रविवार, 9 जुलाई 2023

जल रहे फ्रांस से भारत को सबक

 


कुछ वर्ष पहले एक एक तस्वीर वायरल हुई थी, जिसने पूरी दुनिया को झकझोर दिया था. इस तस्वीर में एक तीन वर्षीय बच्चे का मृत शरीर औंधे मुँह तुर्की के बोडरम समुद्र तट पर पड़ा था. सभी ने समवेत स्वर में इसे मानवता को शर्मसार करने वाला बताया था. सामने आई जानकारी के अनुसार एलन नाम के इस बच्चे के माता पिता अपने परिवार के साथ सीरिया के गृहयुद्ध से भयभीत होकर किसी यूरोपीय देश में शरण लेने के लिए निकले थे लेकिन किसी देश ने उन्हें घुसने नहीं दिया और उनकी नाव समुद्र में डूब गई जिसमे बच्चे के पिता के अलावा सभी सदस्य समुद्र में डूब गए थे. उस समय किसी ने भी इस तस्वीर के पीछे छिपी सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की और जो जानते थे उन्होंने उजागर नहीं की. इस्लामिक वामपंथ गठजोड़ के तथाकथित उदारवादियों ने मानवाधिकार के नाम पर ज़ोर शोर से पूरे विश्व में झूठे विमर्श गढ़े. उनके प्रभाव में आकर लगभग हर देश की मीडिया ने उदारपंथियों के झूठे षडयंत्र आधारित विमर्श को आगे बढ़ाने का काम किया. परिणामस्वरूप विश्व के ज्यादातर देशों ने विशेषतय: यूरोपीय देशों ने अपने दरवाजे मुस्लिम शरणार्थियों के लिए खोल दिये. इस तथ्य से बहुत कम लोग परिचित होंगे कि मामला मानव तस्करी का था और पूरा पैसा न मिलने के कारण तस्करों ने ही नाव को बीच समुद्र में डुबो दिया था. तुर्की में इन मानव तस्करों को 125 वर्ष की सजा सुनाई गई है. इस बीच झूठे विमर्श के सहारे कई यूरोपीय देशों में अवैध मुस्लिम अप्रवासियों को स्थापित कर दिया गया जो आज यूरोप की सबसे बड़ी समस्या है.

अकेले जर्मनी ने एक झटके से 10 लाख सीरियाई शरणार्थियों को अपने देश में स्वीकार करके उनके कल्याण के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई. जर्मनी ने अपने तटरक्षक जहाज का नाम भी मृत लड़के के नाम एलन रखा. जर्मनी की ही तरह यूरोप के विभिन्न देशों ने अरब देशों से आए विभिन्न मुस्लिम शरणार्थियों को अपने यहाँ जगह दी इनमें फ्रांस अग्रणी था. इन देशों ने कर दाताओं के पैसे से उनके लिए हर तरह की सुख सुविधाओं का इंतजाम किया लेकिन अरब देशों से शरणार्थियों के आने का सिलसिला कभी नहीं रुका. आज भी इटली सहित अन्य यूरोपीय देशों में कथित मुस्लिम शरणार्थियों के आने का सिलसिला जारी है. फ्रांस की समस्या का कारण भी अवैध मुस्लिम अप्रवासी हैं जिन्हें स्वयं सरकार ने अपने यहाँ शरण दी या अरब देशों से लाकर बसाया. इसके पीछे सस्ते मजदूर और वोट बैंक की राजनीति प्रमुख कारण है. फ्रांस सहित ज्यादातर यूरोपीय देशों इन प्रवासी मुस्लिमों के लिए मस्जिदे भी सरकारी खर्चे पर बनवाई. कालांतर में यही कट्टरपंथी यूरोपीय देशों में राष्ट्रांतरण का कारण बन रहे हैं. आगामी कुछ वर्षों में यूरोप में कुछ इस्लामिक राष्ट्र बनेंगे जो इस्लामिक राष्ट्रों के कुनबे को आगे बढ़ाएंगे और राजनैतिक इस्लाम का लक्ष्य पूरा करेंगे.

