शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

वीर सावरकर नायक या खलनायक

 

वीर सावरकर नायक या खलनायक  


                     (अंडमान सेलुलर जेल फोटो स्वयं )

                  ( सेलुलर जेल में वीर सावरकर की कोठारी) 

वीर सावरकर का नाम एक बार फिर विवादों में घसीटा जा रहा है, जिसकी  शुरुआत “अंतिम जन पत्रिका” में उनकी प्रशंसा में छपे लेखों के बाद शुरू हुई जिसके संपादक भाजपा नेता विजय गोयल हैं. अमृत महोत्सव में हर घर तिरंगा अभियान के दौरान कर्नाटक के सिमोगा में वीर सावरकर के पोस्टर लगाने पर उन्हें सांप्रदायिक विवाद का केंद्र बिंदु बनाने की कोशिश की गयी. मुस्लिम उग्रवादी तत्वों द्वारा सावरकर के पोस्टरों को हटाकर टीपू सुल्तान के पोस्टर लगाए गए, जिससे इस विवाद ने सांप्रदायिक मोड़ ले लिया. वीर सावरकर और टीपू सुल्तान के बीच कोई तुलना नहीं हो सकती क्योंकि जहाँ वीर सावरकर प्रखर  राष्ट्रवादी, महान विचारक, लेखक तथा महान स्वतंत्रता सेनानी थे, वही टीपू सुल्तान घोर सांप्रदायिक और कट्टर मुसलमान था जिसने लाखों हिंदुओं की हत्याएं की और जबरन धर्मांतरण करवाया तथा आतंक का राज्य कायम किया.

कर्नाटक में पिछले काफी दिनों से किसी न किसी कारण साम्प्रदायिक वातावरण बनाने की कोशिश हो  रही है.यहाँ कई क्षेत्र पीएफआई जैसे कट्टर वादी संगठनों की प्रयोगशाला बन गये हैं, जो हर समय  सांप्रदायिक हिंसा फैलाने की कोशिश में लगे रहते हैं. इसके लिए एआईएमआईएम जैसी सांप्रदायिक पार्टियों का समर्थन मिलना तो बहुत स्वाभाविक है लेकिन कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल का इसे राजनीतिक समर्थन देना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. शायद कांग्रेस को नहीं मालूम कि अब वह दिन नहीं रहे जब वह एक वर्ग विशेष का तुष्टीकरण करके, हिंदू और हिंदुत्व की बात करने वाले को लांछित कर, हिंदू समाज को बांटकर अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध कर लेती थी लेकिन  कांग्रेस है कि मानती नहीं.





सेलुलर जेल में प्रदर्शन हेतु रखा कोल्हू)





विश्व के इतिहास में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं  मिलता जो कवि हो, लेखक हो, महान चिन्तक हो, और  क्रांतिकारी भी हो लेकिन विनायक दामोदर सावरकर में यह सब कुछ था, जो उन्हें अन्य सभी समकालीन राजनेताओं से बिल्कुल अलग व्यक्तित्व बनाता है. यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि वह विश्व के अत्यंत  प्रतिभावान दुर्लभ राजनेताओं में से एक है, जिनकी राष्ट्रसेवा और विचारधारा को कलंकित करने का महापाप किया गया. भारत की स्वतंत्रता में वीर सावरकर का योगदान अमूल्य है. उन्होंने देश के भीतर और बाहर रहते हुए आज़ादी के लिए क्रांतिकारी गति विधियां चलाई और अंग्रेज़ों के विरुद्ध अभियान छेड़कर, ब्रिटिश सरकार की नाक में दम कर दिया. सावरकर से  घबराकर अंग्रेज़ी सरकार ने 1910 में उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा दी. 1911 में उन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया. विश्व इतिहास में ये पहली घटना है जब किसी व्यक्ति को दो-दो बार आजीवन कारावास की सज़ा दी गई हो.


