत्र आधारित विमर्श को आगे बढ़ाने का काम किया. परिणामस्वरूप विश्व के ज्यादातर देशों ने विशेषतय: यूरोपीय देशों ने अपने दरवाजे मुस्लिम शरणार्थियों के लिए खोल दिये. इस तथ्य से बहुत कम लोग परिचित होंगे कि मामला मानव तस्करी का था और पूरा पैसा न मिलने के कारण तस्करों ने ही नाव को बीच समुद्र में डुबो दिया था. तुर्की में इन मानव तस्करों को 125 वर्ष की सजा सुनाई गई है. इस बीच झूठे विमर्श के सहारे कई यूरोपीय देशों में अवैध मुस्लिम अप्रवासियों को स्थापित कर दिया गया जो आज यूरोप की सबसे बड़ी समस्या है.

अकेले जर्मनी ने एक झटके से 10 लाख सीरियाई शरणार्थियों को अपने देश में स्वीकार करके उनके कल्याण के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई. जर्मनी ने अपने तटरक्षक जहाज का नाम भी मृत लड़के के नाम एलन रखा. जर्मनी की ही तरह यूरोप के विभिन्न देशों ने अरब देशों से आए विभिन्न मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहाँ जगह दी इनमें फ्रांस अग्रणी था. इन देशों ने कर दाताओं के पैसे से उनके लिए हर तरह की सुख सुविधाओं का इंतजाम किया लेकिन अरब देशों से शरणार्थियों के आने का सिलसिला कभी नहीं रुका. आज भी इटली सहित अन्य यूरोपीय देशों में कथित मुस्लिम शरणार्थियों के आने का सिलसिला जारी है. फ्रांस की समस्या का कारण भी अवैध मुस्लिम अप्रवासी हैं जिन्हें स्वयं सरकार ने अपने यहाँ शरण दी या अरब देशों से लाकर बसाया. इसके पीछे सस्ते मजदूर और वोट बैंक की राजनीति प्रमुख कारण है. फ्रांस सहित ज्यादातर यूरोपीय देशों इन प्रवासी मुस्लिमों के लिए मस्जिदे भी सरकारी खर्चे पर बनवाई. कालांतर में यही कट्टरपंथी यूरोपीय देशों में राष्ट्रांतरण का कारण बन रहे हैं. आगामी कुछ वर्षों में यूरोप में कुछ इस्लामिक राष्ट्र बनेंगे जो इस्लामिक राष्ट्रों के कुनबे को आगे बढ़ाएंगे और राजनैतिक इस्लाम का लक्ष्य पूरा करेंगे.

फ्रांस हमेशा से मानवतावादियों की आड़ में वामपंथियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों का केंद्र रहा है और पूरी दुनिया में गढ़े जाने वाले झूठे विमर्शों की प्रयोगशाला भी रहा है. फ्रांस की तमाम सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने वाले यह कट्टरपंथी कोई काम धंधा नहीं करते. अधिक से अधिक फायदा उठाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से धार्मिकता और कट्टरता बढ़ाना ही इनका व्यवसाय हैं. देश से कोई लगाव न होने के कारण उन्हें सरकारी और मूल निवासियों की संपत्तियों को नष्ट करने में कोई हिचक नहीं होती. ऐसे मौकों पर “लूट की छूट” का फायदा भी सभी मिलकर उठाते हैं. कोई न कोई बहाना ढूंढ कर यह कट्टरपंथी समय समय पर अपनी एकता और शक्ति का परीक्षण भी करते रहते हैं. इस समय फ़्रांस में हो रही हिंसा, आगजनी, लूटपाट और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के पीछे 17 साल के एक व्यक्ति की पुलिस द्वारा गोली चलाए जाने से हुई मृत्यु एक कारण जरूर है लेकिन दंगो की तैयारी बहुत पहले से थी, केवल मौके का इंतजार था.

  1. ऐसे समय जब फैशन और संस्कृति के लिए जाना जाने वाला फ्रांस सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहा है, फ्रांस के एक मौलाना इमाम तौहीदी ने सितंबर 2022 में फ्रांस समेत पूरे यूरोप और पश्चिमी देशों को इस्‍लामिक चरमपंथ को लेकर आगाह किया था. मौलाना तौहीदी ने चरमपंथ, इस्‍लामवाद और राजनीतिक इस्‍लाम के बारे में विस्तार से बताया कि कितना बड़ा मजाक है कि इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) या इरानी सेना और उसके समर्थक सऊदी अरब तथा यूएई में अपना संचालन नहीं कर सकते हैं और न ही बैंक अकाउंट खोल सकते हैं. सभी चरमपंथी संगठन जैसे हेजबोल्‍ला, मुस्लिम ब्रदरहुड, भी बहरीन, ओमान, अबू धाबी में संचालित नहीं हो सकते लेकिन वे ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका, कनाडा और ऑस्‍ट्रेलिया जैसे देशों में अपनी गतिविधियां आसानी से चलाते हैं और बैंक अकाउंट भी खोल लेते हैं। फ्रांस सरकारों पर प्रहार करते हुए मौलाना ने कहा कि आप मुसलमान देशों से कूड़ा लेकर आते हैं। ऐसा कूड़ा, जिन्‍हें मुसलमान देश अपने यहां जेल में रखना चाहते हैं या फिर उन्‍हें समाज से अलग करके रखना चाहते हैं। सभी को याद रखना चाहिए कि इस्‍लामिक चरमपंथी काम नहीं करना चाहते. वे सभी मुफ्त की कल्‍याणकारी योजनाओं का फायदा उठाना चाहते हैं और फ्रेंच महिलाओं से शादी करके जनसँख्या बढाना चाहते हैं. उनके पास काम करने के लिए समय ही नहीं है।  
  2. मौलाना तौहीद ही नहीं, पिछले वर्ष यूएई के विदेशमंत्री शेख अब्‍दुल्‍ला बिन जायद अल-नाहन ने भविष्‍यवाणी की थी कि आने वाले समय में अमेरिका और यूरोप के देशों में कट्टरपंथियों और आतंकवादियों की संख्या कल्पना से परे होगी. ये सभी देश धर्मनिरपेक्षता, उदारवादिता और प्रगतिशीलता के नाम पर ऐसा आचरण करते हैं कि वे इस्लाम को हम लोगों (अरब) से ज्यादा समझते हैं और इस कारण वह अपने देश को सुरक्षित रखने की सही नीतियां नहीं बनाते, जिससे उनके अस्तित्व का संकट भी पैदा हो सकता है. यूएई के विदेशमंत्री का बयान इस मामले में भी बहुत महत्वपूर्ण है कि क्यों कोई भी मुस्लिम शरणार्थी इस्लामिक देशों या अरब देशों में अवैध घुसपैठ नहीं करता.  

