हिंदू
साम्राज्य दिवस और हिंदवी स्वराज
आधुनिक भारत में छत्रपति शिवाजी
महाराज ने हिन्दू सम्राज्य को नए सिरे से पुनः स्थापित किया था और 1674 में
ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी तदनुसार 6 जून 1674 को महाराष्ट्र में पांच हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित
रायगढ़ किले में एक भव्य समारोह में शिवाजी का राज्याभिषेक किया गया था । प्रत्येक
वर्ष इस दिन को हिंदू साम्राज्य दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को हिन्दू साम्राज्य, संस्कृति, सभ्यता और
सौहार्द के प्रति जागरूक करना है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित कई हिंदूवादी
संगठन हर वर्ष इसे त्यौहार के रूप में मनाते हैं. जहाँ कुछ संगठन हिंदू पंचांग के
अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को मनाते हैं, वही पूरे भारत में प्रत्येक वर्ष 6
जून को बहुत उत्साह और गौरव पूर्वक मनाया जाता है। 4 अक्टूबर 1674 को शिवाजी ने
दूसरी बार छत्रपति की उपाधि ग्रहण की जिसमे उन्होंने हिंदवी स्वराज्य की स्थापना
का उदघोष करते हुए स्वतंत्र शासक के रूप में अपने नाम का सिक्का भी चलाया। इसके पश्चात् शिवाजी पूर्णरूप से छत्रपति अर्थात् एक प्रखर हिंदू
सम्राट के रूप में स्थापित हुए। शिवाजी ने
अनुशासित सेना व सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों के सहयोग से सुव्यवस्थित प्रशासन की
स्थापना की।
शिवाजी के राज्याभिषेक का भारत के
लिए अत्यंत महत्त्व है क्योंकि इसने सभी को भारत के हिंदू चरित्र और एक नए साम्राज्य के
उद्देश्य से परिचित कराया। सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि उस समय तक जो भी
हिंदू राजा थे उन्हें किसी मुस्लिम सम्राट ने ही यह उपाधि प्रदान की थी। मेवाड़ और
बुंदेलखंड को छोड़कर कोई भी राजा अपनी शक्ति सामर्थ्य के बल पर राजा नहीं था लेकिन इन दोनों राज्यों में संपूर्ण
भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने की दूर दृष्टि नहीं थी। इसलिए शिवाजी का
प्रसंग सर्वथा भिन्न है क्योंकि उन्होंने
न केवल अपने बलबूते दिल्ली सल्तनत को चुनौती देते हुए अपना राज्य स्थापित किया और
संपूर्ण भारत में हिंदवी स्वराज स्थापित करने के लिए निरंतर प्रयास किया।
शिवाजी उन प्रारंभिक शासकों में से एक थे
जिन्होंने समुद्री युद्ध की सर्वोच्च महत्ता को समझते हुए पश्चिमी तट पर दुर्गों
का निर्माण किया और समुद्री जहाजों का प्रयोग सेना और व्यापार दोनों के लिए किया. इसलिए
शिवाजी को भारतीय नौसेना का जनक माना जाता है. 15 से 50 वर्ष की आयु के मध्य उन्होंने
276 युद्ध लड़ें और उसमें से 268 में उनकी विजय हुई. आसानी से समझा जा सकता है कि
उनकी सफलता का प्रतिशत कितना अच्छा था. शिवाजी का कहना था कि मानसरोवर से लेकर
कन्याकुमारी तक और कन्याकुमारी से लेके ईरान तक यह राष्ट्र हमारा है और इसे हम
लेकर रहेंगे. अपना उद्देश्य प्राप्त करने के लिए उन्होंने उत्तर भारत के
सभी राजाओं महाराजाओं को एकजुट करने का
कार्य किया. सही अर्थों में मुगल साम्राज्य समाप्त करने का श्रेय क्षत्रपति शिवाजी
को ही है.
