रविवार, 9 जुलाई 2023

गज़वा-ए-हिंद में हिस्सेदारी

 

गज़वा-ए-हिंद में हिस्सेदारी

आखिर वहीं हुआ जिसका अंदेशा था. कर्नाटक में मिली अप्रत्याशित सफलता के बाद कांग्रेस ने खुलकर खेलना शुरू कर दिया है. मंत्रिमंडल ने अपनी बैठक में ऐसे फैसले लिए जिनसे जनसामान्य हतप्रभ है. धर्मांतरण कानून को वापस लेने का फैसला किया है. गोहत्या कानून पर मंथन हो रहा है कि इसे निष्प्रभावी किया जाए या पूरी तरह से वापस ले लिया जाए. चूंकि  मुस्लिम समुदाय इसे पूरी तरह से वापस लेने के लिए दबाव बना रहा है, इसलिए इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस कानून को भी पूरी तरह से अप्रसंगिक और निष्प्रभावी कर दिया जाएगा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख चेहरा केशव बलिराम हेडगेवार को शैक्षणिक पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया है. इसके साथ ही सभी स्कूलों में रोजाना प्रार्थना सभा में संविधान की प्रस्तावना पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया है.

भाजपा सरकार के इन फैसलों को पलटने के साथ ही कांग्रेस सरकार ने मुस्लिमों को बड़ा संदेश दे दिया है, जिनके 98% से भी अधिक मत पाकर कांग्रेस सरकार बनाने में सफल हुई है. कहने की आवश्यकता नहीं है कि धर्मांतरण का उद्देश्य भू जनसांख्यिकी बदल कर इस्लामिक देश की स्थापना करना है और यह बात किसी से भी छिपी नहीं है. वैसे तो कांग्रेस ने खुले तौर पर कर्नाटक की जनता को पांच गारंटी दी थी लेकिन परदे के पीछे एक समुदाय विशेष को कुछ और गारंटी दी थी. चुनाव में विजय के बाद मुस्लिम संगठनों ने कांग्रेस को इन गारंटियों की न केवल याद दिलाई थी बल्कि सत्ता में भागीदारी के लिए भी दबाव बनाया था. कांग्रेस ने समुदाय विशेष को गारन्टी को पूरा करने में विलंब भी नहीं किया. पूरे कर्नाटक में बुर्के का जश्न मनाया जा रहा है उससे लगता है कि शीघ्र ही कानून बना कर स्कूलों कॉलेजों और विश्वविद्यालय में बुर्का पहनने की खुली छूट दे दी जाएगी.

अगर छल कपट, गैर कानूनी और षड्यंत्रपूर्वक धर्मांतरण न किया जाए तो भला किसी को धर्मांतरण कानून से क्या परेशानी हो सकती है. इसलिए धर्मांतरण कानून समाप्त करने का उद्देश्य धर्मांतरण को बढ़ावा देने के अलावा और कुछ नहीं हो सकता. धर्मांतरण द्वारा जनसंख्या परिवर्तन और तदनुसार राष्ट्र परिवर्तन,  गज़वा-ए-हिंद का एक प्रमुख हथियार है. तो क्या कांग्रेस गज़वा-ए-हिंद में सहायता कर रही है या स्वयं भागीदारी कर रही है. इस परिपेक्ष्य में राहुल गाँधी की अमेरिका यात्रा को समझना बेहद आसान है, जिसमें उनकी सभाओं के रजिस्ट्रेशन मस्ज़िदों में किए गए, सभाओं में भाग लेने वालों के लिए बसें भी मस्ज़िदों ने उपलब्ध कराई, सभाओं के प्रायोजक वर्ग विशेष की कुख्यात संस्थाओं से जुड़े हुए थे. ये सभी कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अंतर्राष्ट्रीय वामपंथ-इस्लामिक गठजोड़ के संगठनों से संबद्ध हैं, जिनके तार पाकिस्तान और अफगानिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों से भी जुड़े हुए हैं. ये चीन और अरब देशों से फंडिंग प्राप्त करके भारत और सनातन संस्कृति के विरुद्ध विदेशों में अभियान चला रहे हैं. प्रत्यक्ष रूप से ये सभी संगठन भारत के गज़वा ए हिंद को गति प्रदान करते हैं. भारत में वर्ग विशेष द्वारा बहुसंख्यकों के प्रति की जाने वाली हिंसा, हिंदू विरोधी, संविधान विरोधी, गैरकानूनी और आतंकवादी गतिविधियों को ढकने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदू विरोधी और भारत विरोधी अभियान चलाते हैं. ये सभी अंतरराष्ट्रीय सोशल मीडिया पर भारतीय मुसलमानों के लिए विक्टिम कार्ड भी खेलते हैं.