      ( वीर सावरकर की कोठारी के के अन्दर का द्रश्य  फोटो स्वयं )


स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में जवाहरलाल नेहरू राजनीतिक रूप से शक्तिशाली कभी नहीं रहे लेकिन चूंकि उनका शक्तिपुंज गाँधी और एडविना माउंटबेटन थे, वह अपने समकालीन सभी स्वतंत्रता सेनानियों और राजनेताओं पर भारी पड़ते थे और उन्हें सत्ता हथियाने और सत्ता का केंद्र बनने में कभी  कोई मुश्किल सामने नहीं आई. बावजूद इसके राजनीतिक रूप से वह  सदैव अपने आप को असुरक्षित महसूस करते थे और हर उस व्यक्ति को किसी न किसी तरह निपटाने का काम करते थे जिससे उन्हें राजनीतिक खतरा होता था. वीर सावरकर के व्यक्तित्व को भी इसी तरह कलंकित करने का कार्य किया गया ताकि हिंदू समाज उनकी विचारधारा से प्रभावित होकर नेहरू को राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग थलग न कर दें. नेहरू के संरक्षण में चाटुकार इतिहासकारों ने भारतीय सनातन संस्कृति को कलंकित करने के साथ साथ भारत के महान विचारको और मनीषियों को लांछित करने का कार्य किया ताकि हिंदू समाज कभी एक न हो सके और अंग्रेजों की तरह नेहरू परिवार निर्बाध रूप से भारत की सत्ता पर कब्जा जमाए रख सके, चाहे भारत राष्ट्र नष्ट ही क्यों न हो जाए.

1910 में  वीर सावरकर को नासिक के कलेक्टर की हत्या के आरोप में लंदन से गिरफ्तार किया गया था और  पहले उनके भाई को भी इसी मामले में गिरफ्तार किया जा चुका था. उन पर आरोप था कि उन्होंने लंदन से अपने भाई को एक पिस्टल भेजी थी, जिसका हत्या में इस्तेमाल किया गया था. उन्हें दो दो बार आजीवन कारावास दिया गया था जिसके लिए उन्हें  अंडमान की सेल्युलर जेल की काल कोठरी में डाल दिया गया. नौ वर्ष से अधिक समय तक वह जिस 7x13 फिट की कोठरी में रहे  उसी में उन्हें लघु शंका और कभी कभी दीर्घशंका भी करनी होती थी. उसी कोठरी में कंकड़ की सहायता से उन्होंने दीवारों पर 66 कविताएं लिखीं और कंठस्थ की, जिन्हें जेल से छूटने के बाद ही कागज पर उतारा जा सका. जेल के सभी कैदियों को जानवर की तरह कोल्हू में कंधा देकर तेल निकालना होता था और नारियल तोड़कर उनकी रेसे निकालने का काम दिया जाता था. काम में देर होने या पूरा न होने पर कैदियों को भयानक अमानवीय यातनाएं दी जाती थी. सावरकर की कोठरी के नीचे ही फांसीघर था, जहाँ दो तीन कैदियों को रोज़ फांसी दी जाती थी, जिससे उनके व्यक्तित्व और मानसिक स्थिति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा था. इस स्थिति में उन्होंने अपने और अन्य कैदियों को जेल से मुक्त करने के लिए लिए अंग्रेजी शासन को कई बार पत्र लिखा, जिसे आज कांग्रेस द्वारा उनके माफीनामे के तौर पर प्रचारित किया जाता है और उनकी राष्ट्रभक्ति और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाए जाते हैं.  

वीर सावरकर और जवाहरलाल नेहरू के कैदी जीवन की तुलना नहीं की जा सकती है. नेहरू बहुत कम समय जेल में रहे जहाँ उनसे  नाश्ते और खाने का मीनू पूछा जाता था, उन्हें जरूरत की सभी सुविधाएं मिलती थी. जब सावरकर कोल्हू से तेल निकाल रहे होते थे, नेहरू जेल में मनपसंद स्वादिष्ट भोजन करते थे, समाचार पत्र, पत्रकायें पढ़ते थे और आगंतुकों से मुलाकात करते थे. अपनी बेटी इंदिरा और अन्य नेताओं को पत्र लिखते थे,किताबें लिखते थे. जेल के कई संतरी उनकी सेवा में हमेशा उपस्थित रहते थे. अगर ऐसी जेल मिले तो आज भी भारत की बड़ी संख्या स्वेच्छा से पूरा जीवन जेल में ही व्यतीत करने के लिए तैयार हो जाएगी.