638 से 711 ई. के बीच
खलीफ़ाओं के निर्देश पर भारत पर 15 आक्रमण किए गए जिसमें 14 बार खलीफा की सेना को
बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा. 15 वां आक्रमण 711 में मोहम्मद बिन कासिम के
नेतृत्व में किया गया था, जिसे भी सिंध के राजा दाहिर ने परास्त कर दिया. मोहम्मद
बिन कासिम ने पुनः बड़ी सेना लेकर सिंध पर
आक्रमण किया। उसने राजा दाहिर के सिपहसलार
को यह लालच देकर अपने साथ मिल लिया कि युद्ध में विजय के बाद उसे सिंध का राजा बना
दिया जाएगा. राजा दाहिर ने सभी भारतीय राजाओं से मुस्लिम आक्रमण के विरुद्ध मदद
मांगी लेकिन अधिकांश राजाओं ने कोई सहायता नहीं की. मोहम्मद बिन कासिम ने राजा
दाहिर के विश्वासघाती सिपहसालार की सहायता से षड्यंत्र रचकर जीत हासिल की और बाद
में विश्वासघाती सिपहसलार को भी मार दिया. इस तरह भारत में इस्लामिक साम्राज्य की
स्थापना की नींव पड़ी. ग्यारहवीं शताब्दी तक दिल्ली पर इस्लामिक आक्रांताओं का
कब्जा हो गया. हजरत मोहम्मद की मृत्यु के बाद छह वर्षों के अंदर उनके
उत्तराधिकारियों ने सीरिया, मिस्र, उत्तरी अफ्रीका, स्पेन और ईरान को जीत लिया था,
जिसके पीछे बहशीपन, क्रूरता, विश्वासघात और धोखाधड़ी का महत्वपूर्ण योगदान था. सारे
षड्यंत्रों के बाद भी इस्लामिक जेहाद को दिल्ली तक पहुँचने में 400 वर्ष लग गए.
तलवार की दम पर पूरी दुनिया में फैल रहे इस्लाम का जब
भारतीय संस्कृति से सामना हुआ तो भारी खून खराबा और नरसंहार हुआ. अमेरिकी
इतिहासकार स्टैनले वोलपर्ट ने लिखा है कि इस्लाम और हिंदू धार्मिक जीवन शैली में
इतनी अधिक भिन्नता है कि इनके बीच शांति या सामंजस्य की कल्पना करना भी असंभव है. अनुमान
के अनुसार भारत में लगभग 8 करोड़ हिंदुओं का नरसंहार किया गया है जो मानव सभ्यता के
इतिहास में सर्वाधिक है। हिंदुस्तान ने
पहली बार ऐसे बाहरी हमलावरों को देखा था, जो मजहब के नाम पर लोगों का क़त्ल करते थे, महिलाओं का बलात्कार करते
थे और लूट-पाट करते थे. 1202 में तुर्क-अफगान हमलावरों ने बौद्ध धर्म के महान
केंद्र नालंदा पर हमला करके तहस-नहस कर दिया। नालंदा के महाविहार में रह रहे
हज़ारों बौद्ध भिक्षुओं का क़त्ल कर दिया गया और हजारों को अपनी जान बचाकर नेपाल और
तिब्बत भागना पड़ा। यह इस्लाम का ही असर था कि जिस मिट्टी में बौद्ध धर्म पैदा हुआ
था, वहीं से उसे देश निकाला दे दिया गया था।
पृथ्वीराज चौहान ने 17
बार मुहम्मद गौरी को युद्ध में परास्त किया था और भारतीय संस्कृति की महान
परंपराओं को ध्यान में रखते हुए लेकिन युद्धनीति और कूटनीति को अनदेखा करते हुए
क्षमा कर दिया था। अठारहवीं बार मुहम्मद
गौरी ने जयचंद की सहायता से पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में हरा दिया और बंदी बनाकर
अपने साथ ले गया. मोहम्मद गौरी के हाथों पृथ्वीराज की हार ने भारत में हिंदू
साम्राज्य और सनातन संस्कृति को पराभव के अंधे
मोड़ पर खड़ा कर दिया जिसने दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति,
वैज्ञानिकता पूर्ण जीवन शैली और ज्ञान के वैभव पर ग्रहण लगा दिया। कालांतर में यह
भारतीय इतिहास में अमानवीय क्रूरता, मजहबी कट्टरता और मानसिक संकीर्णता का निकृष्टतम काला
अध्याय साबित हुआ.