आज इन संगठनों के अतिरिक्त विश्व के अनेक संगठन हैं  जो जॉर्ज सोरोस जैसे धनकुबेरों से वित्तीय सहायता लेकर मोदी को हटाने का षडयंत्र रच रहे हैं. ऐसे समय में जब मोदी को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने वाला हिंदू समुदाय, मोदी से हताश भी है और नाराज भी, 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति को अत्यधिक कमजोर नजर आती है. दुर्भाग्य से भाजपा इस ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रही है और केवल विकास के सहारे एक बार फिर 2024 के लोकसभा चुनावों की वैतरणी पार करने की कोशिश कर रही है, जो बेहद खतरनाक और आत्मघाती है. अगर २०२४ भाजपा की सरकार नहीं बन पाती है तो भाजपा सहित देश के लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण होगा और शायद सनातन संस्कृति को बचाने का अंतिम प्रयास भी विफल हो जाएगा. इसलिए भाजपा को तो इस पर विचार करना ही होगा किन्तु भाजपा से नाराज समर्थकों और कार्यकर्ताओं को भी राष्ट्रहित में पुनर्विचार करना चाहिए.

कर्नाटक में लोगों को अब भाजपा सरकार याद आ रही है, जिसे उसने हाल के चुनाव में बुरी तरह से हराया था. भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं को भी अब चुनाव में भाजपा के लिए समुचित मेहनत न करने का पछतावा हो रहा है लेकिन अब पछताने और दुख करने से कोई लाभ नहीं. पता नहीं भाजपा को भी अपनी गलतियों पर पछतावा हो रहा है या नहीं. भाजपा को लोगों की आकांक्षाएं पूरा करने के लिए कटिबद्धता और समय सीमा के लिए निश्चित रूप से कांग्रेस से सीखने की जरूरत है. भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बसव राज बोम्मई ने कर्नाटक में सरकार के नियंत्रण वाले सभी मंदिरों को मुक्त करने की घोषणा की थी, जो संभवत: वरिष्ठ नेताओं के दबाव में नहीं किया जा सका. अगर मंदिर मुक्ति का कानून भी बना दिया गया होता तो कर्नाटक में भाजपा किसी भी कीमत पर चुनाव नहीं हारती. भाजपा पता नहीं किसी हीन ग्रंथि का शिकार है या किसी से भयग्रस्त रहती है कि वह हमेशा रक्षात्मक ढंग से काम करती है. केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार तो केंद्रीय कानून बनाकर सभी राज्यों में सरकार के नियंत्रण वाले मंदिरों को मुक्ति कर सकती थी और इसमें किसी भी दूसरे संप्रदाय के लोगों को आपत्ति भी नहीं हो सकती थी, फिर भाजपा ने ये क्यों नहीं किया, समझ में न आने वाली बात है. भाजपा की वर्तमान पूर्ण बहुमत वाली सरकार की तुलना अगर 1991 की  पी वी नरसिम्हा राव की अल्पमत सरकार से की जाए तो भाजपा और कांग्रेस की कार्यशैली का अंतर स्पष्ट हो जाता है. नरसिम्हा राव सरकार ने अल्पमत में होते हुए भी पूजा स्थल विधेयक कानून बना कर समूचे हिंदू समाज और सनातन संस्कृति के हाथ पैर बांध दिए. वक्फ बोर्ड का ऐसा कानून बना दिया जो कभी भी कहीं भी किसी की भी संपत्ति हड़प सकता है. अल्पसंख्यक आयोग को संवैधानिक दर्जा भी दे दिया गया. उस समय 120 सांसदों के साथ भाजपा मुख्य विपक्ष की भूमिका में थी, कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी सदन में थे. पीवी नरसिम्हाराव अटल बिहारी वाजपेयी को अपना गुरु मानते थे. इसलिए आज भी कोई यह नहीं समझ पा रहा है कि ये तीनों राष्ट्रविरोधी और सनातन विरोधी कानून, बेहद खतरनाक प्रावधानो के साथ कैसे पास होने दिए गए, जबकि आज छोटी छोटी पार्टियां हफ्तों सदन नहीं चलने देती और पूर्ण बहुमत की सरकार असहाय बनी रहती है.