नेहरू के इशारे पर 1948 में गांधी की हत्या के छठवें दिन वीर सावरकर को गाँधी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया था. आज यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि तत्कालीन सरकार ने गाँधी की हत्या के षड्यंत्र को विफल करने का प्रयास नहीं किया जबकि षडयंत्र की सूचनाएं सरकार तक लोगों ने स्वयं पहुंचाई थी. आज तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि गांधी पर जान लेवा हमले के बाद भी उन्हें यथाशीघ्र अस्पताल क्यों नहीं पहुँचाया गया और उन्हें मृत घोषित करने के बाद पोस्टमॉर्टम क्यों नहीं कराया गया. घटनास्थल पर भी पुलिस ने किसी को भी पकड़ने का प्रयास नहीं किया, नाथूराम गोडसे स्वयं जाकर पुलिस के हवाले हुआ था, अगर वह चाहता तो सफलतापूर्वक भाग सकता था.

गाँधी की हत्या के बाद सरकार ने हत्या की गुत्थी सुलझाने में कम, हिंदूवादी शक्तियां को फंसाने का प्रयास ज्यादा किया. वीर सावरकर को गिरफ्तार करने में भी सरकार के इरादे नेक नहीं दिखाई पड़ते क्योंकि कोई साक्ष्य न होने के कारण उन्हें फरवरी 1949 में रिहा कर दिया गया. ऐसा लगता है कि सरकार ने यह सब वीर सावरकर की  छवि खराब करने और गाँधी हत्या का दोष हिंदू समुदाय के मत्थे मढने ले लिए किया जिसका उद्देश्य समझना मुश्किल नहीं है.  

सावरकर के विरुद्ध दुष्प्रचार में कांग्रेस को स्वाभाविक रूप से वामपंथियों और मुस्लिम समुदाय का समर्थन प्राप्त होता है, क्योंकि सनातन संस्कृति को विकृत रूप में प्रस्तुत करना, हिन्दुत्ववादी शक्तियां को लांछित कर कमजोर करना, हिंदू समाज को बांटकर अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करना, इन सब का पुराना अजेंडा है. अब स्थितियां पूरी तरह से बदल चुकी है, बदलते भारत में अब इस तरह के दुष्प्रचार और स्वार्थ सिद्धि के प्रयास सफल नहीं हो पाएंगे.

देश के सभी प्रमुख नेताओं ने कभी भी उनकी देशभक्ति पर सवाल नहीं उठाएं और उन्हें महान स्वतंत्रता सेनानी बताया. स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के कारण ही संसद भवन में गांधी के ठीक सामने उनकी तस्वीर लगाई गई है. अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें भारत रत्न देने की तैयारी की थी जिसपर तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायण ने राजनीतिक कारणों से सहमति नहीं दी. अब समय आ गया है कि वर्तमान सरकार देर से ही सही स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका और राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को रेखांकित करने के लिए उन्हें यथाशीघ्र भारत रत्न प्रदान करें.

हाल ही में असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व सरमा  ने राज्य के एक हजार छात्रों को अंडमान की सेल्युलर जेल का अध्ययन करने के लिए भेजने की घोषणा की है, जो अत्यंत सराहनीय है. निश्चित रूप से इस से वीर सावरकर सहित अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की राष्ट्रभक्ति और  स्वतंत्रता के लिए किए गए अप्रतिम बलिदान की कहानी रेखांकित हो सकेगी. अच्छा तो यह होगा कि अन्य राज्य सरकारे भी इस तरह के कदम उठाए ताकि वीर सावरकर सहित कांग्रेस सरकार के प्रतिशोध और उपेक्षा का शिकार हुए अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बारे में छात्रों और देश को जानकारी उपलब्ध हो.

-             -    शिव मिश्रा

 

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