शिवाजी ने इतिहास की भूलों
से शिक्षा लेते हुए नया दृष्टिकोण अपनाया और कम संसाधनों के बाद भी, शक्तिशाली मुस्लिम
साम्राज्य से लोहा लेने के लिए छापा मार शैली का उपयोग किया और दिल्ली सल्तनत की
चूलें हिला कर अपना साम्राज्य स्थापित किया. यद्यपि छत्रपति शिवाजी
महाराज का कार्यकाल बहुत संक्षिप्त, केवल छह वर्ष के लिए 1674 से 1680 तक रहा लेकिन उन्होंने सार्वभौमिक सम्राट के रूप में
अपना दायित्व निभाया और साम्राज्य स्थापित करने के संघर्ष, सुचिता,
वीरता और नैतिकता के जो मापदंड स्थापित किये उसने कालांतर में भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक और
राजनैतिक दिशा तय कर दी जिसे इस्लामिक आक्रांता परिवर्तित करने का प्रयास कर रहे
थे.
मुस्लिम
आक्रांताओं ने इस देश को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए जितनी बर्बर कार्रवाइयां
की थी, तलवार के ज़ोर पर धर्मांतरण करने का प्रयास किया था और सनातन धर्मावलंबियों का
मान मर्दन किया था, जिससे उनके अंदर हीन ग्रंथि की भावना घर कर गयी थी. शिवाजी नें
इसे बाहर निकलने और नई ऊर्जा से नई दिशा देने का कार्य किया. उनकी युद्ध कला, रणनीतिक
कौशल ओर कूटनीतिक सफलता ने सनातन धर्म और
संस्कृति को संजीवनी देने का कार्य किया. जिस इस्लामिक जिहाद ने विश्व की अनेक
सभ्यताओं को निगल लिया था, वह भारत में अब तक पूरी तरह से सफल नहीं हो पायी है.
शिवाजी की मृत्यु के बाद हुई अनेक
घटनाओं से उनकी दूरदृष्टि और हिंदवी स्वराज की परिकल्पना को और अधिक रेखांकित किया. शिवाजी
की विरासत इतनी मजबूत थी कि उनकी मृत्यु के बाद स्वयं औरंगजेब को उनके राज्य पर
चढ़ाई करने के लिए आना पड़ा. मुगलों की क्रूरता के प्रत्युत्तर में प्रत्येक घर एक
किला और शारीरिक रूप से योग्य हर युवा हिंदवी स्वराज का सैनिक बन गया था। अप्रतिम वीरता
और छापामार पद्धति के नए सेनापति सामने आए, जिन्होंने
शत्रुओं की सेना पर जोरदार हमले किए। अपनी
विशाल सेना और सभी पारंगत योद्धाओं के बावजूद औरंगजेब को चार वर्ष तक चले लंबे
संघर्ष में आखिरकार हार का सामना करना पड़ा और औरंगजेब की मृत्यु भी वही हो गयी.
उसकी कब्र औरंगाबाद, जिसका नाम अब संभाजी नगर रख दिया गया
है, में ही बनी, जहाँ इस समय औरंगजेब की फोटो सिर पर रखकर एक धर्म विशेष
के लोग उत्पात मचा रहे हैं. औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही मुगलों के उत्कर्ष का भी
अंत हो गया। इस तरह हिंदवी स्वराज के चढ़ते
सूरज के साथ भगवा प्रभात का आगमन हुआ।
भारत
के धर्मांतरित इस्लाम को यह बात रास नहीं आई उन्होंने अफगानिस्तान के अब्दाली को
भारत पर हमले हेतु बुलाया, जिसके पश्चात 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठा
साम्राज्य की पराजय हुई लेकिन कुछ ही
वर्षों में मराठियों ने वापसी की ओर अटक से कटक तक भगवा परचम लहरा दिया एक प्रकार
से संपूर्ण भारतवर्ष छत्रपति शिवाजी द्वारा प्रतिपादित हिंदवी स्वराज्य की ओर बढ़ चला
था.
शिवाजी के राजनैतिक आदर्श आज भी प्रासंगिक है, और जब भारत में सनातन
धर्म और संस्कृति पर षड्यंत्र पूर्वक खतरे आज उत्पन्न किये जा रहे हैं, उनका
समाधान शिवाजी के आदर्शों से ही संभव है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा
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