रविवार, 9 जुलाई 2023

भारत अमेरिका संबंधों पर इस्लामिक दुष्प्रभाव

 

भारत अमेरिका संबंधों पर इस्लामिक दुष्प्रभाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा आशा के अनुकूल ही  रही. उन्होंने अपने कार्यकाल में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और विदेश नीति को एक नया आयाम दिया है. वैश्विक राजनेताओं से व्यक्तिगत संबंध बनाने में भारत में आज तक मोदी जैसा कोई नहीं हुआ. नेहरू ने इस दिशा में प्रयास जरूर किए लेकिन उनके प्रयास देश की बजाय अपने आप को अंतरराष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित करने के लिए ज्यादा थे. यह भी कहना अनुचित नहीं होगा कि वैश्विक राजनेताओं की कतार में अपने आप को खड़ा करने के लिये कई बार उन्होंने राष्ट्रीय हितों की बलि चढ़ाने में भी संकोच नहीं किया. 

नेहरू के बाद भारत की विदेशनीति उनके द्वारा खींची गई लाइन के अंदर ही चलती रही जो कहने के लिए तो गुटनिरपेक्ष थी लेकिन सोवियत रूस के नज़दीक थी. बाद में इंदिरा गाँधी ने नेहरू के कदमों पर ही आगे बढ़ती रही. उसके बाद केवल मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी को ही दो बार का कार्यकाल मिला. मनमोहन सिंह के पास अपना राजनैतिक सामर्थ्य नहीं था, इसलिए उनमें आत्मविश्वास की भयंकर कमी थी. स्वाभाविक रूप से वह राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप नहीं छोड़ सके. मोदी ने प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह से लेकर अब तक अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और वैश्विक राजनेताओं से संबंध बढ़ाने की दिशा में तेज और महत्वपूर्ण कदम उठाए, जिसकी की प्रशंसा की जानी चाहिए.

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और उनकी पत्नी जिल बाइडन के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की राजकीय यात्रा पर हैं. अमेरिका में जहाँ कहीं वह जाते हैं, वह स्थान मोदीमय हो जाता है. मोदी मोदी  के नारे उनके स्वागत का स्लोगन बन गया है. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर 21 जून को उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय में 100 से अधिक देशों को योगाभ्यास में शामिल कर के एक नया कीर्तिमान रच दिया. अमेरिका में उनका जैसा भव्य स्वागत किया गया, और राष्ट्रपति जो वाइडन  और उनकी पत्नी जिल वाइडन जिस गर्मजोशी से उनका स्वागत किया, वह हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है, विशेष रूप से अमेरिका में बसे भारतीयों के लिए जिन्हें व्हाइट हाउस में इतनी बड़ी संख्या में जाने का मौका संभवतः पहली बार मिला होगा.

भारत में राजनीति का स्तर इतना गिर चुका है कि कांग्रेस ने कहा कि नेहरू का स्वागत मोदी से कहीं ज्यादा गर्म जोशी और भव्य तरीके  से किया गया था. इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि उन्होंने इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी और मनमोहन सिंह के कार्यकाल के लगभग 26 वर्ष अमेरिकी संबंधों के हिसाब से निरर्थक सिद्ध कर दिये. अन्य विपक्षी दलों ने भी कहा कि जब मणिपुर जल रहा है तो प्रधानमंत्री विदेश में जाकर यशोगान करवा रहे हैं. छुद्र राजनीति करने वाले यह भी भूल जाते हैं कि आज  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा पर पूरी दुनिया की नजर है। भारत और अमेरिकी संबंधों में मोदी की यह यात्रा मील का पत्थर साबित होंगी, जिसमे कई रक्षा सौदों, अंतरिक्ष में सहयोग, स्वास्थ्य, ड्रोन तकनीक, भारत में जेट इंजन का निर्माण और तकनीक हस्तांतरण, भारतीयों के लिए वीजा में  ढील तथा दो नए वाणिज्य दूतावास खोला जाना आदि शामिल है.

अमेरिकी मीडिया ने भी  मोदी की यात्रा को बहुत अधिक महत्त्व देते हुए मोदी और भारत अमेरिका संबंधों पर लंबे लंबे लेख प्रकाशित किए हैं. मोदी की मुखर आलोचना करने वाले  अमेरिकी समाचार पत्रों - वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स, आदि ने भी  मोदी की तारीफ में लेख लिखें. न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट, सीएनएन जैसे प्रमुख मीडिया संस्थानों ने पीएम मोदी के अमेरिका दौरे को लेकर काफी विस्तार से लिखा है।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ साथ  सबसे ज्यादा आबादी वाला देश भी है। ऐसे में  जलवायु परिवर्तन से लेकर प्रौद्योगिकी में प्रगति तक किसी भी बड़ी वैश्विक चुनौती को भारत की भागीदारी के बिना संबोधित नहीं किया जा सकता है। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव के दौर में, अमेरिका को भारत से बहुत उम्मीदें भी है। मोदी से मीटिंग के ठीक पहले, बाइडन ने शी जिनपिंग को तानाशाह करार दिया जो दर्शाता है कि चीन को लेकर अमेरिका की नीति बदल रही है। मोदी का भी ये दौरा चीन के लिए भी एक बड़ा संदेश है कि उसकी विस्तारवादी नीति किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं की जा सकती.