फ्रांस हमेशा से मानवतावादियों की आड़ में वामपंथियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों का केंद्र रहा है और पूरी दुनिया में गढ़े जाने वाले झूठे विमर्शों की प्रयोगशाला भी रहा है. फ्रांस की तमाम सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने वाले यह कट्टरपंथी कोई काम धंधा नहीं करते. अधिक से अधिक फायदा उठाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के उद्देश्य से धार्मिकता और कट्टरता बढ़ाना ही इनका व्यवसाय हैं. देश से कोई लगाव न होने के कारण उन्हें सरकारी और मूल निवासियों की संपत्तियों को नष्ट करने में कोई हिचक नहीं होती. ऐसे मौकों पर “लूट की छूट” का फायदा भी सभी मिलकर उठाते हैं. कोई न कोई बहाना ढूंढ कर यह कट्टरपंथी समय समय पर अपनी एकता और शक्ति का परीक्षण भी करते रहते हैं. इस समय फ़्रांस में हो रही हिंसा, आगजनी, लूटपाट और सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के पीछे 17 साल के एक व्यक्ति की पुलिस द्वारा गोली चलाए जाने से हुई मृत्यु एक कारण जरूर है लेकिन दंगो की तैयारी बहुत पहले से थी, केवल मौके का इंतजार था.

  1. ऐसे समय जब फैशन और संस्कृति के लिए जाना जाने वाला फ्रांस सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहा है, फ्रांस के एक मौलाना इमाम तौहीदी ने सितंबर 2022 में फ्रांस समेत पूरे यूरोप और पश्चिमी देशों को इस्‍लामिक चरमपंथ को लेकर आगाह किया था. मौलाना तौहीदी ने चरमपंथ, इस्‍लामवाद और राजनीतिक इस्‍लाम के बारे में विस्तार से बताया कि कितना बड़ा मजाक है कि इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) या इरानी सेना और उसके समर्थक सऊदी अरब तथा यूएई में अपना संचालन नहीं कर सकते हैं और न ही बैंक अकाउंट खोल सकते हैं. सभी चरमपंथी संगठन जैसे हेजबोल्‍ला, मुस्लिम ब्रदरहुड, भी बहरीन, ओमान, अबू धाबी में संचालित नहीं हो सकते लेकिन वे ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका, कनाडा और ऑस्‍ट्रेलिया जैसे देशों में अपनी गतिविधियां आसानी से चलाते हैं और बैंक अकाउंट भी खोल लेते हैं। फ्रांस सरकारों पर प्रहार करते हुए मौलाना ने कहा कि आप मुसलमान देशों से कूड़ा लेकर आते हैं। ऐसा कूड़ा, जिन्‍हें मुसलमान देश अपने यहां जेल में रखना चाहते हैं या फिर उन्‍हें समाज से अलग करके रखना चाहते हैं। सभी को याद रखना चाहिए कि इस्‍लामिक चरमपंथी काम नहीं करना चाहते. वे सभी मुफ्त की कल्‍याणकारी योजनाओं का फायदा उठाना चाहते हैं और फ्रेंच महिलाओं से शादी करके जनसँख्या बढाना चाहते हैं. उनके पास काम करने के लिए समय ही नहीं है।  
  2. मौलाना तौहीद ही नहीं, पिछले वर्ष यूएई के विदेशमंत्री शेख अब्‍दुल्‍ला बिन जायद अल-नाहन ने भविष्‍यवाणी की थी कि आने वाले समय में अमेरिका और यूरोप के देशों में कट्टरपंथियों और आतंकवादियों की संख्या कल्पना से परे होगी. ये सभी देश धर्मनिरपेक्षता, उदारवादिता और प्रगतिशीलता के नाम पर ऐसा आचरण करते हैं कि वे इस्लाम को हम लोगों (अरब) से ज्यादा समझते हैं और इस कारण वह अपने देश को सुरक्षित रखने की सही नीतियां नहीं बनाते, जिससे उनके अस्तित्व का संकट भी पैदा हो सकता है. यूएई के विदेशमंत्री का बयान इस मामले में भी बहुत महत्वपूर्ण है कि क्यों कोई भी मुस्लिम शरणार्थी इस्लामिक देशों या अरब देशों में अवैध घुसपैठ नहीं करता.  