फ्रांस ही नहीं दुनिया की सभी सरकारों के लिए मौलाना तौहीद और शेख अब्‍दुल्‍ला बिन जायद अल-नाहन के बयान बहुत बड़े संदेश है. जिन धार्मिक कृत्यों और इस्लामिक परंपराओं का पालन अरब देशों में भी नहीं किया जा रहा है, उन्हें चरमपंथी, जो अधिकांश धर्मान्तरित है, उन देशों में लागू करवाना चाहते हैं, जहाँ वह अवैध शरणार्थी, घुसपैठियों के रूप में पहुँचे हैं. कट्टरपंथ और सांप्रदायिक हिंसा इन चरमपंथियों का प्रमुख हथियार है जिससे वह सरकारों पर दबाव बनाकर अपने स्वार्थ के लिए विशेष कानून, व्यवस्था तथा वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने के लिए मजबूर कर देते हैं और समय समय पर विभिन्न राजनैतिक दलों के एक मुश्त वोट बैंक होने का अस्थायी स्वांग भी करते हैं.

भारत की स्थिति भी फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों से कम खतरनाक नहीं है. गाँधी और नेहरू की मुस्लिम परस्ती के कारण देश के विभाजन के बाद भी 3.5 करोड़ मुसलमानों को भारत में रोक लिया गया ताकि एकमुश्त वोटबैंक के रूप में उनका इस्तेमाल किया जा सके. इंदिरा गाँधी ने मुस्लिम तुष्टीकरण को और धार देते हुए 1971 में बांग्लादेश युद्ध के समय करोड़ों बांग्लादेशी शरणार्थियों को भारत में आने दिया किन्तु स्वतंत्र बांग्लादेश बन जाने के बाद भी कोई भी शरणार्थी वापस नहीं गया. भारत की भ्रष्ट राजशाही और केंद्र सरकार की अक्षमता के कारण बांग्लादेश सीमा पर अनवरत घुसपैठ जारी है. म्यांमार से भागे सभी रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश के रास्ते अवैध रूप से भारत में घुसकर विभिन्न शहरों में बस चुके हैं. वोटों के लालच में विभिन्न राज्य सरकारे इन घुसपैठियों के रहने खाने पीने की व्यवस्था भी कर रही हैं. मुफ्त राशन का एक बड़ा हिस्सा ये ही खा रहे हैं. केंद्र सरकार में इच्छाशक्ति के अभाव के कारण घुसपैठियों को बाहर करने के लिए बने एनआरसी कानून को अभी तक लागू नहीं किया जा सका है.

देश के कई हिस्सों में डेमोग्राफी का परिवर्तन बहुत तेज़ी से हो रहा है. मजारों और मस्ज़िदों की बाढ़ आ गई है. धर्मांतरण के लिए साम, दाम, दंड, भेद सभी तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. पीएफआई जैसे प्रतिबंधित संगठन 2047 तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं जिस पर तेजी से काम हो रहा है. छोटे छोटे मुद्दों पर सांप्रदायिक हिंसा खतरनाक होती जा रही है. हिंदुओं का कोई भी ऐसा त्यौहार नहीं बचा है, जिस पर कहीं न कहीं पत्थरबाजी की घटना न होती हो. देश के कई हिस्सों में हिंदू पलायन के लिये मजबूर हो रहे हैं इसके विपरीत राजनीतिक इस्लाम द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसा विमर्श बनाया जा रहा है कि भारत में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहे हैं. बराक ओबामा के साथ-साथ भारत को ठेके पर आजादी दिलाने का दावा करने वाली पार्टी भी इस षड्यंत्र में शामिल हैं. सीएए, एनआरसी और धारा 370 की तरह यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध शुरू हो गया है. यह सब समय समय पर अपनी शक्ति और सामर्थ्य आज़माने का रिहर्शल होता है. सरकार को सचेत हो जाना चाहिए और कड़े से कड़ा कानून बनाकर राष्ट्र की एकता अखंडता और अस्मिता अक्षुण रखने के अपने प्रथम उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहिए.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

ये लेख आज ही एक समाचार पत्र में छपा है -