अमेरिका में जब मोदी का ज़ोरदार स्वागत हो रहा है, हर जगह मोदी मोदी का स्वर गूंज रहा है, इसके बीच इस यात्रा के विरोध में भी कुछ सुर सुनाई दिए, जिसका अंदेशा पहले से ही था, क्योंकि राहुल गांधी ने ही अपनी अमेरिका यात्रा में ही इसकी पटकथा लिखी थी. अमेरिका मोदी की यात्रा के लिए पिछले छह महीने से तैयारी कर रहा था और यात्रा से कुछ समय पहले ही राहुल गाँधी ने अमेरिका जाकर माहौल को इस तरह विषाक्त करने की कोशिश की जिससे न केवल मोदी को मुस्लिम विरोधी आरोपित किया जाए बल्कि यह भी संदेश देने की कोशिश की जाए कि भारत में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में लगभग 98% मुस्लिम मत पाकर जीती कांग्रेस यही मॉडल राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, मिज़ोरम और तेलंगाना तथा 2024 के लोकसभा चुनाव में दोहराना चाहती है. इसी परिपेक्ष में अमेरिका में राहुल की सभाओं का आयोजन जिन लोगों ने किया उनमें अधिकतर ऐसे कट्टरपंथी व्यक्ति और संस्थाएँ थी, जिनका संबंध अफगानिस्तान, पाकिस्तान, आईएसआई तथा आतंकवादी संगठनों से था. राहुल की सभाओं में भाग लेने के लिए रजिस्ट्रेशन मस्ज़िदों में किया गया था और मस्ज़िदों के बाहर ही सभा स्थल तक ले जाने के लिए बसें खड़ी की गयी थी, जिनके द्वारा मुफ्त यात्रा की व्यवस्था की गयी थी. राहुल की सभाओं में कई ऐसे कुख्यात व्यक्ति भी देखे गए थे, जिनके नाम तो हिंदू थे लेकिन वास्तव में वह अंतर्राष्ट्रीय वामपंथ इस्लामिक गठजोड़ के लिए काम करते हैं, और इसलिए भारत विरोध, मोदी विरोध  हमेशा उनका स्वाभाविक एजेंडा होता है.

इनमें से कुछ लोग ही मोदी की अमेरिका यात्रा का विरोध कर सके. अमेरिकी संसद की दो मुस्लिम महिला सांसदों ने पहले से ही घोषणा कर दी थी  कि वह मोदी के संबोधन का बहिष्कार करेंगी. वाइडन प्रशासन के पुख्ता इंतजाम के चलते मोदी विरोध अधिकतर सोशल मीडिया तक ही सीमित रहा, इसलिए जॉर्ज सोरेस के साजिश गैंग  ने आनन फानन में मोदी मीटिंग के ठीक पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा से एक इंटरव्यू किया जिसमें बराक ओबामा ने कहा कि यदि वह राष्ट्रपति होते  और उनकी मुलाकात मोदी से होती तो वह निश्चित रूप से भारत में मुसलमानों की सुरक्षा का मुद्दा उठाते. भारत में तो हम हामिद अंसारी को ही कोसते हैं लेकिन बराक ओबामा ने सिद्ध कर दिया कौम की आवाज उठाने के लिए वे भी टूलकिट गैंग के साथ हैं. यह सब रेखांकित करता है कि राजनैतिक इस्लाम अन्तराष्ट्रीय स्तर पर कितना प्रभावी और साधन संपन्न है कि यह झूठ को सच और सच को झूठ साबित कर सकता है. इसके लिए वे जिस किसी देश को इस्लामीकरण के लिए चुनते हैं, उसके लिए विमर्श बनाते हैं कि वहां मुसलमानों के साथ अत्याचार हो रहा है और उस देश में  मुसलमानों द्वारा की जाने वाली हिंसा, अराजकता और धर्मान्तरण के खेल को ढंकने का काम किया जाता है.    

कितनी बड़ी विडंबना है कि भारत में बहुसंख्यक हिंदू त्रस्त है. उन्हें सामान्य संवैधानिक अधिकार भी प्राप्त नहीं है जबकि मुस्लिमों को विशेषाधिकार प्राप्त हैं. गज़वा ए हिंद की योजना पर बड़ी तेजी से काम किया जा रहा है. लवजेहाद, अब जबरन जेहाद बनता जा रहा है, न जाने कितनी श्रद्धा और साक्षी फ्रिज और बोरों में भरी जा रही है. सरकार भी वर्ग विशेष के सामने असहाय नजर आती है.  इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत में कोई और नहीं, हिंदू ही असुरक्षित है लेकिन  कांग्रेस सत्ता पाने के लिए कुछ भी कर सकती है, देश को तोड़ सकती है और देश को बेच सकती है.   

भारत और अमेरिका के बढ़ते सम्बन्ध समय की आवश्यकता है जिसमे मोदी ने उत्प्रेरक की भूमिका अदा की लेकिन उन्होंने भारत के पुराने मित्र रूस को है न तो  नाराज़ किया, और  न ही  नजरंदाज. भारत पश्चिमी देशों के विरोध के बावजूद रूस से कच्चे तेल की खरीद कर रहा है और जरूरत पड़ने पर दोस्त का फर्ज अदा कर रहा है. लेकिन इस यात्रा से पाकिस्तान और चीन से अधिक भारत के विपक्षी दल परेशान हैं. कांग्रेस को लगता है की मोदी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण उनको सत्ता से हटा पाना मुश्किल हैं इसलिए वह देश विरोधी हथकंडे अपना रही है. राष्ट्र की अस्मिता एकता और अखंडता से समझौता करने वाले किसी  भी राजनैतिक दल को लोकतांत्रिक पद्धति से सत्ता प्राप्त नहीं हो सकती. इसलिए सभी राजनीतिक दलों को वर्तमान स्थिति पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और राजनीति को व्यवसाय नहीं बनाना चाहिए.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~

 

 

 


 

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