फ्रांस ही नहीं दुनिया की सभी सरकारों के लिए मौलाना तौहीद और शेख अब्‍दुल्‍ला बिन जायद अल-नाहन के बयान बहुत बड़े संदेश है. जिन धार्मिक कृत्यों और इस्लामिक परंपराओं का पालन अरब देशों में भी नहीं किया जा रहा है, उन्हें चरमपंथी, जो अधिकांश धर्मान्तरित है, उन देशों में लागू करवाना चाहते हैं, जहाँ वह अवैध शरणार्थी, घुसपैठियों के रूप में पहुँचे हैं. कट्टरपंथ और सांप्रदायिक हिंसा इन चरमपंथियों का प्रमुख हथियार है जिससे वह सरकारों पर दबाव बनाकर अपने स्वार्थ के लिए विशेष कानून, व्यवस्था तथा वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने के लिए मजबूर कर देते हैं और समय समय पर विभिन्न राजनैतिक दलों के एक मुश्त वोट बैंक होने का अस्थायी स्वांग भी करते हैं.

भारत की स्थिति भी फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों से कम खतरनाक नहीं है. गाँधी और नेहरू की मुस्लिम परस्ती के कारण देश के विभाजन के बाद भी 3.5 करोड़ मुसलमानों को भारत में रोक लिया गया ताकि एकमुश्त वोटबैंक के रूप में उनका इस्तेमाल किया जा सके. इंदिरा गाँधी ने मुस्लिम तुष्टीकरण को और धार देते हुए 1971 में बांग्लादेश युद्ध के समय करोड़ों बांग्लादेशी शरणार्थियों को भारत में आने दिया किन्तु स्वतंत्र बांग्लादेश बन जाने के बाद भी कोई भी शरणार्थी वापस नहीं गया. भारत की भ्रष्ट राजशाही और केंद्र सरकार की अक्षमता के कारण बांग्लादेश सीमा पर अनवरत घुसपैठ जारी है. म्यांमार से भागे सभी रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश के रास्ते अवैध रूप से भारत में घुसकर विभिन्न शहरों में बस चुके हैं. वोटों के लालच में विभिन्न राज्य सरकारे इन घुसपैठियों के रहने खाने पीने की व्यवस्था भी कर रही हैं. मुफ्त राशन का एक बड़ा हिस्सा ये ही खा रहे हैं. केंद्र सरकार में इच्छाशक्ति के अभाव के कारण घुसपैठियों को बाहर करने के लिए बने एनआरसी कानून को अभी तक लागू नहीं किया जा सका है.

देश के कई हिस्सों में डेमोग्राफी का परिवर्तन बहुत तेज़ी से हो रहा है. मजारों और मस्ज़िदों की बाढ़ आ गई है. धर्मांतरण के लिए साम, दाम, दंड, भेद सभी तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. पीएफआई जैसे प्रतिबंधित संगठन 2047 तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं जिस पर तेजी से काम हो रहा है. छोटे छोटे मुद्दों पर सांप्रदायिक हिंसा खतरनाक होती जा रही है. हिंदुओं का कोई भी ऐसा त्यौहार नहीं बचा है, जिस पर कहीं न कहीं पत्थरबाजी की घटना न होती हो. देश के कई हिस्सों में हिंदू पलायन के लिये मजबूर हो रहे हैं इसके विपरीत राजनीतिक इस्लाम द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसा विमर्श बनाया जा रहा है कि भारत में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहे हैं. बराक ओबामा के साथ-साथ भारत को ठेके पर आजादी दिलाने का दावा करने वाली पार्टी भी इस षड्यंत्र में शामिल हैं. सीएए, एनआरसी और धारा 370 की तरह यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध शुरू हो गया है. यह सब समय समय पर अपनी शक्ति और सामर्थ्य आज़माने का रिहर्शल होता है. सरकार को सचेत हो जाना चाहिए और कड़े से कड़ा कानून बनाकर राष्ट्र की एकता अखंडता और अस्मिता अक्षुण रखने के अपने प्रथम उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहिए.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

ये लेख आज ही एक समाचार पत्र में छपा है -

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