पूर्ण बहुमत की यह भाजपा सरकार पिछले 10 साल से कार्य कर रही है लेकिन एक भी साहसिक कदम को पूरी निष्ठा और कर्तव्यबोध के साथ आगे नहीं बढ़ा सकी है. धारा 370 हटाने का कदम निश्चित रूप से बेहद साहसिक और प्रशंसनीय है लेकिन बाद में स्थायी निवासी होने तथा संपत्ति खरीदने के लिए 15 साल निवास की अनिवार्यता ने आशाओं पर तुषारापात कर दिया. सीएए और एनआरसी कानून ने सभी राष्ट्रवादियों में नए उत्साह का संचार कर दिया लेकिन एक शाहीन बाग से घबराकर सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया जिससे राष्ट्रवादियों का मनोबल  टूट गया. पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं की अनदेखी और उन्हें उनके हाल पर हिंसा का शिकार होने के लिए छोड़ देने से कार्यकर्ता भी नाराज हुए और समर्थक भी. जिसका परिणाम कर्नाटक की बुरी हार के रूप में सामने आया.

गाँधी और नेहरू दोनों ही मुस्लिम प्रेमी थे. गाँधी को साउथ अफ्रीका में ही ये प्रेम रोग हो गया था और नेहरू के तो जैसे खून में ही यह प्रेम था. इसलिए स्वतंत्रता के बाद षड्यंत्रपूर्वक जनसंख्या की अदला बदली नहीं की गई बल्कि नेहरू ने राष्ट्र की कीमत पर मुस्लिमों  के पक्ष में और हिंदुओं के विरुद्ध सुनियोजित षडयंत्र किए. बाद की कांग्रेसी सरकारों ने भी मुस्लिम तुष्टिकरण की नई नई परिभाषाएं गढ़ी और क्षेत्रीय दल तो मानो मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए ही गठित किए गए हैं. आज पूरे देश में धर्मांतरण अपने चरम पर है. लव जिहाद, जमीन जिहाद, जनसंख्या जिहाद, और घुसपैठ जिहाद पूरे ज़ोर शोर से बिना किसी भय बाधा के चल रहा है. इनका विरोध कर रहे लोगों को फिरकापरस्त सांप्रदायिक और दक्षिणपंथी करार दिया जा रहा है.  धीरे धीरे गृहयुद्ध जैसे हालात बनते जा रहे हैं. भाजपा की जो सरकार शाहीन बाग, किसान आंदोलन यहाँ तक कि पहलवान आंदोलन को भी रोकने में सफल नहीं हो सकी, उसने उत्तरकाशी में लव जिहाद, जमीन जिहाद और जनसंख्या परिवर्तन के खतरों पर विचार विमर्श के लिए होने वाली महापंचायत को सख्ती से रोक दिया है. पूरा देश आज रोहिंग्याओं और  अवैध घुसपैठियों अपने घेर रखा है. रेलवे ट्रैक के किनारे अवैध झुग्गियां बनी हुई है जिससे रेलवे ट्रैक को किसी भी समय रोका जा सकता है, जिससे यात्री और कारोबार से सेना आवागमन भी निरुद्ध किया जा सकता है. अवैध बाजारों और झुग्गी झोपड़ियों ने हवाई अड्डे की चारदीवारियों को भी घेर रखा है. पूरा परिदृश्य बेहद खतरनाक नजर आता है और ऐसे में पूर्ण बहुमत की सरकार से अपेक्षा है कि वह  उन लोगों का विश्वास और दिल जीतने का प्रयास करें जिससे उसे सत्ता के शिखर पर पहुंचाया है ताकि न केवल राष्ट्र की एकता अखंडता बल्कि भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति की रक्षा की जा सके.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

 

 

 


 

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